इंदौर में 35 दिन में 53 बिल पास; ऐसे हुआ निगम में 150 करोड़ का ड्रेनेज घोटाला ?
अफसर ने खुद निकाला अपने डिमोशन का आदेश
इंदौर में 35 दिन में 53 बिल पास; ऐसे हुआ निगम में 150 करोड़ का ड्रेनेज घोटाला
घपला करने के लिए एक अधिकारी ने खुद की पोस्टिंग निचली पोस्ट पर कर ली। इसका ऑर्डर भी खुद ही निकाला। यह पूरा खेल इंदौर नगर निगम में हुए 150 करोड़ रुपए के ड्रेनेज घोटाले से जुड़ा है। करप्शन के इस केस में ऑडिट डिपार्टमेंट के डिप्टी डायरेक्टर अनिल गर्ग, समर सिंह परमार और रामेश्वर परमार के खिलाफ भी केस दर्ज है।
5 करोड़ रुपए से ज्यादा के फर्जी बिल जारी करने से पहले इन्होंने इनकी जांच नहीं की। इन पर 45 किमी की सड़कें और 500 चैंबर के बिल एक ही दिन में जारी करने के आरोप हैं। तीनों ने अपर सत्र न्यायालय से राहत नहीं मिलने पर जमानत के लिए हाईकोर्ट (इंदौर बेंच) में याचिका लगाई थी।
पुलिस की ओर से अधिवक्ता कमल कुमार तिवारी ने पैरवी करते हुए कोर्ट से कहा कि तीनों को जमानत मिली तो जांच पर विपरीत असर पड़ेगा। 10 सितंबर को जस्टिस पीसी गुप्ता की खंडपीठ ने फैसले में कहा…
नगर निगम को बड़ी आर्थिक क्षति हुई है। आरोपियों की मिलीभगत भी प्रतीत होती है। ऐसे में इन्हें जमानत देने का कोई उपयुक्त कारण नहीं बनता है।
दरअसल, पिछले कुछ सालों में इंदौर नगर निगम में ड्रेनेज, प्रधानमंत्री आवास योजना, वर्कशॉप, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट, अमृत परियोजना जैसे प्रोजेक्ट्स में गड़बड़ियां की गई हैं। इसकी कड़ियां भोपाल से जुड़ी हैं। लेनदेन के इस पूरे मामले में ऑडिट डिपार्टमेंट के अफसर भी शामिल हैं।
तीन पॉइंट में समझिए कैसे खेला गया भ्रष्टाचार का खेल ?
- ऑडिट डिपार्टमेंट के जॉइंट डायरेक्टर अनिल गर्ग ने खुद को निचली पोस्ट डिप्टी डायरेक्टर पर जॉइन कर काम शुरू किया।
- अधिकारी ने जॉइनिंग के लिए जिस नियम का हवाला दिया, वो है ही नहीं। न ही सरकार ने कोई आदेश जारी किया।
- इस अधिकारी के जॉइन करने के बाद सरकारी आदेश जारी हुआ। इसमें भी फर्जीवाड़ा सामने आया।
जो काम हुए नहीं उनके बिल बनाकर पेमेंट किया नगर निगम में जो काम हुए ही नहीं, ठेकेदारों ने अधिकारी-कर्मचारियों की मिलीभगत से उन कामों के दस्तावेज और बिल तैयार कर पेमेंट ले लिया। ऐसे एक नहीं, कई मामले हैं। ये भी साल 2022 के पहले के हैं। मास्टरमाइंड इंजीनियर अभय राठौर (अभी जेल में है) ने नगर निगम में असिस्टेंट इंजीनियरों के नाम से फर्जी फाइलें बनाईं।
इसके बाद फर्जी वर्क ऑर्डर हुए। एग्जीक्यूटिव और सुपरवाइजिंग इंजीनियरों के साइन हुए। अपर कमिश्नर के भी फर्जी साइन हुए। फिर बिल अकाउंट विभाग में लगाए गए और यहां भी फर्जी तरीके से ही पेमेंट हो गया। यह पूरा काम ठेकेदारों की मिलीभगत से हुआ था। उन्होंने ड्रेनेज के कामों को लेकर फर्जी बिल दिए थे, जबकि काम हुए ही नहीं।
पहला पॉइंट: जॉइंट डायरेक्टर ने खुद का डिमोशन किया बात तीन साल पहले 1 मार्च 2021 की है। मार्च यानी वो महीना, जब हर सरकारी विभाग में पेमेंट का सेटलमेंट तेजी से होता है। इस दिन ऑडिट डिपार्टमेंट के संयुक्त संचालक (जॉइंट डायरेक्टर) अनिल कुमार गर्ग ने खुद के लिए एक आदेश जारी किया। उन्होंने खुद को निचले पद यानी उप संचालक ऑडिट (डिप्टी डायरेक्टर) के पद पर नियुक्त किया।
इसका लेटर उन्होंने तत्कालीन निगमायुक्त प्रतिभा पाल को लिखा। लेटर में लिखा, ‘अरुण शुक्ला इस पद से रिटायर हो गए हैं। इस पद पर मैंने खुद कार्यभार (आवासी संपरीक्षा के पर्यवेक्षण अधिकारी का चार्ज) संभाल लिया है।’
नियम कहता है-
कोई भी अधिकारी वह जिस पद पर है, उससे ऊपर के पद का प्रभार संभाल सकता है। अपने पद से नीचे का नहीं।
