क्या क्विक कॉमर्स टिकाऊ बिजनेस मॉडल है या सिर्फ एक ट्रेंड?

10 मिनट डिलीवरी: क्या क्विक कॉमर्स टिकाऊ बिजनेस मॉडल है या सिर्फ एक ट्रेंड?

10 मिनट डिलीवरी यानी क्विक कॉमर्स, आज के दौर में काफी चर्चा में है. लेकिन क्या ये सिर्फ एक ट्रेंड है या सच में एक टिकाऊ बिजनेस मॉडल भी है?

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास समय की कमी है. ऐसे में क्विक कॉमर्स ने शहरों में खरीदारी के तरीकों को बदल दिया है, अब मिनटों में डिलीवरी हो जाती है. 10 मिनट या उससे भी कम समय में ग्रॉसरी और जरूरी सामान की डिलीवरी की सुविधा लोगों को काफी पसंद आ रही है. इसका ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है.

कंपनियां इस मॉडल पर भारी निवेश भी कर रही हैं, ग्राहकों को तेजी से ऑर्डर डिलीवर करने का वादा कर रही हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या कंपनियां इससे लंबे समय में मुनाफा कमा पाएंगी? इसे समझने के लिए इसके बिजनेस मॉडल, फायदे, चुनौतियां और भविष्य को समझना होगा.

पहले जानिए- आजकल कैसे हो रही है खरीदारी?
नील्सनआईक्यू नाम की एक कंपनी के सर्वे के मुताबिक, शहरों में रहने वाले 41% लोग बड़े मॉल्स या सुपरमार्केट से खरीदारी करना पसंद करते हैं, 25% लोग आम दुकानों से, 22% लोग ऑनलाइन और 12% लोग तुरंत डिलीवरी वाले ऐप से.

डेलॉइट नाम की एक और कंपनी के मुताबिक, बड़े FMCG ब्रांड्स की ऑनलाइन बिक्री में क्विक कॉमर्स का हिस्सा दोगुना हो गया है. अब उनकी ऑनलाइन बिक्री का लगभग 35% हिस्सा क्विक कॉमर्स से आता है.

डेलॉइट के एक और सर्वे (2024) में यह भी देखा गया कि लोग खाने-पीने का सामान खरीदने के लिए ऑनलाइन से ज्यादा तुरंत डिलीवरी वाले ऐप को पसंद करते हैं. क्योंकि ये चीजें अक्सर ‘तुरंत खरीदने वाली’ या ‘तुरंत जरूरत वाली’ होती हैं. वहीं, घर, ब्यूटी और पर्सनल केयर के सामान को लोग ऑनलाइन खरीदना ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि ये चीजें आमतौर पर सोच-समझकर खरीदी जाती हैं.

10 मिनट डिलीवरी: क्या क्विक कॉमर्स टिकाऊ बिजनेस मॉडल है या सिर्फ एक ट्रेंड?

बड़े मॉल्स और सुपरमार्केट अभी भी हर तरह के सामान के लिए लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं. क्योंकि वहां महीने भर का राशन एक साथ बड़े पैक में मिल जाता है. साथ ही कीमतें और डिस्काउंट भी बेहतर होते हैं.

भारत में क्विक कॉमर्स कितना बढ़ा मार्केट
भारत में क्विक कॉमर्स बाजार तेजी से बढ़ रहा है. क्विक कॉमर्स बाजार से 2025 में 5.38 अरब अमेरिकी डॉलर की कमाई होने का अनुमान है. 2025 से 2029 तक इस बाजार में हर साल 16.60% की वृद्धि होने की उम्मीद है. इसका मतलब है कि 2029 तक बाजार का आकार 9.95 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा.

2029 तक क्विक कॉमर्स के ग्राहकों की संख्या 6.06 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है. 2025 में देश की 2.7% आबादी क्विक कॉमर्स का इस्तेमाल करेगी, और 2029 तक यह आंकड़ा 4.0% तक पहुंच जाएगा. हर यूजर से औसतन 137.20 अमेरिकी डॉलर की कमाई होने का अनुमान है. 

क्विक कॉमर्स कैसे काम करता है?
क्विक कॉमर्स मतलब फटाफट शॉपिंग. ये ई-कॉमर्स का ही एक टाइप है, जिसमें ग्राहक को 10-20 मिनट में सामान घर पर मिल जाता है. इसके लिए कंपनियां ‘डार्क स्टोर्स’ बनाती हैं. ये आम दुकानों की तरह नहीं होते, बल्कि गोदाम जैसे होते हैं, जहां लोग आकर खरीदारी नहीं कर सकते. यहां से सिर्फ ऑनलाइन ऑर्डर पैक करके भेजे जाते हैं. ये गोदाम ग्राहकों के घर के आस-पास होते हैं, ताकि जल्दी डिलीवरी हो सके.

क्विक कॉमर्स ऐप से चलता है. ऐप में ग्राहक का डेटा जमा होता रहता है, जिससे कंपनी को पता चलता है कि ग्राहक को क्या चाहिए. इससे कंपनी ग्राहक की पसंद के हिसाब से सामान दिखाती है और स्टॉक रखती है.

जैसे, अगर किसी इलाके में अचानक किसी चीज की डिमांड बढ़ जाती है या कोई चीज मौसम के हिसाब से ज्यादा बिकती है तो कंपनी को डेटा से पता चल जाता है और वो ज्यादा स्टॉक मंगा लेती है. 

10 मिनट डिलीवरी: क्या क्विक कॉमर्स टिकाऊ बिजनेस मॉडल है या सिर्फ एक ट्रेंड?

