यूपी के IAS-IPS केंद्र के पैमाने पर खरे नहीं …?

यूपी के IAS-IPS केंद्र के पैमाने पर खरे नहीं …
कभी रहता था वर्चस्व, अब आधे भी नहीं; टॉप-4 पोस्ट पर एक भी नहीं

एक समय था, जब यूपी की ब्यूरोक्रेसी पूरे देश में फैली रहती थी। केंद्र में भी बड़ी संख्या में IAS-IPS यूपी कैडर के ही रहते थे, लेकिन अब स्थिति पलट चुकी है। केंद्र में यूपी के गिने-चुने अफसर ही नजर आ रहे हैं। IPS के मुकाबले IAS की स्थिति ज्यादा खराब है।

केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर यूपी के कितने अफसर हो सकते हैं, लेकिन कितने हैं? पहले कितने रहे हैं? इस समय किन अहम पदों पर यूपी के अफसर तैनात हैं? संख्या घटने की वजह क्या है? …… ने इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की।

पहले जानते हैं, केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर कितने आईएएस हैं?

यूपी में कुल IAS अफसरों की स्ट्रेंथ 652 है। इसमें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए अधिकतम कोटा 141 का फिक्स है। दो दशक पहले तक केंद्र में यूपी के अफसरों का दबदबा रहता था। यह संख्या 70-75 होती थी। कैबिनेट सेक्रेटरी, होम सेक्रेटरी, फाइनेंस सेक्रेटरी, डिफेंस सेक्रेटरी जैसे बड़े पदों पर यूपी के अफसर तैनात रह चुके हैं। लेकिन, आज की तारीख में यूपी के अफसर इस तरह के महत्वपूर्ण पदों से दूर हैं।

यूपी कॉडर के केवल 33 IAS केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। इसमें सेक्रेटरी रैंक के अफसरों की संख्या मात्र 5 है। खास बात यह भी है कि यूपी के 6 IAS ऐसे हैं, जो किसी न किसी मंत्री के निजी सचिव हैं।

यूपी के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन बताते हैं- एक दौर था, जब यूपी के अफसरों का दिल्ली में दबदबा रहता था। कैबिनेट सेक्रेटरी, सेक्रेटरी होम, सेक्रेटरी फाइनेंस, सेक्रेटरी डिफेंस जैसे महत्वपूर्ण पदों में से कोई न कोई पद यूपी के अफसरों के पास रहता था। लेकिन, हाल के दिनों में यूपी से केंद्र जाने वाले अफसरों की संख्या काफी कम हुई है। इसकी कई वजह हैं।

पहली वजह- डिप्टी सेक्रेटरी के पद पर कोई भी अफसर केंद्र में तैनाती नहीं चाहता। राज्य में रहने से वह किसी भी जिले का डीएम बन सकता है। या फिर सचिवालय में उसे अच्छी पोस्टिंग मिल सकती है। दूसरी वजह- अच्छे अफसरों को राज्य सरकार भी नहीं छोड़ती। केंद्र में जाने के लिए NOC की जरूरत होती है।

तीसरी वजह- केंद्र सरकार का 360 डिग्री पैमाना है, जिसमें बड़ी संख्या में यूपी के अफसर फेल हो जाते हैं। जब यह व्यवस्था नहीं थी, उस समय निर्धारित कोटे के कम से कम आधे अफसर तो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर रहते ही थे।

क्या है 360 डिग्री फॉर्मूला

यूपी के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन।
यूपी के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन।

आलोक रंजन बताते हैं- हर अफसर का हर साल परफॉर्मेंस इवैल्यूएशन होता है। पहले इसी इवैल्यूएशन के आधार पर केंद्र में तैनाती मिल जाती थी। लेकिन, कुछ साल पहले केंद्र सरकार ने एक स्क्रीनिंग कमेटी बना दी है। इसमें रिटायर्ड अफसरों को रखा गया है।

