‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारे चलेंगे, मुफ्त स्कीम्स की होड़ लगेगी ?

‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारे चलेंगे, मुफ्त स्कीम्स की होड़ लगेगी
नतीजों के नेशनल इम्पैक्ट पर सबकुछ जो जानना जरूरी

महाराष्ट्र में बीजेपी गठबंधन यानी महायुति ने 234 सीटें जीत ली हैं। इसमें बीजेपी की अकेले 132 सीटें हैं। बीजेपी का स्ट्राइक रेट 88% से ज्यादा है। ये महाराष्ट्र में बीजेपी की अब तक की सबसे बड़ी जीत है। हालांकि झारखंड में बीजेपी सत्ता से काफी पीछे रह गई है। यहां झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने एकतरफा 56 सीटें जीत ली हैं।

नतीजों के बाद पीएम मोदी ने 49 मिनट का भाषण दिया। इसमें उन्होंने 5 बार ‘एक हैं तो सेफ हैं’ नारे का जिक्र किया। चुनावों में भी मोदी ने इस नारे का खूब इस्तेमाल किया था। इसे जातिगत जनगणना के काट के तौर पर देखा जा रहा है।

क्या ब्रांड मोदी बरकरार है, बंटेंगे तो कटेंगे जैसे नारों का क्या होगा, नतीजों का आने वाले चुनावों में क्या असर; महाराष्ट्र-झारखंड और उपचुनावों के नेशनल इम्पैक्ट पर है आज का एक्सप्लेनर…

महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री मोदी ने 12 रैलियों के जरिए 102 सीटों को कवर किया। इनमें से 72 सीटें बीजेपी गठबंधन ने जीत ली हैं। यानी मोदी की रैलियों का स्ट्राइक रेट 70% है। इनमें 9 नई सीटें हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यहां 48 सीटें मिली थीं।

झारखंड में मोदी ने 7 रैली की। कुल 40 सीटों को कवर किया। इनमें से बीजेपी को महज 9 सीटें मिली हैं। यानी पीएम का स्ट्राइक रेट 22% है। 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यहां 14 सीटें मिली थीं।

सीनियर जर्नलिस्ट विजय त्रिवेदी बताते हैं-

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लोकसभा चुनाव में मोदी की इमेज को काफी नुकसान पहुंचा था। मोदी के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे थे, लेकिन हरियाणा के बाद महाराष्ट्र की जीत ने ‘ब्रांड मोदी’ पर मुहर लगा दी है। इससे मोदी और बीजेपी दोनों का कॉन्फिडेंस बढ़ेगा।

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सीनियर जर्नलिस्ट हर्षवर्धन त्रिपाठी बताते हैं-

‘’झारखंड छोटा राज्य है। यहां बीजेपी की हार से मोदी की छवि पर कुछ खास असर नहीं पड़ेगा। मोदी की साख महाराष्ट्र में दांव पर लगी थी। यहां लैंडस्लाइड विक्ट्री मिली है। 2019 वाला मोदी मैजिक लौट आया है।’’

असर क्या होगा…

अब मोदी सरकार बड़े फैसले ले पाएगी : त्रिपाठी, सीनियर जर्नलिस्ट

‘’लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अकेले दम पर बहुमत नहीं मिला था। वह नीतीश और नायडू के सहारे सरकार चला रही है। ऐसा कहा जा रहा था कि मोदी सरकार दबाव में है, लेकिन महाराष्ट्र की प्रचंड जीत बीजेपी के लिए टॉनिक का काम करेगी। अब मोदी सरकार केंद्र में बड़े फैसले ले पाएगी। एक तरह से बीजेपी 2019 लोकसभा के मोमेंटम में लौट रही है।’’

स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी बीजेपी  तिवारी, पॉलिटिकल एनालिस्ट

