भोले बाबा को क्या बचा रही सरकार …. भोले बाबा उर्फ सूरज पाल की असली कहानी !
भोले बाबा दान नहीं लेता पर 100 करोड़ का मालिक
पश्चिमी यूपी में 24 से ज्यादा आलीशान आश्रम, लग्जरी कारों का काफिला साथ चलता है
100 करोड़ से ज्यादा के आश्रम और जमीन। लग्जरी कारों का काफिला। आलीशान आश्रम और 80 सेवादार। यह शान-ओ-शौकत है भोले बाबा की। उस पर बाबा का दावा यह कि वह एक पैसे भी दान नहीं लेता।
यही लोग बाबा के अनुयायी हैं। पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश में 50 लाख से ज्यादा दलित सीधे बाबा के आश्रम से जुड़े हैं। अनुयायियों में महिलाओं की संख्या ज्यादा है। इस क्षेत्र में 27 लोकसभा और 137 विधानसभा की सीटें आती हैं। यही वजह है, हादसे के बाद हर पॉलिटिकल पार्टी भोले बाबा का नाम लेने से बच रही।
भोले बाबा उर्फ सूरज पाल की असली कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। भोले बाबा के हाथरस सत्संग में मची भगदड़ में 123 लोगों की मौत हुई। मगर, FIR में बाबा का नाम तक नहीं है। घटना के बाद से वह गायब है। मैनपुरी में उसके आश्रम के बाहर 50 से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात हैं।
बाबा के साम्राज्य की पड़ताल की। 4 आश्रमों में गई। उसके सिस्टम को समझा। सत्संग करवाने के नियम और कानून जाने। दान देने के तरीके को देखा। उन लोगों से मिले और बात की, जो बाबा के कार्यक्रम तय करते हैं। आइए सब कुछ सिलसिलेवार जानते हैं…
पहले बाबा की लग्जरी लाइफ जानिए…
सेवादारों की फौज: जब आश्रम से बाबा का काफिला निकलता है तो उसकी गाड़ी के पीछे सैकड़ों सेवादारों की फौज दौड़ती है। ये उसकी सुरक्षा में हमेशा तैनात रहते हैं। बाबा पुलिस प्रशासन पर भरोसा नहीं करता है। वो जहां जाता है, उसके निजी सेवादार और खुद की आर्मी साथ रहती हैं। बाबा की फौज में शामिल सेवादार गुलाबी रंग की वर्दी पहनते हैं। इस फौज में भर्ती के लिए आवेदन भी करना पड़ता है।
6 आलीशान कमरों में रहता है: बाबा मैनपुरी के आलीशान आश्रम में रहता है। यहां 6 बड़े कमरे उसके और उसकी पत्नी के लिए रिजर्व हैं। बिना अनुमति के यहां कोई नहीं जा सकता। 80 सेवादार तैनात रहते हैं। बाबा का यह आश्रम करीब 21 बीघा में फैला हुआ है। बाबा को नजदीक से जानने वालों ने बताया कि बाबा के पास 100 करोड़ से ज्यादा के आश्रम और जमीन है। सभी आश्रम ट्रस्ट के नाम हैं।
बाबा का काफिला: भोले बाबा के काफिले में हर समय 25 से 30 लग्जरी कारें रहती हैं। बाबा खुद फॉर्च्यूनर से चलता है। हाथरस में सत्संग करने भी बाबा 15 गाड़ियों के काफिले के साथ पहुंचा था।
पहले उस आश्रम की कहानी, जहां बाबा रहता है…
चार करोड़ का आश्रम, 80 सेवादार
भोले बाबा के नाम से चर्चित सूरज पाल का यूपी में मेन ठिकाना मैनपुरी का बिछुआ आश्रम है। यूपी में कहीं भी कार्यक्रम हो बाबा यहीं से जाता और आता है। यह आश्रम करीब 3 साल पहले बना है। बाबा अब तक यहां दो बार आ चुका है। अबकी बार 10 मई को वह ग्वालियर के आश्रम से यहां आया था। उसे अगले 6 महीने तक यहीं रहना था। इस दौरान उसे हाथरस के अलावा आगरा में भी बड़े कार्यक्रम करने थे।
