नए सीजेआई के सामने पुरानी चुनौतियाँ !
नए सीजेआई के सामने पुरानी चुनौतियाँ
भारत के नए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना के सामने सभी चुनौतियाँ पुरानी हैं। देश के 51 वे मुख्यन्यायधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने पहले ही दिन एक मामले में पैरवी कर रहे वकील को झडपी देकर ये संकेत दे दिए हैं कि उनकी कार्यशैली निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दिवय चंद्रचूड़ से कैसे और कितनी अलग होगी। नए सीजेआई की सबसे बड़ी चुनौती उनका अल्प कार्यकाल। है । सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना का बतौर मुख्य न्यायाधीश, कार्यकाल छह महीने का होगा. वह अगले साल 13 मई 2025 को रिटायर हो रहे हैं।
हमारे देश में एक कहावत है कि – ‘ पूत के पांव पालने में दिखाई देने लगते हैं। सीजेआई खन्ना के बारे में ये कहावत कितनी लागू होती है ये जानने के लिए आपको उनके पहले दिन का काम काज देखना चाहिए। आपको पता है कि जस्टिस खन्ना साहब की भी अपनी एक विरासत है जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ की तरह । चंद्रचूड़ साहब के पिता देश के सीजेआई रह चुके थे ,उनके नाम सबसे अधिक समय तक इस पद रहने का कीर्तिमान दर्ज है ,जबकि जस्टिस खन्ना के पितापिता देवराज खन्ना दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहे है। जस्टिस संजीव खन्ना के चाचा देश के सीजेआई बनते-बनते रह गए थे,नए सीजेआई संजीव कहना साहब जस्टिस एचआर खन्ना के भतीजे हैं. उनके चाचा ने एडीएम जबलपुर के फैसले में असहमति जताई थी।ऐसी लोकमान्यता है कि जसिटस एच आर खन्ना के इस फैसले से नाराज सरकार ने उन्हें सीजेआई नहीं बनाया था और जस्टिस एचआर खन्ना ने इस्तीफा दे दिया था।
नए सीजेआई जस्टिस जस्टिस संजीव खन्ना को 201 9 में उच्चतम न्यायालय का जज बनाया गया था। पहले ही दिन वो अपने चाचा की कोर्ट में बैठे और यहीं जस्टिस एचआर खन्ना की तस्वीर भी है। नए सीजेआई जस्टिस खन्ना शांत, गंभीर और सरल स्वभाव के हैं। पब्लिसिटी से दूर रहते हैं ,लेकिन समस्या ये है की क्या मीडिया उन्हें पब्लिसिटी से दूर रहने देगी । मीडिया ने पहले ही दिन नए सीजेआई ने एक मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अभिभाषक मैथ्यूज नेदुमपरा को झिड़क दिया और कहा की वे यहां उनका लेक्चर सुनने नहीं आये है। वकील साहब की गलती सिर्फ इतनी थी की उन्होंने नए सीजेआई से ये कह दिया की -उच्चतम न्यायालय में केवल अडानी अम्बानी की सुनवाई हो रही है गरीबों की नहीं।वैसे भी इस समय देश कि उच्चतम न्यायालय में भाषण देने वाले वकीलों की संख्या पहले की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है। ये वे वकील हैं जो सुर्ख़ियों में रहने के आदी हैं
बहरहाल नए सीजेआई को हकीकत का सामना तो करना ही पडेगा ,क्योंकि अतीत में उच्चतम न्यायालय में जिस तरह से क्रन्तिकारी काम हुआ है या आधे-अधूरे फैसले आये हैं ,उनसे आगे निकलने की जरूरत नए सीजेआई को पड़ेगी । सब जानते हैं कि उच्चतम न्यायालय में 70 हजार से ज्यादा मामले लंबित है। हालाँकि इस दौरान पुराने सीजेआई जस्टिस डी वाय, चंद्रचूड़ साहब ने उच्चतम न्यायालय को आधुनिक और पारदर्शी बनाने की दिशा में काफी काम किया। पुराने सीजेआई जस्टिस चन्द्रचूड़ साहब अपने फैसलों से ज्यादा सुधारों के लिए याद किये जायेंगे। उन्होंने न्याय की प्रतीक प्रतिमा की आँखों से काली पट्टी हटवाई । हाथ से तलवार हटवाकर संविधान की प्रति दिलवाई। नए सीजेआई अपने छह माह के कार्यकाल में कोई नया इतिहास लिख पाएंगे ये कहना और ऐसी धारणा बनाना भी ठीक नहीं। उन्हें मौजूदा सरकार से टकराव की मुद्रा भी अख्तियार नहीं करना है ,हालाँकि आम धरना है की वे ऐसा कर सकते हैं।
आपको बता दूँ कि जस्टिस खन्ना 14 साल तक दिल्ली हाईकोर्ट में जज रहे. 2005 में एडिशनल जज और 2006 में स्थायी जज बने । जस्टिस संजीव खन्ना 18 जनवरी 2019 को वो भारत के सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में पदोन्नत किए गए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी के अध्यक्ष पद का कार्यभार 17 जून 2023 से 25 दिसंबर 2023 तक संभाला। इस समय वे राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष हैं और राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य भी हैं।
ये तो उनका परिचय था । अब उनके द्वारा अतीत में दिए गए कुछ फैसलों पर भी नजर डाल लीजिये ताकि आप अनुमान लगा सकें की नए सीजेआई जस्टिस खन्ना भविष्य में किस तरह की मुद्रा अख्तियार कर सकते हैं। जस्टिस संजीव खन्ना बहुचर्चित बिलकिस बानो केस में फैसला देने वाली बेंच में शामिल थे। उन्होंने केंद्र सरकार की आँखों की किरकिरी बने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत भी दी थी। उन्होंने केजरीवाल को एक बार अंतरिम बेल थी और बाद भी उन्हें नियमित बेल दी थी। खन्ना साहब वीपीएटी T का सौ फीसदी सत्यापन करने , इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम, आर्टिकल 370 हटाने को लेकर दायर याचिकाओं की सुनवाई करने वाली बेंच में जस्टिस संजीव शामिल रहे हैं। .
जस्टिस खन्ना के कम कार्यकाल का उनके भावी कार्यकाल पर कितना असर होगा कहना कठिन है । वे चाहें तो इसे इतिहास भी बना सकते हैं और न चाहें तो खामोशी के साथ सेवानिवृत भी हो सकते है। वे सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें कम से कम छह माह तो मिल रहे हैं अन्यथा इस देश में ऐसे सीजेआई भी बने हैं जो मात्र 17 दिन ही इस पद पर रह पाए । देश के 22 वे सीजेआई जस्टिस कमल नारायण सिंह के नाम सबसे कम दिन सीजेआई रहने का रिकार्ड दर्ज है। देश को उम्मीद है कि नए सीजेआई अपने पूर्व के सीजेआई से बड़ी और नयी लकीर खींचेंगे। वे किसी को अपने घर आरती उतारने के लिए नहीं बुलाएँगे ।किसी अड्डे पर जाकर अपने फैसलों कि बारे में सफाई नहीं देंगे। वे उच्चतम न्यायालय को इस छवि से भी बाहर निकलने की कोशिश करेंगे कि यहां केवल अडानी और अम्बानी जैसे लोगों के मामलों को ही प्राथमिकता के आधार पर सुना जाता। उन्हें अपने संक्षिप्त कार्यकाल में उच्चतम न्यायालय को गरीबों की सुनवाई का मंच बनाने का भी अवसर है हम सब नए सीजेआई के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए उन्हें अपनी शुभकामनाएं देते हैं।