भारत में प्रिसिजन मेडिसिन का बाजार तेजी से बढ़ रहा है !
प्रिसिजन मेडिसिन: भारत में इस पर काम शुरू, घातक बीमारियों से निपटने की तैयारी
प्रिसिजन मेडिसिन एक नया और व्यक्तिगत स्वास्थ्य देखभाल का तरीका है. ये इलाज और रोकथाम को मरीज के जीन, जीवनशैली और वातावरण के अनुसार अनुकूलित करता है.
यूएस में शुरू हुई इस इनिशिएटिव के लगभग 9 साल बाद अब भारत में भी इलाज के इस तरीके ने स्वास्थ्य देखभाल में नई उम्मीद जगाई है. दरअसल अब भारत में भी इस तकनीक पर काम शुरू हो गया है, जो खासतौर पर कैंसर, मधुमेह और दिल की बीमारियों जैसे गंभीर रोगों के खिलाफ लड़ाई को और मजबूत बनाएगा. सरकार, शोध संस्थान और निजी क्षेत्र मिलकर इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं, जिससे हर मरीज को उसके लिए सबसे उपयुक्त इलाज मिल सके.
ऐसे में इस रिपोर्ट में हम विस्तार से समझते हैं कि आखिर क्या है प्रेिसिजन मेडिसिन और ये कैसे भारत में स्वास्थ्य देखभाल के भविष्य को आकार देने की तैयारी में है.
क्या है प्रिसिजन मेडिसिन
प्रिसिजन मेडिसिन एक नया और व्यक्तिगत स्वास्थ्य देखभाल का तरीका है. यह इलाज और रोकथाम को मरीज के जीन, जीवनशैली और वातावरण के अनुसार अनुकूलित करता है. इस तकनीक का उद्देश्य हर मरीज के लिए सबसे उपयुक्त और प्रभावी इलाज उपलब्ध कराना है.
इस तकनीक के तहत डॉक्टर मरीज की खासियतों को समझकर उसके लिए खास उपचार का चयन करते हैं. इसे आसान भाषा में समझने के लिए मान लीजिए कि कोई व्यक्ति कैंसर से पीड़ित है, तो डॉक्टर उसके जीन की जानकारी का इस्तेमाल करके यह तय कर सकते हैं कि कौन-सा इलाज उसके लिए सबसे बेहतर अच्छा रहेगा.
प्रिसिजन मेडिसिन से न सिर्फ इलाज में सुधार होता है, बल्कि यह बीमारियों के बारे में हमारे ज्ञान को भी बढ़ाता है. इससे मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिलती हैं और वे स्वस्थ रहने में मदद कर सकते हैं.
प्रिसिजन मेडिसिन से इलाज करना बाकी आम इलाज के कैसे अलग है
कई आधिकारिक रिसर्च और शोधों की मानें तो प्रिसिजन मेडिसिन और सामान्य चिकित्सा के बीच काफी ज्यादा अंतर है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) और अन्य संस्थानों के अध्ययन बताते हैं कि प्रिसिजन मेडिसिन जीनोमिक डेटा का इस्तेमाल करती है, जिससे इलाज को मरीज की आनुवंशिकी के अनुसार अनुकूलित किया जा सकता है.
एक और रिसर्च “नेचर रिव्यू” के अनुसार प्रिसिजन मेडिसिन से उपचार योजनाएं मरीज की व्यक्तिगत विशेषताओं के आधार पर बनाई जाती हैं, जिससे उनकी प्रभावशीलता बढ़ती है. उदाहरण के लिए डायबिटीज या हृदय रोग के पेशेंट को ही ले लीजिये, प्रिसिजन मेडिसिन तकनीक में मरीज की जीवनशैली और स्वास्थ्य इतिहास को ध्यान में रखकर उपचार किया जाता है.
प्रिसिजन मेडिसिन से इलाज के बाद सफलता की दर
जर्नल ऑफ पर्सनलाइज मेडिसिन नाम के शोध में बताया गया है कि प्रिसिजन मेडिसिन के तहत इलाज की सफलता दर आम चिकित्सा की तुलना में ज्यादा होती है. उदाहरण- कैंसर के लिए इम्यूनोथेरेपी का उपयोग करने वाले मरीजों में बेहतर परिणाम देखे गए हैं, जब इलाज उनके जीन के अनुसार अनुकूलित किया गया.
इस तकनीक के तहत कैसे किया जाता है उपचार
प्रिसिजन मेडिसिन तकनीक इलाज करने का एक नया तरीका है जो हर व्यक्ति की खास जरूरतों को ध्यान में रखता है. प्रिसिजन मेडिसिन में डॉक्टर मरीज के जीन, जीवनशैली, और स्वास्थ्य इतिहास को देखते हैं. इससे उन्हें यह समझने में मदद मिलती है कि कौन-सा इलाज सबसे अच्छा रहेगा. इस तकनीक में मरीज के DNA का अध्ययन किया जाता है. जिससे पता चलता है कि किसी बीमारी के लिए कौन-से जीन जिम्मेदार हैं और इलाज कैसे किया जा सकता है.
