एमपी के IAS अधिकारी एप अटेंडेंस के लिए तैयार नहीं ?
मध्यप्रदेश के प्रशासनिक मुख्यालय वल्लभ भवन में एप से अटेंडेंस का प्रयोग IAS अधिकारियों की बेरुखी के कारण अटक गया है। मंत्रालय में फेस अटेंडेंस सिस्टम को 1 जनवरी से लागू किया जाना था लेकिन ये 1 फरवरी से भी लागू नहीं हो पाया है। अधिकारियों के रजिस्ट्रेशन नहीं होने के चलते इसे फरवरी में भी लागू नहीं किया जा सका है।
हालात ये हैं कि जिन प्रशासनिक अधिकारियों पर व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी है, वह ही नई व्यवस्था का पालन नहीं कर रहे हैं। वल्लभ भवन में पदस्थ 50 से ज्यादा IAS में से सिर्फ 6 ही आधार बेस्ड फेस अटेंडेंस एप से हाजिरी लगा रहे हैं।
आईएएस को भी करनी होगी 8 घंटे नौकरी
प्रदेश में इनकम शो करने के बाद अब आईएएस अधिकारियों को काम पर आने-जाने का हिसाब भी देना होगा। आईएएस अधिकारियों को कर्मचारियों की तरह आठ घंटे की ड्यूटी पूरी करनी होगी और इसके लिए जियो टैगिंग बेस्ड एप पर हाजिरी लगानी होगी।
मंत्रालय से शुरू किए जा रहे फेस अटेंडेंस एप के माध्यम से हाजिरी लगाने की प्रक्रिया में कर्मचारियों के साथ सभी अधिकारियों को भी शामिल किया गया है। व्यवस्था को लागू करने वाले सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे बताते हैं कि हम केवल कर्मचारियों को इसमें शामिल नहीं कर रहे हैं, बल्कि प्रदेश में पहली बार आईएएस अधिकारियों को भी एप से हाजिरी लगानी होगी।

देश में पहली बार ऐसा सबसे बड़ा प्रयोग
प्रमुख सचिव दुबे बताते हैं कि इस तरह की अटेंडेंस प्रक्रिया देश का अपनी तरह का सबसे बड़ा प्रयोग है। अभी तक किसी राज्य ने आधार बेस्ड फेस रिकॉग्नाइजेशन से अटेंडेंस लगानी शुरू नहीं की है। यह बहुत सरल एप है, जो आधार से जुड़ा है।
इसे लागू करने वालों से लेकर अटेंडेंस लगाने वालों तक को न तो कोई इक्यूपमेंट खरीदना है, न ही डाटा ही अलग से इकट्ठा किया जाना है। बिना बड़े बजट के खर्च किए मंत्रालय के सभी अधिकारियों-कर्मचारियों की उपस्थिति एप के माध्यम से दर्ज हो रही है।
प्रदेश भर में लागू होगा एप बेस्ड अटेंडेंस सिस्टम
प्रदेश के मंत्रालय में इस तरह एप से अटेंडेंस लगाने का प्रयोग नए मुख्य सचिव अनुराग जैन के आने के बाद शुरू हुआ है। यह कहा जाता है कि प्रशासनिक मुखिया का विचार है कि सबसे पहले मंत्रालय में सभी अधिकारी-कर्मचारी एक व्यवस्था के तहत नियम से अपने ड्यूटी आवर्स पूरे करें, इसके बाद इस प्रयोग को पूरे प्रदेश में लागू किए जाने की योजना है।
इसकी पुष्टि करते हुए सामान्य प्रशासन के प्रमुख सचिव संजय दुबे कहते हैं कि जब मंत्रालय में एप से अटेंडेंस हो सकती है तो बाकी कार्यालयों में क्यों नहीं? हम इसे सफलतापूर्वक यहां लागू करेंगे। इसके बाद कलेक्टर कार्यालयों में और प्रदेश के अन्य कार्यालयों में ले जाया जाएगा।
इससे सरकारी कर्मचारियों की यह छवि सुधरेगी कि वे देर से दफ्तर आते हैं और जल्दी चले जाते हैं। जनता में छवि बेहतर होगी तो कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ेगी और प्रशासनिक कार्यों में गति आएगी।

