कांवड़ यात्रियों को है पसंद मस्जिद और मजार के पेडों की छांह !

कांवड़ यात्रियों को है पसंद मस्जिद और मजार के पेडों की छांह, यात्रा में उनको ढंकना दोनों समुदायों का अपमान

एक दैनिक में छपी खबर के अनुसार उत्तराखंड के वरिष्ठ मंत्री सतपाल महराज ने मीडिया वालों से कहा कि हरिद्वार में मस्जिद और मजार को सफेद कपड़े से ढंकने से किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए. हिन्दू धर्म को मानने वाले भक्त कावड़ में जल लेकर हरिद्वार में रामनगर के रास्ते से गुजरते हैं. सतपाल महाराज ने कहा है कि मस्जिद और मजार के सामने सफेद कपड़ा लगाकर ढंकने से उत्तेजना और भड़कने की आशंका समाप्त हो जाती है. कांवड़ यात्रा सुचारु रुप से चलें इस बात का यहां ध्यान रखा गया है. 

फैसला नहीं करता हैरान 

सत्यपाल महाराज के धार्मिक भावनाओं के भड़कने या उत्तेजना पैदा होने की आशंका की आड़ में धार्मिक स्थलों को ढंकने की घटना को उचित मानना हैरान नहीं करती है. दुनिया के कई मूल्को में यह अनुभव किया गया है कि  साम्प्रदायिकता व धार्मिक कट्टरपंथ को राजनीतिक आधार बनाने के नये नये प्रयोग व प्रयास किए गए हैं. तुर्की में इसतांबुल में 2020 में एक फैसले के बाद  ईसाई धर्म से जुड़े हैगिया सोफिया को किसी पर्दे से ढंक दिया जाता है जब इस्लामिक धर्म को मानने वाले नमाज पढ़ते हैं. आधुनिकता के विकास के साथ दुनिया के किसी भी समाज में धार्मिक कट्टरपंथ को स्वभाविक नहीं माना जाता है, लेकिन राजनीतिक इरादों के तहत समाज में एक धर्म को दूसरे धर्म को आमने सामने करने के प्रयास व प्रयोग अभी समाप्त नहीं हुए हैं. कट्टरपंथ की राजनीति करने वालों के बीच पूरी दुनिया में गहरी साझेदारी है.   

इस देश में साम्प्रदायिक राजनीति ने धार्मिक त्यौहारो व उत्सवों के लिए निर्धारित कुछ दिनों को अपने लिए चुन लिया है. हिन्दू धर्म से जुड़े क्रियाकलापों व मान्यताओं में कांवड़ यात्रा का इतिहास पुराना है. देश के विभिन्न हिस्सों में हिन्दू धर्म को मानने वाले अपने आसपास गंगा नदी से पानी लेकर शिवलिंग पर सावन के महीने में जल चढाने जाते हैं. कांवड़ यात्रा में नदी से शिव लिंग तक के रास्ते भर विभिन्न धर्मों के लोग भक्तों का ध्यान रखते हैं. रास्ते में आराम करने, ठहरने, पानी भोजन मुहैया कराने के साथ उनके प्रति सम्मान-स्वागत का भाव प्रगट करते हैं, लेकिन साम्प्रदायिक राजनीति ने धार्मिक उत्सवों व मौकों और माहौल में अपनी गहरी पैठ जमा ली है और  राजनीतिक मशीनरी किसी भी धर्म के उत्सव व कार्यक्रम को दूसरे धर्म के विरुद्ध भावों को पैदा करने का अवसर समझने लगी है. नये नये प्रयोग व प्रयास के पीछे यह कहानी है कि एक लंबे दौर में भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों को मानने वालों के बीच गहरे सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्ते बने हैं. उस ‘मिक्सिंग’ को साम्प्रदायिक मशीनरी  अलग करना चाहती है.

