महाराष्ट्र चुनाव में सीएम योगी का बयान कर गया काम ?

महाराष्ट्र चुनाव में सीएम योगी का बयान कर गया काम, अब छिड़ेगा नया सियासी संग्राम

अगर आप महाराष्ट्र चुनाव के परिणाम पर गौर करेंगे तो ये पाएंगे कि जिस तरह से पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान महाविकास अघाड़ी को सफलता मिली थी, उससे ये उम्मीद की जा रही थी कि वहां पर बीजेपी के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. लेकिन, जिस तरह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हरियाणा चुनाव से ठीक पहले ही एक बयान दिया- ‘बटेंगे तो कटेंगे’, और उसके बाद वो बयान राजनीतिक तौर पर इतना महत्वपूर्ण हो गया कि हरियाणा चुनाव में भी उस बयान ने काफी काम किया. 

महाराष्ट्र चुनाव में पहली बार ऐसा देखने को मिला कि जब सीएम योगी ने कुछ बोला हो और उस बात को दूसरे शब्दों में खुद प्रधानमंत्री ने आगे बढ़ाया हो. पीएम मोदी ने भी नारा दिया- ‘एक हैं तो सेफ हैं’. यानी, सीएम योगी की बात को उन्होंने आगे बढ़ाया. महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन की सबसे कमजोर कड़ी अजीत पवार की एनसीपी मानी जा रही थी. लेकिन, उसे भी जबरदस्त सफलता मिली. बीच में, सीएम योगी के बयान को महाराष्ट्र के संदर्भ में जोर-शोर से प्रचारित किया गया.

सीएम योगी का बयान किया काम

एक समय में ऐसा लगा कि अजीत पवार उस बयान से किनारा कर रहे हैं और अपनी पार्टी की स्थिति को देखते हुए वे कह रहे थे कि महाराष्ट्र में इस तरह का नहीं चलेगा. लेकिन, हकीकत ये है कि अजीत पवार को भी सफलता इसलिए ही मिल पाई क्योंकि बीजेपी के साथ में उसका गठबंधन था. इसके उलट आप देखिए कि शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी को सफलता नहीं मिल पाई. 

जबकि, महाराष्ट्र में शिवसेना से अलग होने के बाद बीजेपी को टक्कर देने वाली अगर कोई पार्टी थी तो वो एनसीपी ही थी. लेकिन, एनसीपी की टूट के बाद बटेंगे तो कटेंगे और बीजेपी की जो रणनीति है, उस रणनीति से अजीत पवार वाली एनसीपी को फायदा मिला. शरद पवार वाली एनसीपी महज 13 सीटों पर सिमट गई. यानी, राजनीति का जो ये दौर है, उसमें मुख्य रुप से सीएम योगी का जो बयान आया था- बटेंगे तो कटेंगे, ये उस काट के तौर पर दिया गया था, जब कांग्रेस की तरफ से ये कहा जा रहा था कि जाति जनगणना करेंगे.

आपको याद होगा कि जब हरियाणा के विधानसभा चुनाव हो रहे थे, उस वक्त भी राहुल गांधी ने बहुत ही प्रमुखता से चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि अगर कांग्रेस की सरकार आयी तो जातिगत जनगणना करेंगे. 

नहीं काम किया जातीय जनगणना का फैक्टर

जातीय जनगणना को लेकर जिस तरह का नैरेटिव देश में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की ओर से सेट करने का प्रयास किया जा रहा था, उस नैरेटिव के जवाब में वो सीएम योगी की तरफ से दिया गया बयान था- बटेंगे तो कटेंगे. इसके साथ दूसरे तरीके से भी जैसे, बीजेपी का हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद का एजेंडा है, उस एजेंडे को इसके बाद में जोड़ा गया. बाद में इसका चुनावी विश्लेषण भी किया गया.

इसके आधार पर चुनाव में जो नैरेटिव बनाने की कोशिश की गई, उस पूरी कोशिश में एक बात ये थी कि जो जातीय गणना करने की बात थी, उस बयान की हवा निकाला जाए और हिन्दुओं को एकजुट किया जाए. दूसरा ये कि बीजेपी की जो अपनी परंपरागत राजनीति रही है, जिसमें कि हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद और सनात को लेकर आगे बढ़ने की बात है, तो उनके इस बयान को उस संदर्भ से भी जोड़ा गया.

