क्या IAS-IPS और क्लास वन अफसरों के बच्चे आरक्षण के हकदार?

क्या IAS-IPS और क्लास वन अफसरों के बच्चे आरक्षण के हकदार? यहां समझें पूरा कानून
अगर आप ओबीसी हैं, लेकिन क्रीमी लेयर में हैं तो आपको जनरल कैटेगरी का माना जाएगा. लेकिन अक्सर लोग इससे बचने के लिए अपनी इनकम छिपा लेते हैं. 

पूजा पर आरोप है शुरुआत में उनकी मांगों को पूरा किया गया लेकिन बावजूद इसके उन्होंने डिमांड करना नहीं छोड़ा, जिससे तंग आकर पुणे के जिलाधिकारी सुहास दिवसे ने तत्कालीन मुख्य सचिव से उनकी शिकायत कर दी. अब इस मामले में पूजा के सर्टिफिकेट का सच भी सामने आ गया है.

दरअसल केंद्र सरकार ने ट्रेनी आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर के मामले की जांच के लिए एक समिति गठित की है. जांच से पता चला की ट्रेनी आईएएस अधिकारी पूजा ने वहां साल 2007 में श्रीमती काशीबाई नवले मेडिकल कॉलेज एवं जनरल हॉस्पिटल में प्रवेश लिया था. उस वक्त उन्हें सीईटी के माध्यम से प्रवेश मिला था, जहां उन्होंने आरक्षण के कुछ प्रमाण पत्र दिए थे. उन्होंने जाति प्रमाण पत्र, जाति वैधता और गैर-क्रीमी लेयर प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था. यहां खास बात ये है कि आईएएस पूजा के पिता खुद एक रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारी हैं.

इस पूरे मामले के चर्चा में आने के बाद सोशल मीडिया से लेकर हर पब्लिक प्लैटफॉर्म पर यह बहस छिड़ गई कि क्या IAS-IPS और क्लास वन अफसरों के बच्चों को आरक्षण मिलना चाहिए? 

ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि आरक्षण मिलने का आधार क्या है, क्या कहता है कानून और क्या IAS-IPS, क्लास वन अफसरों के बच्चों को आरक्षण मिलना चाहिए? 

क्या IAS-IPS और क्लास वन अफसरों के बच्चों को आरक्षण मिलना चाहिए? 

इस सवाल का जवाब है नहीं. यूपीएससी सिविल सर्विसेज की तैयारी कराने वाले लोकप्रिय IAS मेंटर विकास दिव्यकीर्ति ने आईएएनएस को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि क्लास वन अफसरों के बच्चों को आरक्षण देने का नियम नहीं है.

इसे आसान भाषा में समझाएं तो मान लीजिये आपके माता पिता आईएएस ऑफिसर हैं और आने वाले दो साल में वो रिटायर हो रहे हैंं. आप ओबीसी से हैं, लेकिन आपके पिता क्लास-1 जॉब में हैं तो नियम के अनुसार आपको आरक्षण नहीं मिलेगा. 

क्या IAS-IPS और क्लास वन अफसरों के बच्चे आरक्षण के हकदार? यहां समझें पूरा कानून

तो फिर पूजा कैसे आरक्षण से बन गईं IAS

दिव्यकीर्ति ने कहा कि देश में आरक्षण के नियम में कई सारे लूप होल हैं जिसका फायदा इन लोगों को मिल जाता है. मान लीजिये की मेरे माता पिता में से कोई आईएएस है और अब मैं भी आईएएस बनना चाहता हूं. तो मैंने अपने पिता से कहा कि मैं तैयारी तो कर रहा हूं लेकिन मुझे ओबीसी के आरक्षण का सहारा चाहिये, आप सपोर्ट करो. ऐसे में आपके पिता या माता आपके सपोर्ट के लिए खुद की नौकरी से रिजाइन दे देते हैं. अब क्योंकि माता या पिता ने रिजाइन कर दिया है तो अब यूपीएससी कैंडिडेट पर उसके माता पिता के ग्रुप 1 जॉब में होने की सीमा लागू नहीं होती हैं.

अब सवाल ये उठता है कि उसके पिता के पास बहुत सारी प्रॉपर्टी है. लेकिन इसका भी लूप होल है. इसे ऐसे समझिये कि मेरे पिता ने नौकरी छोड़ दी और क्लास वन जॉब की कैटेगरी से निकल गए. अब उन्होंने अपनी सारी प्रॉपर्टी गिफ्ट डीड से मेरे (यूपीएससी कैंडिडेट) के नाम कर दी. 

