राज्यपाल ने कब-कब हटाया सीएम ??
राज्यपालों की वजह से इन मुख्यमंत्रियों की गई कुर्सी?
भारत के अलग अलग राज्यों में पहले भी कई बार राज्यपाल किसी घोटाले के आरोप को लेकर मुख्यमंत्री के खिलाफ केस चलाने की अनुमति दे चुके हैं.
राज्यपाल ने कब-कब हटाया सीएम …
राजधानी दिल्ली और झारखंड के बाद अब कर्नाटक में सियासी सरगर्मी बढ़ सकती है. दरअसल कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने पिछले एक महीने से उठ रहे मुडा स्कैम को लेकर प्रदेश के सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमे की मंजूरी दे दी है. इस स्कैम के मुख्य आरोपी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती हैं और उन पर मैसूर में गलत तरीके से जमीन लेने का आरोप है.
हालांकि भारत के राजनीतिक इतिहास में ये कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी कई बार किसी घोटाले के आरोप को लेकर मुख्यमंत्री के खिलाफ राज्यपाल ने केस चलाने की अनुमति दी जा चुकी है. इतना ही नहीं ज्यादातर ऐसे मामलों में मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी भी हो चुकी है.
ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से जानते हैं कि राज्यपाल की वजह से किस राज्य के मुख्यमंत्रियों की कुर्सी जा चुकी है और ऐसा देश की राजनीति में कितनी बार हो चुका है.
मधु कोड़ा
साल 2006 में झारखंड में निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को सीएम का पद मिला. वह कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे. गठबंधन की इस सरकार में 2 साल तक मधु कोड़ा ने अपना पद अच्छे से संभाला. लेकिन इसी बीच आरोप लगा कि कोड़ा की टीम ने कोयला खाद्यान की आवंटन में लगभग 400 करोड़ रुपए कमाए हैं.
इस घोटाले के आरोप ने धीरे-धीरे झारखंड में तूल पकड़ना शुरू किया और राजनीतिक नुकसान को देखते हुए शिबू सोरेन ने कोड़ा सरकार से समर्थन वापस ले लिया. उस वक्त मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन राज्यपाल सिब्ते रिजवी ने सीबीआई को जांच के लिए पत्र लिखा.
सीबीआई ने इस पूरे केस की जांच शुरू कर दी और इस मामले में उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग के भी सबूत भी मिले. साल 2009 में कोड़ा के खिलाफ सीबीआई और ईडी दोनों ने मिलकर जांच शुरू की थी. उनकी गिरफ्तारी भी हुई. कोड़ा 2012 तक जेल में बंद रहे और साल 2017 में उन्हें खनन घोटाला मामले में दोषी ठहराया गया. वर्तमान में कोड़ा की पत्नी राजनीति में है.
फारूक अब्दुल्ला
जम्मू कश्मीर के राज्यपाल जगमोहन ने 1990 में फारूक अब्दुल्ला की सरकार को बर्खास्त कर दिया था और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था. यह कदम आतंकवाद और सुरक्षा की बिगड़ती स्थिति के कारण उठाया गया था.
जयललिता
साल 1995 में तमिलनाडु में जयललिता की सरकार थी. सरकार में रहते हुए उनपर तांसी जमीन घोटाले में शामिल होने का आरोप लगा. इस आरोप के बाद एक तरफ जहां विपक्ष ने उनपर जमकर निशाना साधा और उनके खिलाफ सड़क पर उतर आई, तो दूसरी तरफ वरिष्ठ वकील सुब्रमण्यम स्वामी ने उन्हें कानूनी तौर पर घेर लिया.
स्वामी ने तमिलनाडु के तत्कालीन राज्यपाल ए चन्ना रेड्डी को पत्र लिखते हुए इस केस की जांच की मंजूरी की मांग कि वहीं राज्यपाल ने भी तुरंत मंजूरी दे दी. इस आरोप और जांच में जयललिता भले ही गिरफ्तार नहीं हुईं, लेकिन साल 1996 में उनकी सरकार चली गई.
