कैसे शहीद हुए थे क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद, किसने की थी मुखबिरी?
कैसे शहीद हुए थे क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद, किसने की थी मुखबिरी? पढ़ें पूरी कहानी
Chandra Shekhar Azad Death Anniversary: काकोरी कांड में पैसेंजर ट्रेन से अंग्रेजों का खजाना लुटने के बाद वो तिलमिला उठे और क्रांतिकारियों को ढूंढ़ा जाने लगा था. एक-एक कर क्रांतिकारी पकड़े गए और उनमें से कई को फांसी और कालापानी की सजा दी गई पर उस वक्त पांच हजार रुपए का इनाम रखने के बावजूद आजाद को अंग्रेज कभी जिंदा नहीं पकड़ पाए. आइए जान लेते हैं कि कैसे शहीद हुए थे चंद्रशेखर आजाद?

आजादी के दीवाने चंद्रशेखर आजाद की अगुवाई में साल 1925 में क्रांतिकारियों ने लखनऊ के पास काकोरी में आठ डाउन पैसेंजर ट्रेन से अंग्रेजों का खजाना लूट लिया था. इसके बाद अंग्रेज तिलमिला उठे और क्रांतिकारियों को ढूंढ़ा जाने लगा था. एक-एक कर क्रांतिकारी पकड़े गए और उनमें से कई को फांसी और कालापानी की सजा दी गई पर उस वक्त पांच हजार रुपए का इनाम रखने के बावजूद आजाद को अंग्रेज कभी जिंदा नहीं पकड़ पाए. आइए जान लेते हैं कि कैसे शहीद हुए थे चंद्रशेखर आजाद?
काकोरी कांड में अशफाकउल्ला, शतीद्रनाथ बख्शी, राजेंद्र लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, केशव चक्रवर्ती, मुरारी लाल, मुकुन्दी लाल, बनवारी लाल, मन्मथ नाथ गुप्त और चंद्रशेखर आजाद समेत कई क्रांतिकारी शामिल थे. इस घटना के 47 दिन बाद उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर छापे मारकर अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया था. इनमें से चार को फांसी पर लटका दिया और चार को कालापानी में उम्रकैद की सजा दी गई. 17 क्रांतिकारियों को लंबी कैद की सजा दी गई पर चंद्रशेखर आजाद और कुंदन लाल को अंग्रेजों की पुलिस पकड़ नहीं पाई.
अल्फ्रेड पार्क में पहुंचा अंग्रेज अफसरयह 27 फरवरी 1931 की बात है. इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के अल्फ्रेड पार्क में चंद्रशेखर आजाद अपने एक साथी सुखदेवराज के साथ बैठे थे. उसी समय पार्क के सामने सड़क पर आकर एक मोटर रुकी. उसमें से अंग्रेज अफसर नॉट बावर व दो सिपाही सादे कपड़ों में उतरे.
सुखदेवराज ने लिखा है कि मोटर खड़ी होने पर हमारा माथा ठनका. अंग्रेज अफसर हाथ में पिस्तौल लेकर सीधा हमारी ओर आ गया और पिस्तौल तान कर अंग्रेजी में पूछा कि तुम लोग कौन हो? यहां पर क्या कर रहे हो? उसके सवाल का जवाब हमने (आजाद और सुखदेवराज) गोली से दिया. हालांकि, तब तक अंग्रेज अफसर की पिस्तौल चल चुकी थी और उसकी गोली आजाद की जांघ में लग गई. आजाद की चलाई गोली अंग्रेज अफसर के कंधे में लगी थी.
आजाद ने भागने के लिए कहाइसके बाद दोनों ओर से गोलियां चलने लगीं. अंग्रेज अफसर ने पार्क में लगे मौलश्री के पेड़ की आड़ ले ली. उसके साथी सिपाही नाले में छिप गए. आजाद और सुखदेवराज ने जामुन के पेड़ की ओट ली. इसी बीच आजाद ने कहा कि उनकी जांघ में गोली लगी है और तुम (सुखदेवराज) यहां से निकल जाओ. सुखदेवराज ने लिखा है कि चंद्रशेखर आजाद के आदेश पर वह भाग निकले और पार्क के बाहर एक लड़के को पिस्तौल दिखाकर साइकिल छीन ली. उससे चांद प्रेस पहुंच गए.
डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ने आजाद को देखा थाविश्वनाथ वैशम्पायन की किताब है अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद. इसमें उन्होंने लिखा है कि डिप्टी सुपरिंटेंडेंट विश्वेश्वर सिंह ने सबसे पहले एक व्यक्ति को देखा और उसको उस व्यक्ति पर आजाद होने का शक हुआ जो काकोरी कांड से फरार थे और उनके सिर पर पांच हजार का इनाम था. विशेश्वर सिंह ने इस बारे में सीआईडी के लीगल एडवाइज़र डालचंद के बारे में बताया था. सुबह आठ बजे डालचंद अपने अर्दली सरनाम सिंह के साथ पुष्टि करने गया था कि विशेश्वर सिंह ने जिसे देखा, वह आजाद हैं या नहीं. उसे विश्वास हो गया कि पार्क में आजाद ही हैं तो सरनाम सिंह को अंग्रेज अफसर नॉट बावर को बुलाने भेज दिया.
नॉट बावर ने की थी घटना की पुष्टिनॉट बावर ने एक प्रेस वक्तव्य में कहा भी था कि अपने साथ मैं कॉन्स्टेबल मोहम्मद जमान और गोविंद सिंह को लेकर गया था. कार खड़ी कर अल्फ्रेड पार्क में उन लोगों की तरफ बढ़ा, जिनमें से एक के आजाद होने का शक था. उनसे सिर्फ दस गज की दूरी पर था और उनसे पूछा कि कौन हैं? जवाब में दोनों ने पिस्तौल से मुझ पर गोली चला दी. मैंने भी गोली चलाई और मैग्जीन निकालकर भर रहा था, तभी आजाद की चलाई गोली के कारण बाएं हाथ से मैग्जीन छूट गई और एक पेड़ की ओर मैं भागा. तब तक विशेश्वर सिंह भी रेंगकर झाड़ी में पहुंच गए और आजाद पर गोली चला दी. जवाबी कार्रवाई में आजाद की गोली विशेश्वर सिंह के जबड़े में जा लगी.
पास जाने की नहीं पड़ी थी हिम्मतनॉट बावर ने बताया था कि जब भी मैं दिखाई देतास आजाद गोली चला देते. आखिर में वह पीठ के बल गिर गए. तभी एक कॉन्स्टेबल एक शॉट गन लेकर आया. यह पता नहीं था कि आजाद जिंदा हैं मर चुके. इसलिए मैंने कॉन्स्टेबल को आजाद के पैर पर निशाना साधने को कहा. कॉन्टेस्बल के गोली चलाने के बाद मैं पास गया तो आजाद मर चुके थे और उनका साथी भाग गया था. तब तक एसपी मेजर्स को गोलीबारी की सूचना मिल चुकी थी और उसने सशस्त्र रिजर्व पुलिस के जवानों को अल्फ्रेड पार्क भेजा पर मुठभेड़ खत्म हो चुकी थी. नॉट बावर की हिदायत पर आजाद की लाश ली गई तो उनके पास 448 रुपए और 16 गोलियां मिली थीं.
पेड़ों और कार पर लगी थीं गोलियांआजाद और नॉट बावर जिन पेड़ों की ओट में थे, उन पर गोलियों के निशान मिले थे. नॉट बावर की कार में गोलियां लगने से तीन छेद हो गए थे. सिविल सर्जन लेफ्टिनेंट कर्नल टाउनसेंड ने आजाद का पोस्टमार्टम किया था. उनके दाहिने पैर में नीचे की ओर गोलियों के दो घाव थे. गोलियां लगने से उनकी टीबिया बोन भी फ़्रैक्चर हो गई थी. एक गोली आजाद की दाहिनी जांघ से निकल गई थी. एक गोली सिर के दाहिनी ओर से दिमाग में लगी थी. एक और गोली दाहिने कंधे को पार कर दाहिने फेफड़े में जाकर फंस गई थी. आजाद का अंतिम संस्कार रसूलाबाद घाट पर किया गया था.