सिर्फ कर्मचारी ही नहीं, सभी गुणवत्तापूर्ण जीवन चाहते हैं !

सिर्फ कर्मचारी ही नहीं, सभी गुणवत्तापूर्ण जीवन चाहते हैं

इसी हफ्ते की बात है, कर्नाटक में राजस्व विभाग के ग्रामीण प्रशासनिक अधिकारियों (विलेज एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर्स- वीएओ) ने प्रदर्शन करते हुए बेंगलुरु में बैठी सरकार के लिए मांगों की सूची सौंपी। वीएओ ही जमीनी स्तर पर सरकार का पहला चेहरा हैं और जन्म से लेकर मृत्यु तक का पंजीयन भी यही करते हैं।

वीएओ के साथ राजस्व अधिकारियों ने भी ‘रेवेन्यू विलेज एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर्स सेंट्रल एसोसिएशन’ के बैनर तले प्रदर्शन किया और सरकार का ध्यान उन पर गया। उनका कहना है कि उन पर कई तरह के काम थोपे जाते हैं, इससे मूल काम निपटाने में बाधा आती है।

मीटिंग के नाम पर पूरी छुट्टी भी नहीं मिलती और गलत राजस्व रिकॉर्ड जारी करने के बहाने पुलिस परेशान करती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्हें दिन में कई वर्चुअल मीटिंग में जुड़ने के लिए कहा जाता है, क्योंकि उनका कार्यस्थल मुख्यालय से काफी दूर होता है, जहां उच्चाधिकारी काफी समय ले लेते हैं। एसोसिएशन ने शाम 6 के बाद ऑनलाइन मीटिंग नहीं करने की मांग की है, क्योंकि इससे ग्रामीण इलाकों के शांत पारिवारिक जीवन में खलल पड़ता है।

नागरिक सुविधाओं की सुगम डिलीवरी के लिए सरकार ने कई वेब एप्लिकेशन लॉन्च की हैंं और कर्मचारियों से उम्मीद की जाती है कि वे कामकाजी घंटों के बाद भी वो डाटा अपलोड करें। उनकी विशेष मांग है कि सभी वेब और मोबाइल एप शाम 6 बजे तक बंद कर दिए जाएं ताकि कोई भी आधिकारिक व्यक्ति डाटा ना डाल सके।

अब बात गोवा की। सिर्फ कर्मचारी ही नहीं, आम लोग (जिन्हें पता है कि बढ़ते पर्यटकों से ही राज्य की आमदनी होती है) नहीं चाहते कि सनबर्न (इस बड़े म्यूजिक फेस्ट में लाखों पर्यटक आते हैं) जैसा कोई बड़ा आयोजन हो, क्योंकि उन्हें लगता है कि इन आयोजनों में पर्यटकों की आमद से उनका सांस्कृतिक ताना-बाना बिगड़ रहा है, जो अक्सर नशा करते हैं और बहुत पार्टी करते हैं।

राज्य के तौर पर गोवा में सनबर्न के अलावा बड़े महंगे फेस्ट जैसे इंडिया बाइक वीक या रेडर मैनिया होते हैं, जिससे स्थानीय लोगों को लगता है कि गोवा की गहराई तक रची-बसी परंपराओं को खतरा हो सकता है, ये परंपराएं भले अनोखी न हों, पर पर्यटकों की भारी तादाद से इन पर संकट हो सकता है। गोवा प्रवास के दौरान मैंने कई स्थानीय लोगों से बात की, उन्होंने कहा कि हम भी बिना बाहरी लोगों के दखल के अपने घरवालों के साथ शांत माहौल में कुछ क्वालिटी टाइम बिताना चाहते हैं।

हम न सिर्फ जीवन संस्कृति का संकट देख रहे हैं बल्कि कार्यस्थल से जुड़े कल्चर पर भी संकट है। नई उम्र के कर्मी, जिन्हें हम टेक फ्रेंडली जनरेशन कहते हैं, उन्हें ‘ऑलवेज़ ऑन’ मोड में रहने के लिए कहा जाता है, जिसमें काम की मांग के लिए नींद के सामान्य समय, खाने-पीने और निजी रिश्तों, कसरत या शौक आदि की भी परवाह नहीं की जाती।

टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर्मचारियों के एफर्ट कम करने के लिए होना चाहिए, इसके बजाय उन्हें साल के 365 दिन, चौबीसों घंटे उपलब्ध रहने कहा जाता है। न सिर्फ कर्मचारी बल्कि हर शहर के लोग भी बिजनेस में मुनाफा चाहते हैं, लेकिन वे धीरे-धीरे समझ रहे हैं कि बिजनेस टिकाऊ व लंबा तभी चलेगा, जब कर्मचारी और उनका समाज खुश, स्वस्थ, जुड़ा हुआ रहेगा, ना कि थके-मांदे, तनावग्रस्त, अनिश्चितता या डर के साए में काम करने वाले कर्मचारियों से।

हममें से सब विविध समूहों में स्वीकार्यता का माहौल पैदा करने के लिए विश्वास से भरे वास्तविक मानवीय संबंध स्थापित करना चाहता है और वायर (पढ़ें टेक्नोलॉजी) से जुड़ी दुनिया से तंग आ चुके हैं। यहां तक कि नियोक्ताओं को समझना होगा कि मुनाफे (खासकर तेजी से) का पीछा करने में मानव-केंद्रित रास्ता थोड़ा कमजोर हो सकता है, पर कई शोध के परिणामों ने साबित किया है कि बिजनेस में अच्छे परिणाम बनाए रखने के लिए मानव केंद्रित होना बुद्धिमानी भरा रास्ता है।

…. उनींदे से राज्य गोवा से लेकर कर्नाटक के सुदूर गांवों में बैठे छोटे कर्मचारी, सब परिवार के साथ क्वालिटी टाइम, बच्चों के साथ हैप्पी टाइम बिताना चाहते हैं और टेक्नोलॉजी से कटे रहना चाहते हैं। क्या हमें जीवन जीने का ऐसा तरीका सोचना चाहिए? ये हमारे हाथ में है।

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