उस बयान को जोड़कर ये मैसेज देने की कोशिश की गई कि राजनीति में जब वोटिंग पैटर्न हो तो वोटिंग पैटर्न इस तरह से हो कि सभी एकजुट होकर वोट करे. आपको ध्यान होगा कि 2014 की महाराष्ट्र की राजनीति को देखिए और 2019 की देखिए. तो उस वक्त जो महाराष्ट्र की राजनीति थी, बीजेपी वहां पर गैर मराठा राजनीति को आगे बढ़ा रही थी और इसलिए देवेन्द्र फडणवीस को आगे लाया गया. बीजेपी के पुराने चेहरे को बैक किया गया और एक ब्राह्मण चेहरा को आगे लाया गया. 

महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ जिस वक्त बीजेपी थी, उस समय भी उसे सफलता मिली. लेकिन मुख्यमंत्री के सवाल पर शिवेसना अलग हो गई थी. बाद में महाराष्ट्र में जिस तरह से तोड़फोड़ हुआ और वहां पर बीजेपी की सरकार बनी, हालांकि उसको लेकर महाराष्ट्र में जनता के अंदर एक गुस्सा भी था और गुस्सा 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान देखने को मिला जब महायुति को झटका लगा और महाविकास अघाडी को अच्छी सफलता मिली.

झारखंड में नहीं काम आयी रणनीति

जबकि,  सभी रानजीति विश्लेषक ऐसा मानते थे कि महाराष्ट्र में बीजेपी की स्थिति अच्छी नहीं है और झारखंड में बीजेपी की स्थिति अच्छी होगी. लेकिन, जब परिणाम आया तो नतीजे बिल्कुल उलट देखने को मिला. बीजेपी झारखंड को लेकर ओवर कॉन्फिडेंट थी, लेकिन वहां पर उसको झटका लगा. वहां पर हेमंत सोरेन ने अच्छा प्रदर्शन किया. उसमें हेमंत सोरने का जेल जाना, विक्टिम कार्ड ऐसे बहुत सारे फैक्टर शामिल रहे. जिसके चलते झारखंड में बीजेपी की रणनीति नहीं चल पाई. 

झारखंड में भी बटेंगे तो कटेंगे जैसे नैरेटिव सेट करने की कोशिश की गई. जब पीएम मोदी की तरफ से रैली की गई थी, उस वक्त उन्होंने आदिवासी अस्मिता का मुद्दा उठाया था. हाल के दिनों में मीडिया रिपोर्ट्स आयी थी कि अल्पसंख्यक बांग्लादेशी घुसपैठिए आदिवासियों के यहां पर शादी करके सुनियोजित साजिश के तहत वहां बस रहे हैं,  उनकी आबादी लगातार बढ़ रही है. इस तरह की कुछ खबरें झारखंड के गांवों में आयी थी कि वहां पर आदिवासी के संसाधनों पर सीधे तरीके से बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यक कब्जा कर रहे हैं.

ये घटनाएं तो लंबे समय से हो रही है, लेकिन सालभर से ये चीजें सामने आने लगी थी. इसी को ध्यान में रखकर बीजेपी ने अपनी सियासी रणनीति बनाई थी कि अगर उसकी सरकार बनेगी तो इस तरह की जो भी घटनाएं हैं, उसे वो रोकेगी. 

इसके बावजूद झारखंड में बीजेपी का वो सिक्का नहीं चल पाया. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि बीजेपी की बटेंगे तो कटेंगे की जो रणनीति है, उस रणनीति को झारखंड में उसके उलट इस्तेमाल हुआ. यानी, जो एंटी बीजेपी वोटर्स थे, वो एक साथ जमा हो गए और बीजेपी के खिलाफ उन्होंने वोटिंग की. इसकी नतीजा ये रहा कि हेमंत सोरेने के खिलाफ जो एंटी इनकम्बैन्सी फैक्टर था, वो काम नहीं आ पाया.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि …. न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *