मस्जिद ढहाने के 32 साल गुजरे ?
3 दिसंबर, 1992, शाम करीब साढ़े 4 बजे का वक्त था। कुछ पत्रकार अयोध्या में बाबरी मस्जिद के करीब बने मंच के पास पहुंचे। वहां ट्यूबवेल लगा हुआ था। कारसेवक पाइपलाइन बिछाने के लिए गड्ढा खोद रहे थे। जहां कारसेवा होनी थी, वहां तक पानी पहुंचाना था। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा रखा था। यानी विवादित ढांचे के परिसर में कुछ नहीं हो सकता था।
पत्रकारों ने कारसेवकों से पूछा, आप जो कर रहे हैं इसके लिए कोई आदेश है? ये सुनते ही कारसेवक भड़क गए।
भीड़ से बचते हुए पत्रकार, पर्यवेक्षक डिस्ट्रिक्ट जज प्रेम शंकर गुप्ता के पास पहुंचे। प्रेम शंकर को सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्त किया था। उन्होंने तुरंत DM को बुलाया और मौके पर पहुंचे।
कारसेवक कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। विध्वंस से 3-4 दिन पहले से ही उनकी बॉडी लैंग्वेज अलग थी। लगने लगा था कि इस बार ढांचा शायद ही बचेगा। कारसेवक किसी की सुनने के मूड में नहीं थे, ढांचा गिराना है तो गिराना है।
-नरेंद्र कुमार श्रीवास्तव (वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सूचना आयुक्त)
नरेंद्र बताते हैं, 6 दिसंबर 1992 के दिन कई कारसेवक पत्रकारों से नाराज हो गए थे। कई पत्रकारों की पिटाई भी की गई थी।
कारसेवकों ने पीटना शुरू किया तो सभी पत्रकार मानस भवन में घुस गए। इसी मानस भवन में विश्व हिंदू परिषद का कार्यालय था। कई पत्रकारों ने VHP के बैज और रामनामी पटका पहनकर खुद को बचाया।
बाबरी विध्वंस केस से जुड़े सीनियर एडवोकेट इंद्रभूषण सिंह बताते हैं, 6 दिसंबर तक 4-6 लाख कारसेवक अयोध्या आए थे। ज्यादातर कारसेवक दक्षिण भारत या महाराष्ट्र-राजस्थान से थे। राज्य सरकार से बिना पूछे केंद्र सरकार ने CRPF की कई बटालियन भेजी थीं। ये बटालियन फैजाबाद के डोगरा रेजिमेंट में रुकी थीं। राज्य सरकार का कहना था कि CRPF भेजने की वजह से लोग भड़क गए।
6 दिसंबर की सुबह कारसेवक सरयू-जल और बालू से राम जन्मभूमि परिसर में पूजा-पाठ करना चाह रहे थे। इसलिए सरयू से पानी और बालू लेकर आ रहे थे।
अयोध्या के विवादित ढांचे से करीब 300 मीटर की दूरी पर रामकथा कुंज था। वहां BJP-VHP की मीटिंग हो रही थी। इस मीटिंग में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा, अशोक सिंघल जैसे तमाम बड़े नेता पहुंचे थे। सुबह 8 बजे के करीब विजया राजे सिंधिया भी पहुंच गईं।
विजया राजे विवादित ढांचे के ठीक सामने बने उस चबूतरे के पास गईं जहां लोग पूजा कर रहे थे। तब तक सब माहौल ठीक था।
दोपहर 12 बजे लोगों में रोष भड़का, 5 बजे बाबरी का ढांचा गिरा दिया गया आईबी सिंह बताते हैं कि अचानक 12 बजकर 5-7 मिनट पर लोग भड़क गए। ऐसा लगा कि ज्वालामुखी फट गया हो। बाबरी ढांचे की सुरक्षा के लिए चारों तरफ लोहे के मोटे पाइप लगे हुए थे। इन्ही पाइप के सहारे 8-10 फीट की ऊंचाई तक घने कंटीले तारों का जाल लगा था। तीन दीवारें बनी थीं।
15 मिनट में तोड़-ताड़कर जनता ने विध्वंस शुरू कर दिया। दीवारें गिराकर लोहे के पाइप उखाड़ फेंके गए। करीब डेढ़ बजे पहला गुंबद तोड़कर एक हिस्सा गिरा दिया गया। 5 बजे तक ढांचा गिराकर लोग मिट्टी और ईंटे सब उठा ले गए। वहां कोई अवशेष नहीं रह गया था। 6 बजे तक वहां एकदम सन्नाटा हो गया।
