छात्रों की आत्महत्या दर किसानों से भी ज्यादा ?
छात्रों की आत्महत्या दर किसानों से भी ज्यादा, फिर भी क्यों नहीं बढ़ रहा शिक्षा-स्वास्थ्य बजट?
एनसीआरबी के आंकड़े के अनुसार भारत में आत्महत्या के मामले हर साल 2% की दर से बढ़ रहे हैं. जबकि, छात्रों में आत्महत्या के मामलों की दर सालाना 4% से बढ़ी है.
भारत एक ऐसा देश है जहां युवा शक्ति का विशाल योगदान है, और यहां के छात्रों को भविष्य की उम्मीद और समाज के निर्माण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. हालांकि, इस उम्मीद को पूरा करने के लिए जरूरी है कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में पर्याप्त निवेश किया जाए, ताकि देश के बच्चे सही तरीके से शिक्षित हो सके और समाज में अपना योगदान दे सकें. हालांकि जब हम भारत के शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों की वास्तविक स्थिति पर नजर डालते हैं, तो जो तस्वीर उभरती है, वह किसी भी देश के लिए चिंताजनक हो सकती है.
हमारे देश के छात्र आज आत्महत्या के शिकार हो रहे हैं, और यह स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि केंद्र सरकार की एजेंसी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े के अनुसार साल 2024 में छात्रों की आत्महत्या की दर किसानों से भी ज्यादा हो गई है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में आत्महत्या के मामले हर साल 2% की दर से बढ़ रहे हैं. जबकि, छात्रों में आत्महत्या के मामलों की दर सालाना 4% से बढ़ी है.
देश में बढ़े छात्रों के आत्महत्या का ये आंकड़ा किसी भी समाज के लिए बेहद चिंताजनक है. दूसरी तरफ, स्वास्थ्य सेवाओं का भी हाल बहुत बुरा है. सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों की, डॉक्टरों और नर्सों की कमी, और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच का अभाव यह दर्शाता है कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को सरकार या समाज द्वारा उचित ध्यान और संसाधन नहीं मिल पा रहा है.
ऐसे में जब देश का रक्षा बजट लगातार बढ़ रहा है, तो शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए आवंटित बजट में वृद्धि क्यों नहीं हो रही?
छात्रों के आत्महत्या के डराने वाले आंकड़े
- साल 2021 में 13,089 छात्रों ने आत्महत्या की थी. इसकी तुलना में 2022 में छात्रों की आत्महत्या के 13,044 मामले सामने आए थे. 2021 के मुकाबले 2022 में नाममात्र की कमी आई थी.
- साल 2021 की तुलना में साल 2022 में आत्महत्या के मामलों में 4% की बढ़ोतरी दर्ज की गई. 2021 में 1.64 लाख लोगों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2022 में 1.70 लाख से ज्यादा लोगों ने खुदकुशी कर ली थी.
- देश में 2022 में जितने लोगों ने आत्महत्या की थी, उनमें से 7.6% छात्र थे. जबकि, खेती-बाड़ी से जुड़े लोगों की संख्या 6.6% थी. यानी, खेती-बाड़ी से जुड़े लोगों से ज्यादा छात्र ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं.
रक्षा बजट पर जोर, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए उपेक्षित बजट
भारत का रक्षा बजट पिछले एक दशक में दोगुना से भी ज्यादा बढ़ चुका है. साल 2015-16 में यह 2.46 लाख करोड़ रुपये था, जो 2025-26 में बढ़कर 6.8 लाख करोड़ रुपये हो गया है. यह वृद्धि निश्चित रूप से हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है, लेकिन अगर एक क्षेत्र में ज्यादा निवेश किया जा रहा है, तो क्या इसका मतलब यह है कि बाकी क्षेत्रों (जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य) को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जाए?
दरअसल पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने पर तो ध्यान दे रही है, लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे अहम क्षेत्रों के लिए बजट में उतनी वृद्धि नहीं हो रही है. उदाहरण के तौर पर, 2025-26 के बजट में शिक्षा के लिए सिर्फ 2.9% जीडीपी का आवंटन किया गया है, जबकि कोठारी आयोग ने यह सिफारिश की थी कि शिक्षा के लिए कम से कम 6% जीडीपी का बजट होना चाहिए.
शिक्षा और स्वास्थ्य के बजट में मामूली वृद्धि को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा सरकार की तरफ से देश के नागरिकों की बुनियादी जरूरतों जैसे अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, और सामाजिक कल्याण की ओर कम ध्यान दिया जा रहा है. यह समाज में असमानता और समस्याओं को जन्म देता है, क्योंकि इन दोनों क्षेत्रों का मजबूत होना ही राष्ट्र के समग्र विकास के लिए जरूरी है.
शिक्षा क्षेत्र का संकट और छात्रों की आत्महत्या की दर
भारत में शिक्षा क्षेत्र का संकट कोई नया नहीं है, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह संकट और भी गंभीर हो गया है. सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी, शिक्षक की भारी कमी, और छात्रों की बढ़ती संख्या ने शिक्षा की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित किया है. सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या 50:1 से भी ज्यादा हो चुकी है, जबकि क्लास में योग्य शिक्षक की संख्या भी कम होती जा रही है.
इस समस्या का सबसे बड़ा असर छात्रों पर पड़ रहा है. एकैडमिक दबाव, माता-पिता की उम्मीदें, और शिक्षा के प्रति समाज का बदलता नजरिया छात्रों पर भारी पड़ रहा है.
