डोनाल्ड ट्रंप एक ‘अबुझ पहेली’ ?

डोनाल्ड ट्रंप एक ‘अबुझ पहेली’: चीन के साथ तनातनी या तालमेल, भारत के पास कौन सा रास्ता?

डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले ली है. ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में ट्रेड वॉर छेड़ा था, जिसमें उन्होंने चीन पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे.

उदाहरण के लिए, ट्रंप ने 2018 में अचानक पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट (जलवायु समझौते) से अमेरिका को बाहर कर दिया. इससे पूरी दुनिया को हैरानी हुई. इसी तरह, उन्होंने अचानक ईरान न्यूक्लियर डील (JCPOA) से अमेरिका को हटा लिया, जबकि बाकी देशों ने इस समझौते को बनाए रखने की कोशिश की. किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन से सीधे मुलाकात नहीं की थी. लेकिन ट्रंप ने यह परंपरा तोड़ी और किम जोंग-उन से 2018 में सिंगापुर समिट के दौरान मिले. हालांकि, पहले उन्होंने किम को ‘रॉकेट मैन’ कहकर धमकाया था, लेकिन बाद में उनकी तारीफ करने लगे. यह अचानक बदलाव सबको चौंका गया.

ट्रंप ने चीन के खिलाफ कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए और ट्रेड वॉर छेड़ा, लेकिन साथ ही उन्होंने कई बार चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तारीफ भी की. यह विरोधाभास दिखाता है कि उनके रुख को पहले से समझना कठिन है.

ट्रंप के पहले कार्यकाल में चीन के साथ कैसे रहे संबंध
डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले ली है. ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में ट्रेड वॉर छेड़ा था, जिसमें उन्होंने चीन पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए और चीनी सामानों पर भारी शुल्क लगाया था. उन्होंने चीन को कोरोना वायरस महामारी के लिए भी जिम्मेदार ठहराया, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा था. ट्रंप का चीन के प्रति रुख हमेशा विरोधाभासी रहा है. दूसरी ओर, ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कई बार तारीफ की और उनके साथ व्यक्तिगत संबंधों को मजबूत करने की कोशिश की. 

वहीं, ट्रंप ने भारत के साथ अपने पहले कार्यकाल में मजबूत रिश्ते बनाए थे. ट्रंप ने चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत को एक महत्वपूर्ण साझेदार माना है. हालांकि, ट्रंप ने कई बार भारत पर व्यापार असंतुलन का आरोप लगाया और भारतीय उत्पादों पर शुल्क बढ़ाने की बात की. 

ट्रंप के अनिश्चित रवैये के कारण यह कहना मुश्किल है कि वे भारत और चीन में किसे प्राथमिकता देंगे. अगर ट्रंप चीन के साथ व्यापारिक सौदेबाजी करते हैं, तो भारत को अमेरिकी समर्थन में कमी महसूस हो सकती है. दूसरी ओर, चीन के साथ उनकी टकरावपूर्ण नीतियां भारत को अमेरिका के करीब ला सकती हैं.

अब आगे ट्रंप की चीन नीति से क्या रहने वाली है?
ट्रंप की चीन नीति समझने के लिए एबीपी न्यूज ने जवाहर लाल नहेरू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और चीन मामलों के विशेषज्ञ बीआर दीपक से बातचीत की. उन्होंने बताया कि जिस तरह से ट्रंप ने अपनी शपथ से पहले ही टिकटॉक पर बैन हटाने की बात कर दी. इससे ऐसा लगता है अब ट्रंप चीन के साथ अपने रिश्ते सुधारने की कोशिश करेंगे. क्योंकि चीन की सप्लाई चैन और प्रोडक्शन कैपेसिटी पूरी दुनिया में सबसे अच्छी है. वहीं अमेरिका एक बहुत बड़ा इंपोर्ट डेस्टिनेशन है. चीन के कुल एक्सपोर्ट का तीन फीसदी सामाना अमेरिका के मार्केट में जाता है. अमेरिका में ज्यादातर सामान चीन से ही आता है. अगर ट्रंप चीन से आयातित सामान पर एक्सस्ट्रा ड्यूटी लगाते भी हैं, तो इसका ज्यादा असर नहीं होगा. इसका बोझ तो सीधे अमेरिका के लोगों पर पड़ेगा. 