इसके अलावा प्रिसिजन मेडिसिन में नई तकनीकों जैसे जीन संपादन और इम्यूनोथेरेपी का भी इस्तेमाल होता है, जिससे इलाज को और बेहतर बनाया जा सके.
प्रिसिजन मेडिसिन के सफल होने में बायोबैंक का बड़ा योगदान
दरअसल बायोबैंक एक ऐसा स्थान है जहां जैविक सैंपल, जैसे खून, डीएनए, कोशिकाएं, और ऊतके इकट्ठा किए जाते हैं, साथ में उनका आनुवंशिक डेटा भी होता है. इन नमूनों का इस्तेमाल शोध में किया जाता है. प्रिसिजन मेडिसिन के सफल होने के लिए बायोबैंक का बड़ा और विविध होना बेहद जरूरी है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसके लाभ मिल सके.
भारत इस तकनीक के लिए कितना तैयार
भारत में 19 पंजीकृत बायोबैंक हैं, जिनमें कई जैविक नमूने, जैसे कैंसर सेल लाइन्स और ऊतके, संग्रहित हैं. इस साल की शुरुआत में, ‘जीनोम इंडिया’ कार्यक्रम ने 99 जातीय समूहों से 10,000 जीनोम का अनुक्रमण पूरा किया, ताकि दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों के इलाज की पहचान की जा सके.
भारत में बढ़ रहा प्रिसिजन मेडिसिन का बाजार
भारत में प्रिसिजन मेडिसिन का बाजार तेजी से बढ़ रहा है, और इसका अनुमानित विकास दर 16% है. द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2030 तक, यह बाजार 5 अरब डॉलर से ज्यादा का हो सकता है. वर्तमान में, यह राष्ट्रीय बायो इकोनॉमी का 36% योगदान देता है, जिसमें कैंसर इम्यूनोथेरेपी, जीन संपादन, और अन्य बायोलॉजिकल उपचार शामिल हैं. प्रिसिजन मेडिसिन का विकास नई ‘बायोई3’ नीति का एक हिस्सा है.
अक्टूबर 2023 में, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने भारत की पहली स्वदेशी CAR-T सेल थेरेपी, नेक्सकार19 को मंजूरी दी. इसी साल, सरकार ने इसके लिए एक खास केंद्र भी खोला. हाल ही में, अपोलो कैंसर सेंटर और बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान ने प्रिसिजन मेडिसिन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग के लिए नई सुविधाएं शुरू की हैं.
किन-किन देशों में हो रहा इस तकनीक से इलाज
अमेरिका: अमेरिका में प्रिसिजन मेडिसिन इनिशिएटिव के तहत, कई शोध और उपचार कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. यहां तक कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने इस क्षेत्र में बड़ा निवेश किया है.
यूके: यूके में 100,000 जीनोम परियोजना, जो नेशनल हेल्थ सर्वे द्वारा चलायी जा रही है, का उद्देश्य विभिन्न आनुवंशिक बीमारियों के लिए उपचार विकसित करना है.
जापान: जापान में, देश की सरकार ने प्रिसिजन मेडिसिन के लिए राष्ट्रीय योजना बनाई है, जिसमें जीनोमिक्स और व्यक्तिगत उपचारों पर ध्यान दिया गया है.
भारत: भारत में जीनोम इंडिया और फेनोमेनन इंडिया जैसे प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं, जो प्रिसिजन मेडिसिन में योगदान दे रहे हैं.
कनाडा: कनाडा में भी प्रिसिजन मेडिसिन का उपयोग किया जा रहा है, जिसमें ‘कैनेडियन पार्टनरशिप फॉर टुमॉरो हेल्थ जैसी पहल शामिल हैं.
ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलिया में, ‘जीनोम्स हेल्थ फ्यूचर मिशन’ जैसी पहलें प्रिसिजन मेडिसिन को बढ़ावा दे रही हैं.
कैसे हुई इलाज के इस तकनीक की शुरुआत
ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट 1990 में शुरू किया गया था. इस परियोजना का उद्देश्य मानव जेनेटिक्स को समझना था और यह प्रिसिजन मेडिसिन के विकास की नींव रखी.
इसके बाद साल 2015 में, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने प्रिसिजन मेडिसिन इनिशिएटिव की घोषणा की. इसका उद्देश्य अनुसंधान को बढ़ावा देना और व्यक्तिगत चिकित्सा के विकास को समर्थन देना था. यह पहल जनसंख्या स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए डिज़ाइन की गई थी.
जैसे-जैसे जीनोमिक्स में प्रगति हुई, वैज्ञानिकों ने यह समझना शुरू किया कि आनुवंशिक भिन्नताएं अलग अलग बीमारियों और उसके इलाज के प्रतिक्रियाओं में कैसे भूमिका निभाती हैं. इससे व्यक्तिगत चिकित्सा के विकास को बढ़ावा मिला.