लालू यादव
साल 1997 में बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार थी. सीएम रहते हुए उन पर चारा घोटाला का आरोप लगा. इस मामले ने भी बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया था. लालू यादव के खिलाफ विपक्ष ने मोर्चेबंदी शुरू कर दी थी. आरोप के कुछ दिन बाद ही मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा और सीबीआई जांच की मांग शुरू हुई. बवाल बढ़ता देख उस वक्त के राज्यपाल एआर किदवई ने लालू यादव के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की इजाजत दे दी.
सीबीआई ने इस मामले की जांच के बाद मुख्यमंत्री लालू यादव को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद लालू ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी. बता दें कि ये वही चारा घोटाला मामला है जिसमें लालू यादव को दोषी करार दिया जा चुका है. वर्तमान में वे इस मामले में स्वास्थ्य के आधार पर जमानत पर हैं.
कब-कब राज्यपालों ने राज्यों में सत्ता बनाई और बिगाड़ी
ठाकुर रामलाल
साल 1983 से लेकर 1984 के बीच ठाकुर रामलाल आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे थे. वहां की राजनीति में उनके एक फैसले ने भूचाल ला दिया था. दरअसल रामलाल ने बहुमत हासिल कर चुकी एनटी रामराव की सरकार को बर्खास्त कर दिया था. एनटी रामाराव हार्ट सर्जरी के लिए अमेरिका गए हुए थे और राज्यपाल ने उसी वक्त सरकार के वित्त मंत्री एन भास्कर राव को मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया था.
हालांकि जब एनटी रामराव अमेरिका से लौटे तो उन्होंने राज्यपाल ठाकुर रामलाल के ख़िलाफ मोर्चा खोल दिया, इसके बाद केंद्र सरकार को शंकर दयाल शर्मा को राज्यपाल बनाना पड़ा. सत्ता संभालने के बाद नए राज्यपाल ने एक बार फिर आंध्र प्रदेश की सत्ता एनटी रामाराव के हाथों में सौंप दिया था.
पी वेंकटसुबैया
कर्नाटक में साल 1983 में पहली बार जनता पार्टी की सरकार बनी थी. उस वक्त राज्य के सीएम रामकृष्ण हेगड़े थे. इसके पांच साल बाद जनता पार्टी एक बार फिर से सत्ता में आई. लेकिन इस बार टेलीफोन टैपिंग मामले में हेगड़े को इस्तीफ़ा देना पड़ा और उनके बाद एसआर बोम्मई को कर्नाटक का सीएम बनाया गया.
उस वक्त कर्नाटक में पी वेंकटसुबैया राज्यपाल थे और उन्होंने एक विवादित फैसला लेते हुए बोम्मई की सरकार को बर्खास्त कर दिया था. राज्यपाल ने कहना था कि बोम्मई की सरकार विधानसभा में बहुमत खो चुकी है. हालांकि राज्यपाल के इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई. फ़ैसला बोम्मई के हक़ में आया और उन्होंने फिर से वहां सरकार बनाई.
रोमेश भंडारी
1998 में यूपी में कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली सरकार थी. इसी वर्ष 21 फरवरी को राज्यपाल रोमेश भंडारी ने सरकार को बर्खास्त कर दिया. जिसके बाद जगदंबिका पाल को सीएम बनाया गया. कल्याण सिंह ने राज्यपाल के इस फैसले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. हालांकि कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को असंवैधानिक करार दिया. उस वक्त जगदंबिका पाल केवल दो दिनों तक ही प्रदेश के सीएम का पद संभाल पाए थे और तीसरे दिन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बाद कल्याण सिंह फिर से मुख्यमंत्री बने.