21 बीघे में फैले इस आश्रम का मालिक सीधे तौर पर भोले बाबा यानी सूरज पाल नहीं है। यह राम कुटीर चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम पर है। आश्रम के मुख्य गेट पर इसके निर्माण में दान देने वाले 200 लोगों की सूची है। इसमें सबसे अधिक ढाई लाख और सबसे कम 10 हजार का दान दिया गया। अगर हम जमीन को भी जोड़ लें तो इस आश्रम की कीमत करीब 4 करोड़ बैठती है।
सूरज पाल से जुड़े भक्त बताते हैं कि आश्रम में करीब 80 लोग सेवादार के रूप में बिना पैसे के काम करते हैं। कुछ लोग गेट पर खड़े होते हैं तो कुछ साफ-सफाई व खाना बनाने का काम करते हैं।
अब बाबा के दूसरे आश्रमों को जानिए
कानपुर: 14 बीघा में आश्रम, गांव वालों में रहता है खौफ
कानपुर में बाबा का एक आश्रम 14 बीघे में फैला हुआ है। आश्रम के आसपास ऐसा खौफ है कि गांव के लोग वहां से निकल नहीं सकते। दैनिक भास्कर टीम कानपुर से लगभग 21 किमी दूर बिधनू इलाके के कसुई गांव पहुंची।
आश्रम का भवन तीन बीघे में बना है। यहां पर हमें गेट पर कसुई गांव के गोरेलाल मिले। उन्होंने बताया- यहां पर करीब 10 सेवादार रहते हैं, जो आश्रम में रहकर पूजा-पाठ करते हैं।कसुई गांव के विजय ने हमें बताया- आश्रम की देखरेख वह खुद करते हैं। कमेटी में वह संरक्षक पद पर हैं। आश्रम के अध्यक्ष अनिल तोमर हैं। भवन के अंदर वीवीआईपी व्यवस्था हैं।
गांव वालों के मुताबिक, पूर्व में कई थाना प्रभारी व पुलिस कर्मियों को आश्रम से ही टिफिन जाता था। ऐसा इसलिए कि अगर ग्रामीणों से कोई विवाद हो तो पुलिस आश्रम के लोगों का पक्ष लेती थी। गांव के रहने वाले अशोक ने बताया कि आश्रम के आगे से उनके खेत जाने के लिए रास्ता है। जब आश्रम बना तो उन्हें लगा कि अब खेत में आने-जाने के लिए रास्ता साफ सुथरा हो गया। उन्हें क्या पता था कि आश्रम के सेवादार उन्हें वहां से निकलने नहीं देंगे। जब वे लोग खेतों में जाने के लिए आश्रम के सामने से निकलते हैं। तो अध्यक्ष उन्हें रोकते हैं। कई बार तो मारपीट होने से मामला थाने तक पहुंच चुका है। इन मामलों में पुलिस हमेशा आश्रम का पक्ष लेती है। इस वजह से यहां रहने वाले ग्रामीणों में खौफ बना रहता है।
सेवादार बोले- हमारी आस्था जुड़ी है
हम कसुई गांव से वापस लौट रहे थे। हमीरपुर जिले के छानी विवार गांव निवासी कुसुम अपनी बहू आरती के साथ आश्रम जा रही थी। उन्होंने बताया कि वह दो महीने में चार दिन आश्रम में आकर सेवा करती हैं।
इटावा: 15 बीघा में आश्रम, नाराज बाबा नहीं आते
इटावा शहर से लगे सराय भूपत के कटे खेड़ा गांव में बाबा का आश्रम बना हुआ है। 15 बीघा भूमि पर यहां सत्संग स्थल का निर्माण गांव के लोगों ने करवाया था। इसमें कई कमरे, बड़ा हॉल और बाहर मंच बना हुआ है। उसके बाहर खाली जगह लोगों के बैठने के लिए बनी हुई है। मौके पर जाकर देखा गया तो सत्संग स्थल पर ताला लगा हुआ है। वहां कोई भी नहीं था।
स्थानीय युवक ललित कुमार के मुताबिक, करीब ढाई साल पहले बने इस सत्संग स्थल पर छोटे-मोटे कार्यक्रम तो हुए हैं, लेकिन अभी तक यहां भोले बाबा नहीं पहुंचे हैं। बाबा किसी बात से नाराज हो गए थे, जिस वजह से यह आश्रम खाली पड़ा हुआ है। इसकी देखरेख गांव की कमेटी करती है। इस आश्रम के निर्माण के लिए गांव वालों से चंदा लिया गया था।
नोएडा में आलीशान आश्रम, डेढ़ साल पहले आए थे
