क्या होता है माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन?

क्या होता है माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन? जानें इसका दर्जा मिलने से शैक्षिक संस्थान में क्या फर्क आता है?

संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत, सभी अल्पसंख्यक समुदायों चाहे वह धार्मिक हों या भाषाई, को यह अधिकार दिया गया है कि वे अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थान खोल सकते हैं.

8 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. इस फैसले को 7 जजों की बेंच ने 4-3 के बहुमत से सुनाया और इसे दो हिस्सों में बांट दिया. पहले हिस्से में कोर्ट ने 1967 के अपने पुराने फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं मिल सकता. इसका मतलब है कि अब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान मानने का रास्ता खोल दिया गया है.

हालांकि इस मामले में अभी एक और अहम फैसला आना बाकी है. दूसरे हिस्से में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला लिया है कि तीन जजों की एक नई बेंच यह तय करेगी कि क्या वाकई में AMU एक अल्पसंख्यक संस्थान है. इस पर अब आगे सुनवाई होगी.

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को लेकर सुप्रीम कोर्ट का हालिये फैसले ने ये सवाल फिर से खड़ा कर दिया है कि अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने से शैक्षिक संस्थान में क्या फर्क आता है? 

अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान या माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन क्या हैं?

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग के अनुसार अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान (माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन) ऐसे कॉलेज या स्कूल होते हैं जिन्हें किसी अल्पसंख्यक समुदाय (जैसे मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि) द्वारा स्थापित और प्रशासित किया जाता है. इसका मतलब है कि इन्हें उस समुदाय के लोग चलाते हैं और इनका उद्देश्य उस समुदाय के छात्रों को शिक्षा में विशेष अवसर और समर्थन देना होता है. 

हालांकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत, सभी अल्पसंख्यक समुदायों (चाहे वह धार्मिक हों, जैसे मुस्लिम, सिख, ईसाई, या भाषाई हों, जैसे तमिल, पंजाबी आदि) को यह अधिकार दिया गया है कि वे अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थान खोल सकते हैं और उन्हें चला सकते हैं. इसका मतलब है कि इन समुदायों को अपनी शिक्षा की व्यवस्था को स्वतंत्रता से चलाने का अधिकार है, ताकि उनके समुदाय के लोग अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को बनाए रखते हुए शिक्षा प्राप्त कर सकें.

इस संवैधानिक अधिकार को आधार बनाकर ही अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग की गई थी, क्योंकि यह यूनिवर्सिटी एक मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित और चलायी जाती है. इसलिए, इसे अल्पसंख्यक संस्थान माना जाए, यह मांग की गई थी. 

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तो क्या अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान में दूसरे धर्म के छात्र प्रवेश ले सकते हैं?

इसका जवाब है हां, अल्पसंख्यक संस्थानों में दूसरे धर्म के छात्र भी एडमिशन ले सकते हैं. हालांकि, साल 2004 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग अधिनियम के तहत, अल्पसंख्यक संस्थान अपने समुदाय के छात्रों के लिए 50% सीटें आरक्षित रख सकते हैं. इसका मतलब है कि किसी भी अल्पसंख्यक संस्थान का 50% हिस्सा उस समुदाय के छात्रों के लिए होता है, जबकि बाकी 50% सीटें अन्य समुदाय के छात्रों के लिए खुली रहती हैं.

भारत में वर्तमान में कितने अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान हैं? 

भारत में अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के आंकड़े समय-समय पर बदलते रहते हैं, लेकिन कुछ आधिकारिक आंकड़े और स्रोतों के अनुसार, इन संस्थानों की संख्या काफी बड़ी है. खास तौर से मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी, और जैन समुदायों द्वारा संचालित शैक्षिक संस्थानों की. NCMEI (राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग) और शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्तमान में लगभग 5000 से ज्यादा अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान कार्यरत हैं. इनमें से अधिकांश संस्थान मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित हैं, लेकिन ईसाई, सिख, पारसी, और जैन समुदायों द्वारा भी शैक्षिक संस्थान चलाए जाते हैं. 

