300 से ज्यादा वर्षों तक भारत में शासन करने वाले मुगलों के अंत की शुरुआत कब और कैसे हुई?

300 से ज्यादा वर्षों तक भारत में शासन करने वाले मुगलों के अंत की शुरुआत कब और कैसे हुई?

भारत में मुगलों का शासन 300 साल ज्यादा वक्त तक चला. अकबर और शाहजहां के शासनकाल की स्वर्ण युग से तुलना की जाती है. अकबर के समय सभी धर्मों का सम्मान था, वहीं शाहजहां ने लालकिला और ताजमहल बनवाया.

मुगल शासन की शुरुआत और चरम
बाबर ने 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई इब्राहिम लोदी से जीतकर मुगल शासन शुरू किया. उसके बाद हुमायूं, अकबर, जहांगीर और शाहजहां आए.. अकबर (1556-1605) ने शासन को मजबूत किया. शाहजहां (1628-1658) ने ताजमहल बनवाया. लेकिन औरंगजेब (1658-1707) के समय से कमजोरी शुरू हुई. उसने सख्त नियम बनाए, जिससे मराठा, सिख और राजपूत नाराज हो गए. उसकी मृत्यु 1707 में हुई, जिसके बाद मुगल शासन टूटने लगा.

औरंगजेब के बाद की अराजकता
औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुर शाह प्रथम (1707-1712) आया, लेकिन वह कमजोर था. फिर मुहम्मद शाह (1719-1748) जैसे बादशाह आए, जो ऐशो-आराम में डूबे रहे. इतिहासकार जदुनाथ सरकार अपनी किताब ‘Fall of the Mughal Empire’ में लिखते हैं, “मुहम्मद शाह के समय मुगल शासन सिर्फ नाम का रह गया था. असली सत्ता दरबारियों और सेनापतियों के हाथ में थी.” इस कमजोरी से मराठा और बाहरी हमलावरों को मौका मिला.

मराठों का उदय और उनका योगदान
मराठों ने मुगल शासन को बहुत कमजोर किया. उनकी शुरुआत छत्रपति शिवाजी (1630-1680) से हुई. शिवाजी ने औरंगजेब के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ा. उन्होंने सूरत (1664) पर हमला किया और धन इकट्ठा करके और स्वतंत्र मराठा राज्य बनाया. इतिहासकार सतीश चंद्रा अपनी किताब *‘Medieval India’* में लिखते हैं, “शिवाजी ने मुगल सेना को दक्कन में उलझाकर उनकी ताकत कम की.” शिवाजी के बाद संभाजी (1680-1689), राजाराम (1689-1700), और ताराबाई (1700-1707) ने मुगलों से लड़े.

औरंगजेब की मृत्यु के बाद पेशवा बालाजी विश्वनाथ (1713-1720) ने मराठा शक्ति बढ़ाई. उनके बेटे बाजीराव प्रथम (1720-1740) ने दिल्ली के पास मुगलों को हराया. फिर बालाजी बाजीराव (1740-1761) ने 1758 में दिल्ली पर कब्जा किया. मराठों ने मुगल इलाकों से कर वसूलना बंद किया और उनकी साख खत्म हो गई. मराठा पश्चिमी भारत (महाराष्ट्र) से उभरे. इन्होंने मुगल शासन को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया. मराठों की ताकत की नींव छत्रपति शिवाजी ने रखी. इसके बाद उनके बेटे, पोते और पेशवाओं (मराठा नेता) ने इसे आगे बढ़ाया.

छत्रपति शिवाजी (1630-1680)
शिवाजी मराठा शक्ति के संस्थापक थे. वह बहुत बहादुर और चालाक योद्धा थे. उन्होंने औरंगजेब के खिलाफ लड़ाई शुरू की. 1659 में अफजल खान को हराया, जो मुगल सेना का बड़ा सेनापति था. 1664 में उन्होंने सूरत को लूटा, जो मुगल व्यापार का केंद्र था.1674 में शिवाजी ने खुद को छत्रपति घोषित किया और स्वतंत्र मराठा राज्य बनाया. उनकी गुरिल्ला युद्ध की शैली (छापामार लड़ाई) ने मुगलों को परेशान किया. शिवाजी की मृत्यु 1680 में हुई, लेकिन उन्होंने मराठों को मजबूत नींव दी. औरंगजेब को शिवाजी से लड़ने में बहुत ताकत लगानी पड़ी, जिससे मुगल शासन कमजोर हुआ.