नोएडा के डूब क्षेत्र स्थित सेक्टर-87 इलाबांस गांव में बाबा का आलीशान आश्रम है। आश्रम में बड़े-बड़े गेट लगे हुए हैं। बताया जा रहा है कि काफी समय से बाबा यहां नहीं आए। साल 2022 में ग्रेटर नोएडा वेस्ट के सेक्टर-16 बी रोज याकूबपुर में समागम किया गया था। मानव मंगल मिलन सद्भावना समागम का आयोजन 1 नवंबर, 2022 को पहले मंगलवार को किया गया था, जिसका पोस्टर यहां लगा मिला।
कासगंज: यह पहला आश्रम, जहां से बाबा का साम्राज्य शुरू हुआ
बाबा के पैतृक गांव बहादुर नगर पटियाली में उनका भव्य आश्रम है। यह बाबा का पहला आश्रम था। यहीं से बाबा के साम्राज्य की शुरुआत हुई। आश्रम हरि चेरिटेबल ट्रस्ट के नाम पर है। कई बीघा जमीन पर बना है। बाबा के आश्रम में चौकसी के लिए चौकियां बनी हैं। पूरे आश्रम के चारों ओर ऊंची-ऊंची दीवारें हैं। बड़ा सा दरवाजा लगा है और लाल रंग की छत है। यह किले की तरह दिखता है। आश्रम के बाहर एक बड़ा बोर्ड लगा है, जिस पर लिखा है कि अंदर फोटो खींचना और वीडियो बनाना मना है।
पूरे यूपी में 25 आश्रम, हर जगह ‘हम कमेटी’
मैनपुरी के बिछुआ और कासगंज के पटियाली सहित यूपी में सूरज पाल के पास करीब 25 आश्रम हैं। हर जिले में उसने एक ट्रस्ट बना रखा है, साथ ही एक कमेटी भी। उसे ‘हम कमेटी’ के नाम से जानते हैं। अगर किसी को सत्संग करवाना है तो वह सीधे बाबा से संपर्क नहीं कर सकता। उसे अपने जिले की कमेटी से संपर्क करना होगा।
मैनपुरी में ‘हम कमेटी’ से जुड़े कलेक्टर सिंह बताते हैं कि सत्संग के लिए आम लोगों से चंदा नहीं लिया जाता। जो लोग कमेटी में होते हैं वही पूरा खर्च देखते हैं। कमेटी पहले सब कुछ देख लेती है और फिर बाबा के पास पर्ची लेकर जाती है। बाबा के हां कहने पर वहां तैयारी शुरू हो जाती है। हम जैसे उनके भक्त उस जगह पर जाकर साफ-सफाई करते हैं। पूरी व्यवस्था देखते हैं। बाबा किसी तरह का कोई दान नहीं लेते।
बाबा के कई अफसर भी भक्त, लेकिन दान लिस्ट में नाम नहीं
भोले बाबा के भक्त न सिर्फ आम आदमी ही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े अधिकारी भी हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां अक्सर बड़ी-बड़ी गाड़ियों के साथ लोग आते थे। वे सभी भोले बाबा के भक्त हैं, लेकिन सरकारी नौकरी होने के चलते नाम दान लिस्ट में नहीं लिखवाना चाहते। वो गुप्त दान करते हैं। वरना जितने लोगों का नाम लिखा है और दान मिला है, उससे इतना बड़ा आश्रम कैसे बनाया जा सकता है।
मैनपुरी में बैंक मैनेजर पद से रिटायर हुए सुरेश चंद्र सूरज पाल के भक्त हैं। वो कहते हैं कि हम करीब 20 साल से बाबा से जुड़े हैं। हमारे जैसे तमाम लोग भी बाबा के साथ हैं। सभी कमेटी से जुड़े हैं। जब भी कोई जरूरत पड़ती है, कमेटी के सभी लोग मिलकर फैसला लेते हैं।
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भोले बाबा को क्या बचा रही सरकार
पश्चिम यूपी की 26 जिलों में 22% दलित आबादी पर दबदबा; अखिलेश भी लगा चुके हैं हाजिर
यही लोग बाबा के अनुयायी हैं। पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश में 50 लाख से ज्यादा दलित सीधे बाबा के आश्रम से जुड़े हैं। अनुयायियों में महिलाओं की संख्या ज्यादा है। इस क्षेत्र में 27 लोकसभा और 137 विधानसभा की सीटें आती हैं। यही वजह है, हादसे के बाद हर पॉलिटिकल पार्टी भोले बाबा का नाम लेने से बच रही।
