दिल्ली विधानसभा चुनाव…. बीजेपी के लिए दिल्ली क्यों नहीं आसान?
इन 4 पॉइंट से समझें बीजेपी के लिए दिल्ली क्यों नहीं आसान?
दिल्ली में 1993 से लेकर अब तक 7 बार विधानसभा के चुनाव हुए हैं. 2013 को छोड़ दिया जाए तो सिर्फ एक बार विधानसभा में किसी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है. 2013 में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी जरूर बनी थी, लेकिन बहुमत के आंकड़े से 4 कदम दूर रह गई थी.

दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद एग्जिट पोल का परिणाम भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में दिख रहा है. 11 में से 9 एग्जिट पोल के आंकड़ों ने राष्ट्रीय राजधानी में बीजेपी की सरकार बनने का दावा किया है. हालांकि, वोटिंग और मुद्दों को लेकर जो तस्वीरें दिख रही हैं, उससे बीजेपी के लिए आगे की राह आसान नहीं है.
दिल्ली में हंग असेंबली सिर्फ एक बारदिल्ली में 1993 से लेकर अब तक 7 बार विधानसभा के चुनाव हुए हैं. 2013 को छोड़ दिया जाए तो सिर्फ एक बार विधानसभा में किसी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है. 2013 में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी जरूर बनी थी, लेकिन बहुमत के आंकड़े से 4 कदम दूर रह गई थी. बीजेपी को इस चुनाव में 32 सीटों पर जीत मिली थी.
28 सीट जीतकर आप दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी. 8 सीटों वाली कांग्रेस के समर्थन से आम आदमी पार्टी ने सरकार का गठन कर लिया था. इसके बाद 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला.
बीजेपी के लिए राह आसान क्यों नहीं?1. 1993 के बाद बीजेपी को दिल्ली में जीत नहीं मिली है. 2013 और 2015 में बीजेपी की प्रचंड लहर पूरे देश में थी, लेकिन फिर भी पार्टी राष्ट्रीय राजधानी के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार गई. बीजेपी के भीतर सर्वमान्य चेहरे की भारी कमी है. पार्टी ने इस संकट से निपटने के लिए ब्रांड मोदी का इस्तेमाल किया था.
प्रधानमंत्री मोदी खुद मोदी की गांरटी के नाम पर वोट मांग रहे थे. दूसरी तरफ केजरीवाल अपने पुराने किए वादे और नई घोषणाओं के जरिए मैदान में थे. अब तक के जो आंकड़े रहे हैं, उसमें दिल्ली के करीब 25 फीसद वोटर्स मुख्यमंत्री के चेहरे को देखकर ही वोट करते हैं.
इतना ही नहीं, आप और बीजेपी के बीच सीट और वोटों का गैप भी बहुत ज्यादा है. बीजेपी को 2020 में 8 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि आप को 62 सीटों पर. वहीं आप को 53.57 प्रतिशत वोट मिले थे तो बीजेपी को 38 प्रतिशत वोट मिले थे.
2. दिल्ली में एग्जिट पोल के आंकड़े अमूमन गलत साबित होते रहे हैं. 2013 के एग्जिट पोल के आंकड़ों में बीजेपी की प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनने का दावा किया गया था. ओरआरजी ने इस चुनाव में बीजेपी को 41, निल्सन ने 37 सीटें दी थीं, वहीं अधिकांश सर्वे ने आप के दावे को खारिज किया था, लेकिन नतीजे इसके बिल्कुल उलट आए.
2015 और 2020 के चुनाव में भी दिल्ली को लेकर एग्जिट पोल गलत साबित हुए. 2015 में आम आदमी पार्टी को एग्जिट पोल में सबसे अधिक 53 सीटें दी गईं थीं, लेकिन जो नतीजे आए, उसने सबको चौंका दिया. आप ने इस चुनाव में 67 सीटों पर जीत दर्ज की.
2020 में भी आम आदमी पार्टी की सीटें कम होने का अनुमान सभी एग्जिट पोल ने व्यक्त किया था, लेकिन आप की सिर्फ 5 सीटें ही कम हुई. आप के बड़े नेता इन्हीं एग्जिट पोल के आंकड़ों का हवाला इस बार भी दे रहे हैं. सांसद संजय सिंह का कहना है कि एग्जिट पोल सही नहीं है.
3. दिल्ली में वोट कम होने का नुकसान आम आदमी पार्टी को जरूर हुआ है, लेकिन 2008 के बाद अब तक तभी सरकार बदली है, जब 5 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुए हैं. चुनाव आयोग के मुताबिक दिल्ली में 60 फीसद के करीब मतदान हुआ है, जो पिछली बार के 62.8 से काफी कम है. आखिरी डेटा में भी ज्यादा बढ़ोतरी की गुंजाइश नहीं दिख रही है.
यानी सरकार बदलने के लिए जो लोगों में गुस्सा होना था, वो नहीं दिखा. इतना ही नहीं, जिन इलाकों में वोटिंग ज्यादा हुई है, उनमें अधिकांश मुस्लिम इलाका ही है. दिल्ली के मुस्तफाबाद और सीलमपुर सीट पर सबसे ज्यादा मतदान हुआ है.
4. दिल्ली विधानसभा में 70 सीट हैं, जिसमें से 12 दलितों के लिए आरक्षित हैं. 8 सीटों पर मुसलमानों का दबदबा है. शुरुआत से ही इन सीटों पर बीजेपी की स्थिति काफी खस्ता हाल वाली रही है. बीजेपी को इन सीटों पर कांग्रेस के जरिए खेल की उम्मीद है लेकिन कांग्रेस ने जिस तरीके का कैंपेन किया है, उससे कहा जा रहा है कि इन सीटों पर ज्यादा उलटफेर हो, उसकी संभावना कम है.
आप के पक्ष में दलित और मुस्लिम बहुल वाली ये सीटें काफी अहम माना जा रहा है. आप अगर एकतरफा फिर से इन सीटों पर जीतती है तो बीजेपी के लिए सत्ता में पहुंचने की राह आसान नहीं होने वाली है.