भारत की अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण है असंगठित मजदूर ?
अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान, भारत में असंगठित मजदूरों के दम पर जलते हैं करोड़ों घरों के चूल्हे
असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के पास रोजगार अनुबंध या कानूनी सुरक्षा नहीं होती. उनके काम करने का समय या वेतन भी नियमित नहीं होता है न ही उन्हें नौकरी की सुरक्षा का आश्वासन दिया जाता है.
हाल ही में असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों की एक रिपोर्ट सामने आई है. लोकसभा में जारी इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के कुल कार्यबल का 90 प्रतिशत मजदूर असंगठित कामगार हैं, यानी भारत का 90 फीसदी कार्यबल ऐसे क्षेत्रों में काम करता है जहां उन्हें औपचारिक सुरक्षा, नियमित वेतन और सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पाता.
असंगठित क्षत्रों में काम करने वाले मजदूरों को आमतौर पर कॉन्ट्रैक्ट या अस्थायी आधार पर रखा जाता है. इतना ही नहीं उनके कामकाज के नियम और शर्तें भी व्यवस्थित नहीं होतीं. असंठित मजदूर न सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत हैं बल्कि भारत के करोड़ों घरों के चूल्हें इन्हीं कामगारों के कारण जलते हैं.
ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि आखिर ये असंगठित क्षेत्र क्या है और इस क्षेत्रों में काम करने वाले कामगार भारत के अर्थव्यव्यवस्था के लिए कैसे जरूरी हैं.
सबसे पहले समझिए की असंगठित क्षेत्र क्या है
- असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के पास रोजगार कॉन्ट्रैक्ट या कानूनी सुरक्षा नहीं होती. इतना ही नहीं उनके काम करने का समय या वेतन भी नियमित नहीं होता है और उन्हें नौकरी की सुरक्षा का आश्वासन भी दिया जाता है.
- असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे लोगों कों आमतौर पर पेंशन, स्वास्थ्य बीमा और अन्य सामाजिक सुरक्षा जैसे लाभ नहीं मिलते हैं. इतना ही नहीं इस क्षेत्र के श्रमिकों को बोनस, छुट्टियां जैसी किसी भी तरह की कर्मचारी कल्याण योजनाओं का लाभ नहीं मिलता.
- असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोग आमतौर पर छोटे और अस्थायी काम करते हैं. उन्हें वेतन भी काफी कम मिलता है और उनका भुगतान अनियमित होता है. कई बार उन्हें समय पर वेतन नहीं मिलता और उनके काम के अनुसार सही भुगतान नहीं किया जाता.
असंगठित क्षेत्र के प्रमुख उदाहरण
खेती या खेती से जुड़ा कोई भी काम, निर्माण मजदूर, राजमिस्त्री, घरेलू सहायिका, सफाई कर्मचारी, फुटपाथ विक्रेता, छोटे दुकानदार, हस्तशिल्पी, बुनकर, कुम्हार, ऑटो रिक्शा चालक, धोबी और मोची जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों को असंगठित कामगार की कैटेगरी में रखा गया है.
देश के 90 प्रतिशत कामगारों का इस क्षेत्र में काम करने का एक कारण ये भी है कि यहां काम करने के लिए किसी खास स्किल या प्रशिक्षण की जरूरत नहीं होती है.
भारत की अर्थव्यवस्था के लिए असंगठित कामगार कितने जरूरी
भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में असंगठित मजदूरों का महत्वपूर्ण योगदान है. इनके बिना लाखों घरों में रोजमर्रा का जीवन चलाना मुश्किल हो जाता है. इसे आसान भाषा में ऐसे समझें कि देश के कृषि कार्य, निर्माण कार्य, घरेलू कामकाज में इन कामगारों का योगदान है.
कृषि कार्य: भारत के कृषि क्षेत्र में अधिकांश मजदूर असंगठित हैं. ये मजदूर खेतों में काम करके फसल उगाते हैं, जिससे देश के लोगों को खाद्य सामग्री प्राप्त होती है. इनकी मेहनत के बिना कृषि उत्पादन संभव नहीं होता.
निर्माण कार्य: असंगठित मजदूर की बड़ी संख्या निर्माण क्षेत्र में काम कर रही है. इनके योगदान के बिना इमारतें, सड़कें, पुल और अन्य बुनियादी ढांचे नहीं बन सकते. ये मजदूर दिन-रात एक करके हमारे घरों और शहरों को विकसित करने में मदद करते हैं.
