CCI का मेटा पर 213 करोड़ का जुर्माना का मामला ?
CCI का मेटा पर 213 करोड़ का जुर्माना का मामला; भारत में डिजिटल कंपनियों पर नियंत्रण बड़ी चुनौती
भारत में जैसे-जैसे डिजिटल का विस्तार हो रहा है, यूजरों के डाटा की सुरक्षा भी बड़ी चुनौती बनती जा रही है. भारत में अभी इतने सख्त कानून नहीं बनाए जा सकें हैं कि बड़ी डिजिटल कंपनियों पर लगाम लगाई जा सके.

भारत में बिग टेक कंपनियों को नियंत्रित करने की चुनौती दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने बीते साल नवंबर में मेटा पर 213 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. यह जुर्माना व्हाट्सएप पर इकट्ठा किए गए यूजर्स के डेटा को फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसी मेटा की दूसरी कंपनियों के साथ विज्ञापन के लिए साझा करने की वजह से था. CCI का कहना था कि यह गलत है और इससे यूजर्स की गोपनीयता को नुकसान पहुंचता है. साथ ही, इससे डिजिटल बाजार में प्रतिस्पर्धा भी कम होती है. लेकिन नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने इस जुर्माने और प्रतिबंध को रोक दिया. उसने कहा कि इस मामले की और जांच होनी चाहिए. यह घटना दिखाती है कि डिजिटल दुनिया में नियम बनाना और लागू करना कितना मुश्किल है. भारत को आगे बढ़ने के लिए नई रणनीति और मजबूत कानून चाहिए.
डिजिटल दुनिया की चुनौतियां
भारत में बिग टेक कंपनियों को नियंत्रित करना आसान नहीं है. इसके कई कारण हैं. पहला, यहां के कानून पुराने हैं. प्रतिस्पर्धा कानून 2002 में बना था, जब डिजिटल अर्थव्यवस्था इतनी बड़ी नहीं थी. यह कानून पारंपरिक बाजारों के लिए बना था, जहां कीमत और उत्पादन पर ध्यान दिया जाता था. लेकिन आज की डिजिटल कंपनियां डेटा, नेटवर्क और सिस्टम से ताकत बनाती हैं. इस वजह से पुराना कानून इन पर काबू नहीं कर पाता.
दूसरा कारण है कि यहां नियम बनाने वाली एजेंसियां अलग-अलग काम करती हैं. CCI और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के बीच अच्छा तालमेल नहीं है. इससे नियमों को लागू करने में दिक्कत होती है. डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 के तहत डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड बनना अभी बाकी है. यह भी एक बड़ी समस्या है.
तीसरा, कानूनों में साफ-सफाई की कमी है. सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 में AI, डेटा फ्लो और एल्गोरिदम के बारे में स्पष्ट नियम नहीं हैं. बिग टेक कंपनियां इस अस्पष्टता का फायदा उठाती हैं और जांच से बच जाती हैं. मिसाल के तौर पर, X कॉर्प (पहले ट्विटर) ने सरकार के उस नियम को चुनौती दी, जिसमें ऑनलाइन कंटेंट को ब्लॉक करने के लिए IT एक्ट की धारा 79(3)(b) का इस्तेमाल किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में श्रेया सिंघल बनाम भारत सरकार मामले में कहा था कि कंटेंट को सिर्फ धारा 69A के तहत ब्लॉक किया जा सकता है, अगर वह संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत जरूरी हो. लेकिन MeitY का नया “कूपरेट” पोर्टल (2024) बिना कोर्ट की मंजूरी के कंटेंट ब्लॉक करने की इजाजत देता है. X कॉर्प का कहना है कि यह गलत है.
चौथा, ये कंपनियां दुनियाभर में काम करती हैं. मेटा, गूगल और ऐपल जैसी कंपनियाँ कई देशों में हैं, लेकिन भारत के कानून सिर्फ यहां तक सीमित हैं. इससे इन पर लगाम लगाना मुश्किल हो जाता है. मेटा को अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में भी जांच का सामना करना पड़ रहा है.
पांचवां, नई तकनीक जैसे AI और डीपफेक के लिए कोई साफ नियम नहीं हैं. AI से बनी सामग्री या ऑटोमेटेड डेटा प्रोफाइलिंग की जिम्मेदारी तय नहीं है.
मेटा का मामला: क्या हुआ?
