इंजीनियरिंग-मेडिकल की कोचिंग के लिए पनपे डमी स्कूल ?
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने हाल ही में कहा था कि सरकार इस दिशा में काम कर रही है कि छात्रों को कोचिंग लेने की जरूरत ही न पड़े। इसी सिलसिले में शिक्षा मंत्री ने ये भी कहा कि डमी स्कूलों की भी अनदेखी नहीं जा सकती।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो डमी स्कूलों को फर्जी स्कूल करार दे दिया। उन्होंने कहा, जैसे ही ये बच्चे कोचिंग सेंटरों में आते हैं उन्हें फर्जी स्कूल (डमी स्कूल) में डाल दिया जाता है। इसमें केवल कोचिंग सेंटरों की गलती नहीं हैं, इसके लिए पेरेंट्स भी उतने ही जिम्मेदार हैं।
वहीं दिल्ली हाई कोर्ट में डमी स्कूलों के खिलाफ दाखिल याचिका भी चर्चा में रही। इस याचिका में कहा गया है कि सीबीएसई मान्यता प्राप्त स्कूल 11वीं और 12वीं के स्टूडेंट्स को ‘डमी स्कूलिंग’ करा रहे हैं।
यह न केवल शिक्षा के नियमों के खिलाफ है बल्कि सीबीएसई के 75% अटेंडेंस के नियम का भी सीधे-सीधे उल्लंघन है। सीबीएसई मान्यता प्राप्त स्कूल कोचिंग सेंटरों से मोटी रकम लेकर ऐसा कर रहे हैं। ऐसे डमी स्कूलों की पहचान की जाए और सीबीएसई की ओर से भी सख्त एक्शन लिया जाए।
दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में दिल्ली सरकार, सीबीएसई, आईसीएसई और कई अन्य को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने याचिका की सुनवाई के दौरान कहा, ‘दिल्ली में डमी स्कूल जिस तरह से बे-बेरोकटोक चल रहे हैं उससे उन स्टूडेंट्स को नुकसान उठाना पड़ रहा है जो रेगुलर स्कूल में पढ़ाई करते हैं। वो राज्य कोटा के जरिए इंजीनियरिंग, मेडिकल और दूसरे बड़े संस्थानों में एडमिशन लेने से वंचित रह जाते हैं।
ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि बाहर के स्टूडेंट्स दिल्ली के डमी स्कूलों में एडमिशन लेकर कोचिंग सेंटरों में एंट्रेंस एग्जामिनेशन की तैयारी करते हैं और राज्य कोटा के जरिए सीट भी पा लेते हैं।
दिल्ली राज्य कोटा में उन्हीं स्टूडेंट्स को सीट मिल सकती है जिन्होंने 11वीं और 12वीं की पढ़ाई दिल्ली के मान्यता प्राप्त स्कूल से की हो।
आखिर डमी स्कूल क्या है?
डमी स्कूल का मतलब ऐसे स्कूलों से है जहां स्टूडेंट एडमिशन तो लेता है पर उसे रोज स्कूल जाना नहीं पड़ता। इससे छात्र जेईई मेन, जेईई एडवांस और नीट जैसी परीक्षाओं की तैयारी पर ज्यादा फोकस कर पाता है।
वहीं रेगलुर स्कूल में स्टूडेंट रोज स्कूल जाता है और उसकी अटेंडेंस लगती है। चूंकि रेगुलर स्कूल जाने वाले बच्चों को रोज कोचिंग सेंटर जाने के लिए वक्त निकालना मुश्किल होता है इसलिए डमी स्कूल तेजी से पनपे हैं। बोर्ड की परीक्षा से कुछ दिन पहले स्टूडेंट डमी स्कूल जाने की फॉर्मेलिटी पूरी करता है।
डमी स्कूल कैसे काम करता है?
रेगुलर स्कूल भी किसी स्टूडेंट के लिए डमी स्कूल की शक्ल ले सकता है। रेगुलर स्कूल में भी बिना स्कूल अटेंड किए स्टूडेंट का अटेंडेंस मार्क होती है। क्योंकि स्कूल अथॉरिटी एक्स्ट्रा फीस लेकर स्टूडेंट को क्लास न अटेंड करने की परमिशन देती है।
यह सभी कुछ स्कूल, कोचिंग सेंटर और स्टूंडेंट के पेरेंट के बीच आपसी सांठगांठ का मामला है।कुछ डमी स्कूल सिर्फ कागजों पर चलने वाले बिना बिल्डिंग, कैंपस या फैकल्टी के होते हैं।
सीबीएसई के नियमानुसार स्टूडेंट की 75% अटेंडेंस होने पर ही वह बोर्ड एग्जाम दे सकता है। फिर ऐसे में डमी स्कूल की क्या भूमिका होती है?
