क्या अकाल तख्त की सजा काटनी ही होगी ?
सबसे पहले शिरोमणि अकाली दल (SAD) के नेता व पंजाब के पूर्व डिप्टी CM सुखबीर बादल पर हमले का सीन देखिए। गोल्डन टेंपल के बाहर दर्शनी ड्योढ़ी पर बादल अकाल तख्त से मिली पहरेदारी की सजा पूरी कर रहे थे।
जानलेवा हमले के अगले दिन, यानी 5 दिसंबर को एक बार फिर अपनी सजा पूरी करने गुरुद्वारा पहुंचे। नीचे तस्वीर में बादल पंजाब के रूपनगर जिले के तख्त केसगढ़ साहिब में बर्तन धोते नजर आ रहे हैं।
सिखों की सुप्रीम अदालत श्री अकाल तख्त क्या है, जिसने महाराजा रणजीत सिंह को 100 कोड़े की सजा सुनाई, पूर्व गृहमंत्री से जूते साफ करवाए और अब बादल और उनके लोगों को बर्तन, टॉयलेट साफ करने पड़ रहे हैं ….
सवाल 1: अकाल तख्त ने किस नेता को क्या धार्मिक सजा सुनाई है?
जवाबः 30 अगस्त 2024 को अकाल तख्त ने पंजाब के पूर्व डिप्टी CM सुखबीर सिंह बादल को तनखइया करार दिया था। इसके 93 दिन बाद यानी 2 दिसंबर 2024 को अकाल तख्त ने शिअद के 17 लोगों को धार्मिक सजा सुनाई। सजा सुनाने की कार्रवाई 4 घंटे चली। 3 दिसंबर से शुरू हुई सजा के तहत सुखबीर सिंह 4 तरह से सेवा के काम कर रहे हैं…
- श्री दरबार साहिब के घंटा घर के पास बरछा लेकर व्हीलचेयर पर सेवादारों की तरह चोला पहनकर दो दिन एक-एक घंटे तक पहरेदारी। इस दौरान वे गले में तख्ती भी डाले हुए हैं।
- श्री दरबार साहिब के बाद वे 2 दिन श्री केशगढ़ साहिब, 2 दिन श्री दमदमा साहिब तलवंडी साबो, 2 दिन श्री मुक्तसर साहिब और 2 दिन श्री फतेहगढ़ साहिब में भी इसी तरह सेवा करेंगे।
- सेवादार की सेवा के बाद बादल लंगर घर में जाकर बर्तन साफ करेंगे।
- एक घंटा बैठकर कीर्तन सुनेंगे और श्री सुखमणि साहिब का पाठ करेंगे।
यह सजा सुखदेव सिंह ढींढसा को भी दी गई है। अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह पर धार्मिक समागम में बोलने की पाबंदी लगाई गई। सुच्चा सिंह लंगाह, हीरा सिंह गाबड़िया, बलविंदर सिंह भूंदड़, दलजीत चीमा, गुलजार सिंह रणिके को 12 से 1 बजे तक संगत के लिए बने बाथरूम साफ करने का हुक्म मिला। स्नान के बाद 1 घंटे लंगर हॉल में बर्तन साफ करने, 1 घंटे कीर्तन सुनने और श्री सुखमणि साहिब का पाठ करने का भी आदेश दिया गया। यह सेवा 5 दिन अलग-अलग गुरुद्वारा में करेंगे।
बीबी जगीर कौर, प्रेम सिंह चंदूमाजरा, बिक्रम मजीठिया, सुरजीत सिंह, महेशइंदर सिंह, सर्बजीत सिंह, सोहन सिंह ठंडल, चरणजीत सिंह और आदेश प्रताप सिंह को भी सजा सुनाई गई। इन सभी ने 3 दिसंबर को 12 से 1 बजे तक दरबार साहिब के बाथरूम की सफाई की। इसके अलावा अपने घरों के आस-पास के गुरुद्वारे में जाकर 1 घंटा बर्तन साफ और लंगर बरतने जैसे सेवा के काम किए।
अकाल तख्त ने शिरोमणि अकाली दल यानी शिअद को सुखबीर समेत 17 लोगों के इस्तीफे मंजूर करने का हुक्म दिया। शिअद को 3 दिन के अंदर इस्तीफे मंजूर करने होंगे। पार्टी में नए सदस्य बनाने के साथ ही सभी पदों पर फिर से नियुक्तियां होंगी।
अकाल तख्त ने सुखबीर सिंह के पिता पूर्व CM प्रकाश सिंह बादल से ‘फख्र-ए-कौम’ खिताब भी वापस ले लिया। प्रकाश सिंह को विरासत-ए-खालसा बनाने और अन्य उपलब्धियों के लिए 13 साल पहले यह खिताब दिया गया था। वे ’फख्र-ए-कौम’ खिताब पाने वाले इकलौते व्यक्ति थे।
सवाल 2: अकाल तख्त ने 17 लोगों को किस अपराध की सजा दी है?
