एक जिम्मेदार देश होने के नाते भारत को ऐसा ही कहना चाहिए था, क्योंकि हर देश को अपने यहां अवैध रूप से आए लोगों को निकालने का अधिकार है। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि अमेरिका कोई पहली बार अवैध अप्रवासियों को बाहर नहीं कर रहा है। यह काम ट्रंप के पहले के राष्ट्रपतियों ने भी किया है।

पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी अपने कार्यकाल में चार लाख से अधिक अवैध अप्रवासियों को बाहर निकाला था। इनमें कुछ भारतीय भी थे। निःसंदेह केवल इतना ही पर्याप्त नहीं कि भारत अवैध तरीके से अमेरिका गए अपने लोगों को वापस लेने को तैयार है। उचित यह होगा कि केंद्र सरकार राज्यों के सहयोग से यह देखे कि अवैध तरीके से विदेश भेजने वाले तत्वों पर लगाम कैसे लगे। ये तत्व लोगों को ठगने के साथ ही उन्हें मुसीबत में भी डालते हैं।

भारत सरकार को अपना वह तंत्र भी और सुगठित करना चाहिए, जिसकी सहायता से भारतीय नौकरी के लिए विदेश जाते हैं। इस तंत्र को सुगठित करने के साथ ही उन देशों से समझौते भी किए जाने चाहिए, जिन्हें कुशल-अकुशल कामगारों की आवश्यकता है। ऐसे देशों में अमेरिका भी है।

आज भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति अवैध अप्रवासियों को निकाल बाहर करने पर आमादा हों, लेकिन उन्हें यह आभास होना चाहिए कि विदेशी कामगारों के बिना उनका काम नहीं चल सकता। अच्छा होता कि डोनाल्ड ट्रंप थोड़ा उदार रवैया अपनाते और योग्य लोगों को अमेरिका में रहने की छूट देते। इससे भारतीय बड़ी संख्या में लाभान्वित होते, क्योंकि वे अपेक्षाकृत पढ़े-लिखे, अंग्रेजी समझने और कानून का पालन करने वाले होते हैं।

ट्रंप प्रशासन को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका मूलतः अप्रवासियों का देश है और यदि दूसरे देशों के लोग अवैध रूप से वहां आसानी से घुस जाते हैं तो उसकी अपनी खामी से।

भारत को अमेरिकी प्रशासन की उस खामी को तो इंगित करना ही चाहिए, जिसके चलते कुछ लोग उत्पीड़न की फर्जी कहानियां सुनाकर वहां शरण पा जाते हैं। इनमें से कुछ तो ऐसे हैं, जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। भारत को ट्रंप प्रशासन से यह भी कहना चाहिए कि आखिर जब अमेरिका को विदेशी कामगारों की आवश्यकता है तो फिर वह ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं करता कि भारतीय वहां आसानी से जा सकें?