BBC में रहे वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, उस समय UP में BJP की कल्याण सिंह सरकार थी। अधिकारियों ने अपना काम जिम्मेदारी से नहीं किया इसलिए बाबरी ढांचा गिरा।
UP सरकार की तरफ से CM कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में ढांचे की हिफाजत का लिखित आश्वासन दिया था।
वहीं BJP की तरफ से विजया राजे सिंधिया ने भी ढांचे को कोई नुकसान न पहुंचाने का लिखित आश्वासन दिया था, इसके बावजूद ढांचा तोड़ा गया।
इस मामले पर राम जन्मभूमि SO प्रियंवदा नाथ शुक्ला ने पहली FIR संख्या 197/1992 दर्ज कराई। उसमें कहा गया कि लाखों कारसेवकों ने अचानक बाबरी ढांचे पर हमला कर ढांचा गिरा दिया। साथ ही उन पर डकैती, लूट-पाट और धर्म के आधार पर शत्रुता बढ़ाने जैसे आरोप लगे।
मामले में दूसरी FIR संख्या 198/1992, राम जन्मभूमि थाने के SI गंगा प्रसाद तिवारी ने दर्ज कराई। उन्होंने 8 लोगों का नाम देते हुए कहा कि ये भड़काऊ भाषण दे रहे थे। जिसके कारण जनता ने उत्तेजित होकर बाबरी ढांचा ढहा दिया। ये 8 लोग थे BJP नेता लालकृष्ण आडवाणी, VHP के तत्कालीन महासचिव अशोक सिंघल, बजरंग दल के नेता विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, मुरली मनोहर जोशी, गिरिराज किशोर और विष्णु हरि डालमिया।
पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि FIR संख्या 198/1992 दर्ज होने के बाद नामजद आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। इन आरोपियों को माता टीला बांध के गेस्ट हाउस में रखा गया। कानून व्यवस्था के लिहाज से फैजाबाद में ट्रायल संभव नहीं था। इसलिए ललितपुर में स्पेशल कोर्ट बना दी गई। बाद में केस रायबरेली ट्रांसफर कर दिया गया।
इन दो मुख्य FIR के अलावा 47 और FIR दर्ज हुईं। इनमें ज्यादातर मामले पत्रकारों से हुई मारपीट से जुड़े थे। यानी 6 दिसंबर 1992 की घटना से जुड़ी कुल 49 FIR दर्ज हुई थीं। उस दिन से लेकर 14 मार्च 1993 तक इन सभी मुकदमों में कुल 49 लोगों के खिलाफ चार्जशीट फाइल हुई।
इस मामले की दोनों FIR एक दूसरे से जुड़ी हुई थीं। इसलिए CBI ने लखनऊ की स्पेशल CBI कोर्ट में एक कंपोजिट चार्जशीट दाखिल की। लखनऊ कोर्ट के जज ने आरोप तय कर दिए। यानी यह तय हो गया कि आरोपियों के खिलाफ किन-किन धाराओं में केस चलेगा। इसके बाद FIR संख्या 198/1992 के नामजद आरोपियों जैसे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी ने हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की।
हाईकोर्ट ने कहा कि दोनों केस अलग-अलग हैं। पूरा ट्रायल गलत ढंग से चल रहा है। इसके बाद आडवाणी समेत 8 लोगों का केस फिर रायबरेली चला गया। इसे लेकर CBI सुप्रीम कोर्ट गई और 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों केस लखनऊ में ही चलने चाहिए, फिर वो चलते रहे।
साल 2003 में CBI ने FIR 198 के तहत आठ अभियुक्तों के खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की। इस चार्जशीट में बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराने वाला आरोप नहीं जोड़ा गया, क्योंकि इस मामले पर केस 197 दर्ज था और कोर्ट ने कहा था दोनों केस अलग हैं।
