पब्लिक सेफ्टी का हाल …. भारत में हर साल डूबने से मर जाते हैं 38,000 लोग

पब्लिक सेफ्टी का हाल: भारत में हर साल डूबने से मर जाते हैं 38,000 लोग
बारिश के मौसम में डूबने का खतरा बढ़ जाता है, खासकर गांवों और निचले इलाकों में. अगर कोई हादसा हो जाए तो तुरंत मेडिकल सर्विस नहीं मिल पाती है, ऐसे में डूबने की घटनाओं से निपटना मुश्किल हो जाता है.

हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में तीन लोग डूबकर मर गए. इसके बाद दिल्ली में ही बारिश के दौरान दो लोगों की डीडीए के 15 फुट गहरे नाले में गिरकर मौत हो गई. जब शव निकाले गए तो बेटे का शव मृतक मां की गोद में था.

ये तो बस कुछ उदाहरण है, हर साल ऐसे कितने ही लोग डूबकर मर जाते हैं. खासकर मानसून के मौसम में पहाड़ी इलाकों में बाढ़ से ज्यादातर लोग खुद को डूबने से बचा नहीं पाते हैं. 

ये कोई छोटी बात नहीं है. WHO के अनुसार, दुनियाभर में हर साल करीब ढाई लाख लोग डूबकर मर जाते हैं! यानी हर दिन 650 और हर घंटे 26 लोग. इनमें से आधे से ज्यादा तो 30 साल से कम उम्र के थे. ऐसा ज्यादातर गरीब और विकासशील देशों में होता है. सोच सकते हैं कितनी बड़ी समस्या है.

डूबने से क्या है मतलब?
डूबना मतलब सांस लेने की जगह पानी भर जाना. जब किसी का मुंह और नाक पानी में डूब जाता है तो वो सांस नहीं ले पाता और धीरे-धीरे उसकी मौत हो जाती है. कभी-कभी तो इंसान को पानी से निकाल भी लिया जाता है लेकिन तब भी उसकी हालत खराब रहती है.

अक्सर ऐसा होता है कि जब कोई डूब रहा होता है तो आस-पास वाले या तो देख ही नहीं पाते या फिर कुछ कर ही नहीं पाते. बड़ी मुश्किल से अगर कोई बच भी जाए तो उसे सांस लेने में तकलीफ, उल्टी, चक्कर आना या बेहोशी जैसी परेशानियां हो सकती हैं. इसके अलावा डूबने की वजह से शरीर का तापमान कम हो सकता है, उल्टी फेफड़ों में जा सकती है या फिर फेफड़ों में सूजन आ सकती है.

पब्लिक सेफ्टी का हाल: भारत में हर साल डूबने से मर जाते हैं 38,000 लोग

भारत में डूबने की समस्या ज्यादा!
अमीर और गरीब देशों में डूबने की समस्या अलग-अलग है. अमीर देशों में डूबने की घटनाएं कम होती हैं क्योंकि वहां अच्छी सुविधाएं हैं जैसे लाइफगार्ड, चेतावनी के साइन बोर्ड और आपातकालीन सेवाएं. वहां के लोग डूबने से बचने के बारे में जानते हैं और तैरना भी सीखते हैं. इतना ही नहीं, वहां के लोग सुरक्षा के नियमों को भी मानते हैं. अगर कोई हादसा हो भी जाए तो अच्छे डॉक्टर और जल्दी मदद मिल जाती है. इसलिए वहां डूबने से कम लोग मरते हैं.

लेकिन भारत में तो हालात ही अलग हैं. हमारे देश की आबादी नदियों, तालाबों और कुओं के पास रहती है. ये उनके लिए जरूरी भी है. क्योंकि उन्हें नहाने, कपड़े धोने और पानी लाने के लिए जरूरत होती है. लेकिन इन जगहों पर सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं होते हैं, न कोई देखभाल करने वाला होता है और न ही लोग डूबने के खतरे के बारे में जानते हैं. इसलिए यहां डूबने की घटनाएं ज्यादा होती हैं.

हर राज्य में डूबने की अलग-अलग कहानी!
भारत में साल 2019 में ही 70 हजार से ज्यादा लोग डूबकर मर गए. मतलब ये कि दुनिया में सबसे ज्यादा लोग यहीं डूबकर मरते हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2022 रिपोर्ट के मुताबिक, कुल 38503 लोगों की मौत डूबने की वजह से हुई, जो देश की कुल मौतों का 9.1 फीसदी है. इनमें मध्य प्रदेश सबसे आगे है, जहां 5427 लोग डूबने से मरे. वहीं महाराष्ट्र में करीब 4700 लोग डूबकर मरे. 

इसके अलावा उत्तर प्रदेश में भी 3000 से ज्यादा, कर्नाटक में 2800 से ज्यादा और तमिलनाडु में 2600 से ज्यादा लोग डूबकर मरे हैं. गुजरात, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में भी हालात ठीक नहीं हैं. वहां भी हजारों की संख्या में लोग डूबकर मर रहे हैं. 