CCI ने मेटा पर कार्रवाई तब की, जब उसने पाया कि व्हाट्सएप की 2021 की गोपनीयता नीति यूजर्स को मजबूर करती थी कि वे डेटा साझा करने की सहमति दें. इस नीति के तहत व्हाट्सएप का डेटा मेटा की दूसरी कंपनियों के साथ विज्ञापन के लिए इस्तेमाल हो रहा था. CCI ने कहा कि इससे मेटा की ताकत बढ़ी और OTT मैसेजिंग व डिजिटल विज्ञापन में उसका दबदबा हो गया. यह यूजर्स की गोपनीयता के लिए भी खतरा था. CCI ने मेटा पर 213 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया और पांच साल तक डेटा साझा करने पर रोक लगा दी. लेकिन NCLAT ने इस फैसले को रोक दिया. उसने कहा कि इसकी कानूनी जांच जरूरी है. यह मामला दिखाता है कि डिजिटल बाजार में नियम लागू करना कितना जटिल है.
दुनिया से सीख
दुनिया के बड़े देश बिग टेक को नियंत्रित करने के लिए कदम उठा रहे हैं. अमेरिका में मेटा पर इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप को खरीदने के लिए मुकदमा चल रहा है. गूगल को 2024 में शरमन एक्ट के तहत सर्च और विज्ञापन में गलत काम के लिए दोषी पाया गया. यूरोपीय संघ (EU) ने डिजिटल मार्केट एक्ट (DMA) बनाया है, जो गूगल और ऐपल जैसे “गेटकीपर्स” को रोकता है. EU का जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR) डेटा गोपनीयता के लिए सख्त नियम लाया है. यहाँ नियम तोड़ने पर भारी जुर्माना लगता है. भारत इनसे सीख ले सकता है.
आगे का रास्ता
भारत को बिग टेक को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाने होंगे. सबसे पहले, एक नया डिजिटल प्रतिस्पर्धा कानून बनाना चाहिए. डिजिटल प्रतिस्पर्धा कानून समिति (CDCL) 2023 ने इसका प्रस्ताव दिया था. इससे CCI को ताकत मिलेगी और डेटा दबदबे को रोका जा सकेगा. दूसरा, डेटा शेयरिंग को बढ़ावा देना चाहिए. एक सेंट्रल डेटा रिपॉजिटरी बनाई जाए, जिसमें सभी कंपनियों को गुमनाम डेटा तक पहुंच मिले. इससे छोटी कंपनियाँ भी बड़ी कंपनियों से मुकाबला कर सकेंगी. यूजर्स की सहमति के बिना डेटा साझा नहीं होना चाहिए.
तीसरा, एल्गोरिदम में पारदर्शिता जरूरी है. कंपनियों को बताना चाहिए कि उनका AI और एल्गोरिदम कैसे काम करता है. इससे यूजर्स को भरोसा होगा और गलत फैसलों को रोका जा सकेगा.
चौथा, डेटा सुरक्षा को सख्त करना होगा. डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 को जल्द लागू करना चाहिए. इससे यूजर्स का डेटा सुरक्षित रहेगा और इसका गलत इस्तेमाल रुकेगा.
पांचवां पहले से नियम बनाना चाहिए।. अभी ज्यादातर कार्रवाई बाद में होती है (एक्स-पोस्ट), जब बाजार में दबदबा बन जाता है. लेकिन वित्त समिति (2022-23) और CDCL 2023 ने सुझाव दिया कि पहले से नियम (एक्स-एंटे) बनें. डिजिटल प्रतिस्पर्धा विधेयक 2024 में सिस्टमली सिग्निफिकेंट डिजिटल एंटरप्राइजेज (SSDE) को चिह्नित करने की बात है. ये वो कंपनियां हैं, जो सर्च, सोशल नेटवर्क और ब्राउजर जैसी बड़ी सेवाएं देती हैं. इन्हें पहले से नियंत्रित करना चाहिए.
छठा, भारत को अंतरराष्ट्रीय ढांचे की तरह काम करना चाहिए. कैलिफोर्निया कंज्यूमर प्राइवेसी एक्ट (CCPA) एक अच्छा उदाहरण है. यह यूजर्स को अपने डेटा पर अधिकार देता है – जैसे उसे देखने, हटाने और बेचने से रोकने का हक। भारत को भी ऐसा करना चाहिए.
मेटा का मामला एक चेतावनी है. यह दिखाता है कि भारत के नियम पुराने हो चुके हैं. बिग टेक कंपनियां डेटा और तकनीक से ताकतवर होती जा रही हैं. इन्हें नियंत्रित करने के लिए नए और सख्त कानून चाहिए. इससे न सिर्फ प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, बल्कि यूजर्स का डेटा भी सुरक्षित रहेगा. भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने के लिए यह जरूरी है. सरकार, CCI और दूसरी एजेंसियों को साथ मिलकर काम करना होगा. तभी भारत इस चुनौती से पार पा सकेगा और डिजिटल दुनिया में अपनी जगह मजबूत कर सकेगा.