गलत तरीके से बिजनेस कर रही हैं क्विक कॉमर्स कंपनियां?
हाल ही में देशभर के FMCG (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) सामान बेचने वालों और डिस्ट्रीब्यूटर्स की एसोसिएशन (AICPDF) ने ब्लिंकिट, जेप्टो और स्विगी इंस्टामार्ट जैसी क्विक कॉमर्स कंपनियों पर आरोप लगाया है कि ये लोग गलत तरीके से बिजनेस कर रहे हैं. ऑल इंडिया कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन (AICPDF) नाम की संस्था 1.3 करोड़ व्यापारियों और 8 लाख ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूटर्स का प्रतिनिधित्व करती है.

शिकायत में कहा गया है कि ये कंपनियां जानबूझकर लागत से भी कम दाम पर सामान बेचती हैं, ताकि उनके जैसे छोटे दुकानदार बाजार से बाहर हो जाएं. जब ये कंपनियां अकेले बचेंगी, तो दाम बढ़ा देंगी. इन कंपनियों के पास बहुत पैसा है, जो उन्हें बड़े निवेशकों से मिला है. इसलिए, ये कम दाम पर भी सामान बेच सकती हैं, जबकि छोटे दुकानदार ऐसा नहीं कर सकते. 

आरोप लगाया कि ये कंपनियां ऐप के डेटा का इस्तेमाल करके ग्राहकों से अलग-अलग दाम वसूलती हैं. मतलब, ग्राहक जहां रहता है या जैसा फोन इस्तेमाल करता है, उस हिजाब से ज्यादा पैसे लिए जाते हैं. छोटे दुकानदार इन कंपनियों से मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए उनकी दुकानें बंद हो रही हैं और उन्हें नुकसान हो रहा है. उन्होंने CCI से इन कंपनियों की जांच करने की मांग की है. इससे पहले भी ई-कॉमर्स कंपनियों पर ऐसे आरोप लग चुके हैं.

सिर्फ क्विक कॉमर्स कंपनियां ही नहीं, बल्कि फूड डिलीवरी कंपनियां जैसे स्विगी और ज़ोमैटो पर भी आरोप है कि वे गलत तरीके से कुछ रेस्टोरेंट को फायदा पहुंचाती हैं, जिससे दूसरों को नुकसान होता है. AICPDF ने पहले भी सरकार से इसकी शिकायत की थी, और अब CCI में भी मामला दर्ज कराया है.

क्विक कॉमर्स: सिर्फ सुविधा नहीं, चुनौतियां भी हैं!
क्विक कॉमर्स सिर्फ सुविधा ही नहीं लाता, बल्कि कुछ समस्याएं भी पैदा करता है. क्विक कॉमर्स के बढ़ने से सिंगल-यूज प्लास्टिक का कचरा बढ़ता है. डिलीवरी के लिए इस्तेमाल होने वाली बाइक्स से प्रदूषण भी बढ़ता है, हालांकि कुछ कंपनियां इलेक्ट्रिक बाइक्स भी इस्तेमाल करती हैं. वहीं, डिलीवरी एजेंटों को कम पैसे मिलते हैं, उन पर जल्दी डिलीवरी करने का बहुत दबाव होता है.

क्विक कॉमर्स का विकास ज्यादातर बड़े शहर महानगरों (टायर-1) में ही हो रहा है. टायर-2 और टायर-3 सिटीज में इसे बढ़ने में दिक्कत आ रही है, क्योंकि वहां डिजिटल अपनाने की दर कम है, मांग कम है और डिलीवरी में भी परेशानी होती है. इसलिए, इसका फायदा ज्यादातर बड़े शहरों तक ही सीमित है.

10 मिनट डिलीवरी: क्या क्विक कॉमर्स टिकाऊ बिजनेस मॉडल है या सिर्फ एक ट्रेंड?

क्विक कॉमर्स को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है?
क्विक कॉमर्स को बेहतर बनाने के लिए कुछ तरीके अपनाए जा सकते हैं. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) को यह देखना चाहिए कि क्विक कॉमर्स कंपनियां गलत तरीके से दाम न बढ़ाएं और बाजार में अपनी मनमानी न करें. सरकार को एक अलग संस्था बनानी चाहिए जो इन कंपनियों पर नजर रखे, ताकि ग्राहकों के डेटा की सुरक्षा हो और सभी को बराबर मौका मिले.

क्विक कॉमर्स कंपनियों को छोटी दुकानों (किराना स्टोर) से मुकाबला करने की बजाय उनके साथ मिलकर काम करना चाहिए. वे छोटी दुकानों को गोदाम की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं, इससे छोटी दुकानों को भी फायदा होगा और डिलीवरी भी जल्दी होगी. सरकार ऐसी नीतियां बना सकती है जिससे क्विक कॉमर्स कंपनियां और छोटी दुकानें मिलकर काम करें. इससे तकनीक का फायदा भी होगा और छोटी दुकानें भी चलती रहेंगी.

क्विक कॉमर्स को बेहतर बनाने के लिए सरकार को ONDC जैसी योजनाओं को बढ़ावा देना चाहिए. ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) छोटे दुकानदारों को बड़े क्विक कॉमर्स कंपनियों पर निर्भर हुए बिना डिजिटल प्लेटफॉर्म तक पहुंचने में मदद कर सकता है. मतलब, छोटी दुकानें भी ऑनलाइन सामान बेच सकेंगी.

क्विक कॉमर्स की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है और आगे भी बढ़ने का अनुमान है. हालांकि, इसे टिकाऊ और लंबे समय तक प्रोफिटेबल बनाने के लिए कंपनियों के सामने कई चुनौतियां हैं. इसलिए, यह कहना मुश्किल है कि क्विक कॉमर्स सिर्फ एक ट्रेंड है या टिकाऊ बिजनेस मॉडल, क्योंकि यह अभी भी विकसित हो रहा है.

 

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