पर्यावरण के लिए भारत ही दुनिया के नेतृत्व में सक्षम !

पर्यावरण के लिए भारत ही दुनिया के ने तृत्व में सक्षम

लगता है कि दुनिया नेतृत्व की कमी से जूझ रही है। ऐसे युग में जहां हम एआई में महारत हासिल कर रहे हैं, लोग अभी भी ऐसी सरल-सी समस्याओं से संघर्ष कर रहे हैं, जिन्हें प्रभावी नेतृत्व से हल किया जा सकता था।

भारत की सिलिकॉन वैली कहलाने वाले बेंगलुरु- जो कि इनोवेशन और टेक्नोलॉजी का केंद्र है- में पीने का पानी कोई मुद्दा नहीं होना चाहिए। फिर भी, यह है। नीति आयोग के समग्र जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार बेंगलुरु में पानी की गंभीर कमी है।

यह एक ऐसी स्थिति है, जो शहरी भारत में जल-प्रबंधन के व्यापक संकट को उजागर करती है। मेरा मानना है कि यह समस्या पानी नहीं, नेतृत्व और शासन की कमी से उपजी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अधिकांश भारतीयों को शौचालय उपलब्ध कराने की समस्या को स्वच्छ भारत मिशन के माध्यम से हल किया गया।

अक्टूबर 2019 तक, सरकार ने ग्रामीण भारत को खुले में शौच मुक्त घोषित किया, जिसके लिए 10 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए गए। यह मौलिक मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने और हल करने की प्रधानमंत्री की क्षमता को प्रदर्शित करता है। लेकिन जब ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की समस्या को हल करने की बात आती है तो लगता है भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में नेताओं की कमी है। लगता है कि कोई भी नेता इतना बड़ा नहीं है कि इस मुद्दे पर विश्व को समाधान की ओर ले जा सके।

195 देशों द्वारा पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भी- जिसमें 2015 के स्तर से कार्बन उत्सर्जन को कम करना शुरू करने और 2030 तक उसे 45% तक घटाने पर सहमति व्यक्त की गई थी- कार्बन उत्सर्जन में कमी का कोई महत्वपूर्ण संकेत नहीं है।

वास्तव में, वैश्विक कार्बन उत्सर्जन 2023 में 40 अरब टन से अधिक के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है। यह 2022 की तुलना में 1.1% की वृद्धि को दर्शाता है, जो बढ़ते उत्सर्जन की चिंताजनक प्रवृत्ति को जारी रखता है। ऐसा लगता है कि पूरी दुनिया के देश एक-दूसरे को बेवकूफ बना रहे हैं।

पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर के बावजूद सीओ2 उत्सर्जन की प्रवृत्ति बढ़ रही है। सीओ2 एक ग्रीनहाउस गैस है, जो वायुमंडल में गर्मी को रोक लेती है। इसके बढ़ते स्तर से ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु-परिवर्तन होता है। तत्काल ही कठोर कार्रवाई की आवश्यकता है।

प्रधानमंत्री मोदी आज दुनिया में सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं। हाल के सर्वेक्षणों के अनुसार उनकी अप्रूवल-रेटिंग 70% से अधिक रही है। उन्होंने अपनी कूटनीतिक सूझबूझ ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का कद बढ़ाया है।

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस जैसी पहल की है। वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति और मूल्यों को बढ़ावा देने की क्षमता प्रदर्शित की है। जी-20 और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों में उनकी सक्रिय भागीदारी वैश्विक नीतियों को आकार देने और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में उनकी भूमिका को भी रेखांकित करती है। वे पर्यावरण-संरक्षण और जलवायु-कार्रवाई के भी मुखर समर्थक रहे हैं। इसी कड़ी में मिशन लाइफ (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) का शुभारंभ एक अग्रणी कदम था।

मिशन लाइफ के सिद्धांतों पर चलना भारतीयों के लिए मुश्किल नहीं होगा। प्रकृति का सम्मान करना और हवा, पानी, मिट्टी, पेड़, पहाड़ों जैसे प्राकृतिक संसाधनों की पूजा करना हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है। जीवन के अंत तक सामग्रियों का कुशलतापूर्वक उपयोग करना भारतीयों के लिए एक आदर्श रहा है।

प्रधानमंत्री की समावेशी नेतृत्व शैली ने उन्हें जलवायु संकट के माध्यम से दुनिया का मार्गदर्शन करने में सक्षम नेता के रूप में स्थापित किया है। भारत को ‘विश्व गुरु’ बनाने का उनका दृष्टिकोण जलवायु- कार्रवाई का नेतृत्व करने के लिए एक वैश्विक नेता की आवश्यकता के साथ पूरी तरह से मेल खाता है। मैं उनसे आग्रह करता हूं कि मिशन लाइफ को लागू करके अपने नेतृत्व-कौशल का सही मायने में प्रदर्शन करें।

जलवायु-परिवर्तन विनाशकारी होता जा रहा है। समय तेजी से बीत रहा है। भारत ही ऐसा देश है, और मोदी ही ऐसे नेता हैं, जो सीमित संसाधनों वाले इस ग्रह पर दुनिया को दिखा सकते हैं कि सस्टेनेबल तरीके से जीवन कैसे जिया जाए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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