इनका काम सिर्फ परफॉर्मेंस इवैल्यूएशन ही नहीं, आईएएस या आईपीएस के लिए पब्लिक से भी फीडबैक लेना भी है। जैसे संबंधित अधिकारी की इमेज कैसी है, सत्यनिष्ठा कितनी है? कर्तव्यों का कितना पालन करता है? इस तरह के फीडबैक लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को भेजा जाता है। PMO भी फिर उसे अपने पैमाने पर परखता है। उसके बाद किसी अधिकारी को केंद्र में किसी पद के लिए सूचीबद्ध किया जाता है।

यूपी के वे अफसर जो रहे सर्वोच्च पदों पर यूपी कॉडर के कई IAS केंद्र में महत्वपूर्ण पदों पर तैनात रह चुके हैं। इनमें बतौर कैबिनेट सेक्रेटरी बीके चतुर्वेदी, पीके सिन्हा, अजीत सेठ, कमल पांडेय, प्रभात कुमार, सुरेंद्र सिंह जैसे अफसरों के नाम शामिल हैं।

अब बात IPS अफसरों की यूपी में IPS की कुल स्ट्रेंथ 541 है। इसमें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का कोटा 117 अफसरों का तय है। पहले केंद्र में नियुक्ति की यह संख्या 60-65 होती थी। लेकिन, मौजूदा स्थिति में यूपी के मात्र 31 अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर तैनात हैं। इसके अलावा दो अन्य अफसरों संजय सिंघल और राजा श्रीवास्तव को केंद्र में तैनाती दी गई है। लेकिन, यूपी सरकार ने उन्हें अभी रिलीव नहीं किया है।

मौजूदा समय में केंद्रीय अर्धसैनिक बल की दो अलग-अलग फोर्स के मुखिया यूपी के IPS अफसर हैं। इसमें NDRF के डीजी पीयूष आनंद और BSF के डीजी दलजीत चौधरी तैनात हैं।

यूपी के पूर्व DGP ओम प्रकाश सिंह बताते हैं- केंद्र में इंपैनलमेंट के लिए जब से प्रक्रिया को थोड़ा कठिन बनाया गया, तभी से यूपी के अफसरों की दिल्ली में तैनाती कम हो गई। केंद्र में तैनाती के लिए अब सिर्फ परफॉर्मेंस रिपोर्ट ही मायने नहीं रखती।

सीनियर रिटायर IAS-IPS की स्क्रीनिंग कमेटी संबंधित अधिकारी की ईमानदारी, एकाग्रता, काम करने की क्षमता के पैमाने पर आंकती है। अगर इसमें अधिकारी फिट बैठता है, तभी उसे केंद्र में तैनाती मिलती है। इसके अलावा किसी भी बैच से अधिकतम 20 फीसदी अफसर ही केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए चुने जाते हैं। पहले इसकी सीमा तय नहीं थी।

ओम प्रकाश सिंह बताते हैं- 2 साल पहले स्थिति और भी खराब थी। उस समय यूपी का एक भी अफसर किसी भी फोर्स का मुखिया नहीं था। कम अफसर ऐसे रहे हैं, जिन्हें केंद्र में दो-दो फोर्स की जिम्मेदारी के साथ यूपी का डीजीपी बनने का मौका मिला हो। मैं उनमें से एक रहा हूं। पहले डीजी एनडीआरएफ और फिर डीजी सीआईएसएफ बना था। बाद में यूपी का डीजीपी भी रहा।

ओम प्रकाश सिंह के अलावा प्रकाश सिंह बीएसएफ के डीजी, असम के डीजी और यूपी के डीजी रहे हैं। आईपीएस रैंक में सबसे अहम पद केंद्र में आईबी और सीबीआई चीफ का होता है। यूपी कॉडर के आखिरी आईबी डायरेक्टर 1972 बैच के आईपीएस राजीव माथुर थे। राजीव माथुर का कार्यकाल जनवरी, 2009 से दिसंबर, 2010 तक था।

