भारत में धूम्रपान न करने वालों में भी बढ़ रहा है फेफड़े का कैंसर ?
भारत में धूम्रपान न करने वालों में भी बढ़ रहा है फेफड़े का कैंसर, दो-तिहाई से अधिक मरीज पुरुष
कैंसर के बढ़ते मामलों के साथ, कई मरीज़ तीसरे या चौथे चरण में पहुंचते हैं, जिससे इलाज कठिन हो जाता है. शुरुआती निदान और इलाज के लिए जागरूकता, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, और कैंसर देखभाल में आवश्यक हैं.
इन मामलों में तंबाकू से संबंधित कैंसर, जैसे कि मुख, फेफड़े, और सिर-गर्दन के कैंसर आम हैं और कुल कैंसर मामलों का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं. ये कैंसर मुख्यतः रोके जा सकते हैं, जिससे शुरुआती हस्तक्षेप, जीवनशैली में बदलाव और तंबाकू छोड़ने के कार्यक्रमों का महत्व और अधिक बढ़ जाता है.
हाल के अध्ययन से पता चला है कि भारत में लगभग 50% फेफड़ों के कैंसर के मरीज नॉन-स्मोकर्स हैं. यह स्थिति इस धारणा को चुनौती देती है कि धूम्रपान ही इस गंभीर बीमारी का मुख्य कारण है. विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण इस बीमारी के बढ़ने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. एबीपी न्यूज ने लंग यानी फेफड़ों के कैंसर से जुड़े तमाम जर्नल्स का अध्ययन किया है और जानने की कोशिश की है कि वो क्या कारण हैं जिसकी वजह से धूम्रपान न करने वाले लोग भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं.
40-50% फेफड़ों के कैंसर के मरीजों ने कभी नहीं किया धूम्रपान
पारंपरिक रूप से धूम्रपान को फेफड़ों के कैंसर से जोड़ा जाता था. परिवार और मित्र अक्सर धूम्रपान करने वालों को छोड़ने की सलाह देते थे. इस डर से कि वे इस घातक बीमारी का शिकार हो सकते हैं. सिगरेट के पैकेट्स पर ‘धूम्रपान जानलेवा है’ जैसे चेतावनी संदेश होते हैं, जो संभावित धूम्रपान करने वालों को रोकने का प्रयास करते हैं. लेकिन हाल के अध्ययनों से पता चला है कि तंबाकू का सेवन न करने से भी फेफड़ों के कैंसर से सुरक्षा नहीं मिलती. शोध में दिखाया गया है कि 40-50% फेफड़ों के कैंसर के मरीज भारत में कभी धूम्रपान नहीं करते.
वायु प्रदूषण की भूमिका
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सेकेंड-हैंड स्मोक और वायु प्रदूषण को फेफड़ों के कैंसर के महत्वपूर्ण जोखिम कारकों में शामिल किया है. विशेष रूप से PM2.5 जैसे कणों का संपर्क नॉन-स्मोकर्स में फेफड़ों के कैंसर का एक बड़ा कारण माना जा रहा है. द लैसेंट में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि कार्यस्थल पर एस्बेस्टस, क्रोमियम, कैडमियम, आर्सेनिक और कोयले के उत्पादों के संपर्क में आना फेफड़ों के कैंसर का संभावित कारण हो सकता है.
इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि आनुवंशिक संवेदनशीलता और पूर्व-मौजूदा फेफड़ों की बीमारियाँ भी नॉन-स्मोकर्स में फेफड़ों के कैंसर की बढ़ती दर में योगदान कर रही हैं. प्रदूषण और इसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने की आवश्यकता बढ़ गई है, क्योंकि यह स्पष्ट हो रहा है कि केवल धूम्रपान ही इस बीमारी का कारण नहीं है.
जर्नल्स में विशेषज्ञों की राय
ज्यादातर ने इस विषय पर गहरी चिंता व्यक्त की है. कई विशेषज्ञों मानते हैं कि नॉन-स्मोकर्स में फेफड़ों के कैंसर की बढ़ती दर शायद पैसिव स्मोकिंग और प्रदूषण से जुड़ी पुरानी फेफड़ों की बीमारियों के कारण हो रही है. जिन व्यक्तियों को पहले से ही फेफड़ों की समस्याएँ हैं, उनमें कैंसर विकसित होने का खतरा अधिक होता है.