जवाबः अकाल तख्त ने 2007 से 2017 तक पंजाब में शिअद सरकार के दौरान हुए ‘गुनाहों’ के लिए सजा सुनाई है। इसमें सुखबीर सिंह बादल समेत 17 लोगों को मुजरिम माना गया। बादल ने जत्थेदारों के सामने पेशी के दौरान 2 गलतियां स्वीकार कीं…
1. गुरमीत राम रहीम को माफी दिलवाई पंजाब में 2007 में शिअद की सरकार के दौरान सुखबीर ने गुरमीत राम रहीम के खिलाफ दर्ज केस वापस ले लिया था। राम रहीम पर गुरु गोबिंद सिंह जी की तरह कपड़े पहनकर लोगों को अमृत पिलाने का आरोप था। इस मामले में राम रहीम पर केस दर्ज हुआ, लेकिन बादल सरकार ने सजा दिलवाने के बजाय मामला वापस ले लिया।
अकाल तख्त ने राम रहीम को सिख पंथ से निष्कासित कर दिया था। इसके बावजूद सुखबीर ने अपने रुतबे का इस्तेमाल करके राम रहीम को माफी दिलवा दी। इसके लिए उन्होंने जत्थेदार साहिबों को अपने घर पर बुलाया और राम रहीम को माफी देने के लिए दबाव बनाया था।
2. सिख धर्म और सिद्धांतों की बेअदबी 2020 में सुखबीर सिंह बादल समेत 17 शिअद नेताओं ने केंद्र सरकार के कृषि कानूनों का समर्थन किया था, जबकि केंद्र सरकार ने कानून वापस लेने की घोषणा कर दी थी। 17 नेताओं ने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के आदेश पर कानून का समर्थन किया था।
अकाल तख्त ने इस पर कार्रवाई करते हुए इन नेताओं को कुरूआत यानी धार्मिक सजा दी, क्योंकि उन्होंने सिखों के धार्मिक और सामाजिक हितों के खिलाफ काम किया था। अकाल तख्त की ओर से बयान जारी हुआ, इन नेताओं ने सिख धर्म की सर्वोच्च धार्मिक संस्थाओं के आदेशों का उल्लंघन किया। खासतौर पर जब पंजाब में किसान आंदोलन तेज था, तब शिअद नेताओं ने कृषि बिलों को लेकर कई बयान दिए थे।
सवाल 3: अकाल तख्त के सामने जुर्म कबूला, तो क्या कोर्ट से भी सजा मिलेगी?
जवाबः सिख मामलों के एक्सपर्ट एस पुरुषोत्तम के मुताबिक, अकाल तख्त सिख धर्म के सुप्रीम कोर्ट के रूप में काम करता है। यहां सिख धर्म के कानून और सिद्धांतों के तहत धार्मिक सजा दी जाती है। इसमें धार्मिक काम या माफी मांगना शामिल है। अगर कोई व्यक्ति अकाल तख्त के सामने जुर्म कबूल करता है, तो उसे कोर्ट से भी सजा मिलेगी।
एस पुरुषोत्तम का कहना है कि ‘कानूनी मामले और आपराधिक मामलों को सिख धर्म के धार्मिक निकाय से अलग देखा जाता है। अगर जुर्म किसी कानूनी अपराध यानी हत्या, चोरी या यौन उत्पीड़न जैसे मामलों से जुड़ा है, तो कोर्ट से ही सजा मिलती है। फिर चाहे उसने अकाल तख्त के सामने जुर्म कबूल किया हो या न किया हो।’
सिख धर्म प्रचारक कमेटी के प्रचारक सरदार हरदीप सिंह के मुताबिक,