घरेलू कामकाज: हमारे घरों में काम करने वाले सफाई कर्मचारी, रसोइया भी असंगठित क्षेत्र का ही हिस्सा हैं. इन लोगों का हमारे घरों को साफ-सुथरा रखने में अच्छा खासा योगदान है. इतना ही नहीं असंगठित मजदूर खाना बनाने और अन्य घरेलू कार्यों में मदद करते हैं, जिससे घर के सदस्य अन्य कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं.
छोटे व्यवसाय और दुकानदार: असंगठित क्षेत्र में छोटे दुकानदार, सड़क किनारे के विक्रेता और छोटे उद्यमी शामिल होते हैं. ये लोग आवश्यक वस्त्र, भोजन और अन्य सामग्रियां प्रदान करते हैं, जिससे आम लोगों की दैनिक आवश्यकताएं पूरी होती हैं.
हस्तशिल्प और कारीगर: हस्तशिल्पी और कारीगर भी असंगठित क्षेत्र में शामिल होते हैं, जो हाथ से बना हुआ वस्त्र, गहने और अन्य हस्तशिल्प वस्त्र बनाते हैं. इनके प्रोडक्ट न सिर्फ भारत की संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं, बल्कि लाखों लोगों की रोजी-रोटी का साधन भी है.
सेवा क्षेत्र: भारत के अलग अलग सेवा क्षेत्रों में असंगठित मजदूर कार्यरत होते हैं. जैसे कि ऑटो रिक्शा चालक, धोबी, मोची, और अन्य सेवाएं प्रदान करने वाले. ये लोग हमारी दैनिक जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
भारत में असंगठित कामगारों की संख्या
भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों की संख्या काफी बड़ी है. साल 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, असंगठित क्षेत्र में लगभग 43.99 करोड़ लोग काम कर रहे थे.
महिलाएं और बच्चे भी है असंगठित क्षेत्रों का हिस्सा
श्रम और रोजगार मंत्रालय के श्रम ब्यूरो द्वारा प्रकाशित महिला श्रमिक आंकड़ा 2012-13 के अनुसार साल 2011 में कुल कार्यबलों में महिलाओं की भागीदारी 25.63 प्रतिशत थी. जिसमें 30 प्रतिशत महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों में और 15 प्रतिशत महिलाएं शहरी क्षेत्रों में काम कर रहे थे. ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाएं ज्यादातर कृषि क्षेत्रों में काम कर रही थी. वहीं शहरी क्षेत्रों की लगभग 80 प्रतिशत महिलाएं असंगठित क्षेत्रों जैसे छोटे-मोटे व्यापार और सेवाएं, भवन और निर्माण आदि के कार्यों में लगी है.
अर्थव्यवस्था में असंगठित मजदूरों का योगदान
हमारे देश की अर्थव्यवस्था में असंगठित मजदूरों या क्रमिकों का योगदान महत्वपूर्ण है. विभिन्न स्रोतों की मानें तो असंगठित क्षेत्र में कार्यरत मजदूरों का कुल श्रमशक्ति का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा है. सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए गए विभिन्न रिपोर्ट्स और आंकड़ों के अनुसार, असंगठित क्षेत्र भारत की GDP में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है.
भारत सरकार ने इस कामगारों के लिए क्या किया
केंद्र सरकार ने साल 2020 में ई-श्रम योजना शुरु की थी. इस योजना को असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को आर्थिक सुरक्षा देने के लिए चलाया गया है. केंद्र सरकार तरफ से इस योजना के तहत असंगठित कामगारों को आर्थिक सहायता के अलावा 2 लाख रुपये का दुर्घटना बीमा दिया जाता है. नवंबर 2022 तक भारत में लगभग 28.42 करोड़ लोग ई-श्रम कार्ड (E-Shram Card ) बनवा चुके थे. असंगठित क्षेत्र में काम करने वाला कोई भी भारतीय नागरिक जिसकी उम्र 16 से 59 वर्ष के बीच है, वह इस योजना में पंजीकृत हो सकता है.
क्या है ई-श्रम कार्ड के फायदे
ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्टर्ड कामगारों को 2 लाख रुपये का एक्सीडेंट बीमा कवर दिया जाता है. इसका मतलब है कि अगर श्रमिक किसी हादसे का शिकार हो जाता है, तो मृत्यु या फिर विकलांगता की स्थिति में उन्हें 2 लाख रुपये की राशि दी जाएगी. आंशिक रूप से विकलांग होने पर एक लाख रुपये की सहायता मिलती है.