‘’महाराष्ट्र और झारखंड दोनों ही राज्यों में प्रधानमंत्री मोदी ने खुलकर कैंपेनिंग नहीं की। बीजेपी ने दोनों राज्यों में मोदी के चेहरे को आगे करने के बजाय स्थानीय लीडरशिप और स्थानीय मुद्दों को तवज्जो दिया। ये बीजेपी की खास स्ट्रैटजी का हिस्सा था। हरियाणा में भी यही रणनीति बनाई थी। आने वाले चुनावों में बीजेपी और मोदी इसी रणनीति पर काम करेंगे।’’

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने सीएए यानी नागरिकता कानून लागू किया। इसमें पड़ोसी देशों से आने वाले मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता नहीं देने की बात कही गई। प्रधानमंत्री ने अपनी रैलियों में मुस्लिम रिजर्वेशन का मुद्दा उठाया। इसे हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की राजनीति से जोड़कर देखा गया, लेकिन ये दांव बीजेपी के लिए भारी पड़ा। बीजेपी 240 सीटें ही जीत सकी।

इस विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी का ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का नारा ‘बटेंगे तो कटेंगे’, दोनों चर्चा में रहे। बीजेपी ने दोनों नारों को लेकर खुलकर कैंपेनिंग भी की। संघ ने भी दोनों नारों पर मुहर लगाई। इन दोनों नारों को भी ध्रुवीकरण की कोशिश से जोड़कर देखा गया। हालांकि झारखंड में ये नारा असरदार साबित नहीं हुआ। बांग्लादेश घुसपैठिए का मुद्दा भी नहीं चला।

महाराष्ट्र में जीत के बाद मोदी ने अपनी स्पीच में कहा-

”कांग्रेस ने तुष्टीकरण के लिए कानून बनाए। सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर की परवाह नहीं की है। वक्फ बोर्ड इसका उदाहरण है। 2014 में सरकार से जाते-जाते दिल्ली की कई संपत्ति वक्फ बोर्ड को सौंप दी थी। बाबा अंबेडकर के संविधान में वक्फ कानून को कोई स्थान नहीं है। फिर भी कांग्रेस ने वक्फ बोर्ड की व्यवस्था पैदा कर दी।”

असर क्या होगा…

आने वाले चुनावों में बटेंगे तो कटेंगे जैसे नारे और उछाले जाएंगे

सीनियर जर्नलिस्ट विजय त्रिवेदी बताते हैं- ”लोकसभा चुनाव के दौरान मुस्लिम एकजुट हो गए थे, लेकिन हिंदू एकजुट नहीं हो पाए जैसा बीजेपी चाहती थी। इस चुनाव में ‘एक हैं तो सेफ हैं और ‘बटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारों पर मुहर लग गई। आने वाले चुनावों में ऐसे नारे और गढ़े जाएंगे। बीजेपी ऐसे नारों का जोर-शोर से इस्तेमाल करेगी।’’

हिंदुत्व के मुद्दे को चुनावों में जोर-शोर से उठाएगी बीजेपी

शनिवार को प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में बालासाहेब ठाकरे और सावरकर का जिक्र किया। मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने पूरे देश में वीर सावरकर का अपमान किया, उन्हें गालियां दीं। इन लोगों ने महाराष्ट्र के चुनाव में वीर सावरकर को गालियां देना बंद किया था, लेकिन कांग्रेस के मुंह से एकबार भी सत्य नहीं निकला। ये इनका दोमुंहापन है।

सीनियर जर्नलिस्ट हर्षवर्धन त्रिपाठी बताते हैं- ”लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी के भीतर ही हिंदुत्व पर भरोसा डगमगाने सा लगा था, लेकिन महाराष्ट्र में जीत के बाद बीजेपी के कोर एजेंडे को नई ताकत मिली है। हिंदू एकता पर वैचारिक तौर पर बीजेपी को क्लैरिटी मिली है। आने वाले चुनावों में बीजेपी हिंदुत्व पर जोर देगी।”