यह सवाल सही है, लेकिन डमी स्कूल इसलिए ही खोले गए हैं ताकि 75% अटेंडेंस बन जाए और स्टूडेंट बोर्ड एग्जाम दे सकें। सांठगांठ के जरिए कोचिंग सेंटर अपने यहां आने वाले छात्रों को डमी स्कूलों में दाखिला दिलाते हैं।
इससे स्कूल और कोचिंग सेंटर दोनों को फायदा होता है। स्कूल में बच्चे का अटेंडेंस बनता रहता है और कोचिंग में बच्चे की पढ़ाई चलती रहती है।
डमी स्कूल ओपन स्कूल से कैसे अलग है?
डमी स्कूल ओपन स्कूल नहीं है। ओपन स्कूल डिस्टेंस लर्निंग सर्टिफिकेट देते हैं जिस पर लिखा होता है कि स्टूडेंट को स्टडी मैटेरियल दिया जाएगा और उसने घर से पढ़ाई की है।
बोर्ड एग्जाम का प्रेशर नहीं, मेडिकल-इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम सबसे बड़ा चैलेंज
डमी स्कूल रेगुलर स्कूल को निगल रहे हैं? इस पर गुरुग्राम के एक स्कूल के प्रिंसिपल ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बोर्ड एग्जाम का अब प्रेशर ही नहीं रहा है।
अगर आप अच्छे कॉलेज में एडमिशन चाहते हैं तो बोर्ड एग्जाम यह नहीं तय कर रहा, बल्कि IIT-JEE, NEET, CUET तय कर रहा। इसलिए कोचिंग सेंटर फैल गए हैं। उनके जरिए डमी स्कूल रेगुलर स्कूलों को निगल रहे हैं। बोर्ड एग्जाम का महत्व घट रहा है जबकि एंट्रेस एग्जाम का महत्व बढ़ गया है।
दिल्ली के एक स्कूल के प्रिंसिपल ने भी स्कूल और अपने नाम की गोपनीयता की शर्त पर कहा-उनके स्कूल में 12वीं में 18 स्टूडेंट्स ऐसे हैं जो स्कूल नहीं आते। लेकिन उनका अटेंडेंस रेगुलर लगता है।
वर्ष 2000 के बाद से ही डमी स्कूल तेजी से फैले हैं। इस पर IIMT (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी) यूनिवर्सिटी के IIMT कॉलेज ऑफ एजुकेशन की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शेली और डॉ. सुधा शर्मा ने रिसर्च की है। यह रिपोर्ट अप्रैल 2023 में Dizhen Dizhi जर्नल में पब्लिश हुई।
कोचिंग सेंटर IIT और मेडिकल संस्थानों में दाखिले के सपने बेच रहे
वर्ष 1990 तक अधिकतर स्टूडेंट्स ने सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल या इंटरमीडिएट कॉलेज में पढ़ाई की। बड़े शहरों में ऊंचे वर्ग के लोग अपने बच्चों को सीबीएसई एफिलिएटेड स्कूलों में भेजते। सरकारी स्कूलों की तुलना में सीबीएसई के बच्चों को ज्यादा महत्व मिलता।
1995 के बाद मिडिल क्लास के लोग अच्छे स्कूल और बेहतर सुविधाओं के चलते गांवों से शहरों की ओर जाने लगे। वर्ष 2000 के बाद इसकी रफ्तार बढ़ी।
अब स्थिति यह है कि निम्न आय वाली मिडिल क्लास फैमिली भी अपनी इनकम का 25-30% बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करती है। वर्ष 2000 और 2005 के बीच कोचिंग संस्थान धड़ाधड़ खुलते गए जो स्टूडेंट्स और पेरेंट्स को सपने बेचने लगे। मुश्किल तब खड़ी हुई जब स्टूडेंट कोचिंग सेंटर और स्कूल के बीच बैलेंस नहीं बना पाया।
ऐसे समय में ही ‘डमी एडमिशन’ या ‘फ्लाइंग एडमिशन’ का कॉन्सेप्ट आया और आज यह पूरे देश में फैल चुका है।
डमी एडमिशन क्यों लेते हैं स्कूल