हरिद्वार में  मस्जिद और मजार को कपड़ों से ढंकने की घटना के बारे में यह जानकर हैरानी हो सकती है कि किसी कांवड़ यात्री ने कभी किसी तरह की भावना के भड़कने व उत्तेजना की शिकायत तक नहीं की है. हर साल कांवड़ यात्रा इसी रास्ते से शांति से गुजरती रही है, जबकि पिछली कांवड़ यात्रा के दौरान न जाने क्यों मजारे तोड़ दी गई थी. इस बार बाबा भूरे शाह की मजार को ढंक दिया गया। दूसरा कि ज्वालापुर में इस्लाम नगर की जिस मस्जिद को ढंका गया वह रास्ते से कई मीटर अंदर है। 

पत्रकार एहसान अंसारी के अनुसार हर साल कावड़ यात्रा इसी रास्ते से शांति से गुजरती रही है। जबकि पिछले  कावड़ यात्रा के दौरान न जाने क्यों मजारें तोड़ दी गईं थीं. इस बार बाबा भूरे शाह की मजार को ढंक दिया गया. दूसरा कि ज्वालापुर में इस्लाम नगर की जिस मस्जिद को ढंका गया वह रास्ते से कई मीटर अंदर है.

सांप्रदायिक राजनीति चाहती मिक्सिंग को मिटाना

साम्प्रदायिक राजनीति, पहनावे, पानी, दूध, फल, तेल, घी,बेसन, सब्जी, चाय, खाना, रंग तक पहुंचना चाहती है ताकि इनके साथ जीने वाले लोग हर क्षण साम्प्रदायिकता के साथ रहे और समाज में एक दूसरे मिक्सिंग की स्वभाविकता को भूल जाएं. हाल ही में मुज्जफरनगर के इलाके में कावड़ यात्रा पर निकले भक्त जिस रास्ते  से गुजरते हैं, उन रास्तों में चाय, फल, पानी, तेल में तली पकौड़ियां व घी में बने खाने के सामान बेचने वालों को अपने नाम  व परिचय के पट्टे लगाने के आदेश दिए गए. इस समाज में नामों के पीछे धार्मिक पृष्ठभूमि होती है जैसे नाम के टाइटिल से जाति की पहचान होती है. इस इलाके में साम्प्रदायिकता के कई प्रयोग हुए है लेकिन लोग फिर एक होकर खड़े दिखने लगते हैं.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने दुकानों, ठेले , ढाबों आदि पर नाम और परिचय की पट्टी लगाने की बाध्यता पर रोक लगा दी.  लेकिन हरिद्वार में जहां मस्जिद और मजार को नजरों से बचाने के लिए कपड़ों से ढंका गया, वह किसके आदेश से हुआ ,इसकी जिम्मेदारी कोई नहीं ले रहा है. लेकिन वरिष्ठ मंत्री सतपाल महराज ने जिस भाषा में मीडिया के सामने अपनी प्रतिक्रिया दी है उससे यह संकेत मिलते हैं कि  आदेश का लिखित में होना जरुरी नहीं होता हैं. इस दौर में यह कहा जाता है कि उपर का आदेश है और वह लागू हो जाता है. मुज्जफरनगर में दूकानों, ढाबों, ठेलों पर नाम और परिचय पट्टी लगाने का पुलिस ने सुझाव यह कहकर दिया था कि कोई भ्रम न फैले. कावड़ यात्रा में जाने वालों को अपने रास्ते में रहने वाले समाज के बारे में कोई भ्रम अब तक नहीं रहा है. दरअसल राजनीतिक मशीनरी शब्दों को बंद रखती है और उसे ही अपना हथियार बनाती है.

खबरें यह आ रही है कि लगभग दस दिनों तक यह इंतजार किया गया कि मस्जिद और मजार को कपड़े से ढंकने की घटना का क्या फीडबैक मिल रहा है. फीडबैक यह गया है कि कावड़ यात्री मस्जिद और मजार के सामने कपड़े के पर्दे की दीवार  के बजाय मस्जिद और मजार के सामने लगे पेड़ों की छांव से अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं.  

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि  …न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

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