फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट: तेज न्याय का दावा, क्या हकीकत भी यही है?

फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट: तेज न्याय का दावा, क्या हकीकत भी यही है?

देश में जल्दी न्याय दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाना राज्य सरकारों का काम है. राज्य सरकारें अपनी जरूरत और पैसे के हिसाब से हाई कोर्ट से सलाह लेकर ऐसे कोर्ट बनाती हैं.

देशभर में बच्चों के यौन शोषण के मामलों को जल्दी निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) बनाए गए थे. लेकिन लगभग पांच साल बाद भी, ये कोर्ट उम्मीद के मुताबिक काम नहीं कर पा रहे हैं.

FTSC यानी फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट, भारत में बनाई गई खास अदालतें हैं. इनका मकसद यौन अपराधों से जुड़े मुकदमों की सुनवाई जल्दी से जल्दी पूरी करना है. खासकर रेप और POCSO एक्ट (बच्चों के यौन शोषण से जुड़ा कानून) के तहत आने वाले मामले जल्द से जल्द निपटाना.

भारत में यौन अपराध बहुत ज्यादा हो रहे हैं और आम अदालतों में मुकदमे बहुत लंबे खिंचते हैं. इससे पीड़ितों को न्याय मिलने में बहुत देरी होती है. इसलिए FTSC बनाए गए ताकि सुनवाई जल्दी हो और पीड़ितों को जल्द न्याय मिल सके. 

फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) कैसे बने?
साल 2018 में केंद्र सरकार ने महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध रोकने के लिए सख्त कानून बनाए. लेकिन यौन अपराधों के मामले बढ़ते जा रहे थे. सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद अगस्त 2019 में केंद्र सरकार ने FTSC बनाने की योजना शुरू की. 

फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट बनाने की योजना  पहले सिर्फ एक साल के लिए थी, जिसके लिए 2019-20 और 2020-21 में कुल 767.25 करोड़ रुपये रखे गए थे. फिर इस योजना को दो साल के लिए और बढ़ा दिया गया, यानी मार्च 2023 तक.  इसके लिए 1572.86 करोड़ रुपये रखे गए थे. अब सरकार ने इस योजना को फिर से तीन साल के लिए बढ़ा दिया है, यानी अब यह 31 मार्च 2026 तक चलेगी.  इसके लिए 1952.23 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है. इस योजना के तहत 790 कोर्ट बनाने का लक्ष्य है.

देश में अभी कितने फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट
लोकसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया, अभी तक 30 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 750 FTSC काम कर रहे हैं, जिनमें से 408 सिर्फ POCSO के मामलों के लिए हैं. 31 अक्टूबर 2024 तक इन कोर्ट ने 2 लाख 87 हजार से ज्यादा मामलों का निपटारा कर दिया है.

हाईकोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार, फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) में रेप और POCSO एक्ट के मामलों का निपटारा आम अदालतों के मुकाबले बहुत तेजी से हो रहा है. आम अदालतें हर महीने औसतन 3.26 रेप और POCSO के मामले निपटा पाती हैं, जबकि FTSC हर महीने औसतन 8.01 मामले निपटा रहे हैं.

डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस की वेबसाइन के अनुसार, इस योजना को अच्छे से चलाने के लिए कानून और न्याय मंत्रालय ने एक ऑनलाइन सिस्टम बनाया है जिससे हर महीने  FTSC के कामकाज पर नजर रखी जा सकती है.  इसके अलावा, हाई कोर्ट के अधिकारियों और राज्य सरकार के कर्मचारियों के साथ नियमित रूप से मीटिंग भी की जाती हैं. लेकिन फिर हजारों केस पेंडिंग है.

किस राज्य में सबसे ज्यादा मामले लंबित
उत्तर प्रदेश में फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट की संख्या सबसे ज्यादा (218) होने के कारण सबसे ज्यादा मामले यहीं निपटाए गए हैं. शुरुआत से लेकर 31 दिसंबर 2023 तक यूपी में 55,021 मामले निपटा दिए गए. मगर अभी भी सबसे ज्यादा 84,778 मामले यूपी में ही लंबित हैं. यूपी के बाद मध्य प्रदेश (23,613), महाराष्ट्र (16,907), केरल (16,878) में सबसे ज्यादा केस निपटाए गए. वहीं यूपी के अलावा बिहार (17,716), ओडिशा (11,060), मध्य प्रदेश (10,193) में सबसे ज्यादा केस लंबित हैं.