संभाजी (1680-1689)
शिवाजी के बाद उनका बेटे संभाजी गद्दी पर आए वह भी बहुत बहादुर थे. उन्होंने औरंगजेब के खिलाफ लड़ाई जारी रखी. संभाजी ने दक्षिण भारत में मुगल इलाकों पर हमले किए. औरंगजेब ने उन्हें पकड़ने के लिए बड़ी सेना भेजी. 1689 में संभाजी को पकड़ लिया गया और मार दिया गया. लेकिन उनकी लड़ाई ने मुगलों को थकाया. औरंगजेब को दक्कन में 20 साल से ज्यादा समय बिताना पड़ा, जिससे दिल्ली कमजोर हुई.

राजाराम और ताराबाई (1689-1707)
संभाजी के बाद राजाराम छत्रपति बने. वह शिवाजी के छोटे बेटे थे. औरंगजेब ने मराठा राजधानी रायगढ़ पर कब्जा कर लिया, तो राजाराम दक्षिण में जिंजी चले गए. वहां से उन्होंने मुगलों से लड़ाई जारी रखी. राजाराम की मृत्यु 1700 में हुई. इसके बाद उनकी पत्नी ताराबाई ने नेतृत्व संभाला. ताराबाई बहुत साहसी थीं. उन्होंने औरंगजेब के खिलाफ छापामार हमले किए. औरंगजेब की मृत्यु 1707 में हुई, तब तक मराठा मुगल शासन को बहुत नुकसान पहुंचा चुके थे. ताराबाई ने मराठा राज्य को बचाया और मजबूत किया.

पेशवा बालाजी विश्वनाथ (1713-1720)
औरंगजेब की मृत्यु के बाद मराठा शक्ति पेशवाओं के हाथ में आई. पेशवा मराठा राजा का मुख्यमंत्री होता था. बालाजी विश्वनाथ पहला ताकतवर पेशवा था. उसने 1719 में मुगल बादशाह से एक समझौता किया. इस समझौते से मराठों को स्वराज (अपना राज्य) और चौथ (कर वसूलने का अधिकार) मिला.  इससे मराठों को मुगल इलाकों से पैसा मिलने लगा. बालाजी ने मराठा सेना को संगठित किया और उन्हें मुगल शासन के खिलाफ तैयार किया.

बाजीराव प्रथम (1720-1740)
बालाजी के बेटे बाजीराव प्रथम को सबसे महान मराठा सेनापति माना जाता है. उसने मुगल शासन को बहुत कमजोर किया. बाजीराव ने कहा, “हमारा लक्ष्य दिल्ली पर कब्जा करना है.” उसने मालवा, गुजरात और बंगाल जैसे मुगल इलाकों पर हमला किया. 1737 में उसने दिल्ली के पास लड़ाई लड़ी और मुगल सेना को हराया. बाजीराव की तेजी और रणनीति ने मुगलों को परेशान कर दिया. उसकी मृत्यु 1740 में हुई, लेकिन उसने मराठा शक्ति को बहुत बढ़ाया.

बालाजी बाजीराव (1740-1761)
बाजीराव के बेटे बालाजी बाजीराव ने पेशवाई संभाली. उसने मराठा साम्राज्य को और फैलाया. 1758 में मराठों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया. मुगल बादशाह उनके कब्जे में था. लेकिन 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई हुई. इसमें अहमद शाह अब्दाली ने मराठों को हराया. यह हार बड़ी थी, लेकिन मराठों ने हिम्मत नहीं हारी. इस लड़ाई से पहले मराठों ने मुगल शासन को लगभग खत्म कर दिया था.

मराठों का मुगल शासन पर असर
मराठों ने मुगल शासन को कई तरीकों से कमजोर किया। पहला, उन्होंने मुगल इलाकों पर कब्जा किया और कर वसूलना बंद कर दिया. दूसरा, उनकी छापामार लड़ाई ने मुगल सेना को थकाया. तीसरा, दिल्ली पर कब्जा करके उन्होंने मुगल बादशाह की साख खत्म की. चौथा, मराठों ने मुगल खजाने को लूटा, जिससे उनकी आर्थिक हालत खराब हुई. इन सबने मिलकर मुगल शासन को जड़ से कमजोर कर दिया.

नादिर शाह का हमला (1739)
मुगल शासन को पहला बड़ा झटका किसी बाहरी आक्रमणकारी के तौर पर नादिर शाह से लगा. वह फारस का शासक था. 1739 में उसने करनाल की लड़ाई में मुहम्मद शाह को हराया. फिर दिल्ली में लूटपाट की और कोहिनूर हीरा ले गया. जदुनाथ सरकार लिखते हैं, “नादिर शाह के हमले ने मुगल शासन की कमजोरी को दुनिया के सामने ला दिया.” इस हमले से मुगल खजाना खाली हो गया और लोग बादशाह से डरना बंद कर दिया.

