कभी गांधी परिवार की मुश्किलों में साथ रहते थे लालू यादव, अब राहुल के विरोध में क्यों?

कभी गांधी परिवार की मुश्किलों में साथ रहते थे लालू यादव, अब राहुल के विरोध में क्यों?

गांधी परिवार पर जब-जब राजनीतिक संकट आए, तब-तब लालू मजबूती के साथ मैदान में मोर्चा संभाले नजर आए. करीब 16 महीने पहले लालू यादव राहुल गांधी को मटन की रेसिपी सिखाते भी नजर आए थे, लेकिन अब लालू राहुल के विरोध में ममता का खुलकर समर्थन कर रहे हैं. आखिर क्यों?

कभी गांधी परिवार की मुश्किलों में साथ रहते थे लालू यादव, अब राहुल के विरोध में क्यों?

गांधी परिवार के मुश्किलों में साथ रहे लालू, अब राहुल के विरोध में क्यों?

ममता बनर्जी को इंडिया गठबंधन का अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए… इसकी पैरवी शरद पवार से लेकर सपा और शिवसेना (यूबीटी) के बड़े नेता तक कर चुके हैं, लेकिन लालू यादव के एक बयान ने दिल्ली से पटना और कोलकाता तक की सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है. पत्रकारों से बात करते हुए लालू ने कहा है कि ममता इंडिया की कमान संभालने में सक्षम है और कांग्रेस को इस पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

विपक्षी एकता बनाने में लालू की अहम भूमिका2022 में नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद लालू यादव विपक्षी एकता बनाने में जुट गए. नीतीश के साथ लालू पहले सोनिया गांधी से और फिर विपक्ष के अन्य नेताओं से मिले. इंडिया की सभी बड़ी बैठकों में लालू खुद मौजूद भी रहे.

लालू के नाम का प्रपोजल खुद नीतीश कुमार ने रखा था.

गांधी परिवार से लालू के बेहतरीन रिश्ते

1. लालू ने कहा था- सोनिया इंदिरा की बहूगांधी परिवार से लालू यादव के बेहतरीन सियासी संबंध है. 1999 में जब सोनिया गांधी के खिलाफ बीजेपी और कांग्रेस के कुछ नेताओं ने विदेश मूल का मुद्दा उठाया, तब लालू ने फ्रंटफुट पर आकर इसका बचाव किया.

लालू ने सोनिया को इंदिरा का बहू बताया और जमकर उनके समर्थन में पैरवी की. साल 2000 में लालू को इसका फायदा तब मिला, जब बिहार में अकेले बूते पर उसकी सरकार नहीं बन पा रही थी.

2. कांग्रेस के लिए संसद में संभाला था मोर्चा2004 में मनमोहन सिंह की सरकार में लालू यादव को रेल मंत्रालय का जिम्मा मिला. लालू के करीबी रघुवंश प्रसाद सिंह ग्रामीण विकास मंत्री बनाए गए. आरजेडी कोटे से 4 अन्य सांसद भी मंत्री बनाए गए.

2008 में जब सीपीएम ने न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर मनमोहन सिंह से समर्थन वापस ले लिया, तब लालू ने संसद में मोर्चा संभाला. संसद में मनमोहन सिंह के अविश्वास प्रस्ताव पर दिया गया लालू का भाषण आज भी वायरल है.

2009 में लालू अकेले मैदान में उतरे, लेकिन परफॉर्म नहीं कर पाए. हालांकि, केंद्र में मनमोहन की सरकार बन गई. लालू ने सरकार को बाहर से समर्थन देने का फैसला किया. लालू भले सरकार में नहीं थे, लेकिन कई मौकों पर गांधी परिवार और मनमोहन सिंह के लिए संकटमोचक बने.

3. राहुल को मटन रेसिपी सिखाते नजर आए लालूसाल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया, जिसमें कहा गया कि 2 साल या उससे ज्यादा सजा पाने वाले जन प्रतिनिधियों की सदस्यता चली जाएगी और वे चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ तत्कालीन केंद्र सरकार अध्यादेश लाने जा रही थी.

कहा जाता है कि यह अध्यादेश लालू यादव को ही बचाने के लिए लाया जा रहा था, लेकिन विरोध के बाद राहुल गांधी ने इसे फाड़ दिया. तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इस पर खूब किरकिरी भी हुई थी.

कांग्रेस जब विपक्ष में चली गई, तब भी लालू और गांधी परिवार के रिश्ते बने रहे. 2017 में लालू के जेल में जाने के बाद तेजस्वी और राहुल की एक तस्वीर सामने आई, जिसमें दोनों नेता डिनर कर रहे थे.

इतना ही नहीं, अगस्त 2023 में दिल्ली स्थित मीसा भारती के घर राहुल पहुंचे थे, जहां लालू ने उन्हें मटन की रेसिपी बनाना सिखाया था. लालू ने एक मंच से राहुल की शादी की भी बात छेड़ दी थी.

फिर ममता का नाम क्यों ले रहे लालू?सवाल यही है कि आखिर गांधी परिवार से बेहतरीन ताल्लुकात के बावजूद लालू यादव राहुल गांधी या कांग्रेस के किसी नेता का नाम न लेकर ममता बनर्जी के पक्ष में क्यों बोल रहे हैं?

इस सवाल के जवाब में आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी टीवी-9 भारतवर्ष से बात करते हुए कहते हैं- लालू जी का रिश्ता ममता बनर्जी से भी बेहतरीन है और ममता बनर्जी का रिश्ता भी गांधी परिवार से बढ़िया है. सवाल रिश्ते की नहीं, सियासी सिचुएशन की है.

तिवारी के मुताबिक 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को मिली सफलता के बाद बीजेपी का सियासी मनोबल गिर चुका था, लेकिन हालिया दो राज्यों में जिस तरीके से पार्टी ने जीत हासिल की है, उससे फिर फ्रंटफुट पर आ गई है.

शिवानंद तिवारी आगे कहते हैं- इंडिया गठबंधन में सबकी कोशिश बीजेपी को हराने की है. कांग्रेस भी यही कोशिश कर रही है. सभी चाहते हैं कि ऐसा नेता हो, जो मनोवैज्ञानिक तौर पर बीजेपी को मात दे सके.

लालू यादव की राजनीति को करीब 2 दशक से कवर करने वाले बिहार के वरिष्ठ पत्रकार बीरेंद्र यादव के मुताबिक राजनीति में रिश्ते अल्पकालीन ही होते हैं. सिनेरियो बदलते ही रिश्ते बदल जाते हैं. 2009 में लालू कांग्रेस गठबंधन तोड़कर चुनाव लड़ चुके हैं.

जानकार लालू के बयान को बिहार विधानसभा चुनाव से भी जोड़कर देखा रहे हैं. बिहार में अक्टूबर 2025 में विधानसभा के चुनाव होने हैं, जहां आरजेडी और कांग्रेस साथ मैदान में उतरने की तैयारी में है और दोनों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर अभी से पेच फंसा हुआ है.

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