इंपैनलमेंट नहीं हुआ, तो निचले पद पर मिलती है तैनाती

ओम प्रकाश सिंह कहते हैं- किसी भी अफसर का अगर इंपैनलमेंट नहीं होता, तो उसे उस रैंक में काम करने का मौका नहीं मिलता। अगर कोई एडीजी रैंक का अफसर है और उसका केंद्र सरकार में इंपैनलमेंट नहीं हुआ है, तो वह जूनियर पोस्ट पर तैनात रहेगा।

मसलन यूपी कॉडर के 1989 बैच के आईपीएस अदित्य मिश्रा का केंद्र में इंपैनलमेंट नहीं है। वह एडीजी की पोस्ट पर वहां काम देख रहे हैं। उनसे जूनियर 1990 बैच के दलजीत चौधरी और 1991 बैच के पीयूष आनंद के पास अलग-अलग फोर्स की कमान है।

ओम प्रकाश सिंह के मुताबिक, केंद्र में आमतौर पर 50-60 आईपीएस की तैनाती पहले रही है। हाल के दिनों में यह संख्या कम होती चली गई है। यह हाल तब है, जब कई अफसर 10-10 साल से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। अगर वे वापस आते हैं, तो स्थिति और दयनीय हो जाएगी।


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योगी सरकार का प्रमोटी अफसरों पर भरोसा नहीं …
प्रदेश में सिर्फ 13 प्रमोटी IPS कप्तान, 23 प्रमोटी IAS जिलाधिकारी
लखनऊ3 दिन पहले …

उत्तर प्रदेश सरकार को प्रमोटी आईपीएस अफसरों पर भरोसा नहीं है। प्रमोट होकर आईपीएस बने अफसरों को जिला संभालने का मौका कम ही मिल रहा है। इस समय सिर्फ 13 जिले के कप्तान प्रमोटी आईपीएस अफसर हैं। यह आंकड़ा दूसरी सरकारों से कम है।

हालांकि प्रमोट होकर आईएएस अफसर बनने वालों की स्थिति ज्यादा बेहतर है। इस समय 23 प्रमोटी आईएएस अफसर डीएम हैं। यूपी में कॉडर स्ट्रेंथ के हिसाब से कुल आईपीएस के पदों में 33 प्रतिशत पद प्रमोशन से भरे जाते हैं, जबकि बाकी के पद डायरेक्ट भरे जाते हैं।

मौजूदा समय में यूपी में आईपीएस की कॉडर स्ट्रेंथ 541 हैं। ऐसे में लगभग 180 आईपीएस प्रांतीय पुलिस सेवा से प्रोन्नति के जरिए भरे जाते हैं। लगभग ऐसा ही रेशियो जिलों की पोस्टिंग में भी अपनाया जाता रहा है। लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इसमें भारी गिरावट आई है।

क्या कहता है नियम? यूपी में आईएएस और आईपीएस अफसरों के कुल पदों में 33 प्रतिशत पद राज्य सेवा के अफसरों के लिए आरक्षित हैं। आईएएस के कुल सेंक्शन पद 652 हैं। इसमें से 33 प्रतिशत यानी 198 अफसर राज्य सेवा के होते हैं, जो प्रमोशन के जरिए आईएएस बनते हैं। बाकी 67 फीसदी यानी 454 पद सीधी भर्ती के होते हैं। इसी तरह आईपीएस की कुल कॉडर स्ट्रेंथ 541 है। इसमें 180 पद प्रांतीय पुलिस सेवा के अफसरों को प्रमोशन देकर भरे जाते हैं। किसी भी राज्य में कॉडर स्ट्रेंथ केंद्र सरकार तय करती है।

कई अफसरों की जिले में पोस्टिंग के बिना खत्म हो जाती है नौकरी

पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते हैं कि हर पुलिस अफसर का सपना होता है कि वह जिले का कप्तान बने, यानी एसपी या एसएसपी बने। लेकिन प्रोन्नति पाए कम ही अफसरों को यह मौका मिल पाता है। ज्यादातर अफसर बिना जिले की कमान संभाले ही रिटायर हो जाते हैं।