अधिकारी ही बन रहे व्यवस्था में रोड़ा प्रशासनिक मुखिया भले ही बेहतर सोच के साथ नई व्यवस्था को लागू कर रहे हों, लेकिन इसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा प्रशासनिक अधिकारी ही बन रहे हैं। फरवरी के पहले सप्ताह तक 1266 कर्मचारी ऐसे थे, जो अटेंडेंस पोर्टल पर जाकर रजिस्ट्रेशन कर चुके हैं। वहीं, कुल रजिस्टर्ड डिवाइस 755 हैं यानी जिन्होंने अपने एंड्रॉयड डिवाइस में एप डाउनलोड कर लिया है। इनमें से आधे यानी करीब 350 प्रतिदिन इस एप से हाजिरी लगा रहे हैं, लेकिन मात्र 10 प्रतिशत अधिकारी ही इसका पालन कर रहे हैं।
सामान्य प्रशासन विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि मंत्रालय में करीब 50 आईएएस पदस्थ हैं। इनमें से छह ही एप की मदद से हाजिरी लगा रहे हैं। हाजिरी लगाने वालों में व्यवस्था को लागू करने वाले विभाग सामान्य प्रशासन के उप सचिव अजय कटेसरिया, वित्त विभाग के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी सहित उनके विभाग के आईएएस तन्वी सुंद्रियाल, राजीव मीणा, रोहित सिंह और लोकेश जाटव शामिल हैं। इसके अतिरिक्त पूरे मंत्रालय से इक्का-दुक्का आईएएस ही इस व्यवस्था का पालन कर रहे हैं।

200 रुपए महीने के भत्ते में कैसे आएं
मामले पर कर्मचारियों की राय मिली-जुली नजर आती है। वे सीधे तौर पर इसका विरोध तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन इस व्यवस्था को अपनाने की व्यवहारिक समस्याएं भी गिनाते हैं। मंत्रालय कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक बताते हैं कि अच्छा शासन वही चलाता है, जो सभी पक्षों को देखकर निर्णय करे। ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक पक्षीय निर्णय दे दिया।
अधिकारियों काे देखना चाहिए कि कर्मचारी ऑफिस कैसे आते हैं? उनकी परिवहन समस्या क्या है? पहले कर्मचारियों को जो भी परिवहन भत्ता मिलता था, उसी रुपए को निगम को ट्रांसफर कर एक मंथली पास बनाकर दे दिया जाता था। मंत्रालय के लिए बसें ऑफिस टाइम के अनुसार चलती थी। जो समय पर स्टाॅप पर नहीं पहुंचता था, उसकी बस छूट जाती थी। ऐसे में उस कर्मचारी को अपने रुपए खर्च करके आना होता था।
परिवहन निगम बंद होने के बाद कहा गया कि बस चलाएंगे, लेकिन कुछ नहीं हुआ। आज भी कर्मचारियों को पूरे महीने का 200 रुपए परिवहन भत्ता मिलता है। इतने में दो लीटर पेट्रोल नहीं आता तो कर्मचारी महीने भर कैसे आए। सरकार को हमारी व्यावहारिक समस्याएं सुननी चाहिए।

1 से 3.30 तक लंच पर चले जाते हैं आईएएस नायक बताते हैं कि कर्मचारियों के बारे में कहा जाता है कि वह शाम को जल्दी घर चले जाते हैं, लेकिन आईएएस बैठे रहते हैं। हकीकत कौन नहीं जानता, सभी आईएएस एक बजे लंच पर घर चले जाते हैं। साढ़े तीन बजे ही आते हैं। कोई मंत्रालय में लंच टाइम में आईएएस से मिलकर दिखा दे। उनके पास घोड़ा है, गाड़ी है, ड्राइवर है। कर्मचारी दो-तीन बसें बदलकर आता है।