ऐसा करने के बाद नियम के अनुसार उनकी इनकम 6 लाख रह गई और वो क्रीमी लेयर से बाहर निकल गए. आरक्षण का नियम कहता है कि वह कैंडिडेट के माता पिता की प्रॉपर्टी और उनकी  नौकरी तो देखता है लेकिन कैंडिडेट के पास कितने पैसे या प्रॉपर्टी है नहीं देखी जाती. 

ओबीसी आरक्षण के लिए कैंडिडेट की इनकम कोई पैमाना नहीं है. तो ऐसे में कैंडिडेट के पास 50 लाख की भी प्रॉपर्टी क्यों न हो. उसे यूपीएससी परीक्षा देते वक्त ओबीसी आरक्षण का फायदा बड़ी ही आसानी से मिल जाएगा. 

सरकारी नीतियों की धज्जियों उड़ा रहे हैं लोग 

विकास दिव्यकीर्ति ने इसी इंटरव्यू में कहा कि आईएएस, आईपीएस बनने के लिए यूपीएससी कैंडिडेट्स सरकार की नीतियों की धज्जियां उड़ाते हैं. हमारे देश के रिजर्वेशन सिस्टम में काफी लूप होल्स हैं. मेरे हिसाब से आज से समय में जितने भी लोगों को यूपीएससी सिविल सर्विस परीक्षा में आरक्षण का फायदा मिल रहा है, उनमें से केवल 10-20% प्रतिशत ही ऐसे हैं जिन्हें वाकई आरक्षण की जरूरत है.

दिव्यकीर्ति ने आईएएस पूजा खेडकर के मामले का उदाहरण देते हुए समझाने की कोशिश की कि कैसे ओबीसी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण नीतियों की खामियों का गलत फायदा उठाकर लोग यूपीएससी पास कर रहे हैं. 

दिव्यकीर्ति बताते हैं कि नियम कहता है अगर आप ओबीसी हैं, लेकिन क्रीमी लेयर में हैं, तो आपको जनरल माना जाएगा. लेकिन अक्सर लोग इससे बचने के लिए अपनी आय को छुपा लेते हैं. 

उन्होंने कहा कि एक नियम तो ये भी कहता है कि अगर आपके परिवार में माता या पिता में से कोई भी क्लास 1 जॉब करता है तो भी आप ओबीसी आरक्षण का फायदा नहीं उठा पाएंगे. इससे आप क्रीमी लेयर में चले जाते हैं.  

इसके अलावा अगर आपके माता पिता दोनों ही ग्रुप बी में हैं तो भी आपको आरक्षण का फायदा नहीं मिलेगा. लेकिन वहीं अगर आपके माता पिता ग्रुप सी, ग्रुप डी में हैं, फिर चाहे उनकी सालाना इनकम 8 लाख से ज्यादा भी क्यों न हो तो आप ओबीसी कैटेगरी में गिने जाते हैं. इन नियमों के बीच एक लूप होल ये है कि इसमें आपकी कृषि से होने वाली आय की गिनती नहीं होती है. 

EWS आरक्षण में भी है कमियां 

दिव्यकीर्ति ने कहा ऊपर तो हमने ओबीसी आरक्षण में कमियों की बात कही. लेकिन ईडब्ल्यूएस में तो और भी तरीके से खेल किया जाता है. EWS आरक्षण में नियम ये है कि कैंडिडेट के पूरे परिवार की आय की गिनती की जाती है, लेकिन ये गिनती सिर्फ पिछले एक साल की होती है. ऐसे में ईडब्ल्यूएस से आरक्षण लेते वक्त तो कैंडिडेट के माता पिता को रिजाइन करने की जरूरत भी नहीं पड़ती है. 

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भारत में आरक्षण देने का क्या है आधार

हमारे देश में आजादी के लगभग 20 साल पहले ही आरक्षण की व्यवस्था लागू हो गई थी. अंग्रेजों ने अछूत जातियों के उद्धार के लिए अनुसूचित जातियां नाम से अनुसूची बनाकर लागू की थी. जिसके बाद देश आजाद हुआ और भारत के संविधान में जातिगत आरक्षण के लिए व्यवस्था की गई. उस वक्त कहा गया कि अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) को इसका लाभ दिया जाएगा.