चंडीगढ़, गोवा, नगालैंड, पुद्दुचेरी में एक-एक ही स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट है. मणिपुर में ऐसी 2 अदालत हैं. वहीं पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और मिजोरम में तीन-तीन अदालते हैं. बंगाल में अबतक 48 केस ही निपटाए गए हैं और 2948 केस पेंडिंग हैं.

फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट: तेज न्याय का दावा, क्या हकीकत भी यही है?

फास्ट ट्रैक कोर्ट चलाने के लिए कहां से आता है फंड
फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) को बनाने और चलाने के लिए निर्भया फंड से पैसे दिए जाते हैं. दिसंबर 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक खास फंड बनाया था जिसे ‘निर्भया फंड’ कहा जाता है. इस फंड का इस्तेमाल महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं के लिए किया जाता है.

यह फंड कभी खत्म नहीं होता और इसका प्रबंधन वित्त मंत्रालय का आर्थिक मामलों का विभाग करता है. महिला और बाल विकास मंत्रालय यह तय करता है कि निर्भया फंड से किन योजनाओं को पैसा दिया जाए. साथ ही, यह मंत्रालय यह भी देखता है कि निर्भया फंड से चल रही योजनाएं ठीक से काम कर रही हैं या नहीं.

अब तक सरकार ने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को कुल 1008.14 करोड़ दिए हैं ताकि ये फास्ट ट्रैक कोर्ट अच्छे से काम कर सकें. इसमें से 173.59 करोड़ इस साल (2024-25) में दिए गए हैं, जबकि 200 करोड़ का बजट था. यह पैसा केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर देती हैं. ज्यादातर राज्यों में केंद्र सरकार 60% और राज्य सरकार 40% पैसा देती है. कुछ राज्यों में केंद्र सरकार 90% और राज्य सरकार 10% पैसा देती है.

इस पैसे से जज और कोर्ट के कर्मचारियों की सैलरी दी जाती है. कोर्ट के रोज के खर्चों के लिए भी पैसा दिया जाता है. राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को यह पैसा उनके द्वारा चलाए जा रहे कोर्ट की संख्या के हिसाब से दिया जाता है. 

क्या सरकार ने FTSC के कामकाज का कोई आंकलन किया है?
फरवरी 2024 में सरकार ने लोकसभा में पूछे गए इस सवाल के जवाब दिया था. सरकार ने बताया कि 2023 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (IIPA) नाम की संस्था ने फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट योजना का आंकलन किया था. IIPA ने कहा कि महिलाओं और बच्चों के यौन शोषण के मामलों में जल्दी न्याय दिलाने के लिए यह योजना बहुत जरूरी है, इसलिए इसे जारी रखना चाहिए. 

मुकदमों की सुनवाई जल्दी पूरी किए जाने के लिए राज्यों और हाईकोर्ट को कुछ जरूरी कदम उठाने की सिफारिश चाहिए. जैसे:POCSO के मामलों में अनुभवी जजों की नियुक्ति करना, जजों और कर्मचारियों को यौन अपराधों के मामलों को संभालने के लिए प्रशिक्षण देना, महिला सरकारी वकीलों की नियुक्ति करना.

फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट: तेज न्याय का दावा, क्या हकीकत भी यही है?

अदालतों के कमरों को आधुनिक बनाने की बात भी कही. इसके लिए वीडियो और ऑडियो रिकॉर्डिंग जैसे नए तकनीक का इस्तेमाल करने की सिफारिश की. साथ ही, कंप्यूटर का इस्तेमाल बढ़ाने बात कही ताकि ऑनलाइन मुकदमे दर्ज किए जा सकें और अदालत के कागजात डिजिटल रूप में सुरक्षित रखे जा सकें. 

IIPA ने कहा, फोरेंसिक लैब में ज्यादा लोगों को काम पर रखना चाहिए. उन्हें प्रशिक्षण देना चाहिए ताकि डीएनए रिपोर्ट समय पर मिल सके. सभी जिलों में ‘वल्नरेबल विटनेस डिपोजिशन सेंटर’ (VWDC) बनाए जाने चाहिए. यह ऐसे केंद्र होंगे जहां पीड़ित बिना किसी डर के अपनी बात कह सकेंगे. इससे अदालत में सुनवाई आसानी से हो सकेगी. राज्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों के मामलों की सुनवाई उनके अनुकूल माहौल में हो. सुनवाई बंद कमरों में होनी चाहिए और बच्चे की पहचान गुप्त रखी जानी चाहिए. हर फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट में एक बाल मनोवैज्ञानिक होना चाहिए जो बच्चे को अदालत की कार्यवाही समझने और उसका सामना करने में मदद कर सके.

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