एक अध्ययन में पाया गया कि नॉन-स्मोकर्स और युवा मरीजों में EGFR (एपिडर्मल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर) म्यूटेशन और ALK (एनाप्लास्टिक लिम्फोमा किनेज) जैसे विशेष आनुवंशिक म्यूटेशनों की दर देखी जा रही है. यह दर्शाता है कि आनुवंशिक कारक भी इस बीमारी की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
बीमारी की स्थिति
भारत में फेफड़ों के कैंसर की दर 1990 में 6.62 प्रति लाख जनसंख्या से बढ़कर 2019 में 7.7 प्रति लाख जनसंख्या हो गई है. महानगरों में मामलों की संख्या 2025 तक काफी बढ़ने की आशंका है. गौर करने वाली बात यह है कि भारत में फेफड़ों का कैंसर पश्चिमी देशों की तुलना में लगभग 10 साल पहले ही सामने आ जाता है और औसत निदान आयु 54 से 70 वर्ष के बीच होती है.
आंकड़े बताते हैं कि भारत में दो-तिहाई से अधिक फेफड़ों के कैंसर मरीज पुरुष हैं, जिनमें लगभग 42.4% पुरुष और 14.2% महिलाएं तंबाकू का सेवन करती हैं. हर तीन वयस्कों में से एक जो इनडोर काम करता है, उसे कार्यस्थल पर सेकेंड-हैंड स्मोक का सामना करना पड़ता है.
युवा वर्ग पर प्रभाव
पारंपरिक रूप से फेफड़ों का कैंसर बड़े वयस्कों में अधिक आम था (आमतौर पर 65 वर्ष से अधिक उम्र वालों में). हालांकि, अब युवाओं (30 से 40 उम्र के बीच) में मामलों की संख्या बढ़ रही है. यह प्रवृत्ति शायद जल्दी पहचान आनुवंशिक कारकों या पर्यावरणीय संपर्कों के कारण हो सकती है.
अब तक प्रकाशित हुए शोध पत्रों में बताया गया है कि प्रदूषण और फेफड़ों के कैंसर के बीच एक व्यापक रिसर्च की जरूरत है. इसके अलावा, यह भी महत्वपूर्ण है कि हम समझें कि कैसे विभिन्न प्रकार के प्रदूषक हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं और किस हद तक ये लंग कैंसर जैसे गंभीर रोगों का कारण बन सकते हैं.
प्रारंभिक पहचान का महत्व
प्रारंभिक पहचान को प्रभावी उपचार परिणामों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि समय पर निदान किया जाए तो उपचार की संभावनाएं बेहतर होती हैं. प्रारंभिक पहचान न केवल रोगी की जीवन गुणवत्ता को बेहतर बनाती है बल्कि उपचार प्रक्रिया को भी सरल बनाती है.
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने सरकार से नागरिकों के लिए नियमित लंग कैंसर स्क्रीनिंग शुरू करने की अपील की ताकि प्रारंभिक पहचान संभव हो सके. इससे न केवल रोगियों को समय पर उपचार मिल सकेगा बल्कि इससे मृत्यु दर को भी कम किया जा सकेगा.
बढ़ते कैंसर आँकड़े
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्र्री कार्यक्रम (ICMR-NCRP) के अनुसार, भारत में कैंसर मामलों की संख्या बढ़ रही है. जर्नल ऑफ थोरेसिक ऑन्कोलॉजी और ICMR-NCDIR के आंकड़ों के मुताबिक साल 2021 में भारत में लंग या फेफड़ों के कैंसर के कुल 98,278 मामले दर्ज किए गए थे. जिसमें पुरुष 71,788 और महिलाएं 26,490 थीं.
राष्ट्रीय स्तर पर हर तरह के कैंसर के मामले
– कई जर्नल्स और रिपोर्ट की मानें तो साल 2020 में लगभग 13.92 लाख मामले थे.
– यह संख्या पिछले साल बढ़कर लगभग 14.97 लाख हो गई.
