परीक्षाओं की खोई हुई साख लौटे तो बात बने!

परीक्षाओं की खोई हुई साख लौटे तो बात बने!

इन ज़रूरी कामों में सबसे पहला काम प्रतियोगी परीक्षाओं की खोई हुई साख लौटाने का हो तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। लाखों बच्चों का भविष्य इसी पर निर्भर करता है। उनके पेरेंट्स की चिंता भी इसी से मिटेगी।

नीट का झमेला चल रहा है। देशभर में। कहीं से पर्चा लीक होने के भेद खुल रहे हैं। कहीं से ओएमआर शीट में गड़बड़ी के नमूने आ रहे हैं। ग्रेस मार्क्स का भेद अब तक खुल नहीं पाया है। दुविधा यह है कि जो बच्चे इस पर्चा लीक का लाभ ले चुके या जिन्हें ग्रेस मार्क्स का फ़ायदा मिला, वे तो संख्या में बहुत कम हैं, ज़्यादातर बच्चे तो वे हैं जिनका धांधली के इस पूरे घटनाक्रम से कोई वास्ता ही नहीं है।

असल परेशानी इन्हीं बच्चों की है। वे अपने ही वजूद की आँच के आगे खड़े होकर तप रहे हैं। किसी अदृश्य पीड़ा के ताप से। किसी दहाड़ती हुई चुप्पी के शोर से। कई सवाल हैं उनके मन में। यदि परीक्षा रद्द हो गई तो दोबारा देनी होगी? दोबारा इतने मार्क्स आ पाएंगे या नहीं, यह कैसे कह सकते हैं? परीक्षा रद्द नहीं हुई तो अदालती फ़ैसलों से पहले काउंसिलिंग होगी या नहीं? काउंसिलिंग हो भी गई और उसके बाद फ़ैसला कुछ और आ गया तो क्या होगा?

और सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर दोबारा परीक्षा हुई, तो उसमें कोई धांधली नहीं होगी, इसकी गारंटी क्या? उधर, पेरेंट्स अपने बच्चों से भी ज़्यादा परेशान हैं। बुरा हाल है। भावनात्मक उबाल अपने चरम पर है।

भावनात्मक इसलिए कि हम हिंदुस्तानी माता-पिताओं के लिए बच्चों का भविष्य बड़ा भावुक विषय होता है। दरअसल माता-पिता किसी समस्या या अड़चन के कारण अपने जीवन में जो नहीं कर पाए, वह सब अपने बच्चों से करवाना चाहते हैं। मैं किसी वजह से डॉक्टर नहीं बन पाई तो अपनी बच्ची से वह सपना पूरा करवाकर ही मन को शांति मिलेगी।

इस तरह के सपने हर पेरेंट पाले रहता है। सही भी है। ये बात और है कि कई बार अपने सपने को बच्चों से पूरा करवाने की इस जिद में कई बार हम उनकी रुचि को तवज्जो नहीं दे पाते। लेकिन चूँकि परीक्षा हो चुकी है इसलिए यहाँ मामला रुचि का नहीं है।

साफ-सुथरी और साख वाली परीक्षा प्रणाली ही अब लाखों बच्चों और उनके माता- पिताओं को तसल्ली दे सकती है। इसका कोई शॉर्ट कट भी नहीं हो सकता। परीक्षा प्रणाली की साख को बनाने और बनाए रखने में तो सरकार के गठबंधन साथियों की तरफ़ से भी कोई आपत्ति नहीं आएगी।

वैसे भी अब तक गठबंधन सरकार होने के बावजूद इस बार काफ़ी मज़बूती के साथ मोदी सरकार अग्रसर है। मंत्रिमंडल उनकी मर्ज़ी से बना और काफ़ी ताकतवर बना। बड़े दिनों से लोकसभा अध्यक्ष (स्पीकर) को लेकर तरह- तरह की अफ़वाहें चल रही थीं।

कोई कह रहा था कि टीडीपी की ओर से स्पीकर पद की शर्त रखी गई है। कोई कह रहा था कि आंध्र भाजपा की अध्यक्ष जो चंद्रबाबू नायडू की साली भी हैं, को स्पीकर बनाया जा सकता है। लेकिन तमाम अफ़वाहों और आशंकाओं को निर्मूल साबित करते हुए मोदी सरकार ने अपनी ओर से पुराने स्पीकर ओम बिरला का ही नाम आगे बढ़ा दिया है।

संभवतया वे बुधवार को अठारहवीं लोकसभा के अध्यक्ष चुन भी लिए जाएँगे। कुल मिलाकर सरकार अब किसी भी फ़ैसले के लिए स्वतंत्र है और सक्षम भी। इसलिए परीक्षा प्रणाली की साख लौटाने का कोई भी फ़ैसला सरकार पूरी ज़िम्मेदारी के साथ ले ही सकती है।

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