अकाल तख्त के सामने जुर्म कबूल करने से धार्मिक अनुशासन से जुड़ी सजा जरूर मिल सकती है। सिख समुदाय के लोग अकाल तख्त के फैसले को नजरअंदाज नहीं कर सकते। पूरी दुनिया में सिख धर्म इकलौता ऐसा पंथ है, जो धार्मिक सजा देता है। अकाल तख्त के बुलावे पर तनखइया को दरबार में हाजिर होना ही पड़ता है, चाहे वह किसी भी पद पर क्यों ना हो।
अगर किसी को श्री अकाल तख्त साहिब बुलाया जाता है और वह पहली बार नहीं आता है, तो उसे दूसरी बार बुलावा भेजा जाता है। दूसरी बार भी नहीं हाजिर होता है, तो तीसरी बार उसे तनखइया घोषित कर दिया जाता है। तनखइया को पंथ से छेक दिया जाता है, यानी अब कोई सिख उस व्यक्ति से संबंध नहीं रखेगा। उसे अपने यहां नहीं बुलाएगा। वह सिखों के किसी बड़े मंच पर नहीं जा सकेगा। उसके यहां कोई अपने बच्चों की शादियां नहीं करेगा, कोई गुरुद्वारा कमेटी उसे अपने यहां नहीं आने देगी।
लेकिन कानूनी सजा कोर्ट ही निर्धारित करती है। अकाल तख्त की सजा और अदालत की सजा दो अलग-अलग चीजें हैं। इससे एक-दूसरे की न्यायिक प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ता।’
सवाल 4: इस पूरे घटनाक्रम का राजनीतिक असर क्या होगा?
जवाबः सिख मामलों के एक्सपर्ट एस पुरुषोत्तम के मुताबिक, अकाल तख्त से सजा मिलने के बाद शिअद को 3 नुकसान हो सकते हैं…
1. सिख वोट बैंक में बिखराव सिख धर्म का सख्ती से पालन करने वाले लोग अकाल तख्त के फैसलों का भी पालन करते हैं। अकाल तख्त की नजर में शिअद और सुखबीर सिंह बादल अपराधी हैं। इससे शिअद का सिख वोट बैंक बिखर सकता है। यह खासकर आम आदमी पार्टी जैसी विरोधी पार्टियों के लिए अवसर जरूर बन जाएगा।
2. परिवार की राजनीतिक छवि कमजोर देश की राजनीति में प्रकाश सिंह बादल का अहम रोल रहा है। PM नरेंद्र मोदी उनके पांव छूते थे, लेकिन ‘फख्र-ए-कौम’ की उपाधि छिनने के बाद बादल परिवार की राजनीतिक छवि कमजोर हो गई है। सुखबीर सजा पूरी होने के बाद चुनाव तो लड़ पाएंगे, लेकिन फिर से पार्टी प्रधान बनना उनके लिए चुनौतीपूर्ण होगा, क्योंकि अकाल तख्त के आदेश के बाद शिअद में नई भर्तियां होंगी।
3. राजनीतिक गठबंधन पर असर सुखबीर सिंह बादल को मिली सजा से राजनीतिक गठबंधन पर सीधा असर पड़ेगा। अगर पंजाब की जनता शिअद के खिलाफ जाती है, तो भाजपा जैसी समर्थित पार्टियां अपना समर्थन वापस ले सकती हैं। इससे 2027 में आगामी विधानसभा चुनावों में शिअद को करारी हार का सामना करना पड़ जाएगा।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि ‘सुखबीर सिंह अपनी राजनीतिक छवि बचाने के लिए हमले के अगले दिन गुरुद्वारे में सेवा करने पहुंचे। सुखबीर के साथ Z+ सिक्योरिटी थी। कड़ी चाकचौबंद के बीच उन्होंने गुरुद्वारे में सेवा दी। अकाल तख्त की सजा पूरी करने से जनता की सद्भावना मिलने की उम्मीद है।’
सवाल 5: अकाल तख्त क्या है, इसकी शुरुआत कैसे हुई?