रायबरेली कोर्ट ने सबूत के अभाव में लालकृष्ण आडवाणी को बरी कर दिया। साल 2005 में इलाहाबाद हाइकोर्ट ने रायबरेली कोर्ट के इस आदेश को रद्द कर दिया और आडवाणी समेत आठ लोगों पर मुकदमा चलाने का आदेश दिया। साल 2005 में ही रायबरेली कोर्ट ने मामले में आरोप तय किए, लेकिन पहली गवाही साल 2007 में हुई।
28 साल चले इस केस में 49 में 17 लोगों की ट्रायल के दौरान मौत हो गई। 30 सितंबर 2020 को लखनऊ की CBI कोर्ट ने आडवाणी समेत 32 आरोपियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया।
आईबी सिंह कहते हैं कि करीब 500 गवाह रखे गए, आधा क्विंटल तो कागज थे। कोर्ट में 70 कैसेट सबूत के तौर पर पेश किए गए थे। फोटो, फोटोग्राफर, पत्रकार, अधिकारी बतौर गवाह पेश किए गए थे। अधिकारियों और आम लोगों ने तो साफ कर दिया कि कोई षड्यंत्र नहीं था। किसी भी सरकारी अधिकारी या पुलिस वाले ने ये नहीं कहा कि ढांचा गिराने वालों में नामजद आरोपियों का हाथ था।
आईबी सिंह बताते हैं कि CBI की चार्जशीट में कहा गया कि नामजद आरोपियों के भड़काने से ही जनता ने बाबरी को गिरा दिया। लिब्रहान कमीशन के सामने भी बहुत सारे गवाहों ने यही कहा। हालांकि, जांच एजेंसी षड्यंत्र साबित नहीं कर सकी। उन्होंने एविडेंस के रूप में कल्याण सिंह का विध्वंस के बाद दिया गया भाषण भी दिया। जिसमें उन्होंने कहा कि हम लोगों ने गोली नहीं चलने दी। इसलिए विध्वंस हुआ। षड्यंत्र अपराध होने के पहले होता है, अपराध होने के बाद नहीं। पहले का कोई सबूत नहीं दिया।
बाबरी विध्वंस के मलबे में दबकर 251 लोग घायल हुए थे। इनमें 51 गंभीर रूप से घायल हुए, जिनमें से 4 लोग मर गए। बुरी तरह से घायल लोगों को CBI ने मुलजिम नहीं बनाया। जबकि UP CBCID ने उनको मुलजिम बनाया था।
आईबी सिंह कहते हैं कि एक मोहतरमा लिब्रहान कमीशन में गई थीं। उन्होंने बड़ी लंबी गवाही दी थी। मैंने जिरह के दौरान उनसे यही पूछा कि आपने कुल कितने कैसेट बनाए थे? उन्होंने कहा, कुल 8 कैसेट बनाए थे। एक-एक घंटे का कैसेट था। यानी 8 घंटे के कैसेट को एडिट करके 40 मिनट में अपनी बात कह कर पेश कर दिया, तो उसकी क्या वैल्यू है। आपने क्या काटा, क्या नहीं काटा, ये कौन जानता है।
कारसेवकों और नेताओं के साथ तत्कालीन DM और SSP भी बाबरी विध्वंस केस में आरोपी थे। उनकी निष्क्रियता को देखते हुए उन पर विध्वंस कराने के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप लगा।
वकील इंद्रभूषण सिंह के मुताबिक, डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन ने ढांचा बचाने की कोशिश की थी। उनको तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी पालन करना था। उधर कारसेवा के लिए इकट्ठा हुए 6 लाख लोगों को भी देखना था।
डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन ने अयोध्या को 3 हिस्सों में डिवाइड किया था। जो विवादित ढांचा था, उसको आइसोलेशन कॉर्डन कहते थे। आइसोलेशन कॉर्डन में पूरी तरह से CRPF की ड्यूटी लगी थी। आइसोलेशन कॉर्डन कटीले तारों से पूरी तरह घिरा हुआ था। उसके बाद इनर कॉर्डन था, इनर कॉर्डन में UP पुलिस, PAC के लगभग 5-6 हजार जवान लगाए गए थे। इनर कॉर्डन के बाद तीसरा आउटर कॉर्डन था।
विवादित ढांचे के पूरे इलाके को 8 सेक्टर में बांटा गया था। हर सेक्टर में एक-एक IAS अधिकारी की बतौर एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट ड्यूटी थी। इनकी ड्यूटी पुलिस को कंट्रोल करने के लिए लगाई गई थी। इतना सब कुछ होने के बावजूद जब कारसेवा शुरू हुई तो पता नहीं लगा कि लाखों की भीड़ में कौन कहां चला गया।