एनसीआरबी के रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 में भारत में 11,396 छात्रों ने आत्महत्या की थी. इसका मुख्य कारण शैक्षिक दबाव, परीक्षा का तनाव, और मानसिक स्वास्थ्य माना जा रहा है. सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य के लिए कई पहलें की हैं, लेकिन स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना और उपयुक्त समर्थन की कमी ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है.
ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की स्थिति और भी खराब है. वहां स्कूलों की संख्या कम है, शिक्षक की कमी है, और शिक्षा की गुणवत्ता भी बेहद खराब है. इसके अलावा, डिजिटल शिक्षा के लिए आवश्यक संसाधनों की भी कमी है, जिससे छात्रों के बीच एक डिजिटल विभाजन पैदा हो गया है.
स्वास्थ्य क्षेत्र की बिगड़ी स्थिति
स्वास्थ्य क्षेत्र में भी स्थिति कोई बेहतर नहीं है. भारत में अस्पतालों की संख्या काफी कम है और सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों की भारी कमी है. WHO के अनुसार हर 1,000 लोगों पर कम से कम 3.5 बेड होने चाहिए, लेकिन भारत में यह संख्या केवल 1.4 बेड प्रति 1,000 लोगों की है. सरकार अस्पतालों के आधुनिकीकरण और नई सुविधाओं के निर्माण के लिए धन आवंटित कर रही है, लेकिन यह राशि पर्याप्त साबित नहीं हो रही है.
इसके अलावा, सरकार द्वारा निर्धारित डॉक्टर और मरीज के बीच का अनुपात भी बहुत खराब है. भारत में डॉक्टरों का अनुपात 1:1,511 है, जबकि WHO के अनुसार यह अनुपात 1:1,000 होना चाहिए. इसका मतलब है कि भारत में प्रत्येक डॉक्टर के पास औसतन 1,511 मरीज हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार यह अनुपात 1 डॉक्टर पर 1,000 मरीज होना चाहिए.
यह स्थिति दर्शाती है कि भारत में डॉक्टरों की संख्या बहुत कम है, और एक डॉक्टर को कई मरीजों को देखना पड़ता है. इस उच्च अनुपात के कारण मरीजों को समय से इलाज नहीं मिल पाता और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर असर पड़ता है. WHO ने जो 1:1,000 का अनुपात सुझाया है, वह इस बात को सुनिश्चित करता है कि हर डॉक्टर के पास एक निर्धारित संख्या में मरीज हों, ताकि इलाज जल्दी और प्रभावी तरीके से किया जा सके. लेकिन भारत में यह अनुपात बहुत ज्यादा है, जो स्वास्थ्य क्षेत्र में गंभीर समस्या का संकेत है.
स्वास्थ्य, शिक्षा के बजट में गिरावट
- केंद्र सरकार ने साल 2018 से 2022 तक स्वास्थ्य के लिए कुल बजट का 2.47% से 2.22% आवंटित किया था. लेकिन साल 2023 से 2025 के दौरान यह आवंटन घटकर कुल बजट का 1.85% से 1.75% के बीच हो गया है.
- इसके अलावा साल 2017 से 2020 के बीच उच्च शिक्षा के लिए कुल बजट का 1.57% से 1.37% आवंटित किया गया था. जो कि साल 2021 से 2025 के बीच घटकर 1.27% से 0.88% के बीच रह गया है, यानी उच्च शिक्षा के लिए भी सरकार ने कम पैसा देना शुरू कर दिया है.
- स्कूल शिक्षा और सामाजिक कल्याण योजनाओं के लिए भी पहले जितना बजट था, अब वह कम हो गया है. आंकड़ों की मानें तो साल 2017-20 में सरकार ने स्कूली शिक्षा के लिए जो बजट आवंटित किया था वह कुल बजट का 2.18% से 1.96% था, लेकिन साल 2021 से 25 में यह घटकर 1.61% से 1.23% हो गया है. सामाजिक कल्याण योजनाओं के लिए पहले 1.89% से 1.61% था, अब वह घटकर 1.17% से 0.97% रह गया है.
सोर्स- एनसीआरबी
बजट आवंटन में असमानता का कारण
जब हम रक्षा, शिक्षा, और स्वास्थ्य के बजट आवंटन की तुलना करते हैं, तो यह साफ नजर आता है कि सरकार ने अभी भी अपनी प्राथमिकता रक्षा क्षेत्र को दी है. सरकार का कहना है कि रक्षा क्षेत्र में निवेश करने से राष्ट्रीय सुरक्षा में सुधार होगा.
बजट के आंकड़े यह साबित करते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए जो राशि आवंटित की गई है, वह पर्याप्त नहीं है. इस राशि का ज्यादातर हिस्सा पहले से चली आ रही योजनाओं और पेंशन के भुगतान में चला जाता है, और बहुत कम हिस्सा नई परियोजनाओं या सुधार के लिए बचता है. सरकार के द्वारा इन क्षेत्रों में दी गई धनराशि का सही इस्तेमाल और योजना पर अमल करने की जरूरत है, ताकि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में असली सुधार किया जा सके.
इन राज्यों में सबसे ज्यादा कर रहा छात्र आत्महत्या
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश, इन तीन राज्य में छात्रों के आत्महत्या के मामले सामने आ रहा है. इन राज्यों में छात्रों की आत्महत्या के एक-तिहाई मामले सामने आए हैं. इन तीन राज्यों में 2022 में साढ़े चार हजार से ज्यादा छात्रों की आत्महत्या के मामले सामने आए थे.
उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है और ये उन टॉप-5 राज्यों में शामिल है जहां छात्रों की आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं. उत्तर प्रदेश में साल 2022 में छात्रों की आत्महत्या के 1,060 मामले सामने आए थे. जबकि, राजस्थान में 571 मामले दर्ज किए गए थे.