जवाबः 17वीं सदी में मुगल बादशाह जहांगीर ने सिखों के 5वें गुरु अर्जुन देव के साथ लाहौर में बर्बर व्यवहार किया और कठोर यातनाएं दीं। गुरु अर्जुन देव ने वहां से संदेश भेजा कि गुरु हरगोबिंद जी से कह दीजिए कि अब शस्त्र उठाने का वक्त आ गया है। 1606 में गुरु अर्जुन देव की हत्या कर दी गई।
इस दौरान मुगलों ने देशभर में एक फरमान जारी कर दिया। फरमान के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति बाज नहीं रख सकता, चौबारा नहीं डाल सकता, घोड़ा नहीं रख सकता, शिकार नहीं कर सकता और मुगलों के तख्त से ऊंचा तख्त यानी 3 फीट से ऊंचा नहीं बना सकता था।
इस पर सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद जी ने गद्दी संभालते ही कहा- हम तख्त बनाएंगे। उन्होंने 1609 में श्री अकाल तख्त साहिब बनाया। तब उसकी ऊंचाई 12 फीट थी। साथ ही उन्होंने 4,000 युवाओं की सेना बनाई। बाज रखे, घोड़े पाले और दस्तार भी सजाई। वे हर दिन उसी तख्त पर बैठते थे। वहीं से सारे फैसले लेते थे।
SGPC के सचिव सरदार गुरुचरण सिंह ग्रेवाल बताते हैं,
भारत में धार्मिक सजा देने वाला सिख समुदाय इकलौता समुदाय है, जहां अकाल तख्त साहिब के तहत सजा दी जाती है। अकाल तख्त से जारी आदेश और नियम कानून पूरी दुनिया के सिखों पर लागू होते हैं। व्यक्तिगत तौर पर तलब करने के साथ ही यह तख्त सिखों से संबंधित संस्थाओं को भी सजा सुनाता है।
सवाल 6: अकाल तख्त ने पहले किन बड़ी हस्तियों को सजा सुनाई?
जवाबः श्री अकाल तख्त साहिब सेक्रेटेरिएट के सेवादार जसपाल सिंह बताते हैं, ‘1994 में राजीव गांधी सरकार में ताकतवर गृहमंत्री बूटा सिंह पर कार्यवाही की थी। इन्हीं के कार्यकाल के दौरान 1984 में सिख दंगे हुए थे। अकाल तख्त ने दोनों को हाजिर होकर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया था।
जवाब में ज्ञानी जैल सिंह ने संदेश भेजा कि बतौर राष्ट्रपति वह अकाल तख्त साहिब में हाजिर नहीं हो सकते हैं। उनकी तरफ से उनका एक प्रतिनिधिमंडल वहां जाएगा। ज्ञानी जैल सिंह की तरफ से उनके प्रतिनिधिमंडल ने श्री अकाल तख्त साहिब के सामने उनका पक्ष रखा था। उनके जवाब से संतुष्ट होने के बाद ज्ञानी जैल सिंह को माफ कर दिया गया। हालांकि, बाद में ज्ञानी जैल सिंह भी श्री अकाल तख्त के सामने हाजिर हुए थे और माफी मांगी थी।
जबकि बूटा सिंह 1994 में श्री अकाल तख्त के सामने पेश हुए। उन्हें सजा के तहत पांचों तख्तों में एक-एक हफ्ते के लिए लंगर में बर्तन साफ करने, झाड़ू लगाने और जोड़े यानी जूते साफ करने का काम मिला। इस दौरान उनके गले में माफीनामे की तख्त भी लटकाई गई थी।’
1984 में अकाल तख्त ने जरनैल सिंह भिंडरांवाले को पातशाही यानी अकाल तख्त के खिलाफ काम करने के आरोप में सजा दी थी। भिंडरांवाले उस समय धर्म में सुधार के नाम पर पंजाब में अलगाववादी आंदोलन को बढ़ावा दे रहा था। इसके लिए अकाल तख्त ने उसे ’पंथ से बाहर’ करार दिया और उसे ’धार्मिक दंड’ देने का आदेश दिया। हालांकि, भिंडरांवाले ने अकाल तख्त की सजा को नकारते हुए खुद को सिखों का सच्चा नेता माना था।
1984 में ही अकाल तख्त ने भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी सजा सुनाई थी। इंदिरा ने 1984 में ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के दौरान स्वर्ण मंदिर में सिख आतंकवादियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की थी। अकाल तख्त ने इंदिरा गांधी और उनके प्रशासन को ’पंथ विरोधी’ करार दिया और ’धार्मिक दंड’ की चेतावनी दी। इसके बाद अकाल तख्त से उनके संबंध बिगड़ते चले गए।