-इंद्रभूषण सिंह (बाबरी विध्वंस केस के वकील)
बाबरी केस में ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में रिवीजन पिटीशन दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। UP के चीफ स्टैंडिंग काउंसिल और बाबरी केस में साक्षी महाराज की तरफ से जिरह करने वाले सीनियर एडवोकेट प्रशांत सिंह अटल के मुताबिक, ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ CBI अपील कर सकती थी। हालांकि, CBI ने पाया कि इस फैसले में कुछ भी गैर-कानूनी नहीं है, इसलिए अपील नहीं की गई।
एडवोकेट प्रशांत सिंह कहते हैं, मामले में तथाकथित शिकायतकर्ता ने एक रिवीजन फाइल की थी। जिसे हाईकोर्ट ने रिजेक्ट कर दिया है। उन ऑर्डर्स के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में किसी ने अपील नहीं की। इसलिए ये माना जाए कि 30 सितंबर 2020 का निर्णय आखिरी है, क्योंकि अपील और रिवीजन का जो पीरियड होता है, वो समाप्त हो गया है। बाबरी विध्वंस केस में CBI के बनाए सारे आरोपी बाइज्जत बरी हैं। 2300 पन्नों का आदेश था, जो तर्कपूर्ण था। CBI ने सारे गवाहों को पेश किया। प्रॉसिक्यूशन विटनेस ने खुद कहा कि कुछ अराजक तत्वों ने बाबरी ढांचा गिराया।
बाबरी का ढांचा गिरा, सबने देखा, लेकिन किसने गिराया इसकी जांच करना इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी का काम था। 1992 से लेकर 2020 तक किसी को उस काम के लिए आरोपी कहते रहे, जिसके लिए वो दोषी नहीं था। 48 में से 32 आरोपी ही जिंदा रहे, बाकी लोगों की मौत हो गई।
-प्रशांत सिंह अटल (बाबरी विध्वंस केस के वकील)
हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट प्रशांत अटल कहते हैं, एविडेंस एक्ट 65बी में इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस जुटाने के बारे में बताया गया है, लेकिन CBI ने एविडेंस एक्ट के प्रोविजंस का पालन नहीं किया। उचित जांच के बिना ही CBI ने चार्जशीट फाइल की थी। CBI के अपने गवाह भी चार्जशीट के फेवर में गवाही नहीं दे पाए, तो उसके आधार पर निर्णय हुआ।
एडवोकेट प्रशांत अटल कहते हैं कि, क्या बाबरी का ढांचा गिराने वाले डकैत, लुटेरे या माहौल बिगाड़ने वाले लोग थे। CBI ने इस पर विवेचना नहीं की, क्योंकि 6 दिसंबर को 12 बजे तक सब कुछ ठीक-ठाक था। विवेचना में ये भी नहीं आया कि क्या इसमें कोई आतंकवादी संगठन शामिल है? 1992 के बाद जो घटनाएं हुईं, 1993 का दंगा हुआ …वो कौन हैं जो माहौल बिगाड़ना चाहते थे? क्या कोई अंतरराष्ट्रीय साजिश थी? CBI को इसकी विवेचना करनी चाहिए थी।
क्रिमिनल लॉ कहता है कि भीड़ में जो भी काम होता है, उसके लिए भीड़ का हिस्सा रहा हर व्यक्ति जिम्मेदार होता है। जिन लोगों ने लगातार यात्राएं चलाकर, भड़काऊ भाषण देकर लोगों को उकसाया, वो जिम्मेदार हैं।
– रामदत्त त्रिपाठी (वरिष्ठ पत्रकार)
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि जो क्राइम दुनिया के सामने हुआ। जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी अयोध्या के जजमेंट में माना कि बाबरी ढांचे को तोड़ना क्राइम था। उस क्राइम के लिए किसी को सजा नहीं मिली। ये पूरे सिस्टम का फेल्योर है।