पहले पुलिस की FIR से समझिए, बाबा को कैसे बचाया
पुलिस ने जो FIR दर्ज की है। उसमें लिखा- मुख्य सेवादार देव प्रकाश मधुकर निवासी सिकंदराराऊ ने पहले के कार्यक्रमों में आई भीड़ की संख्या छिपाते हुए 80 हजार लोगों के जुटने की अनुमति मांगी थी। कार्यक्रम में कई प्रदेशों से अनुयायी आए थे। आयोजकों ने अनुमति की शर्तों का उल्लंघन किया। ढाई लाख लोगों के आने से जीटी रोड जाम हो गया।
उसी समय सूरजपाल उर्फ भोले बाबा प्रवचन खत्म कर बाहर निकले। लोग चरणों की धूल लेने गाड़ी के पीछे भागने लगे। पहले से चरण रज के लिए बैठे और झुके लोगों को भीड़ कुचलती चली गई। घायलों को अस्पताल भेजने में सेवादारों ने कोई सहयोग नहीं किया। यानी FIR में बाबा का नाम शामिल नहीं हैं। पहले ही उन्हें क्लीन चिट दे दी गई।
जबकि सभी मान रहे हैं कि बाबा के चरणों की धूल लेने की वजह से भगदड़ मची और 123 लोगों की मौत हो गई। हादसे के 40 से ज्यादा घंटे बीते चुके हैं, लेकिन बाबा से पूछताछ तक नहीं की गई। यह तक क्लियर नहीं हो पा रहा कि बाबा कहां पर है?
अब बाबा को बचाने की वजह जानिए…
बाबा के फॉलोअर्स
पश्चिम यूपी के 26 जिलों में बाबा का तगड़ा नेटवर्क है। इसके अलावा सेंट्रल यूपी के कुछ जिलों में भी उसके आश्रम हैं। हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और उत्तराखंड से उसके फॉलोअर्स समागम कार्यक्रम में पहुंचते हैं। ज्यादातर संख्या दलितों की होती है। कुछ ओबीसी वर्ग के लोग भी शामिल होते हैं। बड़ी संख्या महिलाओं की होती है। बाबा के कासगंज, एटा, मैनपुरी, इटावा और कन्नौज समेत दूसरे जिलों में 12 से अधिक आश्रम हैं, जो श्री नारायण साकार हरि चैरिटेबल ट्रस्ट से संचालित होते हैं।
बाबा के पैतृक गांव बहादुर नगर पटियाली में भव्य आश्रम है। साल 2000 में यहां लोग आते थे। जिनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा होती थी। सत्संग में आने वालों महिलाओं से बाबा सबसे पहले ‘साकार ही निराकार है और निराकार ही साकार है’ नाम लाइन पढ़वाते थे।
अब बाबा मैनपुरी के बिछुआ स्थित 21 बीघे में बने आश्रम में रहता है। आश्रम के अंदर फोटो खींचना और वीडियो बनाना मना है। मोबाइल पर बात भी नहीं करने दिया जाता। एटा के वरिष्ठ पत्रकार राजेश मिश्रा कहते हैं- बाबा का प्रभाव केवल पश्चिम में ही नहीं, पूरे उत्तर प्रदेश और आसपास के राज्यों में है।
बाबा की पॉलिटिकल पावर
पश्चिम उत्तर प्रदेश में 26 जिलों की 27 लोकसभा और 137 विधानसभा सीटों पर दलितों का प्रभाव है। यहां कुल वोटर्स में दलितों की संख्या 22% है, 17% OBC हैं। जिस हाथरस में हादसा हुआ, वहां 3 लाख वोटर्स दलित वर्ग से हैं। पड़ोसी जिले अलीगढ़ में यह संख्या 3 लाख से ज्यादा है।
कासगंज के वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत शर्मा बताते हैं- सीधे तौर पर बाबा किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े थे, लेकिन इनके कार्यक्रमों में इतना पैसा कहां से आता है? कहीं न कहीं राजनीतिक दलों और बिजनेसमैन का जुड़ाव तो है ही। तभी अब तक प्रशासन FIR तक दर्ज नहीं कर पा रहा। राजनीतिक दलों के लोग बाबा के साथ बहुत कम मंच साझा करते हैं। लेकिन बाबा के नाम से कार्यक्रम करवा कर उनके अनुयायियों का वोट बैंक लेते रहते हैं। हाल ही के निकाय और विधानसभा चुनाव की बात करें, तो कस्बों और गांवों मे बाबा के श्रद्धालुओं को एकत्रित किया गया था।