भारत के संविधान में अनुच्छेद 341 और 342 में इन दोनों की परिभाषा दी गई है. जबकि अनुच्छेद 16 (4) पिछड़े वर्ग के लिए भी आरक्षण की अनुमति देता है. वैसे तो संविधान में इस बात का उल्लेख नहीं मिलता कि अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां कौन सी होंगी पर इसी संविधान में ये जरूर बताया गया है कि राज्यपाल की सलाह पर राष्ट्रपति इन पर फैसला करेंगे. 

संविधान के अनुच्छेद 15 (4) व 15 (5) में शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों या फिर एससी-एसटी के लिए विशेष उपबंध की व्यवस्था है.

संविधान सभा ने 10 साल के लिए किया था प्रावधान

वैसे संविधान सभा ने सरकारी और सार्वजनिक सेक्टर में आने वाली नौकरियों और सरकारी शिक्षण संस्थानों में SC के लिए 15 प्रतिशत और ST के लिए 7.5 प्रतिशत का आरक्षण तय किया था. उस वक्त इसे सिर्फ 10 साल के लिए लागू किया गया था और इस बात का भी जिक्र किया गया था कि इसके बाद इसकी समीक्षा की जाएगी. हालांकि इसकी समीक्षा किसी भी सरकार ने नहीं की और आरक्षण का दायरा बढ़ता चला गया.

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मंडल आयोग की रिपोर्ट ने बढ़ाया आरक्षण 

साल 1980 में देश में मंडल आयोग की एक रिपोर्ट सामने आई. जिसके बाद आरक्षण का कोटा बढ़ाकर 49.5 प्रतिशत करने की सिफारिश कर दी गई. लेकिन उस वक्त इस सिफारिश पर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की अगुवाई वाली सरकार ने ध्यान नहीं दिया. 

इसके बाद जब देश में वीपी सिंह की सरकार आई तो साल 1990 में इसे लागू कर दिया. जिसके तहत ओबीसी में 3,743 जातियों को शामिल किया गया और उन्हें 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया. उस वक्त पहले से ही 22.5 प्रतिशत का आरक्षण एससी-एसटी के लिए था. इस तरह से आरक्षण 49.5 फीसदी तक पहुंच गया. मंडल आयोग ने ही मुसलमान समुदाय की कुछ जातियों को भी ओबीसी में शामिल कर लिया था.

साल 1992 में केंद्र सरकार के शिक्षण संस्थानों में ओबीसी के लिए आरक्षण लागू किया गया. उसी साल संविधान सभा में भीतर आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का भी मुद्दा उठाया गया था हालांकि उस पर सहमति नहीं बन पाई थी. लेकिन अब भारत में गरीब सवर्णों के लिए भी 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया जा चुका है. 

भारत में आरक्षण को लेकर क्या है नियम

संविधान के अनुच्छेद 15(4), 15(5), 16(4), 16(4A), और 16(4B) के तहत अलग अलग श्रेणियों के लोगों को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण दिया जाता है. 

1. अनुसूचित जाति (SC): अनुसूचित जातियों के लिए 15% आरक्षण दिया जाता है.
2. अनुसूचित जनजाति (ST): अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5% आरक्षण दिया जाता है.
3. अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC): अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% आरक्षण दिया जाता है.
4. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS): आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10% आरक्षण दिया जाता है.

हालांकि कुछ राज्य और केंद्र शासित प्रदेश स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर भी अन्य श्रेणियों को आरक्षण प्रदान करते हैं. आरक्षण की यह व्यवस्था सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और कई अन्य क्षेत्रों में समानता और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए की गई है. इसके अंतर्गत निम्नलिखित नियम और प्रावधान शामिल हैं:

संवैधानिक प्रावधान: संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 15(5) शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की अनुमति देते हैं, जबकि अनुच्छेद 16(4), 16(4A), और 16(4B) सरकारी नौकरियों में आरक्षण की अनुमति देते हैं.

रिजर्वेशन की सीमा: सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, आरक्षण की कुल सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए. हालांकि, कुछ राज्यों में यह सीमा पार कर चुकी है और इस पर विभिन्न न्यायिक निर्णय भी हुए हैं.

क्रीमी लेयर: OBC आरक्षण के तहत क्रीमी लेयर (समृद्ध वर्ग) को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता. यह सीमा समय-समय पर संशोधित की जाती है.

पिछड़ा वर्ग आयोग: राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) और राज्य स्तर के पिछड़ा वर्ग आयोग आरक्षण की व्यवस्था को उचित और प्रभावी बनाए रखने के लिए सलाह और अनुशंसा करते हैं.

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