– कैंसर संबंधित मृत्यु दर पिछले वर्ष लगभग 9 लाख थी.
नॉन-स्मोकर्स में फेफड़ों के कैंसर की बढ़ती संख्या एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता को उजागर करती है जिसे तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है. प्रदूषण अब एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता बन गया है और इसके साथ ही पारंपरिक जोखिम कारकों को भी ध्यान देना आवश्यक हो गया है.
विशेषज्ञों द्वारा प्रारंभिक पहचान रणनीतियों और स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हम केवल तंबाकू से बचने तक सीमित नहीं रहें—हमें अपने वायु गुणवत्ता और समग्र स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना होगा.
इस प्रकार, यह आवश्यक हो गया है कि हम सभी मिलकर इस समस्या का समाधान खोजें ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ जीवन दिया जा सके. जागरूकता फैलाने और प्रभावी उपाय करने से हम न केवल अपनी बल्कि अपने समाज की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं.
राज्यवार कैंसर रोगियों की संख्या (सभी आंकड़े NCRP और ICMR से लिए गए हैं)
राज्य / केंद्र शासित प्रदेश | 2019 | 2020 | 2021 | 2022 |
जम्मू-कश्मीर | 12396 | 12726 | 13060 | 13395 |
लद्दाख | 279 | 286 | 294 | 302 |
हिमाचल प्रदेश | 8589 | 8799 | 8974 | 9164 |
पंजाब | 37744 | 38636 | 39521 | 40435 |
चंडीगढ़ | 994 | 1024 | 1053 | 1088 |
उत्तराखंड | 11216 | 11482 | 11779 | 12065 |
हरियाणा | 28453 | 29219 | 30015 | 30851 |
दिल्ली | 24436 | 25178 | 25969 | 26735 |
राजस्थान | 69156 | 70987 | 72825 | 72725 |
उत्तर प्रदेश | 196652 | 201319 | 206088 | 210958 |
बिहार | 101014 | 103711 | 106435 | 109274 |
सिक्किम | 443 | 445 | 465 | 496 |
अरुणाचल प्रदेश | 1015 | 1035 | 1064 | 1087 |
नगालैंड | 1719 | 1768 | 1805 | 1854 |
मणिपुर | 1844 | 1899 | 2022 | 2097 |
मिजोरम | 1783 | 1837 | 1919 | 1985 |
त्रिपुरा | 2507 | 2574 | 2623 | 2715 |
मेघालय | 2808 | 2879 | 2943 | 3025 |
असम | 36948 | 37884 | 38834 | 39787 |
पश्चिम बंगाल | 105814 | 108394 | 110972 | 113581 |
ओडिसा | 49604 | 50692 | 51829 | 52960 |
छत्तीसगढ़ | 27113 | 27828 | 28529 | 29253 |
मध्य प्रदेश | 75911 | 77888 | 79871 | 81901 |
गुजरात | 67841 | 69660 | 71507 | 73382 |
दमन | 118 | 124 | 135 | 150 |
दादर और नगर हवेली | 186 | 206 | 219 | 150 |
महाराष्ट्र | 113374 | 116121 | 118906 | 121717 |
तेलंगाना | 46464 | 47620 | 48775 | 49983 |
आंध्र प्रदेश | 68883 | 70424 | 71970 | 73536 |
कर्नाटक | 83824 | 85868 | 88126 | 90349 |
गोवा | 1591 | 1618 | 1652 | 1700 |
लक्षद्वीप | 27 | 27 | 28 | 28 |
केरल | 56148 | 57155 | 58139 | 59143 |
तमिलनाडु | 86596 | 88866 | 91184 | 93536 |
पडुचेरी | 1523 | 1577 | 1623 | 1679 |
अंडमान और निकोबाप | 357 | 366 | 380 | 393 |
झारखंड | 33045 | 33961 | 34910 | 35860 |
भविष्य का अनुमान
कैंसर के मामलों में 2020 से 2025 के बीच 12.8% वृद्धि का अनुमान है. आईसीएमआर के अनुसार, हर नौ भारतीयों में से एक को अपने जीवनकाल में कैंसर हो सकता है.