जसपाल सिंह ने एक और किस्सा याद करते हुए बताया कि ‘18वीं सदी में अकाल तख्त ने पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह को सजा दी थी, क्योंकि रणजीत सिंह का दिल 13 साल की नाचने वाली मुस्लिम लड़की मोहरान पर आ गया था। वे मोहरान को अपनी प्रेमिका बनाकर रखना चाहते थे, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुई। मोहरान ने महाराजा से कहा, ‘मैं मुसलमान हूं, प्रेमिका बनकर नहीं रह सकती। आप चाहें तो मुझसे शादी कर सकते हैं।’
रणजीत सिंह शादी के लिए तैयार हो गए। इसी बीच मोहरान के पिता ने एक शर्त रख दी। उन्होंने कहा हमारे यहां एक प्रथा है। जो भी होने वाला दामाद होता है, उसे अपने ससुर के घर चूल्हा जलाना होता है। रणजीत सिंह ने यह शर्त भी मान ली।
इस पर अकाल तख्त ने महाराजा रणजीत सिंह के फैसले पर नाराजगी जताई। महाराजा को अकाल तख्त के सामने पेश होने का आदेश दिया गया। पहली बार रणजीत सिंह पेश नहीं हुए। इसके बाद उस वक्त के अकाल तख्त के जत्थेदार अकाली फूला सिंह ने आदेश दिया कि कोई सिख महाराजा को सलाम नहीं करेगा और ना ही स्वर्ण मंदिर में उनका प्रसाद स्वीकार किया जाएगा। लोगों ने महाराजा को सलाम करना बंद कर दिया। उनका चढ़ाया प्रसाद भी लिया जाना बंद हो गया।
आखिरकार रणजीत सिंह श्री अकाल तख्त में पेश हुए। रणजीत सिंह ने कहा कि उनसे गलती हुई है। इसके लिए वे माफी चाहते हैं। उन्हें जो सजा दी जाएगी, वे उसे मानेंगे। रणजीत सिंह को सौ कोड़े मारने की सजा सुनाई गई। इसके लिए उनकी कमीज उतारी गई और एक इमली के पेड़ से बांध दिया गया। वहां मौजूद लोगों की आंखों में आंसू आ गए। इसी बीच श्री अकाल तख्त के जत्थेदार ने ऐलान किया कि महाराजा ने अपनी गलती मान ली है, इसलिए इनकी सजा माफ की जाती है।’
सवाल 7: अकाल तख्त के पास शिकायतें कैसे आती हैं और फैसला कैसे सुनाया जाता है?
जवाबः अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के मुताबिक, ‘अकाल तख्त के पास शिकायतें ईमेल और चिट्ठी के जरिए आती हैं। लोग यहां आकर भी अपनी शिकायत दर्ज कराते हैं। शिकायत मिलने के बाद अकाल तख्त के जत्थेदार एक प्रतिनिधि मंडल बनाते हैं। प्रतिनिधि मंडल हर तरह से शिकायत की जांच करता है। इसके बाद दोनों पक्षों को बुलाया जाता है। उनका पक्ष सुना जाता है। फिर फैसला सुनाया जाता है।
छोटे-मोटे मामलों में अकेले श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ही फैसला लेते हैं। बड़े मामलों में पांचों तख्तों के जत्थेदार इकट्ठा होते हैं और सजा तय करते हैं। हालांकि, सजा सुनाने का अधिकार श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार के पास ही है।
सवाल 8: सुखबीर सिंह बादल पर किसने हमला किया और उसका मकसद क्या था?
जवाबः 4 दिसंबर 2024 (गुरुवार) को अमृतसर के गोल्डन टेम्पल में सुखबीर सिंह बादल पर खालिस्तानी आतंकी नारायण सिंह चौड़ा ने गोली चलाई थी। सुखबीर बादल गोल्डन टेम्पल के गेट पर सेवादार बनकर सजा पूरी कर रहे थे। चौड़ा ने जैसे ही बादल पर गोली चलाई, तो सिविल वर्दी में तैनात सुरक्षाकर्मियों ने उसका हाथ पकड़कर ऊपर कर दिया। गोली गोल्डन टेम्पल की दीवार पर जा लगी। इस हमले में बादल बाल-बाल बच गए।
चौड़ा ने बादल को खालिस्तानी आतंकियों के पुराने ढंग से निशाना बनाया। चौड़ा ने बयान दिया कि बादल पर बेअदबी और डेरा मुखी राम रहीम को माफी दिलाने के आरोप हैं। इसी वजह से उसने बादल पर गोली चलाई। नारायण सिंह चौड़ा सिख संगठन दल खालसा का मेम्बर है।