दूसरा पॉइंट: जिस लेटर का हवाला, वो सरकार के पास नहीं जॉइंट डायरेक्टर से डिप्टी डायरेक्टर की पोस्ट पर जॉइन करने के लिए गर्ग ने एक नियम का हवाला दिया- प्रशा-1/भोपाल, दिनांक 26.02.2021। लेकिन, इस संबंध में सरकार ने कोई आदेश जारी ही नहीं किया। नगर निगम ने भी इस संबंध में आरटीआई (सूचना का अधिकार) में कोई जानकारी नहीं दी। कहा कि ऑनलाइन भी यह पत्र उपलब्ध नहीं है।
तीसरा पॉइंट: गड़बड़ी पकड़ाई, गर्ग ने खुद ही अपने अंडर काम किया 1 मार्च 2021 को गर्ग ने पदभार तो संभाल लिया, लेकिन इस संबंध में अधिकृत आदेश जारी हुआ 35 दिन बाद, यानी 5 अप्रैल 2021 को। मध्यप्रदेश शासन के उप सचिव ने यह आदेश जारी किया। शासन की ओर से जॉइंट डायरेक्टर गर्ग को इंदौर, खंडवा, बुरहानपुर नगर निगम के रेजिडेंट ऑडिटर, खंडवा-बुरहानपुर की कृषि उपज मंडी, कृषि महाविद्यालय खंडवा के भी रेजिडेंट ऑडिटर की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई।
नियम कहता है-
जॉइंट डायरेक्टर सिर्फ मॉनिटरिंग कर सकते हैं, ऑडिट नहीं कर सकते। एक जॉइंट डायरेक्टर के अंडर कई रेजिडेंट ऑडिटर काम करते हैं। इस आदेश में गर्ग ने खुद ही अपने अंडर काम किया।
बुरहानपुर-खंडवा कार्यकाल की जांच हो तो और भी खुलासे होंगे 5 अप्रैल 2021 को जारी आदेश में शासन ने गर्ग को न केवल इंदौर नगर निगम का रेजिडेंट ऑडिटर बनाया, बल्कि खंडवा और बुरहानपुर नगर निगम, दोनों जगहों की कृषि उपज मंडी, कृषि महाविद्यालय खंडवा का भी रेजिडेंट ऑडिटर बना दिया था।
ऑडिट डिपार्टमेंट के जानकारों का कहना है कि एक अधिकारी इतनी जगहों के ऑडिट की मॉनिटरिंग कर ही नहीं सकता। सूत्रों का कहना है कि गर्ग जब तक इन जगहों पर रेजिडेंट ऑडिटर रहे, तब तक के उनके कार्यकाल की भी जांच होनी चाहिए। यहां से करोड़ों का भ्रष्टाचार सामने आएगा।
35 दिन में 53 बिल पास, करोड़ों का भुगतान गर्ग ने निचली पोस्ट पर जॉइनिंग और शासन का असल आदेश जारी होने के दिन तक यानी 35 दिन में 53 बिल पास किए। जिन फर्मों ने ये बिल लगाए, उन्होंने कहीं भी अपनी फर्म के किए गए काम का स्पेसिफिक जिक्र नहीं किया। ऐसे में यह पकड़ पाना मुश्किल है कि जो बिल पास किया गया, वो काम वाकई में हुआ भी या नहीं।
6 करोड़ 34 लाख 48 हजार 6 सौ 42 रुपए के बिल के मुताबिक, अहमदाबाद की एक फर्म ने प्रधानमंत्री आवास योजना (तृतीय चरण) के तहत ग्राम सिंदोड़ा रंगवासा फेस-2 में प्रस्तावित इकाइयों का निर्माण कार्य करने के बदले पैसा मांगा। गर्ग ने ही इसे 9 मार्च 2021 को पास कर दिया।
सूत्रों का कहना है कि ऐसे बेनामी न जाने कितने बिल पास हुए। इनका फिजिकल वैरिफिकेशन हुआ भी या नहीं? इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। न ही जिस काम के बदले बिल पास किए गए, उन्हें बाद में देख पाना संभव है। 35 दिन में 1 करोड़ के 53 बिल पास हुए, लेकिन 1 करोड़ से कम राशि के सैकड़ों बिलों को भी जोड़ा जाए, तो ये आंकड़ा 100 करोड़ रुपए से ज्यादा का हो जाएगा।
क्या कहता है नगर निगम अधिनियम? नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 के तहत स्थानीय निधि संपरीक्षा (रेजिडेंट ऑडिट) अधिनियम 1973 के मुताबिक संभागीय संयुक्त संचालक भुगतान वाउचर्स की नोट शीट पर साइन नहीं कर सकते। जबकि, गर्ग ने ऐसी कई नोट शीट पर साइन किए हैं।
अपर निगम आयुक्त ने माना, बड़ा अधिकारी छोटे पद पर काम कर रहा
इंदौर नगर निगम अपर आयुक्त देवधर दवाई ने भी माना है कि बड़ा अधिकारी छोटे पद पर काम कर रहा था। उन्होंने कहा, ‘यह नियुक्ति वित्त विभाग, भोपाल से होती है। उन्हें हमने कई बार इस बात से अवगत कराया है।’
ऑडिट डिपार्टमेंट (भोपाल) के अपर संचालक आरएस कटारा का कहना है कि शासन की ओर से जो भी नियुक्तियां की गई हैं, वे नियमानुसार हैं। इंदौर और भोपाल नगर निगम में ऑडिट विभाग का जिम्मा अभी राजकुमार सोनी के पास है। काम में किसी तरह की बाधा न आए, इसकी पूरी कोशिश है।