कैसे निर्भय रहेंगी बेटियां ?
कैसे निर्भय रहेंगी बेटियां
पैनिक बटन दबाया तो फोन ड्राइवर को जाता है, पुलिस से संपर्क ही नहीं
दिल्ली और गुजरात में पैनिक बटन दबाते ही पुलिस लाइव लोकेशन ट्रेस कर लेती है… मप्र में ऐसा नहीं
मध्य प्रदेश में बसों और सार्वजनिक परिवहन की बसों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए लगाए गए पैनिक बटन या तो काम नहीं करते या रिस्पांस ही नहीं आता। अभी करीब 50 हजार बस-टैक्सी में ही ये बटन लगे हैं, पर इसके ऑपरेटिंग सिस्टम में कई खामियां हैं। पूरा सिस्टम पुलिस से जुड़ा हुआ ही नहीं है।
कोई घटना या वारदात होने पर यदि कोई महिला यात्री पैनिक बटन दबाती भी है तो कंट्रोल कमांड सेंटर से कॉल बस मालिक के पास जाती है। बस मालिक इसके बाद चालक को फोन कर बटन दबाने की वजह पूछता है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, सबसे बड़ी कमी यही है। यदि चालक वारदात में लिप्त है तो पैनिक बटन दबाने के बाद उसी को कॉल की जा रही है।
इससे महिला को खतरा और बढ़ जाता है। दूसरी आेर, दिल्ली में वाहनों में लगे पैनिक बटन सिस्टम कश्मीरी गेट स्थित कंट्रोल एंड कमांड रूम से जुड़े हैं। कोई महिला यात्री बटन दबाती है तो कंट्रोल एंड कमांड रूम में लाइव फीड शुरू हो जाती है। इससे पुलिस तक वाहन की लोकेशन खुद पहुंच जाती है और ट्रेसिंग आसान हो जाती है। गुजरात में भी कंट्रोल कमांड सेंटर से पुलिस सीधे लोकेशन ले सकती है।
ड्राइवर ने दिक्कत बताई तो ही आती है डायल-100
अभी किसी महिला ने पैनिक बटन दबाया तो फीड भोपाल स्थित कंट्रोल कमांड सेंटर पर फीड पहुंचता है। यहां से बस की लोकेशन ट्रेस हुई तो कमांड सेंटर से बस मालिक को पूछा जाता है कि क्या समस्या है। परमिट होल्डर या मालिक इसके बाद ड्राइवर से संपर्क करते हैं। यदि चालक ने कह दिया कोई दिक्कत नहीं है तो शिकायत बंद हो जाती है। यानी, पूरी व्यवस्था में पुलिस किसी भी तरह शामिल ही नहीं है।
यदि चालक ने कोई दिक्कत बताई तभी डायल 100 को कॉल किया जाता है। कंट्रोल कमांड सेंटर से पुलिस को बस की लोकेशन दी जाती है, पर प्रदेश में 90% वाहनों की ट्रैकिंग कमांड सेंटर से नहीं हो पा रही है। ऐसे में बस को ट्रेस करना मुश्किल होगा।
एक्सपर्ट बोले– 108 की तरह कनेक्ट होनी थी सेवा
परिवहन के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि पैनिक बटन सिस्टम तभी काम कर सकता है, जब वह डायल 100 से इंट्रीग्रेट हो। यह सबसे पहले होना था। बीएसएनल को यह काम करना था, पर हुआ नहीं। इसके लिए कंट्रोल कमांड सेंटर व डायल 100 के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर को उसी तरह कनेक्ट करना होगा, जैसे 108 एंबुलेंस सेवा के हैं।
चुनिंदा कंपनियों के पास काम, इसलिए मनमाने दाम
बाजार में 8 हजार का पैनिक बटन, मप्र में कंपनियां 14 हजार रुपए वसूल रहीं
मप्र में दो वर्षों में महज 50 हजार वाहनों में ही व्हीकल लोकेशन ट्रैकिंग डिवाइस (वीएलटीडी) और पैनिक बटन लगे हैं। इसके पीछे बड़ी वजह कीमत भी है। विभाग ने प्रदेश में पैनिक बटन के लिए सिर्फ 17 कंपनियों को अधिकृत किया है। इससे कंपनियां मनमाने पैसे वसूल रही हैं। प्रदेश में नए वाहन में दो साल के लिए 14 हजार रु. में वीएलटीडी और पैनिक बटन लग रहे हैं। राजस्थान और महाराष्ट्र में ये 9 हजार में उपलब्ध हैं, जबकि कर्नाटक में 7599 रु. में। मप्र में ही ओपन मार्केट में दो साल के लिए डिवाइस 8 हजार रु. में लग रही है। जनवरी में ट्रांसपोर्ट एसो. के अध्यक्ष सीएल मुकाती ने परिवहन मंत्री को एक पत्र भी लिखा था।
जो पैसा केंद्र दे रहा, उसके नाम पर भी वसूली
सॉफ्टवेयर के नाम पर 100 रुपए प्रतिमाह की दर से दो साल के 2,400 रुपए वसूले जाते हैं। इस पर 440 रुपए जीएसटी। अहम बात ये है कि सॉफ्टवेयर और जीएसटी के लिए केंद्र सरकार निर्भया फंड से पैसे देती है। लेकिन, मप्र में यह पैसा भी लिया जा रहा है। इसकी कोई रसीद भी नहीं दी जाती। डीलर सिम रिन्युअल के लिए 5 हजार रुपए ले रहे हैं, जबकि एक सिम का वार्षिक रिन्युअल जीएसटी समेत 500 रुपए से अधिक नहीं है। यदि दो सिम भी हैं तो 1,000 रुपए ही होगा।
सिम रिन्युअल की फीस ऑनलाइन नहीं जमा होती है। इसी का फायदा उठाकर वाहन मालिकों से मनमानी कीमत वसूली जाती है। वीएलटीडी लगवाने वाले वाहन मालिकों को न तो बिल और न ही इसका बॉक्स दिया जाता है।