अच्छा सोचेंगे तो सब अच्छा होगा !

अच्छा सोचेंगे तो सब अच्छा होगा …
बुरी बातें सोचने से बुरी बातें हो जाती हैं, जानिए क्या है ऐन्टिसिपेशन का विज्ञान

दिन मुश्किलों से भरा हो, मन उदास हो या किसी की याद आ रही हो तो ऐसी स्थिति में आराम से बैठकर किसी अच्छी चीज की कल्पना करिए। मसलन, सोचिए कि आप दोस्तों के साथ किसी सुदूर पहाड़ की तलहटी में बैठे हैं। ठंडी हवा चल रही है। सुकून भरे माहौल में चाय और बतकही का दौर जारी है।

बस इतना करने मात्र से बॉडी में हैप्पी हॉर्मोन का एक झोंका आएगा। तन और मन रिलैक्स होते जाएंगे और देखते-ही-देखते उदास बैठे शख्स के चेहरे पर मुस्कान खिल उठेगी। क्योंकि उस शख्स के मन का एक कोना इस सोच को पहाड़ की असली यात्रा मान रहा होगा।

ये बातें किसी प्रीचर टाइप के मोटिवेशनल स्पीकर की नहीं हैं। मनोविज्ञान की साइंटिफिक रिसर्च में भविष्य की सुखद कल्पना यानी ऐन्टिसिपेशन को मौजूदा खुशियों के लिए अहम बताया गया है।

आज रिलेशनशिप कॉलम में इसी ऐन्टिसिपेशन की बात करेंगे। साथ ही सोच के सहारे सपनों के करीब जाने के रहस्य के बारे में भी जानेंगे।

क्या है ऐन्टिसिपेशन का साइंस, कैसे करता है काम

आसान भाषा में ऐन्टिसिपेशन को पॉजिटिव सोच कह सकते हैं। लेकिन यह किसी खास मुद्दे पर पॉजिटिव या निगेटिव राय रखने से संबंधित नहीं है। बल्कि यह एक साइकोलॉजिकल टेक्निक है, जिसमें मन को सुखद एहसास कराया जाता है। अच्छे और खुशगवार लम्हों की कल्पना की जाती है। जो काम पसंद हो, उसके बारे में शांत मन से सोचा जाता है।

सोच में बसती हैं खुशियां, यह इमोशनल हेल्थ के लिए जरूरी

साइकोलॉजी टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक किसी घटना के बारे में ऐन्टिसिपेशन यानी सुखद कल्पना उस घटना से भी ज्यादा खुशियां दे सकती है।

उदाहरण के लिए अगर किसी शख्स को समुद्र के किनारे बैठना और डूबते या उगते सूरज को निहारना पसंद है तो इस घटना के बारे में सोचना उसे बिल्कुल उसी तरह की खुशियां देगा, जैसा उसे वास्तव में समुद्र किनारे जाने पर महसूस होता है। यही ऐन्टिसिपेशन का विज्ञान है।

वेकेशन से ज्यादा खुशियां उसकी प्लानिंग में

अगर सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं तो उस मीम से परिचित ही होंगे, जिसमें कुछ दोस्त गोवा जाने की प्लानिंग करते हैं, लेकिन उनकी प्लानिंग कभी मूर्त रूप नहीं ले पाती।

मीम ही क्यों! संभव है कि आपने भी ऐसी कई प्लानिंग और वादे कर रखे होंगे, जिनके पूरे होने की उम्मीद कम ही है। फिर हम ऐसी प्लानिंग्स करते ही क्यों हैं? क्या इसका कुछ फायदा है या इन प्लानिंग्स के फेल होने से वेलबीइंग और रिश्तों पर किसी तरह का नकारात्मक असर पड़ता है?

साइकोलॉजी टुडे की मानें तो ये प्लानिंग्स हमारी जिंदगी की छोटी-छोटी खुशियों के लिए काफी अहम हैं।

रिसर्च के दौरान पाया गया कि जब लोग अपनी पसंदीदा एक्टिविटी के बारे में सोचते या किसी तरह का प्लान बनाने हैं तो उनके ब्रेन में रिवॉर्ड सिस्टम एक्टिव होता है। ऐसी स्थिति में डोपामाइन रिलीज होने से शख्स खुशी का अनुभव करता है।

मुश्किल वक्त में एस्पिरेशन बोर्ड से जाहिर करें अपनी फीलिंग्स

सामान्य वक्त में खुशियां देने के साथ ही ऐन्टिसिपेशन मुश्किल वक्त में तनाव, एंग्जाइटी और डिप्रेशन से बाहर निकालने की क्षमता भी रखता है। ऐसी स्थिति में एस्पिरेशन बोर्ड टेक्निक मददगार साबित हो सकती है।

इसके लिए अपनी पसंदीदा एक्टिविटी, थॉट या याद को डायरी में नोट करें या फोटो, स्केच, ग्राफिक वगैरह की मदद से कहीं इकट्‌ठा करें। इन चीजों की मदद से एक ऐसा बोर्ड तैयार करें, जो पसंदीदा एक्टिविटी, थॉट या याद को ताजा कर सकता है। साइकोलॉजी टुडे की रिपोर्ट बताती है कि इस एस्पिरेशन बोर्ड को तैयार करने के दौरान ही मूड काफी हद तक बेहतर हो जाता है। बाकी का काम एस्पिरेशन बोर्ड को देखने से पूरा हो जाता है।

समझें सीक्रेट लॉ ऑफ अट्रैक्शन

साल 2006 में रोंडा बर्न की एक किताब आई थी, ‘द सीक्रेट’। देखते-ही-देखते यह किताब दुनिया भर में चर्चा का विषय बनी और आगे चलकर बेस्ट सेलिंग भी साबित हुई। इस किताब में रोंडा बर्न एक ऐसे रहस्य की बात करती हैं, जिसके सहारे लाइफ में मनचाही चीज या खुशियां हासिल की जा सकती हैं।

रोंडा बर्न इस सीक्रेट को ‘लॉ ऑफ अट्रैक्शन’ बताती हैं। इसके मुताबिक हम जैसा सोचते हैं, वैसी चीजों को अपनी ओर आकर्षिक करते हैं। यही आकर्षण का रहस्य ऐन्टिसिपेशन में भी काम करता है। इसमें पॉजिटिव थॉट्स के सहारे मन को खुशियां दी जाती हैं।

‘द सीक्रेट’ के मुताबिक अगर मन-ही-मन बुरी कल्पनाएं करें तो ऐन्टिसिपेशन का उल्टा असर भी हो सकता है। जिस तरह हम ऐन्टिसिपेशन यानी भविष्य की सुखद कल्पना से खुश होते हैं, वैसे ही भविष्य की चिंता में डूबे रहने से हमारी मौजूदा खुशियों में ग्रहण भी लग सकता है।

दूसरी ओर, ‘लॉ ऑफ अट्रैक्शन’ यह भी बताता है कि हम जिस किसी भी चीज के बारे में दिल से सोचते हैं, हमारी जिंदगी में उसका आगमन हो जाता है।

ऐसे में बेहतर तो यही है कि जहां तक संभव हो सके निगेटिव थॉट्स और कुछ बुरा हो जाने की आशंका को मन से दूर रखा जाए। जितना संभव हो, अच्छे की उम्मीद की जाए और खाली वक्त में अच्छी यादों और सपनों के सहारे खुद को खुशियों का तोहफा दिया जाए।

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