डॉ. शैली बताती हैं कि सीबीएसई मान्यता प्राप्त स्कूल कई कारणों से डमी एडमिशन लेते हैं-
- स्पेरेंट्स खुद चाहते हैं कि उनका बेटा स्कूल में क्लासेज अटेंड न करे बल्कि कोचिंग जाए ताकि NEET और IIT में जा सके। इसलिए पेरेंट्स खुद स्कूलों पर प्रेशर डालते हैं।
- अहमदाबाद और गांधीनगर में कई ऐसे स्कूल हैं जो हर महीने इस काम के लिए एक्स्ट्रा 50% चार्ज करते हैं। जिन स्कूलों में 60,000 एनुअल फीस है वहां पेरेंट्स बच्चे को स्कूल न जाना पड़े इसके लिए 90,000 रुपए तक भरते हैं।
- प्राइवेट स्कूल अपने स्कूल का नाम बनाए रखने या मशहूर करने के लिए भी ऐसे बच्चों को छूट देते हैं।
- स्कूलों की की कमाई होती है। कोचिंग सेंटरों से टाइअप के बदले भी उन्हें मोटी रकम मिलती है।
कोलकाता में सोसाइटी एगेंस्ट वॉयलेंस इन एजुकेशन (SAVE) के फाउंडर और डायरेक्टर डॉ. कुशल बनर्जी बताते हैं कि पेरेंट्स को लगता है कि उनका बच्चा बहुत ब्रिलिएंट है।
प्राइमरी से अब तक टॉपर रहा है। लेकिन IIT, NEET में एडमिशन के लिए बहुत कॉम्पिटिशन है। लाखों बच्चे परीक्षा में बैठते हैं लेकिन सीट कुछ हजार ही होती है। ऐसे में डमी स्कूल में नहीं देंगे तो बच्चे इंट्रेंस की तैयारी कैसे करेंगे।
साइंस के 20-25% स्टूडेंट्स डमी स्कूल में, ह्यमिनिटीज का महज 1%
भुवनेश्वर के ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट सीताकांत त्रिपाठी बताते हैं कि साइंस के 20 से 25% स्टूडेंट्स डमी स्कूल में दाखिल लेकर कोचिंग सेंटरों में पढ़ाई करते हैं जबकि ह्यूमनिटीज के महज 1% हैं।
कोचिंग सेंटरों के टीचरों को 40-50 लाख का सालाना पैकेज
डॉ. सुधा शर्मा बताती हैं कि रेगुलर स्कूलों को डमी स्कूल निगलते जा रहे हैं। डमी स्कूलों की वजह से रेगुलर स्कूलों में अच्छे टीचर्स नहीं हैं। सारे अच्छे टीचर्स कोचिंग सेंटरों में 40-50 लाख के एनुअल पैकेज पर हैं। हर महीने उन्हें 4 से 5 लाख की सैलेरी मिल रही है। जबकि प्राइवेट स्कूलों में टीचरों को अच्छी सैलेरी नहीं मिलती।
बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य खराब करने में डमी स्कूल परदे के पीछे
साइकोलॉजिस्ट डॉ. शिशिर पलसापुरे बताते हैं कि डमी स्कूल को सीधे-सीधे दोषी नहीं ठहराया जा सकता लेकिन यह परदे के पीछे काम कर रहे हैं।
नागपुर में 16 साल की एक लड़की 11वीं की स्टूडेंट है। डमी स्कूल में एडमिशन लेकर इंजीनियरिंग के लिए कोचिंग ले रही है। रोज 10 घंटे की पढ़ाई, हर हफ्ते का प्रैक्टिस टेस्ट, नंबर कम आने पर खुद को दोषी मानती हैं। मां-बाप का खर्चा और खुद नाकामयाब को लेकर एंग्जाइटी और डिप्रेशन का शिकार हो गई।
सीताकांत त्रिपाठी बताते हैं कि स्कूल किसी छात्र को गढ़ता है, उसके जीवन को दिशा देता है। लेकिन इसके उलट डमी स्कूल बच्चों को रेस में झोंक देता है। दिन-रात बस पढ़ाई में लगे रहते हैं। नतीजा उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य खराब हो जाता है।
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CBSE: बोर्ड परीक्षा में शामिल नहीं हो सकते डमी स्कूल के 12वीं के छात्र, स्कूलों पर भी होगी सख्त कार्रवाई