अहमद शाह अब्दाली की भूमिका
अहमद शाह अब्दाली अफगानिस्तान का शासक था. वह नादिर शाह का सेनापति था और उसकी मृत्यु (1747) के बाद सत्ता में आया. अब्दाली ने 1748 से 1767 तक भारत पर कई हमले किए. उसकी भूमिका मुगल शासन को खत्म करने में बहुत अहम थी.

1. पहला हमला (1748): अब्दाली ने 1748 में पंजाब पर हमला किया. मुगल सेना हार गई. इससे पंजाब मुगलों के हाथ से निकल गया.
   
2. तीसरा हमला (1752): अब्दाली ने फिर पंजाब पर कब्जा किया और मुगल बादशाह अहमद शाह को मजबूर किया कि वह पंजाब उसे दे दे. इतिहासकार आर.सी. मजूमदार अपनी किताब ‘The History and Culture of the Indian People’* में लिखते हैं, “अब्दाली के हमलों ने मुगल शासन को उत्तर-पश्चिम में कमजोर कर दिया.”

3. पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761): यह अब्दाली का सबसे बड़ा हमला था. मराठा उस समय बहुत ताकतवर थे और दिल्ली पर कब्जा किए हुए थे. अब्दाली ने 14 जनवरी 1761 को पानीपत में मराठों से लड़ाई लड़ी. मराठा नेता बालाजी बाजीराव और उनके चचेरे भाई सदाशिवराव भाऊ इसमें शामिल थे. अब्दाली जीत गया. सतीश चंद्रा लिखते हैं, “पानीपत की लड़ाई ने मराठों को कमजोर किया, लेकिन मुगल शासन को कोई फायदा नहीं हुआ. अब्दाली ने दिल्ली को फिर लूट”.

4. आखिरी हमले (1764-1767): अब्दाली ने कई बार पंजाब और दिल्ली पर हमला किया. उसने मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय को अपने कब्जे में रखा. इससे मुगल शासन की साख और खत्म हुई.

अब्दाली के हमलों का असर यह हुआ कि मुगल शासन उत्तर-पश्चिम में खत्म हो गया. उसने मराठों को भी कमजोर किया, जो मुगलों के खिलाफ लड़ रहे थे. लेकिन अब्दाली भारत में नहीं रुका. वह लूटपाट करके अफगानिस्तान लौट गया. इससे दिल्ली में अराजकता बढ़ी, जिसका फायदा अंग्रेजों को मिला.

क्षेत्रीय शक्तियों का उभरना
मराठों और अब्दाली के हमलों के बाद बंगाल, हैदराबाद, अवध और सिखों ने अपनी सत्ता बनाई. इन सबने मुगल बादशाह को कर देना बंद कर दिया. इससे मुगल खजाना खाली हो गया.

अंग्रेजों का दखल
अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी के जरिए आए. 1757 में प्लासी की लड़ाई और 1764 में बक्सर की लड़ाई से उन्होंने मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय को अपने कब्जे में ले लिया. जदुनाथ सरकार लिखते हैं, “बक्सर की लड़ाई के बाद मुगल बादशाह अंग्रेजों का कठपुतली बन गया.” बादशाह को पेंशन मिलती थी, लेकिन सत्ता अंग्रेजों के पास थी.

1857 का विद्रोह और अंत
1857 में पहला स्वतंत्रता संग्राम हुआ. बहादुर शाह जफर को नेता बनाया गया. विद्रोह दिल्ली, लखनऊ और कानपुर में फैला. लेकिन अंग्रेजों ने इसे दबा दिया. जफर को रंगून भेजा गया, जहां 1862 में उनकी मृत्यु हुई. इसके साथ मुगल शासन खत्म हुआ.

ये माना जा सकता है कि मुगल शासन का अंत कई कारणों से हुआ. मराठों ने शिवाजी, संभाजी, ताराबाई, बाजीराव जैसे  योद्धाओं के दम पर इसे कमजोर किया. नादिर शाह और अहमद शाह अब्दाली के हमलों ने इसे तोड़ा. अब्दाली ने पानीपत में मराठों को हराया और दिल्ली को लूटा. क्षेत्रीय शक्तियों और अंग्रेजों ने आखिरी वार किया. 1857 में मुगल शासन का इतिहास खत्म हुआय. इतिहासकार सतीश चंद्रा कहते हैं, “मुगल शासन का अंत एक लंबी प्रक्रिया थी, जिसमें आंतरिक कमजोरी और बाहरी हमले दोनों शामिल थे.”

300  से ज्यादा वर्षों तक भारत में शासन करने वाले मुगलों के अंत की शुरुआत कब और कैसे हुई?

 

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