चुप क्यों है बीजेपी ?
बिहार के सीएम नीतीश कुमार की अजीब हरकतों ने उनकी तबीयत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 20 मार्च को पटना के एक कार्यक्रम में राष्ट्रगान बजने के दौरान ही वो हंसी-ठिठोली करते दिखे। प्रधान सचिव दीपक कुमार ने हाथ देकर सावधान मुद्रा में रहने का इशारा किया तो नीतीश पत्रकारों को प्रणाम करने लगे। पूर्व सीएम रबड़ी देवी ने कहा कि अगर नीतीश का दिमाग खराब है, तो उन्हें गद्दी छोड़कर अपने बेटे को सीएम बनाना चाहिए।
74 साल के नीतीश कुमार क्या वाकई अस्वस्थ हैं, अगर पद छोड़ते हैं तो बिहार की राजनीति में क्या असर होगा और नेताओं के रिटायरमेंट की उम्र क्यों नहीं होती; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…
सवाल-1: पिछले कुछ वक्त से नीतीश कुमार की कौन-सी अटपटी हरकतें चर्चा में रहीं?
जवाब: सबसे लेटेस्ट तो 20 मार्च की ही घटना है। जब नीतीश कुमार ने पाटलिपुत्र खेल परिसर में राष्ट्रगान को शुरू होने से पहले रुकवा दिया। नीतीश ने मंच से इशारों में कहा, ‘पहले स्टेडियम का चक्कर लगाकर आते हैं, फिर शुरू कीजिएगा।’ CM का संकेत मिलते ही मंत्री विजय चौधरी ने राष्ट्रगान बंद करा दिया। फिर से राष्ट्रगान शुरू हुआ, लेकिन नीतीश अजीब हरकतें करते रहे।

CM नीतीश कुमार के अटपटे व्यवहार की झलकियां पहले भी नजर आ चुकी हैं…
- 15 मार्च 2025 को पटना में होली मिलन समारोह के दौरान नीतीश कुमार BJP सांसद रविशंकर प्रसाद के पैर छूने के लिए झुके। हालांकि BJP सांसद ने मुख्यमंत्री को रोक दिया। पास खड़े JDU के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने भी CM का हाथ पकड़ा। इसके बाद नीतीश कुमार ने रविशंकर को गले लगा लिया। नीतीश कुमार रविशंकर प्रसाद से 4 साल बड़े हैं।
- नीतीश कुमार ने 2 बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैर छूने की कोशिश की थी। पहली बार 7 जून 2024 को, जब दिल्ली में लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद NDA की बैठक हुई थी। दूसरी बार 13 नवंबर 2024 को जब PM मोदी दरभंगा AIIMS के शिलान्यास कार्यक्रम में आए थे। इस दौरान अपना भाषण खत्म कर CM अपनी कुर्सी की ओर जा रहे थे। बीच में रुके और PM मोदी के पैर छू लिए।
- 30 जनवरी 2025 को पटना में भी बापू के लिए श्रद्धांजलि सभा का आयोजन हुआ। यहां CM नीतीश महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने के बाद ताली बजाने लगे। विधानसभा स्पीकर नंदकिशोर यादव ने उन्हें रोका।

- 30 नवंबर 2024 को विधानसभा के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन नीतीश कुमार सदन में भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी के ब्रेसलेट से खेलने लगे। CM का ये अंदाज देकर मंत्री अशोक चौधरी भी अपनी हंसी नहीं रोक पाए।
- 15 अक्टूबर 2024 को गांधी मैदान में दशहरा पर रावण वध समारोह का आयोजन हुआ। इसमें नीतीश ने रावण पर चलाने के लिए दिए गए तीर-धनुष को फेंक दिया।
- 21 सितंबर 2024 को नीतीश कुमार मंत्री अशोक चौधरी के कंधे पर सिर रखकर उनसे लिपट गए थे। CM ने कहा था- ‘हम इनसे बहुत प्रेम करते हैं।’