रिपोर्ट में ये भी पता चला है कि लोग कैसे-कैसे डूब रहे हैं. सबसे ज्यादा तो ये होता है कि लोग गलती से पानी में गिर जाते हैं और डूब जाते हैं. 28 हजार से ज्यादा लोग ऐसे ही मरे. बाकी के करीब 10 हजार के बारे में तो कुछ पता ही नहीं चला कि कैसे डूबे और करीब 300 लोग तो नाव पलटने से डूब गए.

किस उम्र के लोग ज्यादा डूबते हैं?
रिपोर्ट से पता चला है कि सबसे ज्यादा तो 30-40 साल के लोग डूबते हैं, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ धीरे-धीरे ये संख्या कम होती जाती है. मतलब कि छोटे बच्चे उतने नहीं डूबते जितने बड़े लोग. इससे ये पता चलता है कि हमें बच्चों और युवा लोगों का खास तौर पर ध्यान रखना होगा. साथ ही डूबने की घटनाओं को अच्छे से रिकॉर्ड भी करना होगा, क्योंकि हो सकता है कि बहुत सी घटनाएं छिप जाती हैं.

WHO का क्या कहना है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी मान लिया है कि डूबना बहुत बड़ी समस्या है. इससे हर साल बहुत सारे लोग मर जाते हैं या फिर अपंग हो जाते हैं. 2014 में WHO ने पहली बार डूबने के बारे में एक रिपोर्ट जारी की थी, तब से ही इस पर ध्यान दिया जाने लगा. 

2023 में डब्ल्यूएचओ ने प्रस्ताव पास किया कि दुनिया भर में मिलकर डूबने की समस्या को खत्म करने की कोशिश की जाएगी. WHO कहता है कि ‘कुछ सेकंड आपकी जान बचा सकते हैं.’ मतलब ये कि डूबना तो पल भर में हो जाता है लेकिन अगर हम थोड़ा सा ध्यान रखें, जैसे लाइफ जैकेट पहनना, बच्चों को पानी के पास देखना, बोटिंग से पहले मौसम देखना या खतरों से बचकर रहना तो हम बड़ी मुसीबत से बच सकते हैं.

पब्लिक सेफ्टी का हाल: भारत में हर साल डूबने से मर जाते हैं 38,000 लोग

डूबने से कैसे बचा जा सकता है?
डूबने से बचने के लिए बहुत सारे तरीके हैं. सबसे पहले तो पानी वाले जगहों के चारों तरफ बाड़ लगा देनी चाहिए, खासकर कुओं और तालाबों के आस-पास ताकि बच्चे वहां न जा सकें. बच्चों को पानी से दूर रखने के लिए उनके खेलने की अच्छी जगह बनानी चाहिए ताकि उनका ध्यान पानी की तरफ न जाए. सबको ये सिखाना चाहिए कि अगर कोई डूब जाए तो उसे कैसे बचाया जाए. जैसे सीपीआर करना या मुंह से सांस देना. लोगों को ये सब सिखाने के लिए कैंप भी लगाने चाहिए.

स्कूलों में बच्चों को पानी में सुरक्षित रहने के बारे में सिखाना भी बहुत जरूरी है. नौकाओं और जहाजों के लिए भी अच्छे नियम बनाने चाहिए. जैसे लाइफ जैकेट जरूर पहनना, जहाजों की अच्छी देखभाल करना और सुरक्षा के नियमों को मानना. इसके अलावा बाढ़ आने की संभावना को देखते हुए अच्छे इंतजाम करने चाहिए. जैसे बाढ़ से बचने वाली जगहें बनाना और पहले से ही लोगों को बता देना कि बाढ़ आ सकती है. इससे बहुत सारे लोगों की जान बच सकती है.

क्या ये पब्लिक सेफ्टी का मुद्दा नहीं?
भारत में हर साल करीब 38,000 लोगों का डूब जाना एक बेहद गंभीर मुद्दा है, जो कई कारणों से सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा है. डूबने से होने वाली मौतों में सबसे ज्यादा असर युवाओं पर होता है. ये युवा देश का भविष्य होते हैं और इनकी मौत से देश की विकास यात्रा पर असर पड़ता है.

हर डूबने की घटना से परिवार पर आर्थिक बोझ पड़ता है. कई परिवार तो पूरी तरह बर्बाद हो जाते हैं. समाज में अस्थिरता पैदा होती है. लोग डर और चिंता में रहते हैं. डूबने की घटनाएं लोगों को पानी से दूर रखती हैं, जिससे जल संसाधनों का सही उपयोग नहीं हो पाता और विकास में बाधा आती है. इतनी बड़ी संख्या में डूबने की घटनाएं ये भी दर्शाती हैं कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था में शायद कुछ खामियां हैं. डूबने से बचाव के नियमों को सख्त बनाना चाहिए और उनका उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए.

यह एक गंभीर मुद्दा है जिस पर सभी को मिलकर काम करना होगा. तभी हम इस समस्या से निपट सकते हैं और लोगों की जान बचा सकते हैं.

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