बता दें कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के बारे में जानकारी प्रदान करता है और उनका अल्पसंख्यक दर्जा जारी करता है. NCMEI हर साल  अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी करता है, जिसमें अल्पसंख्यक संस्थानों की संख्या और उनकी स्थिति पर विस्तृत आंकड़े होते हैं. इसके अलावा भारत सरकार की शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा स्थापित शैक्षिक संस्थानों की संख्या और उनकी स्थिति का विवरण होता है. 

अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान और सामान्य शिक्षण संस्थान में क्या फर्क है 

अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान और सामान्य शिक्षण संस्थान में कुछ प्रमुख अंतर होते हैं. ये अंतर मुख्य रूप से उनके संचालन, स्थापना और लक्ष्य समूह से जुड़े होते हैं.

1. अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान किसी अल्पसंख्यक समुदाय (जैसे मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी, या जैन) द्वारा स्थापित और संचालित होते हैं. इन्हें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं, जिससे ये अपनी पसंद के शिक्षण संस्थान खोलने और चलाने का अधिकार रखते हैं. उदाहरण: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU), जामिया मिलिया इस्लामिया (JMI). वहीं दूसरी तरफ सामान्य शिक्षण संस्थान किसी विशेष धर्म या समुदाय द्वारा संचालित नहीं होते. ये संस्थान सभी जातियों, धर्मों और समुदायों के लिए खुले होते हैं और राज्य या निजी संस्थाओं द्वारा संचालित होते हैं. उदाहरण: दिल्ली विश्वविद्यालय, हैदराबाद विश्वविद्यालय आदि.

2. अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों का मुख्य उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को शिक्षा में विशेष अवसर प्रदान करना होता है, ताकि उनका सांस्कृतिक और धार्मिक संरक्षण हो सके. हालांकि, ये संस्थान अन्य समुदायों के छात्रों को भी दाखिला देते हैं, लेकिन इनका प्राथमिक उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को समर्पित होता है. वही सामान्य शिक्षण संस्थान सभी धर्मों और समुदायों के छात्रों के लिए समान अवसर प्रदान करते हैं. इनका उद्देश्य शिक्षा का विस्तार करना होता है, और ये किसी विशेष धर्म या समुदाय के छात्रों के लिए केंद्रित नहीं होते.

3. अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान 50% तक सीटें अपने समुदाय के छात्रों के लिए आरक्षित कर सकते हैं. इसके बावजूद, दूसरे धर्मों के छात्र भी इन संस्थानों में प्रवेश ले सकते हैं. जबकि सामान्य शिक्षण संस्थान में सीटों का आरक्षण सरकार द्वारा लागू की गई आरक्षण नीति के अनुसार होता है, जो SC/ST/OBC और ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) के लिए होता है, लेकिन यह आरक्षण धर्म या भाषा के आधार पर नहीं होता.

अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा संचालित होने का विशेष अधिकार प्राप्त होता है. इसका मतलब है कि इन संस्थानों को अपनी शिक्षा व्यवस्था, पाठ्यक्रम और प्रशासन के मामलों में अधिक स्वतंत्रता होती है. वही सामान्य शिक्षण संस्थान को किसी विशेष कानूनी प्रावधान का पालन नहीं करना होता जो केवल अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए निर्धारित हो. इन संस्थानों की व्यवस्था और संचालन सरकारी नियमों और मानकों के अनुसार होता है.

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प्रवेश और आवेदन प्रक्रिया

अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान संस्थानों में अक्सर विशेष प्रवेश प्रक्रिया होती है, जो अल्पसंख्यक छात्रों के लिए आरक्षित सीटों को ध्यान में रखकर होती है. हालांकि, अन्य समुदायों के छात्र भी प्रवेश ले सकते हैं, लेकिन आरक्षण के तहत सीटें विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदाय के लिए होती हैं.  वहीं सामान्य शिक्षण संस्थानों में प्रवेश प्रक्रिया सामान्य होती है, जो सभी छात्रों के लिए समान होती है, और इसमें किसी समुदाय विशेष के लिए आरक्षण नहीं होता.

अब जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने AMU का क्या मामला चल रहा है

साल 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं मिल सकता. उस वक्त कोर्ट ने यह कहा कि क्योंकि AMU को 1920 में एक विशेष कानून (AMU एक्ट) के तहत स्थापित किया गया था, इसलिए यह अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकता.