प्रोफेसर बीआर दीपक ने आगे कहा, “जब तक अमेरिका को चीन से फायदा होगा, तब तक ट्रंप अपने संबंध अच्छे बनाए रखने की कोशिश करेंगे. अमेरिकी सरकार में इस बार एलन मस्क भी शामिल हैं. मस्क भी चीन के पक्ष में ही हैं, क्योंकि उनके अपने ट्रेड इंटरेस्ट चीन के साथ जुड़े हैं. मस्क की अपनी कंपनियों की 80 फीसदी मैन्युफैक्चरिंग चीन में ही होती है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि व्यापारिक रिश्तों के कारण अमेरिका चीन पर ज्यादा दबाव नहीं बनाएगा. दबाव बनाएगा भी तो चीन भी लुभाने की पूरी कोशिश करेगा. जैसे- अमेरिका से कई मिलियन टन सोयाबीन खरीदना.” 

ट्रंप और चीन के बीच दोस्ती या खींचतान का भारत पर क्या होगा असर?
इस सवाल पर प्रोफेसर बीआर दीपक ने बताया कि अगर अमेरिका के चीन से संबंध सुधरते हैं तो भारत के लिए अच्छे नहीं होंगे. भारत और अमेरिका जब भी साथ मंच पर आते हैं, तो उसका दबाव चीन पर पड़ता है और चीन का भारत के प्रति रुख बदल जाता है. अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक संबंध अच्छे होते हैं तो इसका दुष्प्रभाव सीधे भारत पर पड़ेगा. इससे चीन की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है. चीन की अर्थव्यवस्था जितनी उभरती है, इसका उतना ही असर सीधे भारत पर पड़ता है. 

“80-90 के दशक में भारत और चीन की आर्थिक स्थिति जीडीपी, पर कैपिटा जैसे हर मामले में लगभग बराबर थी. लेकिन, क्योंकि अमेरिका ने चीन से अपने रिश्ते मजबूत करना शुरू कर दिए. इससे अमेरिका के सहयोगी देशों ने भी चीन में निवेश करना शुरू कर दिए. टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करना शुरू कर दिया. इससे भारत और चीन की आर्थिक क्षमता में काफी अंतर हो गया. चीन हर मामले में भारत से काफी आगे निकल गया. फिर चीन भारत को आंख दिखाने लगा. सीमा विवाद जैसे मुद्दों में दबाव बनाना शुरू कर दिया. जैसा कि पिछले 1-2 दशक में देखा गया है.”

भारत और चीन के बीच तालमेल के प्रमुख क्षेत्र

क्षेत्र विवरण
व्यापार और आर्थिक संबंध वित्त वर्ष 2024 में द्विपक्षीय व्यापार $118.40 बिलियन रहा; भारत का $16.65 बिलियन निर्यात और $101.74 बिलियन आयात. मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, सॉफ्टवेयर और कच्चे माल में परस्पर निर्भरता.
अवसंरचना और कनेक्टिविटी एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB) और न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) में सहयोग. चीन-कलकत्ता सेवा (CCS) का उद्घाटन व्यापार संपर्क बढ़ाने के लिये.
जलवायु परिवर्तन और नवीकरणीय ऊर्जा BASIC मंच पर सहयोग; भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 203.18 GW और चीन की 105 GW फोटोवोल्टिक (2022 तक). वर्ष 2030 तक 500 GW का लक्ष्य.
स्वास्थ्य और फार्मास्युटिकल सहयोग कोविड-19 के दौरान API और वैक्सीन आपूर्ति पर सहयोग. चीन 70% API भारत को आपूर्ति करता है.
पर्यटन और सांस्कृतिक समन्वय कैलाश मानसरोवर यात्रा और सांस्कृतिक समन्वय बढ़ाने के प्रयास. साझा बौद्ध विरासत.
विज्ञान और प्रौद्योगिकी AI, 5G, और अंतरिक्ष अनुसंधान में सहयोग. BRICS-STI फ्रेमवर्क के तहत संयुक्त अनुसंधान.
आतंकवाद विरोध और क्षेत्रीय स्थिरता SCO शांति मिशन अभ्यास और म्यांमार, अफगानिस्तान में उग्रवाद का समाधान.
अंतरिक्ष अन्वेषण भारत का 2035 तक अंतरिक्ष स्टेशन निर्माण का लक्ष्य; चीन का तियांगोंग स्टेशन.

