बुलडोजर एक्शन … ढाई साल में 259 मकान-दुकान तोड़े !
एमपी में 62% मुस्लिम और 38% हिंदुओं पर बुलडोजर एक्शन
ढाई साल में 259 मकान-दुकान तोड़े; सबसे ज्यादा कार्रवाई हत्या के आरोपियों पर
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए देशभर में बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने दलील दी, ‘MP का एक मामला है, जहां 70 दुकानों को गिरा दिया गया। इनमें से 50 दुकानें हिंदुओं की थीं।’
दैनिक भास्कर की पड़ताल में सामने आया है कि ढाई साल में मध्यप्रदेश में 259 मकान तोड़े गए। इनमें 160 मुस्लिम और 99 हिंदुओं के हैं।
प्रशासन ने 22 अगस्त को छतरपुर में थाने पर पथराव के मुख्य आरोपी हाजी शहजाद अली की 20 करोड़ रुपए की हवेली को जमींदोज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में भी राहत मांगी गई थी। दैनिक भास्कर ने मार्च 2022 से लेकर 26 अगस्त 2024 तक एमपी में ऐसे बुलडोजर एक्शन का एनालिसिस किया।….
ऐसे किया एनालिसिस
हमने मार्च 2022 से 26 अगस्त 2024 तक मध्यप्रदेश में आरोपियों के घरों को बुलडोजर से गिराने के हर एक मामले की लिस्टिंग की। देखा कि हत्या या रेप के आरोपियों की संख्या कितनी है? साथ ही ये भी देखा कि जिन आरोपियों के अवैध अतिक्रमण हटाए, उनमें किस धर्म से जुड़े कितने लोग हैं और ये भी कि किस जिले में सबसे ज्यादा कार्रवाई की गई।
हत्या के 26 आरोपियों के घरों पर चला बुलडोजर
हत्या के आरोपियों के घरों को तोड़ने के लिए 26 बुलडोजर की कार्रवाई हुई। यह सबसे ज्यादा है। 16 कार्रवाई हिंदू तो 10 कार्रवाई मुस्लिम आरोपियों के खिलाफ की गई।
गौहत्या के मामले में सभी कार्रवाई मुस्लिमों के खिलाफ
गौ हत्या के मामलों में बुलडोजर की 12 कार्रवाई हुईं। मंदिरों को नुकसान पहुंचाने और दंगे के मामलों में 6 कार्रवाई हुईं। ये सभी कार्रवाई मुस्लिम वर्ग के आरोपियों के खिलाफ की गईं।
उज्जैन में सबसे ज्यादा 9 कार्रवाई, ग्वालियर-इंदौर में 3-3
2022 से अब तक उज्जैन में 9 बार बुलडोजर चल चुका है। 2 बार नाबालिग से बलात्कार के आरोपियों, 2 बार हत्या के आरोपियों, 2 कार्रवाई गुंडागर्दी करने वालों पर हुईं। महाकाल मंदिर में श्रद्धालुओं से मारपीट करने वालों पर, महाकाल सवारी पर थूकने वाले और सटोरिए पर एक-एक कार्रवाई की गई। उज्जैन में 5 कार्रवाई हिंदू और 4 कार्रवाई मुस्लिम आरोपियों के खिलाफ की गई।
मोहन सरकार में 54 कार्रवाई, 30 हिंदुओं और 24 मुस्लिमों पर
डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से 54 बार बुलडोजर चला है। इन 54 मामलों में से 30 कार्रवाई हिंदू तो 24 कार्रवाई मुस्लिम वर्ग के आरोपियों के खिलाफ हुईं।
प्रशासन की कार्रवाई पर क्यों उठ रहे सवाल
प्रशासन किसी भी आरोपी का घर या दुकान गिराने की कार्रवाई अवैध अतिक्रमण बताकर करता है। इस पर अक्सर सवाल उठता है कि अधिकारियों को अवैध अतिक्रमण पहले क्यों नजर नहीं आता? जब कोई अपराध करता है तो उसका अवैध अतिक्रमण अचानक कैसे सामने आ जाता है।
प्रशासन इस कार्रवाई में संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करता है या नहीं? इसे लेकर भास्कर ने ऐसे 4 वकीलों से बात की, जो कोर्ट में बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ केस लड़ रहे हैं।
जानिए क्या कहते हैं कानून के जानकार…
बुलडोजर जस्टिस टर्म ही गलत, ये संवैधानिक मूल्यों पर हमला
हाईकोर्ट में ऐसे केस की पैरवी करने वाले अशहर वारसी कहते हैं कि बुलडोजर जस्टिस टर्म ही गलत है। दरअसल, ये बुलडोजर धमकी है। आप एक व्यक्ति की गलती की सजा उसकी पत्नी, बच्चे को कैसे दे सकते हैं? ये तो संवैधानिक मूल्यों पर हमला है। जीने की स्वतंत्रता पर हमला है।
मेरे पास बुलडोजर धमकी के 60 केस हैं। ये सारे केस एक खास कम्युनिटी के हैं। हमने अपनी याचिकाओं में कोर्ट से यही आग्रह किया है कि जहां बुलडोजर से मकान ढहा दिए हैं, उनकी न्यायिक जांच हो।
अपराध के बाद ही अवैध निर्माण क्यों याद आता है
उज्जैन के एडवोकेट देवेंद्र सेंगर कहते हैं कि बुलडोजर कार्रवाई के लिए सरकार का सीधा तर्क रहता है कि हमने अवैध निर्माण को ध्वस्त किया है। प्रदेश के किसी भी जिले में किसी भी घर पर अगर प्रशासन चाहे तो इसी दावे के साथ कार्रवाई कर सकता है। कहीं न कहीं किसी न किसी पॉइंट पर अवैध निर्माण निकल ही आएगा।
छोटा सा अवैध निर्माण बताकर प्रशासन पूरा घर तोड़ देता है। यह सही नहीं है। ये भी सवाल है कि अपराध होने के बाद ही प्रशासन को अवैध निर्माण को तोड़ने की याद क्यों आती है?