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32 साल पहले बाबरी ढहाई, नई बनाने के पैसे नहीं:ट्रस्ट बोला- न नक्शा पास, न नींव पड़ी; अब लोग मस्जिद भूल गए
‘बाबरी मस्जिद और राम मंदिर का फैसला एक ही साथ आया था। हो सकता है राम मंदिर का नक्शा फैसले के पहले बन गया हो, तभी वहां तुरंत काम भी शुरू हो गया। मस्जिद का काम ही ढीला पड़ा है। 5 साल बीत गए। अब तक कमेटी नक्शा नहीं बना पाई है। धन्नीपुर में सिर्फ जमीन लेकर डाल दी गई। यहां एक ईंट तक नहीं पड़ी।‘
अयोध्या के धन्नीपुर गांव में रहने वाले मोहम्मद इस्लाम खान इस देरी के लिए मस्जिद कमेटी और सरकार को जिम्मेदार मानते हैं। अयोध्या शहर से 28 किमी दूर धन्नीपुर में ही बाबरी मस्जिद की जगह दूसरी इबादतगाह बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन दी गई है। इस्लाम खान का खेत मस्जिद की जमीन के ठीक बगल में है।
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाया। हिंदू-मुस्लिम पक्ष को अपने-अपने धार्मिक स्थल बनाने के लिए जमीनें मिलीं। ‘राम मंदिर’ के नाम पर चुनाव लड़े गए। मंदिर बना और इसका भव्य उद्घाटन पूरी दुनिया ने देखा, लेकिन मस्जिद की अब तक नींव भी नहीं खोदी गई है। बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराए जाने की 32वीं बरसी पर पढ़िए ये रिपोर्ट…
बाबरी मस्जिद केस पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मंदिर और मस्जिद दोनों जल्द बनवाए जाएं। दोनों पक्ष इसके लिए ट्रस्ट बनाकर काम शुरू कर सकते हैं। मस्जिद बनाने के लिए कोर्ट ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही जमीन देने को कहा। इसके बाद मस्जिद कमेटी बनी। इमारत की डिजाइन बनाई गई। नई मस्जिद की फोटो जारी होती रहीं, लेकिन धन्नीपुर में एक नया पत्थर नहीं रखा गया।
राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को एक साल पूरा होने वाला है, लेकिन मस्जिद का काम कहां अटका है, मस्जिद कमेटी के सामने क्या-क्या रुकावटें हैं, काम कब तक शुरू होगा, इन सवालों के जवाब जानने दैनिक भास्कर की टीम धन्नीपुर गांव पहुंची।
सबसे पहले धन्नीपुर के लोगों की बात ‘मस्जिद बनेगी, अब तो उम्मीद ही छोड़ दी’
फैजाबाद-लखनऊ नेशनल हाईवे पर बसे धन्नीपुर गांव की आबादी लगभग 2500 है। इसमें 60% यानी करीब 1300 मुस्लिम हैं। गांव के बीचोबीच सफेद रंग की शाहगदा शाह मजार है। इसके चारों तरफ 5 एकड़ जमीन कई साल से खाली पड़ी है। यहीं पर मस्जिद बनाई जानी है। पूरे गांव में इससे बड़ी खाली जगह नहीं है। इसलिए बच्चे यहां क्रिकेट खेलने आते हैं।
मजार के चारों तरफ लोहे के बोर्ड लगे हैं। इसमें नई मस्जिद, अस्पताल और स्कूल के डिजाइन वाली फोटो है। धन्नीपुर के लोग 2019 से ही इस मस्जिद के बनने की उम्मीद पाले हुए हैं। मोहम्मद इस्लाम भी उनमें से एक हैं।
बकरियां चरा रहे इस्लाम खान कहते हैं, ‘अगर लोग दिल से चाहते तो मस्जिद खड़ी हो जाती। सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें कही गईं कि मस्जिद के साथ स्कूल और अस्पताल भी बनाएंगे। एक कहावत है न कुछ गुड़ ढीला, तो कुछ बनिया, इसी तरह मस्जिद बनाने में कुछ सरकार ढीली है, तो कुछ कमेटी वाले।‘
इस्लाम खान कहते हैं, ‘यहां हाई लेवल का स्कूल खुल जाता, उसमें हर धर्म के बच्चे पढ़ने आते। इससे हमारा गांव भी आगे बढ़ता’
मुसलमान ही नहीं, हिंदुओं को भी मस्जिद बनने का इंतजार