 
भारत के लिए अमेरिका और चीन दोनों के साथ संतुलन बनाना कितना जरूरी है?
प्रोफेसर बीआर दीपक का कहना है कि भारत के लिए अमेरिका और चीन दोनों के साथ संतुलन बनाना जरूरी है, क्योंकि चीन और अमेरिका दोनों महाशक्ति देश हैं. चीन हमारा पड़ोसी देश भी है और पड़ोसी के साथ खराब रिश्ते होना अच्छी बात नहीं है. ऐसे में भारत को अच्छे संबंध के लिए नीति बनाना आवश्यक है. हालांकि भारत-चीन के रिश्ते अभी ऐसे हैं कि दोनों ही देशों को एक-दूसरे पर भरोसा करना मुश्किल है. सेना अध्यक्ष और केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के हालिया बयान से लगता है कि पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों के बीच विवाद अभी भी बना हुआ है, जबकि अक्टूबर 2024 में भारत और चीन के बीच एक समझौता हुआ था जिसमें पूर्वी लद्दाख के विवादित इलाकों में साल 2020 से पहले जैसी गश्त करने की स्थिति पर सहमति जताई गई थी.

उन्होंने आगे कहा, “हालांकि, अक्टूबर 2024 में ही रूस के कजान में ब्रिक्स समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की द्विपक्षीय बातचीत हुई. इसके बाद दिसंबर में एनएसए डोभाल ने चीन का दौरा किया. इसके बावजूद मुझे नहीं लगता है कि दोनों देशों को पूरी तरह से एक-दूसरे पर ट्रस्ट है.”

अब भारत चीन के साथ तालमेल कैसे बैठाए?
प्रोफेसर बीआर दीपक ने बताया, ‘भारत को चीन से व्यापारिक संबंध जारी रखने चाहिए, ताकि अपने देश को फायदा हो. चीन से सामान किसी न किसी रास्ते से भारत आता ही है और लोगों तक पहुंच ही जाता है. हमारा एक्सपोर्ट इसलिए कम होता है क्योंकि भारत की उतनी मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी होती नहीं है. अगर भारत को मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी बढ़ाने में किसी दुश्मन देश से भी मदद मिल पड़ रही है तो हमें जरूर लेना चाहिए.’

“आज दुनिया की 60 फीसदी सामान की मैन्युफैक्चरिंग चीन में होती है. चीन हमेशा से ही कूटनीति में बहुत अच्छा रहा है. जब उसके सोवियत संघ से रिश्ते खराब हो गए, तो अमेरिका से संबंध बनाने की शुरुआत कर दी थी. इस तरह वह अपना पलड़ा हमेशा ही मजबूत रखता है. भारत को ये सीखने की जरूरत है. खासकर एग्रीकल्चर सेक्टर में चीन ने बहुत तरक्की की है.”

चीन मामलों के जानकार प्रोफेसर ने कहा, ‘एग्रीकल्चर में चीन तरह-तरह के इक्युपमेंट्स और मशीनों का इस्तेमाल करता है. ये टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर भारत को बात करनी चाहिए. हालांकि, भारत में बेसिक बिजली, पानी जैसी समस्याएं नहीं सुधर सकी हैं. भारत में मैन्युफैक्चरिंग और ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट बहुत ज्यादा है. ये ग्लोबल एवरेज कोस्ट से 6 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. जबकि भारत में ग्लोबल एवरेज कोस्ट से 15 फीसदी से भी ज्यादा है. इसके अलावा, नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार भी एक बड़ी समस्या है. विदेशी कंपनियां यही सब चीजें देखकर किसी देश में निवेश करती हैं. हालांकि, ऐसा नहीं कहा सकता है कि विदेशी कंपनियां भारत में निवेश नहीं कर रही हैं, निवेश बिल्कुल हो रहा है लेकिन कम हो रहा है.’

ट्रंप की अनिश्चित नीतियां: क्या यह नीति का हिस्सा है या केवल उनका व्यक्तित्व?
इस सवाल पर प्रोफेसर बीआर दीपक ने कहा, ‘ये बात सही है कि ट्रंप नीतियां अक्सर अनिश्चित रहती हैं. अगर उन्हें किसी नीति से फायदा लगता है तो उसे अपनाते हैं, फायदा खत्म होते ही उस नीति को छोड़ देते हैं. ट्रंप ने शपथ लेते ही अमेरिका को विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO से बाहर निकालने के आदेश पर भी हस्ताक्षर कर दिए. क्योंकि उन्हें लगता है कि डब्ल्यूएचओ में रहने से अमेरिका को कुछ फायदा नहीं होता और उल्टा ही हर साल बिलियन डॉलर खर्च करना पड़ता है. इसलिए डब्ल्यूएचओ से हटने का ऐलान कर दिया. शायद, ये ट्रंप का व्यक्तित्व है. उन्हें लगता है कि ये अमेरिका के लिए ठीक है, तो वह ऐसा करते हैं.’