फिर, 1981 में केंद्र सरकार ने AMU एक्ट में संशोधन किया और इस संशोधन के बाद AMU को फिर से अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दे दिया गया.  लेकिन 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फिर से एक फैसला दिया, जिसमें AMU का अल्पसंख्यक दर्जा खत्म कर दिया गया. इसके बाद, AMU और इसके समर्थन में खड़े लोग सुप्रीम कोर्ट में गए और याचिका दायर की, ताकि AMU का अल्पसंख्यक दर्जा फिर से बहाल किया जा सके.

इस प्रकार, यह मामला कोर्ट में लंबा चला और अब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अपना नया फैसला सुनाया है, जिससे AMU के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर एक नया मोड़ आया है.

8 नवंबर के फैसले की चार बड़ी बातें 

8 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़ी एक महत्वपूर्ण सुनवाई में चार प्रमुख बातें कहीं

1. AMU को शाही कानून से स्थापित किया गया था: कोर्ट ने कहा कि AMU को एक विशेष शाही कानून (1920 में AMU एक्ट) के जरिए स्थापित किया गया था, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इसे किसी अल्पसंख्यक समुदाय ने स्थापित नहीं किया. इसका मतलब यह है कि AMU के संस्थापक या इसे स्थापित करने वाले लोग अल्पसंख्यक समुदाय से थे, और इसलिए इसे एक अल्पसंख्यक संस्थान माना जा सकता है.

2. संस्था की स्थापना के लिए कानून बना था: सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि AMU की स्थापना के लिए कानून बनाया गया था, इसलिए यह कहना कि यह यूनिवर्सिटी संसद ने स्थापित की थी, गलत होगा. कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि संस्था की स्थापना का असली विचार और मकसद समझने के लिए हमें इसके इतिहास और संस्थापक के इरादों को देखना होगा.

3. संस्थापक की पहचान महत्वपूर्ण है: कोर्ट ने कहा कि हमें यह जानने की जरूरत है कि AMU की स्थापना का विचार किसका था? यह भी देखना ज़रूरी है कि इसके लिए धन किसने मुहैया कराया और क्या अल्पसंख्यक समुदाय ने इसमें मदद की थी? इस सवाल का जवाब देने से यह स्पष्ट होगा कि क्या यह संस्थान अल्पसंख्यक समुदाय के हितों में स्थापित हुआ था.

4. प्रशासन के हाथ में होना जरूरी नहीं: अंत में कोर्ट ने यह कहा कि अगर कोई अल्पसंख्यक समुदाय ने संस्थान की स्थापना की है, तो वह अल्पसंख्यक संस्थान कहलाएगा, भले ही उस संस्थान का प्रशासन अल्पसंख्यक समुदाय के हाथों में न हो. इसका मतलब यह है कि एक संस्थान का अल्पसंख्यक होना इस बात पर निर्भर नहीं करता कि उसे कौन चला रहा है, बल्कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसे किसने स्थापित किया था और किसके हितों के लिए इसे शुरू किया गया था.

इन चार बातों के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में माना जा सकता है, अगर यह समुदाय विशेष के द्वारा स्थापित किया गया था, भले ही इसका प्रशासन किसी और के हाथों में हो. 

अब आगे क्या 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब एक 3 सदस्यीय बेंच बनाइ जाएगी जो यह तय करेगी कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलना चाहिए या नहीं. यह बेंच फाइनल फैसला करेगी कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताया है कि इस फैसले में कुछ मानदंड तय किए गए हैं, जिनके आधार पर यह फैसला किया जाएगा कि किसी संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा दिया जा सकता है या नहीं. यह मानदंड यह बताएंगे कि किसे और क्यों अल्पसंख्यक दर्जा दिया जा सकता है. इसके बाद, यह 3 सदस्यीय बेंच उन मानदंडों के आधार पर गाइडलाइंस बनाएगी, यानी एक स्पष्ट तरीका बताएगी कि अल्पसंख्यक दर्जा किसे और कैसे मिल सकता है.

सुप्रीम कोर्ट इस बात पर भी निर्णय देगा कि अल्पसंख्यक संस्थान बनाने और उसके प्रशासन से जुड़ी विस्तृत दिशा-निर्देश क्या होंगे. इसमें AMU का इतिहास, संस्थापन की परिस्थितियां, और संस्थान के प्रशासन की कार्रवाई को ध्यान में रखते हुए दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे.

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