बूटा सिंह
बूटा सिंह साल 2005 में बिहार के राज्यपाल थे. उन्होंने 22 मई, 2005 की आधी रात को बिहार विधानसभा भंग कर दी. ये वहीं साल जब फ़रवरी महीने में हुए चुनावों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था.
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार बनाने के लिए जोड़-तोड़ में थी. बूटा सिंह के बिहार विधानसभा भंग करने के वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. बूटा सिंह ने तब राज्य में लोकतंत्र की रक्षा करने और विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त रोकने की बात कह कर विधानसभा भंग करने का फ़ैसला किया था.
हालांकि इस मामले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी, जिस पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने बूटा सिंह के फ़ैसले को असंवैधानिक करार दिया था.
वर्तमान कर्नाटक मामले में सिद्धारमैया पर कैसे कसेगा शिकंजा
दरअसल मुडा स्कैम मामले में राज्यपाल की तरफ से जारी केस की मंजूरी पत्र में साफ तौर पर कहा गया है कि राज्यपाल प्रथम दृष्टया संतुष्ट हैं कि यह केस मुख्यमंत्री के खिलाफ बनता है. राज्यपाल ने मंजूरी पत्र में साल 2004 में मध्यप्रदेश में एक मामले को लेकर दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश का भी हवाला दिया है, जिसमें राज्यपाल इस तरह की केस की मंजूरी दे सकते हैं.
इस मंजूरी के बाद क्या होगा
राज्यपाल की मंजूरी के बाद अब कर्नाटक के सिद्धारमैया के खिलाफ कोर्ट समन जारी कर सकता है. इसके अलावा जांच एजेंसी भी केस दाखिल कर जांच शुरू कर सकती है. हाल ही में कर्नाटक के डिप्टी सीएम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि सिद्धारमैया के खिलाफ साजिश हो रही है. उन्होंने इस बात की भी आशंका जताई थी कि सिद्धारमैया को जेल में भेजकर कर्नाटक में उनकी सरकार गिराने की साजिश की जी रही है.
MUDA घोटाला, भाई ने ली जमीन और बहन को दिया तोहफा
MUDA को मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण भी कहते हैं. मैसूर शहर के विकास कार्यों के लिए यह अथॉरिटी स्वायत्त संस्था यानी कि ऑटोनॉमस बॉडी है. इसमें जमीनों के अधिग्रहण और आवंटन की जिम्मेदारी प्राधिकरण की ही होती जिम्मेदारी है. मामला जमीन घोटाले का है, इसलिए MUDA का नाम इस मामले में शुरू से जुड़ता आ रहा है. शुरू यानी कि 2004 से.
साल 1992 में MUDA ने किसानों से रिहायशी डेवलपमेंट के लिए जमीन ली. इसके बाद 1998 में इन जमीनों को डिनोटिफाई कर कृषि भूमि किसानों को वापस कर दी गई. साल 2004 में सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के भाई बीएम मल्लिकार्जुन ने यहां 3.16 एकड़ जमीन खरीदी.
साल 2005 में 3.16 एकड़ जमीन को दोबारा डिनोटिफाई कर कृषि की भूमि से अलग कर दिया गया. साल 2010 में इस जमीन को मल्लिकार्जुन ने अपनी बहन को तोहफे में दे दिया. पार्वती को पता चला कि जमीन पर लेआउट विकसित हो गया है तो वो मुआवजे के लिए कोर्ट पहुंची.
साल 2013-18, सिद्धारमैया कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहें. उन्होंने परिवार के प्लॉट अलॉटमेंट की अर्जी नहीं बढ़ाई. साल 2022 में बसवराज बोम्मई सरकार में MUDA की 50-50 स्कीम में मैसूर के पॉश इलाके में 14 प्लॉट पार्वती को अलॉट हुए. इसके बाद साल 2023 में सिद्धारमैया सरकार ने इंसेंटिव 50-50 स्कीम पर रोक लगा दी थी.