अब ये भी समझिए भारत और चीन को क्या चीजें जोड़ती हैं?
भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध काफी मजबूत हैं. दोनों देश एक-दूसरे से बहुत सारा सामान खरीदते-बेचते हैं. भारत को चीन से कई जरूरी चीजें मिलती हैं, जैसे कि मोबाइल फोन, कंप्यूटर और कई तरह के रसायन. वहीं, चीन को भारत से कच्चा माल जैसे लोहा, अयस्क और सॉफ्टवेयर सेवाएं मिलती हैं.

वित्त वर्ष 2024 में दोनों देशों के बीच का व्यापार बहुत ज्यादा बढ़ गया. दोनों देशों के बीच कुल व्यापार लगभग 118 अरब अमेरिकी डॉलर रहा. भारत ने चीन को लगभग 16.65 अरब डॉलर का सामान बेचा, जबकि भारत ने चीन से लगभग 101.74 अरब डॉलर का सामान खरीदा.

भारत और चीन मिलकर एशिया में बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं. इसके लिए वे अंतरराष्ट्रीय बैंकों जैसे एशियाई इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) और न्यू डेवलपमेंट बैंक के साथ मिलकर काम करते हैं. इन बैंकों से मिलने वाले पैसों का इस्तेमाल सड़कें, रेलवे और बंदरगाह बनाने जैसे कामों के लिए किया जाता है. हाल ही में जुलाई 2024 में चाइना कलकत्ता सर्विस शुरू हुई है. इससे भारत और चीन के बीच व्यापार को बढ़ावा मिलेगा और सामानों को जल्दी से एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जा सकेगा.

 

भारत-चीन संबंधों का संतुलन: संभावित समाधान

क्षेत्र सुझाव
विनिर्माण और आत्मनिर्भरता घरेलू उत्पादन और PLI योजनाएँ बढ़ाना.
हरित ऊर्जा में साझेदारी BRICS और इंडो-जर्मन ग्रीन हाइड्रोजन टास्क फोर्स जैसी साझेदारियों के माध्यम से सहयोग.
गैर-संवेदनशील क्षेत्रों में सहयोग EV विनिर्माण और कृषि AI में चीन के साथ संयुक्त उद्यम.
कूटनीतिक प्रयास सीमा वार्ता और बुनियादी ढाँचे के विकास में सामंजस्य.
विविध व्यापार साझेदारी ASEAN, दक्षिण कोरिया और अफ्रीका के साथ व्यापार साझेदारी.
साइबर और प्रौद्योगिकी सुरक्षा स्वदेशी IT और साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता देना.

 

भारत और चीन: जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए एक साथ
भारत और चीन दोनों देश जलवायु परिवर्तन से लड़ने और देश को आगे बढ़ाने के लिए साथ मिलकर काम कर रहे हैं. दोनों देशों का मानना है कि अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना, कार्बन उत्सर्जन कम करना और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पैसा जुटाना बहुत जरूरी है. पेरिस समझौते जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों में भी दोनों देश एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं.

चीन दुनिया में सबसे ज्यादा सौर ऊर्जा पैदा करता है. साल 2022 में चीन ने 105 गीगावाट से ज्यादा सौर ऊर्जा पैदा करने की क्षमता हासिल कर ली थी. भारत भी तेजी से अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है. साल 2024 तक भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता 203.18 गीगावाट हो गई है और भारत का लक्ष्य साल 2030 तक इसे 500 गीगावाट तक बढ़ाना है. ‘BASIC’ नाम के एक समूह में भारत, चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं. ये देश मिलकर स्वच्छ ऊर्जा के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता की मांग करते हैं.

भारत और चीन: विज्ञान और तकनीक में सहयोग
भारत और चीन दोनों देशों को पता है कि विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग बहुत जरूरी है. इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), स्पेस रिसर्च और 5G टेक्नोलॉजी जैसे सेक्टर शामिल हैं. हालांकि दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा भी है, लेकिन ‘ब्रिक्स साइंस, टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन (STI)’ जैसे मंचों के जरिए दोनों देश मिलकर शोध और विकास के काम में जुड़ सकते हैं.

चीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और 5G टेक्नोलॉजी में दुनिया का सबसे बड़ा देश है. वहीं, भारत आईटी सेवाओं के क्षेत्र में काफी आगे है. पिछले 5 सालों में भारत का सेवा निर्यात 13.91% की दर से बढ़ा है.

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