यह स्थिति पीसीएस से आईएएस बनने वाले और पीपीएस से आईपीएस बनने वाले अफसरों दोनों की है। प्रांतीय पुलिस सेवा के अफसरों का मानना है कि उनके साथ नाइंसाफी हो रही है। पीसीएस के मुकाबले उनके साथ भेदभाव हो रहा है।

पूर्व आईजी आरके चतुर्वेदी बताते हैं कि एक ओर जहां 2007 बैच के पीपीएस अफसरों को प्रमोशन मिल चुका है और वे आईएएस बन चुके हैं। वहीं, पीपीएस संवर्ग में 1996 बैच के अफसरों को अब प्रमोशन देकर आईपीएस बनाया गया है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि पीपीएस अफसरों की बड़ी संख्या में भर्ती कर ली गई और आईपीएस कॉडर में उसके अनुपात में पदों का सृजन नहीं हुआ। जो पद पहले से थे जहां तक पीपीएस अफसर पहुंच पाते थे, उनका कद सरकार ने बढ़ा दिया।

मसलन जोन स्तर पर पहले आईजी की तैनाती होती थी। कई ऐसे प्रमोटी अफसर रहे हैं जो जोन की कमान संभाल चुके हैं। लेकिन अब यह संभव नहीं है क्याेंकि जोन के मुखिया का पद एडीजी कर दिया गया है। प्रमोटी अफसर एडीजी तक पहुंच भी नहीं पाता और रिटायर हो जाता है।

जहां तक जिलों में तैनाती की बात है तो सबसे अधिक अनुभव प्रमोटी अफसरों के पास होता है और किसी भी परिस्थिति को हैंडिल करने में वे सक्षम होते हैं। वहीं, डायरेक्ट अफसरों की वजह से कई बार स्थितियां बिगड़ जाती हैं।

सरकार को क्यों नहीं होता भरोसा? प्रमोटी अफसरों को जिला न मिलने के पीछे की एक वजह ऊपरी कमाई बताई जाती है। उनको पता होता है कि किस तरह से ऊपरी कमाई की जा सकती है। वहीं, डायरेक्ट अफसर ज्यादा ईमानदार माने जाते हैं। हालांकि कई डायरेक्ट अफसर ऐसे रहे हैं जिनकी वजह से सरकारों की फजीहत भी हुई है।

मसलन करप्शन के आरोप में ही महोबा के एसपी रहे मणिलाल पाटीदार को पहले निलंबित किया गया और बाद में सेवा से बर्खास्त किया गया। नोएडा में एसएसपी रहते हुए वैभव कृष्ण ने जिन आईपीएस अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे उसमें आधे से ज्यादा डायरेक्ट आईपीएस थे।

फील्ड में अच्छा काम करने वालों पर ही भरोसा पूर्व मुख्य सचिव आरके तिवारी कहते हैं- जो अधिकारी फील्ड में अच्छा काम कर पाते हैं सरकार उन पर भरोसा करती है। जो सरकार की मंशा के अनुरूप डिलीवरी दे सकते हैं, बेहतर परफॉर्मेंस दे सकते हैं उन्हें फील्ड में पोस्टिंग दी जाती है। यूपी में फिलहाल कई जिलों में डीएम और मंडलायुक्त प्रमोटी अफसर ही लगे हैं। ऐसे भी कई डायरेक्ट आईएएस अफसर हैं जिनका कामकाज अच्छा नहीं है, सरकार ने उन्हें लंबे समय से फील्ड पोस्टिंग नहीं दी है।