बाबा के अनुयायी पटियाली के बहादुरगढ़ को तीर्थ स्थली के रूप में देखते हैं। इसलिए मंगलवार को आस-पास की ट्रेनों में भीड़-भाड़ और सड़कों पर भी ट्रैफिक बढ़ जाता है।
नेताओं से नजदीकियां, सोशल मीडिया पर चर्चा
बाबा की दलित वोटर्स पर पकड़ की वजह से सभी पार्टियों के नेता नतमस्तक हैं। समागम कार्यक्रमों में शामिल होकर बाबा का गुणगान करते रहे। शुरुआत में बाबा की नजदीकी बसपा नेताओं से रही। 2007 में बसपा सरकार में बाबा तेजी से पश्चिम उत्तर प्रदेश में उभरा। बसपा नेता जिले-जिले में बाबा का समागम कार्यक्रम कराने लगे।
फिर भाजपा नेता भी ऐसा करने लगे। बाबा की भाजपा नेताओं से भी नजदीकी रही है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि हादसे के बाद मैनपुरी आश्रम से भाजपा के झंडे लगी कई गाड़ियां एक के बाद एक अंदर गईं और बाहर आईं।
3 जनवरी, 2023 में बाबा के सत्संग में खुद पूर्व सीएम और सपा प्रमुख अखिलेश यादव अपने नेताओं के साथ पहुंचे थे। उन्होंने तस्वीरें सोशल मीडिया ‘X’ पर शेयर करके लिखा- नारायण साकार हरि की संपूर्ण ब्रह्मांड में सदा-सदा के लिए जय जयकार हो…
अब अखिलेश यादव का यह वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है। समागम कार्यक्रम में अखिलेश यादव दो पर्ची पढ़ते नजर आ रहे हैं, पहली- नारायण साकार की संपूर्ण ब्राह्मंड में सदा के लिए जय जयकार हो। दूसरी- साकार मां जी की संपूर्ण ब्रह्मांड में सदा के लिए जय जयकार हो।
हादसे के बाद भोले बाबा पर सभी चुप
बाबा के रसूख और पकड़ की वजह से कोई भी प्रदेश स्तर का नेता सीधे उसका नाम नहीं ले रहा। विपक्षी पार्टियां सिर्फ प्रशासन को जिम्मेदार बताकर कार्रवाई की मांग कर रही हैं।
एटा के वरिष्ठ पत्रकार राजेश मिश्रा बताते है- बाबा के राजनीतिक रसूख की बात करें तो वह किसी नेता से सार्वजनिक तौर पर नहीं मिलता। साल 2000 के आसपास अफवाह फैली कि बाबा के नहाए हुए दूध और पानी की खीर खाने से कैंसर, टीबी जैसी बीमारियां सही हो जाती हैं।
इसके बाद एकाएक उसके श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ गई। बाबा के कार्यक्रमों में दलित और कुछ पिछड़े समाज की महिलाएं बड़ी संख्या में पहुंचने लगी थीं। इसके बाद बाबा भी इंटरनल तरीके से सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के संपर्क में रहने लगा।
बाबा के राजस्थान, मप्र और हरियाणा में भी अनुयायी
एटा के पटियाली के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार शरद लंकेश ने भास्कर को बताया- सूरज पाल साल 1992 में पुलिस की नौकरी छोड़कर बाबा बन गए। इसके बाद लोग इनके पास आने लगे। समय के साथ बाबा के अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी। इस समय उनके समर्थक दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में अच्छी संख्या में हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश समेत प्रदेश के करीब 30 जिलों में बाबा के श्रद्धालु हैं।