सवाल-2: नीतीश कुमार के व्यवहार पर बिहार की राजनीति में क्या हंगामा मचा है?
जवाबः नीतीश कुमार के इस तरह के व्यवहार को विपक्ष ने मानसिक बीमारी बताया और इस्तीफे की मांग की। बिहार विधानसभा में भी हंगामा हुआ…
- लालू यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, ‘राष्ट्रगान का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान। बिहारवासियों, अब भी कुछ बचा है?’
- राबड़ी देवी ने विधानसभा में कहा, ‘अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दिमाग खराब है, तो उनको गद्दी छोड़नी चाहिए और अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए। बेटा नहीं बनता तो किसी दूसरे अपने को कुर्सी सौंप दें।’
- नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा- ‘बिहार के लिए कल काला दिवस था। PM मोदी के लाडले CM ने राष्ट्रगान का अपमान किया है। लाडले CM पर PM क्या कहेंगे? भारत माता की जय करने वाले बीजेपी के दोनों डिप्टी CM गायब हैं। CM नीतीश कुमार को रिटायरमेंट ले लेना चाहिए। राष्ट्रगान को अपमान करने वाले को तीन साल की सजा होती है।’
- जनसुराज के प्रशांत किशोर ने कहा कि नीतीश कुमार का मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है। यह बात पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह भी जानते हैं, लेकिन वोट के लालच में कुछ नहीं कर रहे हैं। नवंबर 2023 में बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने विधानसभा में कहा था कि नीतीश किसी गंभीर मानसिक बीमारी के शिकार हैं। ऐसे शख्स के भरोसे पूरा बिहार छोड़ा हुआ है।
सवाल-3: क्या नीतीश कुमार वाकई मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं?
जवाबः सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई का कहना है, ‘नीतीश की छवि बेहद कसे हुए और सधे नेता की रही है। वो बहुत सोच-समझकर बोलते रहे हैं। उनके पुराने भाषणों में एक हनक होती थी। अब उनकी पब्लिक स्पीच टुकड़ों में होती है। अगर लिखा हुआ भाषण नहीं है, तो उन्हें वाक्य पूरा करने में तकलीफ होती है। पिछले कुछ समय से लगातार उनके बदले व्यवहार को देखकर मन में स्वास्थ्य को लेकर कई तरह के सवाल आते हैं।’

हाल के कुछ महीनों में नीतीश कुमार को JDU और BJP नेता बहुत ‘गार्डेड’ रखते हैं यानी उनका सुरक्षा पहरा बहुत सख्त होता है। नीतीश के साथ ज्यादातर समय JDU नेता विजय कुमार चौधरी दिखते हैं। प्रगति यात्रा के दौरान उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी उनके साथ कई मौकों पर दिखे। नीतीश कुमार जैसे ही बोलना शुरू करते, सम्राट चौधरी कहते, ‘चलिए ना सर, हो गया।’
मानवाधिकार संगठन PUCL से जुड़े और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर रहे पुष्पेंद्र कहते हैं,
हम लोग जब नौकरी के लिए जाते हैं, PhD आदि के लिए अप्लाई करते हैं तो हमें अपनी मेंटल फिटनेस का सर्टिफिकेट देना होता है। यहां एक मुख्यमंत्री है, जो एक स्टेट चला रहे हैं, उनकी मेडिकल फिटनेस शक के दायरे में है। हर बिहारी को अपने मुख्यमंत्री की मानसिक दशा के बारे में जानने का अधिकार है। इस पर मेडिकल बुलेटिन जारी होना चाहिए।
रशीद किदवई कहते हैं,
बढ़ती उम्र भी याद्दाश्त भूलने का पड़ाव हो सकती है। हालांकि देश की राजनीति में कई ऐसे नेता हैं जो नीतीश से ज्यादा उम्र के हैं और स्वस्थ हैं। नीतीश की हालत पर अंदाजा लगाकर कोई भी टिप्पणी करना उचित नहीं लगता। NDA और JDU को चाहिए कि नीतीश के स्वास्थ्य की जांच कराए और रिपोर्ट्स को जनता के सामने लाएं।
जेडीयू के राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि नीतीश कुमार ने राष्ट्रगान का अपमान नहीं किया। आरजेडी की ओर से इस्तीफे की मांग पर कहा कि नीतीश कुमार बिल्कुल फिट हैं। कोई मेडिकल जांच की जरूरत नहीं है।
सवाल-4: नीतीश कुमार की कथित बीमारी पर बीजेपी ने चुप्पी क्यों साध रखी है? जवाबः 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान ओडिशा के विधानसभा चुनाव भी थे। तभी एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें पूर्व सीएम नवीन पटनायक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे। भाषण देते समय उनका हाथ कांप रहा था। तभी उनके सहयोगी पांड्यन उनका हाथ थामने की कोशिश करते हैं। इस मामले को बीजेपी ने खूब भुनाया। PM मोदी ने सभा में यह तक कह दिया था कि नवीन बाबू अब खुद से कुछ कर नहीं पा रहे हैं, लेकिन अब BJP नीतीश के मामले में चुप है।

पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई कहते हैं, ‘बीजेपी की ओर से नीतीश कुमार की सेहत को लेकर कोई भी बयान सामने नहीं आया है, क्योंकि बिहार में सत्ता में रहने के लिए बीजेपी को नीतीश के सहारे की जरूरत है। तभी तो विपक्ष के छोटे से मुद्दे को भुनाने वाली बीजेपी राष्ट्रगान के अपमान पर खामोश है। अगर BJP नीतीश के स्वास्थ्य को लेकर बयान देगी तो JDU का वोट बैंक बंट सकता है। इसका नुकसान आने वाले चुनाव में हो सकता है।’
सवाल-5: अगर नीतीश राजनीति से दूरी बनाते हैं, तो इसका क्या असर होगा?
जवाबः राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर नीतीश राजनीति से दूरी बनाते हैं, तो ये बिहार की सियासत में एक बड़ा टर्निंग पॉइंट होगा…
– नीतीश की मौजूदा गतिविधियों को देखकर बीजेपी सोच रही होगी कि नीतीश के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़े या न लड़े। फिलहाल बीजेपी के पास ऐसा कोई नेता नहीं, जिसकी धमक पूरे बिहार में हो। – राष्ट्रगान की घटना ने जेडीयू के सामने भी संकट खड़ा कर दिया कि क्या नीतीश नेतृत्व के लिए ठीक हैं। वो नीतीश के विकल्प के रूप में किसे लाएं। – जल्दी ही नीतीश कुमार के बेटे निशांत की राजनीति में एंट्री हो सकती है, जिसे वो अभी तक राजनीति से दूर रखे हुए थे। हालांकि बीजेपी इसे लेकर बहुत उत्साहित नहीं है। – नीतीश कुमार की वजह से कुर्मियों में भी एक आशंका है कि उनकी राजनीति का क्या होगा। नीतीश कुर्मी जाति से आते हैं। हालांकि बीजेपी मंटू पटेल को आगे कर रही है।
रशीद किदवई कहते हैं, ‘बिहार की राजनीति में लालू यादव की पार्टी RJD को M-Y यानी मुस्लिम-यादव समीकरण वाली पार्टी के रूप में जाना जाता है। 1990 के बाद से ही RJD के बड़े नेता अपने मूल वोट बैंक को साधने में ही लगे रहे। इसकी वजह से दूसरी जातियों का वोट RJD को न के बराबर मिलता रहा, लेकिन नीतीश के राजनीति छोड़ने से किस पार्टी को फायदा होगा, यह कहना मुश्किल है।’

सवाल-6: नेताओं के रिटायरमेंट की कोई उम्र क्यों नहीं होती? जवाबः दुनिया के ज्यादातर देशों की तरह भारत में राजनीति से रिटायर होने की कोई तय उम्र सीमा नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 84 में संसद सदस्य बनने के लिए जरूरी योग्यताओं के बारे में बताया गया है। लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए कम से कम 25 साल और राज्यसभा का चुनाव लड़ने के लिए कम से कम 30 साल की उम्र होनी चाहिए। भारतीय संविधान में राजनीति से रिटायर होने की कोई तय उम्र सीमा नहीं है।
सांसद, विधायक, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आदि पदों पर काम कर रहे लोगों के लिए रिटायरमेंट की अधिकतम आयु सीमा नहीं है। कार्यकाल खत्म होने पर उनका पद चला जाता है, लेकिन चुनाव जीतकर वे फिर से इसी पद पर आ सकते हैं। कोई व्यक्ति कितनी भी बार चुनाव जीतकर अलग-अलग या उसी राजनीतिक पद पर बना रह सकता है।
राजनीति को भारत में एक ‘सेवा’ के रूप में देखा जाता है, न कि नौकरी के रूप में, जिसके लिए रिटायरमेंट की उम्र तय हो। सरकारी नौकरियों में 60 या 65 साल की उम्र सीमा होती है, लेकिन निर्वाचित पदों को इससे अलग रखा गया है। नेताओं का मानना है कि अनुभव और लोकप्रियता के आधार पर वे जीवनभर सेवा कर सकते हैं। यह दलील दी जाती है कि उम्र अनुभव का प्रतीक है और इसे सीमित करना लोकतांत्रिक स्वतंत्रता पर अंकुश हो सकता है।
भारत में कई नेता हैं, जो 80 साल से ज्यादा उम्र के होने के बावजूद राजनीति में सक्रिय हैं। इनमें 83 साल के NCP (SP) अध्यक्ष शरद पवार, 82 साल के कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, 91 साल के JD(S) अध्यक्ष और सांसद एचडी देवगौड़ा और 86 साल के फारूक अब्दुल्ला जैसे नेता शामिल हैं।
सवाल-7: कोई नेता मानसिक अस्वस्थ रहकर भी क्या कुर्सी पर रह सकता है?
जवाब: नहीं। कोई भी नेता मानसिक अस्वस्थ रहकर कुर्सी पर नहीं रह सकता…
लोकप्रतिनिधित्व कानून 1950: सेक्शन 16 के तहत मतदाता सूची में उस व्यक्ति का नाम शामिल नहीं किया जाएगा, जिसके बारे में अदालत में साबित हो जाए कि वह मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है।
लोकप्रतिनिधित्व कानून 1951: सेक्शन 4 के तहत अगर किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में नहीं है, तो वो चुनाव नहीं लड़ सकता।
आर्टिकल 191: अगर किसी व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ ठीक नहीं है और अदालत में सिद्ध हो जाता है, तो विधानसभा से उसकी सदस्यता जा सकती है।