पॉलिटिकल एनालिस्ट अमिताभ तिवारी बताते हैं-

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जाहिर तौर अब इस तरह के नारों को बल मिलेगा। सियासी गलियारों में इसे इस्टैब्लिश करने की कोशिश भी की जाएगी। हालांकि इस तरह के नारे उन्हीं इलाके में चलेंगे, जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है।

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महाराष्ट्र में महायुति के जीत के पीछे ‘माझी लाडकी बहिन’ योजना और झारखंड में झामुमो गठबंधन के जीत में ‘मंइयां सम्मान योजना’ की अहम भूमिका है।

महायुति की शिंदे सरकार ने जून 2024 में ‘माझी लाडकी बहिन’ योजना शुरू की। इस योजना के तहत 2.5 लाख रुपए से कम सालाना कमाई वाले परिवार की महिलाओं को हर महीने 1500 दिए जा रहे हैं। जुलाई से अक्टूबर तक 2.34 करोड़ महिलाओं को इसका फायदा मिला, जो राज्य की कुल महिला वोटर्स का लगभग आधा है।

चुनाव के दौरान सीएम एकनाथ शिंदे ने वादा किया, ‘अगर महायुति सत्ता में आती है तो योजना के तहत हर महीने 2,100 रुपए दिए जाएंगे। कई लोगों ने इसे सराहा।

झारखंड में हेमंत सोरेन ने ‘मंइयां सम्मान योजना’ की शुरुआत 23 सितंबर, 2023 को की थी। इसके तहत 21 से 50 साल की महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपए की आर्थिक सहायता दी जाती है। चुनाव से ठीक पहले सोरेन सरकार ने इस योजना के तहत मिलने वाली राशि को 1 हजार से बढ़ाकर 2500 रुपए कर दिया था।

असर क्या होगा…

चुनावी राज्यों में मुफ्त की योजनाओं की होड़ लगेगी

सीनियर जर्नलिस्ट हर्षवर्धन त्रिपाठी बताते हैं-

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जब से मध्यप्रदेश में लाड़ली बहना योजना सफल हुई है, हर चुनावी राज्य में इस तरह की योजनाओं का प्रचलन सा हो गया है। महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत में इस योजना का भी बड़ा रोल है। आने वाले चुनावों में ऐसी मुफ्त योजनाओं की होड़ लग जाएगी। इस तरह की योजनाएं शॉर्ट कट पॉलिटिक्स का हिस्सा बन जाएंगी।

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यूपी में 9 सीटों पर उपचुनाव हुए, जिसमें से 7 सीटें बीजेपी ने जीत ली। बाकी 2 सीटें सपा के हिस्से में आई हैं। इस जीत के साथ योगी ने अपनी काबिलियत साबित कर दी है। लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ को बड़ा झटका लगा था। राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा थी कि अगर योगी का प्रदर्शन खराब रहा, तो मुख्यमंत्री की कुर्सी भी छिन जाएगी।

सीनियर जर्नलिस्ट रशीद किदवई बताते हैं-

भाजपा हमेशा से ही हिंदुत्व एजेंडे पर चुनाव लड़ी है। ’बटेंगे तो कटेंगे’ इसी कड़ी का अहम हिस्सा है। योगी के इस नारे ने न सिर्फ यूपी, बल्कि महाराष्ट्र के चुनावों को भी प्रभावित किया। यह कहना गलत नहीं होगा कि महाराष्ट्र में भाजपा की जीत का श्रेय योगी आदित्यनाथ को भी जाता है।

यूपी के सीनियर जर्नलिस्ट नवीन जोशी बताते हैं-

‘’अगर बीजेपी यूपी उपचुनाव में बुरी तरह हारती या योगी का एजेंडा फेल हो जाता, तो शायद केंद्र योगी पर कार्रवाई करता। उन्हें साइडलाइन कर सकता था। योगी को चीफ मिनिस्टर का पद भी छोड़ना पड़ सकता था। चूंकि बीजेपी 6 सीटें जीतने में कामयाब रही, इसलिए योगी अब सेफ हैं।’’