पूर्व मुख्य सचिव आलाेक रंजन कहते हैं- आईएएस में 33 प्रतिशत पद पीसीएस से पदोन्नत होने वाले अफसरों के लिए आरक्षित हैं। लेकिन ऐसा कोई कोटा तय नहीं है कि प्रमोटी अफसर को कितने जिलों में डीएम लगाया जाएगा। प्रमोटी अफसर काबिलियत में किसी से कम नहीं होते हैं। उन्हें भी फील्ड पोस्टिंग में पर्याप्त अवसर दिया जाना है। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि किसी एक बैच में एक साथ काफी संख्या में पीसीएस से आईएएस बनते हैं। तो फिर उनमें से कुछ लोग डीएम बनने से वंचित रह जाते हैं। लेकिन प्रमोटी अफसरों को भी कम से कम एक बार डीएम बनने का अवसर दिया जाना चाहिए। हर आईएएस की इच्छा होती है कि वह एक बार डीएम अवश्य बने।

अब सवाल उठता है पहले की सरकारों में क्या स्थिति थी?

पूर्व की सरकारों में मिलती रही तरजीह डायरेक्ट आईपीएस के मुकाबले प्रमोटी आईपीएस अफसरों को पूर्व की सरकार में वरीयता मिलती रही है। मसलन अखिलेश यादव की सरकार में भी एक समय में 28 अफसर जिलों के कप्तान रहे। वहीं, मुलायम सिंह और मायावती सरकार में यह आंकड़ा 35 से 40 अफसरों तक रहा है।

प्रमोटी अफसरों को जिला मिलने का इंतजार हाल ही में प्रदेश के 22 पीपीएस अफसरों को प्रमोशन मिला है। यह अफसर या तो जिलों में तैनात हैं या फिर पीएसी व अन्य नान डीएफ में तैनात हैं। ऐसे में इन्हें अब एसपी के पद पर तैनात किया जाना है। जिलों में पहले से ही प्रमोटी आईपीएस अफसरों की संख्या कम है। सवाल उठना वाजिब है कि क्या सरकार 33 प्रतिशत के रेशियो में जिलों में भी कोटा देगी या कुछ प्रमोटी अफसरों को फील्ड से हटाकर उनके स्थान पर हाल ही में प्रमोशन पाए अफसरों को मौका मिलेगा।

सीडीओ में भी आईएएस ने हक मारा प्रदेश में मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) के 75 पद हैं। इसमें 28 पद प्रादेशिक विकास सेवा संवर्ग के लिए हैं। लेकिन वर्तमान में केवल 19 सीडीओ ही संवर्ग से हैं। जबकि 56 सीडीओ आईएएस अधिकारी हैं। प्रादेशिक विकास सेवा संगठन की ओर से कई बार राज्य सरकार से इस संबंध में न्याय की गुहार भी लगाई गई। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। प्रदेश में नगर निगम आयुक्त के पद पर वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी तैनात किए जाते थे। लेकिन अब अधिकांश नगर निगम में नगर आयुक्त के पद पर भी आईएएस अफसर ही तैनात किए जा रहे हैं।

जिलाधिकारी बने बिना ही रिटायर हो रहे अफसर पीसीएस से आईएएस बने अफसरों को जिलाधिकारी बनने का मौका भी ज्यादा नहीं मिलता। जिन प्रमोटी आईएएस अफसरों का राजनीतिक जुगाड़ या जातीय आधार मजबूत होता है, वह तो दो से तीन बार डीएम और मंडलायुक्त बनने में सफल हो जाते हैं। लेकिन बड़ी संख्या में प्रमोटी अफसर ऐसे भी हैं, जिन्हें एक बार भी डीएम या मंडलायुक्त बनने का मौका नहीं मिला।

वह शासन में भी विशेष सचिव पद से ही रिटायर हो गए। संस्कृति विभाग के विशेष सचिव रहे आनंद कुमार जिलाधिकारी बने बिना रिटायर हो गए। सामान्य प्रशासन विभाग के विशेष सचिव रामकेवल को भी जिलाधिकारी बनने का मौका नहीं मिला।

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