किराए के मकानों को तोड़ना कानूनी रूप से सही कैसे
दमोह के एडवोकेट अनुनय श्रीवास्तव कहते हैं कि बुलडोजर कार्रवाई पर सरकार का मकसद अपराधी का घर और दुकान तोड़कर उसे आर्थिक नुकसान पहुंचाना होता है। मगर यह तय ही नहीं है कि कौन से और किसका घर तोड़ेंगे? बहुत से ऐसे केस हैं, जिनमें किराए के मकानों को तोड़ा गया।
किराए के मकान को तोड़कर उसके मालिक काे बिना किसी गुनाह के इतनी बड़ी सजा मिल गई। जबकि अपराध करने वाले का कोई नुकसान नहीं हुआ। कई बार जिन घरों को ढहा दिया गया, वे अपराधी के रिश्तेदार के होते हैं। मां-बाप के नाम से घर हो या गांव से शहर आकर अपने किसी रिश्तेदार के यहां रहते हैं, उनके घरों को भी ढहा दिया जाता है।
इस तरह की कार्रवाई को कानूनी रूप से कैसे सही ठहरा सकते हैं? यह संविधान को चुनौती देने वाली एक समानान्तर प्रक्रिया है।
प्रशासन नाकामी छिपाने खुद का न्याय तंत्र चला रहा
डिंडोरी के एडवोकेट हलीम खान कहते हैं कि डिंडोरी में ढाई साल पहले एक फॉर्म हाउस बिना नोटिस दिए अवैध बताकर तोड़ दिया था। वो वैध निर्माण था, मालिक के पास उसके सारे कागज थे। अधिकारियों ने माना कि उन्होंने दबाव में आकर कार्रवाई की।
खान कहते हैं कि प्रशासन बुलडोजर कार्रवाई सरकार के दबाव में आकर करता है। प्रशासन की कोशिश उस व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने की होती है। अगर किसी को सजा दिलाना है तो कानूनी रूप से दिलवाओ। मजबूत केस बनाओ। इसमें सरकार विफल रहती है। सालों केस चलता है और आरोपी जमानत पर बाहर आ जाते हैं। इसी नाकामी को छिपाने सरकार खुद का न्याय तंत्र चला रही है।
अब जानिए, अवैध निर्माण गिराने की कानूनी प्रक्रिया
जानकार कहते हैं कि अवैध निर्माण तोड़ने की एक पूरी प्रक्रिया होती है। यदि किसी ने बिना मंजूरी के निर्माण किया है या उसके मकान या दुकान का कुछ हिस्सा अवैध है तो पहले उसे नोटिस दिया जाता है। इस नोटिस की मियाद कम से कम सात दिन की होती है।
सात दिन में अवैध अतिक्रमण करने वाले को नोटिस का जवाब देना होता है। नगर पालिका निगम एक्ट में कपाउंडिंग का ऑप्शन होता है यानी अवैध निर्माण के एवज में यदि वह हर्जाना भरता है तो उसे अनुमति मिल जाती है। इसके बाद भी वह कोई एक्शन नहीं लेता, तब प्रशासन उसका अवैध हिस्सा गिरा सकता है।
बुलडोजर एक्शन नेचुरल जस्टिस के सिद्धांतों के खिलाफ
कानून के जानकारों के मुताबिक, जब से प्रदेश में बुलडोजर कार्रवाई शुरू हुई है, कोर्ट में 1 हजार से ज्यादा ऐसे मामले लंबित हैं। चुनिंदा मामलों में कोर्ट ने फैसला सुनाया है, जिसमें प्रशासन को ही गलत ठहराया है।
उज्जैन में 13 दिसंबर 2023 को सांदीपनि नगर स्थित राधा लांगरी और विमल गुर्जर के घरों को प्रशासन ने बिना नोटिस दिए तोड़ दिया था। इस मामले में पीड़ितों ने हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में याचिका लगाई थी। हाईकोर्ट ने न केवल नगर निगम पर 2 लाख रु. पेनाल्टी लगाई बल्कि सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए थे।
कोर्ट ने कहा था कि प्रदेश में बुलडोजर चलाकर आरोपियों के घर गिराने का फैशन चल पड़ा है, यह न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। अगर किसी का घर या घर का हिस्सा अवैध है, तो उसे वैध कराने का समय दिया जाना चाहिए। लेकिन प्रशासन पर इसका कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है।