लोकसभा चुनाव में चौथे राउंड की वोटिंग के बाद BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक मीडिया इंटरव्यू में कहा- ‘शुरुआत में हम कम सक्षम थे। तब हमें RSS की जरूरत पड़ती थी। अब हम सक्षम हैं। आज BJP खुद अपने आप को चलाती है।’

नड्डा के इस बयान के बाद ये कयास लगने लगे कि BJP और संघ के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। लोकसभा नतीजों में भी इसकी झलक दिखी। बीजेपी बहुमत से 32 सीटें पीछे रह गई।

लोकसभा के नतीजों के बाद संघ और बीजेपी ने तालमेल बिठाया। हरियाणा में संघ ने जमीन पर उतरकर काम किया। महाराष्ट्र में आरएसएस ने ‘सजग रहो’ मुहिम चलाई। घर-घर जाकर स्वयंसेवकों ने बीजेपी के लिए प्रचार किया। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत में संघ की भूमिका अहम है।

असर क्या होगा…

 त्रिपाठी बताते हैं-

‘’लोकसभा चुनाव में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के बयान से संघ के स्वयंसेवकों का मनोबल गिर गया था। वे दुखी मन से काम कर रहे थे, जो नतीजों में दिखा भी था। इस बार संघ ने खूब मेहनत की। वह लोगों को बूथ तक ले जाने में कामयाब रहा। आगे भी संघ फ्रंटफुट पर बीजेपी के लिए रणनीति बनाएगा। बीजेपी में संघ की होल्ड बढ़ेगी।’’

सीनियर जर्नलिस्ट सुधीर महाजन बताते हैं-

”इस चुनाव में संघ ने साइलेंट तरीके से घर-घर जाकर प्रचार किया। बीजेपी का डैमेज कंट्रोल संघ ने ही किया है। संघ की रणनीति की वजह से ही मोदी के चेहरे के बजाय स्थानीय मुद्दों और लीडरशिप को तवज्जो दी गई। संघ ने मोदी को भी ये मैसेज दे दिया है कि वो अपने दम पर चुनाव जिता सकती है।”

हर्षवर्धन त्रिपाठी बताते हैं-

‘’हरियाणा जीतने के बाद से ही बीजेपी का एनडीए गठबंधन में वर्चस्व बढ़ गया था। अब महाराष्ट्र में प्रचंड जीत के बाद बीजेपी, एनडीए गठबंधन में हावी रहेगी। नीतीश और नायडू के बीजेपी से अलग होने के कयासों पर फुल स्टॉप लग जाएगा।’’

अमिताभ तिवारी बताते हैं-

‘’इन नतीजों से नीतीश और नायडू के साथ बीजेपी के रिश्तों में कोई खास उतार-चढ़ाव नहीं दिखेगा। बीजेपी ने दोनों की जरूरतें पूरी की हैं और आगे भी करती रहेगी। दूसरी बात यह भी है कि नीतीश और नायडू बीजेपी का साथ तभी छोड़ेंगे, जब उन्हें कोई पीएम बनाए, जो मुमकिन नहीं लगता।’’

लोकसभा चुनाव में जातिगत जनगणना और संविधान बचाओ का मुद्दा विपक्ष ने जोर-शोर से उछाला था। जिन राज्यों में कास्ट फैक्टर काम करते हैं, वहां बीजेपी को बड़ा नुकसान हुआ। यूपी, महाराष्ट्र, हरियाणा जैसे राज्यों में बीजेपी की सीटें घट गईं।

इस चुनाव में भी विपक्ष ने जातिगत जनगणना और संविधान बचाओ को मुद्दा बनाया। हालांकि नतीजों से साफ है कि ये नारे चुनाव जिताने वाले नहीं बन पाए हैं। इस चुनाव में बीजेपी उन इलाकों में भी बड़ी पार्टी बनी है, जहां मराठा आरक्षण सबसे ज्यादा चर्चा में रहा।

असर क्या होगा…

राहुल गांधी और विपक्ष को नए मुद्दे तलाशने होंगे

विजय त्रिवेदी बताते हैं-

‘’महाराष्ट्र में बीजेपी ने हिंदुत्व के नारे को उछालकर जातिगत जनगणना और संविधान बचाओ जैसे विपक्ष के नारे को बहुत हद तक दबा दिया। अब ये कहा जा सकता है कि बीजेपी ने इसकी काट निकाल ली है। विपक्ष को अब नए नारे गढ़ने होंगे। नए मुद्दे तलाशने होंगे।’’

हर्षवर्धन त्रिपाठी बताते हैं-

‘’जातिगत जनगणना और संविधान बचाओ जैसे नारे वन टाइम पासवर्ड हो गए हैं। राहुल गांधी हर मंच से इन नारों को उछाल तो रहे हैं, लेकिन जिन राज्यों में उनकी सरकारें हैं, वहां वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। जनता इस बात को समझती है। अब राहुल गांधी को रीथिंक करना पड़ेगा। नए सिरे से कोई नया पैकेज तैयार करना पड़ेगा।’’

लोकसभा चुनाव में डिया ब्लॉक में कांग्रेस बड़ी पार्टी थी। लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा सीटें जीती थीं, लेकिन विधानसभा चुनाव में उसे बड़ा नुकसान हुआ है। इंडिया ब्लॉक में सबसे ज्यादा 101 सीटों पर लड़ने के बावजूद कांग्रेस 15 सीटें ही जीत सकी है। पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले उसे 29 सीटों का नुकसान हुआ है।

विजय त्रिवेदी बताते हैं-

‘’लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी एक मजबूत नेता के रूप में उभर कर आए थे, लेकिन अब इंडिया ब्लॉक में उनकी वैसी पकड़ नहीं रहेगी जैसी पहले थी। इंडिया ब्लॉक के अंदर निश्चित रूप से खींचतान बढ़ेगी। कुछ दल गठबंधन के लिए रीथिंक भी कर सकते हैं।’’

त्रिपाठी बताते हैं-

‘’महाराष्ट्र में कांग्रेस गठबंधन की हार के बाद राहुल गांधी की लीडरशिप पर सवाल उठेंगे। इंडिया अलायंस के साथ ही कांग्रेस के भीतर भी खींचतान मच सकती है। कांग्रेस के भीतर से नई आवाज भी उठ सकती है कि प्रियंका को जिम्मेदारी दी जाए। आने वाले चुनावों में प्रियंका गांधी की भूमिका बढ़ेगी।’’

जून 2022 में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से बगावत कर एक नया धड़ा बना लिया। चुनाव आयोग ने शिवसेना पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न एकनाथ शिंदे को दिया। उद्धव ठाकरे ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिस पर अभी फैसला नहीं आया है।

जुलाई 2023 में शिंदे की तरह ही अजित पवार ने भी बगावत करके एनसीपी का एक नया धड़ा बना लिया। चुनाव आयोग अजित पवार को असली एनसीपी दे दी। हालांकि इस फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया है।

महाराष्ट्र के सीनियर जर्नलिस्ट सुधीर महाजन बताते हैं- “उद्धव ठाकरे बार-बार दावा करते रहे कि इस बार जनता असली और नकली शिवसेना का फैसला करेगी। इन नतीजों से लगता है कि जनता ने उद्धव की शिवसेना की बजाय एकनाथ की शिवसेना को चुना है।’’

सुधीर महाजन बताते हैं- ‘’शरद पवार ने पहले ही राजनीति से संन्यास के संकेत दे दिए थे। अब चुनाव में अजित पवार की एनसीपी ने बाजी मार ली। हालांकि अभी ये कहना जल्दबाजी होगी कि शरद पवार की लेगेसी खत्म हो गई है।’’

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