मस्जिद वाली जमीन से बाजार की तरफ जा रहे मोहम्मद साबिर अली हमारे पास आकर रुक गए। हमने बात करने के लिए माइक उनकी तरफ किया। साबिर कहते हैं, ‘राममंदिर के उद्घाटन के वक्त अखबार में पढ़ा था कि मई-जून तक मस्जिद का काम भी शुरू हो जाएगा। साल बीतने वाला है, अब तक कुछ नहीं हुआ है। फिलहाल मस्जिद को लेकर उम्मीदें पस्त हो चुकी हैं।’
सेंसिटिव मुद्दा होने की वजह से धन्नीपुर की महिलाएं बात करने को राजी नहीं हुईं। सिर्फ बुजुर्ग ही खुलकर बात रखते हैं। 48 साल के गंगा प्रसाद यादव धन्नीपुर में दूध डेयरी चलाते हैं। उनका बायां पैर कुछ साल पहले सड़क हादसे में कट गया था। अब लखनऊ में पैर का ट्रीटमेंट करवा रहे हैं।
गंगा प्रसाद कहते हैं, ‘धन्नीपुर के मुसलमानों को ही नहीं, हिंदुओं को भी मस्जिद बनने का इंतजार है। यहां अस्पताल, लाइब्रेरी और एक बड़ा कम्युनिटी किचन बनने वाला था। काम वक्त पर हो जाता तो मेरे जैसे लोगों को यहीं पर अच्छा इलाज मिल जाता। किसानों और डेयरी वालों से कम्युनिटी किचन के लिए सामान खरीदा जाता, लेकिन कुछ नहीं हुआ।’
आखिर मस्जिद का काम कहां अटका… ट्रस्ट बोला- फंड ही नहीं कि मस्जिद का काम शुरू कर सकें
मस्जिद बनने में देरी क्यों हो रही है, कमेटी का प्लान क्या है, काम कब तक शुरू हो सकता है, ये जानने के लिए हम इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट यानी IICF के सेक्रेटरी अतहर हुसैन से मिले। IICF को ही धन्नीपुर में मस्जिद बनाने की जिम्मेदारी मिली है। अतहर मस्जिद बनने में हो रही देरी के पीछे दो अहम वजहें बताते हैं। 1. मस्जिद का नक्शा पास कराने के लिए फंड की कमी। 2. गल्फ कंट्रीज से पैसा जुटाया जा रहा, इसमें वक्त लगने से काम पिछड़ रहा।
अतहर हुसैन कहते हैं, ‘मस्जिद के नए डिजाइन के हिसाब से हमें ज्यादा फंड की जरूरत है। नए रोडमैप के मुताबिक, मस्जिद परिसर में हॉस्पिटल और एक बड़ा कम्युनिटी किचन बनाया जाएगा। इसमें हर धर्म के लोग खाना खा सकेंगे। IICF मस्जिद को हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के प्रतीक के तौर पर डेवलप करने का प्लान बना रहा है।’
‘इसे देखते हुए मस्जिद कैंपस में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की याद में मौलवी अहमदुल्ला शाह के नाम से एक म्यूजियम भी बनाने का प्लान था।‘
मस्जिद का काम जल्द शुरू करवाने के लिए हम अयोध्या जिला प्रशासन को नया नक्शा हैंडओवर कर चुके हैं, लेकिन उस पर अप्रूवल तभी मिलेगा, जब हम डेवलपमेंट चार्ज भर पाएंगे।
अतहर हुसैन आगे कहते हैं कि अभी की स्थिति देखते हुए, हमारे पास उतना फंड नहीं है कि हम धन्नीपुर में प्रोजेक्ट शुरू कर सकें।
फंड जुटाने के लिए क्या कर रहे हैं? अतहर जवाब देते हैं, ‘हमारे ट्रस्ट के चेयरपर्सन जफर फारुकी ने मुंबई और दूसरे बड़े शहरों में ग्रुप्स बनाकर पैसे इकट्ठा करने की कवायद शुरू की है। हम फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेटरी एक्ट FCRA की मदद से गल्फ कंट्रीज से फंड मांग रहे हैं। अगर वहां से बड़ी हेल्प मिलती है, तो मस्जिद बनाने का रास्ता खुल जाएगा।‘
नई मस्जिद मुगल शासक बाबर के नाम पर नहीं होगी
मस्जिद बनाने वाली संस्था IICF के मुताबिक, धन्नीपुर मस्जिद मुगल शासक बाबर के नाम पर नहीं होगी। अब इसका नाम पैगंबर मोहम्मद साहब के बेटे के नाम पर मोहम्मद-बिन-अब्दुल्लाह मस्जिद रखा जाएगा।
ट्रस्ट ने महाराष्ट्र अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष हाजी अरफात शेख को मस्जिद बनाने वाली कमेटी का हेड बनाया है, ताकि इसका काम शुरू हो सके। उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जफर फारूकी को मुख्य ट्रस्टी बनाया गया है। ट्रस्ट 5 एकड़ के बजाय अब 11 एकड़ में मस्जिद कैंपस बनाने की तैयारी कर रहा है।
नए डिजाइन के मुताबिक, मोहम्मद-बिन-अब्दुल्लाह मस्जिद 15 हजार वर्ग फीट की जगह करीब 40 हजार वर्ग फीट में बनाई जाएगी। आकार बढ़ाने की वजह से ट्रस्ट 5 एकड़ सरकारी जमीन के अलावा आसपास के किसानों से 6 एकड़ जमीन और खरीदने पर बात कर रहा है।
वक्फ बोर्ड का कहना है कि कैंपस में मस्जिद के साथ म्यूजियम और अस्पताल भी बनना है, उस लिहाज से फंड जमा होते ही मस्जिद का काम शुरू हो जाएगा।
मस्जिद के लिए हिंदू भी दे रहे डोनेशन
2019 में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस पर फैसला आने के 9 महीने बाद ट्रस्ट ने मस्जिद बनाने के लिए लोगों से मदद मांगी थी। इसके लिए बैंक अकाउंट की डिटेल पब्लिक की थी। नवंबर, 2022 तक ट्रस्ट को देशभर से करीब 40 लाख रुपए डोनेशन मिला। इसमें 40% हिस्सा हिंदू कम्युनिटी से मिला था।
मस्जिद के लिए सबसे पहला डोनेशन लखनऊ यूनिवर्सिटी में फैकल्टी रोहित श्रीवास्तव ने दिया था। उन्होंने 21 हजार रुपए की मदद की थी।
ADA सेक्रेटरी बोले- मस्जिद ट्रस्ट पर 1 करोड़ बकाया, NOC क्लियर होने में वक्त लगेगा
अयोध्या विकास प्राधिकरण ADA के मुताबिक, 5 एकड़ सरकारी जमीन पर किसी भी तरह का कंस्ट्रक्शन शुरू करने से पहले मस्जिद ट्रस्ट को अलग-अलग NOC क्लियर करवानी पड़ेगी। ये प्रोसेस फिलहाल पेंडिंग है। मस्जिद ट्रस्ट जो इमारत बनाना चाह रहा है, वो कई मंजिला होगी। उसका स्ट्रक्चर डिजाइन पहले IIT के प्रोफेसर्स से अप्रूव करवाना पड़ेगा, तभी काम शुरू हो सकेगा।
ADA के सेक्रेटरी सत्येंद्र सिंह ने भास्कर को बताया, ‘मस्जिद कमेटी ने हमें क्लियरेंस के लिए नया नक्शा सौंपा है। इस पर तभी अप्रूवल मिलेगा, जब वो लैंड यूज कन्वर्जन चार्ज जमा कर देंगे। ये रकम 1 करोड़ से ज्यादा है। रकम अब तक जमा नहीं की गई है। जब सभी जरूरी डॉक्युमेंट पूरे हो जाएंगे, तभी कंस्ट्रक्शन के लिए हरी झंडी मिलेगी।’
‘फिलहाल, हमने कमेटी से शासन के सामने अपनी मांग रखने को कहा है। अगर सरकार डेवलपमेंट चार्ज माफ करेगी, तो उन्हें राहत मिल सकती है।‘
बाबरी केस के पक्षकार बोले- ट्रस्ट के पास चंदा नहीं, तो उस जमीन पर खेती करवाएं
मस्जिद का काम शुरू न होने पर बाबरी मस्जिद केस के पक्षकार इकबाल अंसारी नाराजगी जताते हैं। अंसारी कहते हैं, ‘अवध का मुसलमान बाबरी मस्जिद के नाम पर अब चंदा नहीं देना चाहता। ट्रस्ट अगर मस्जिद बनाने के लिए चंदा नहीं इकट्ठा कर पा रहा है, तो वो मस्जिद को दी गई 5 एकड़ जमीन पर खेती करवाए और वहां से निकलने वाला अनाज हिंदू-मुस्लिम में बांट दे।’
‘सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दे दी है। बोर्ड ने वहां काम शुरू करवाने के लिए अपना प्राइवेट ट्रस्ट भी बना दिया है, अब सब कुछ उसी पर निर्भर करता है कि वो काम कब शुरू करेगा। 5 साल में इतनी बार काम शुरू हआ और टाल दिया गया। इसके चलते मुसलमानों में अब उस मस्जिद को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है।‘