तीन शिफ्ट में सफाई, शहर से डस्टबिन हटाई, बाकी शहर क्या सीख सकते हैं क्लीन सिटी नंबर1 इंदौर से
इंदौर: देश का सबसे साफ शहर इंदौर एक बार फिर स्वच्छ सर्वेक्षण में बाजी मारी हैं. देश के टॉप स्वच्छ शहरों की लिस्ट जारी हो गई है. बता दें, 2016 में हुए सबसे पहले सर्वेक्षण में देश के सबसे स्वच्छ शहर का पुरस्कार मैसूर को मिला था. उसके बाद से इंदौर लगातार 4 वर्षों (2017, 2018, 2019,2020) से शीर्ष स्थान पर रहा है. लगातार चौथी बार पहला स्थान मिलने पर सीएम शिवराज सिंह ने खुशी जताई है. उन्होंने कहा कि चौके के बाद अब छक्का भी लगाएंगे.
पर क्या आप जानते हैं कि इंदौर लगातार चौथी बार कैसे नंबर बना है. तो आपको बता दें कि इसके पीछे नगर निगम, कर्मचारी और इंदौर के लोगों का बहुत बड़ा योगदान है. बिना उसके शहर को साफ नहीं रखा जा सकता. एक खास बात है जो लोगों को प्रेरित करती है वो इंदौर की साफ-सफाई वाला थीम सॉन्ग.
कैसे बनी रणनीति
स्वच्छता के मामले में इंदौर शहर 2015 में 180 वें पायदान पर था 2016 में शहर को 25 वीं रैंकिंग प्राप्त हुई. 2016 में जब स्वच्छ सर्वेक्षण हुआ तो इंदौर इसमें पिछड़ गया था. स्वच्छता सर्वेक्षण का कॉन्सेप्ट आते ही महापौर मालिनी गौड़ और निगमायुक्त मनीष सिंह सहित जनप्रतिनिधियों ने नए सिरे सफाई का मॉड्यूल तैयार करने की कवायद शुरू की. 2014 में निगम चुनाव तक शहर में सफाई व्यवस्था की जिम्मेदारी एटूजेड कंपनी के पास थी. लाख कोशिशों के बावजूद भी कंपनी शहर को साफ रखने में सफल नहीं हो पा रही थी.
पहले दिया संसाधनों पर जोर?
चुनाव के बाद बनी नई परिषद ने सबसे पहले सफाई व्यवस्था को अपने हाथ में लेने का फैसला लिया. तब सवाल भी उठा कि निगम के पास न इतने संसाधन हैं, न ही लोग हैं, तो सफाई होगी कैसे? इस पर महापौर और निगमायुक्त ने पहले अपने संसाधनों पर जोर देना शुरू. पता किया क्या-क्या संसाधन हैं?
सफाई कर्मचारियों के स्वभाव को बदला
संसाधनों के बाद कर्मचारियों की सूची बनाई तो पता चला सैकड़ों कर्मचारी ड्यूटी पर आते ही नहीं है. कोई अपनी जिम्मेदारी से ड्यूटी भी नहीं करता. झोन कार्यालयों के हाल और बुरे थे. इस पर सख्ती शुरू हुई. 700 से ज्यादा नियमित और अस्थायी कर्मचारियों को या तो निलंबित किया गया या नौकरी से निकाल दिया गया. इससे कर्मचारियों में संदेश कि काम करेंगे तो ही नौकरी बचेगी. निगम कमिश्नर ने भी सख्त लहजे में कर्मचारियों की मीटिंग में कह दिया कि काम करेंगे तो ही नियमित रह पाएंगे.
कबाड़ वाहनों से चलाया गया काम
कबाड़ बताकर गैरेज में खड़ी कर दी गईं गाड़ियों को निकालकर सुधरा गया. मात्र 200 वाहनों से व्यवस्था शुरू करने के बाद दो साल में निगम के पास 700 से ज्यादा गाड़ियां थीं. इनमें भी करीब 400 छोटे वाहन केवल कचरा इकट्ठा करने के लिए हैं.
शहर को स्वच्छ बनाने के लिए निगम ने खुले में शौच को रोकने को लेकर प्लान बनाया. निगम प्रशासन ने खुले में शौच करने वालों को प्रताड़ित करने के बजाय उनकी मानसिकता बदलने का काम किया. इसके लिए सर्वे किया गया कि किस इलाके के लोग सबसे ज्याद खुले में शौच के लिए जाते हैं. रिपोर्ट के बाद उन इलाको में तेजी से शौचालय बनाए गए.
खुले में शौच से शहर को दिलाई मुक्ति
स्वच्छ भारत मिशन के तहत चल रहे कामों के लिए तीन माह तक शहर के वॉर्डों में दूसरे काम भी रोके गए. सिर्फ एक लक्ष्य था-स्वच्छ भारत मिशन का कार्य तेजी से और समय सीमा से पहले पूरा करना है. निगम ने शहर के व्यस्तम और भीड़-भाड़ वाले इलाकों में सुलभ शौचालयों का निर्माण कराया. झुग्गियों के लोगों को लिए सुलभ शौचालय और निगम की गाड़ियां लगाईं. निगम के प्रयासों का असर यह हुआ कि लोगों ने खुले में शौच करने की अपनी मानसिकता बदल ली.
परिणाम, 2017 आया नंबर वन
2017 इंदौर शहर के लिए लकी साबित हुआ और इसी वर्ष इंदौर शहर को 434 शहरों में देश का सबसे स्वच्छ शहर मानते हुए स्वच्छता के मामले में नंबर वन स्थान प्राप्त हुआ. इससे नगर निगम को बल मिला और काम करने का जज्बा बढ़ा.
शहर से हटाई गईं कचरा पेटियां
इसके बाद शहर में स्वच्छता अभियान छेड़ा गया. निगम ने शहर से कचरा पेटियां हटाने का कड़ा निर्णय लिया.
क्योंकि शहर में सबसे ज्यादा कचड़ा सड़कों पर ही फेंका जाता था. लोग और दुकानदार अपनी दुकानों में इसकी सफलता घर-घर कचरा कलेक्शन मॉडल की सफलता पर ही निर्भर थी. कुछ इलाकों में कचरा कलेक्शन सफल रहा तो पहले उन इलाकों से पेटियां हटाई गईं. बाद में पूरे शहर से कचरा पेटियां हटा दी गईं. इस निर्णय को सबसे ज्यादा सराहा गया. साथ ही शहर के घरों से कचरा एकट्ठा किया जाने लगा. इसमें गीला और सूखा कचरा अलग-अलग एकत्रित किया जाने लगा. नगर निगम की गाड़ियां दिन में दो बार कचरा लेने लोगों के घरों तक जाने लगी. इतना ही नहीं शहर की सफाई के लिए निगम कर्मचारियों को तीन शिफ्ट में ड्यूटी पर लगाया गया.
छेड़ा गया जन अभियान
कचरे के निस्तारण के लिए नई व्यवस्था की जरूरत साफ दिखाई दी. पुरानी सफाई एजेंसी को बदला गया, इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया गया और नगर निगम की वर्कशॉफ को नया जीवन दिया गया क्योंकि इसके बगैर इतने बड़े शहर की गंदगी को उठाना संभव नहीं था. शहर में एक बहुत बड़े जन-जागरण अभियान की शुरुआत की गई जिसमें राजनैतिक नेतृत्व के साथ ही गणमान्य नागरिक शामिल हुए.
कचरा प्रबंधन के लिए बनाया गया ट्रेचिंग ग्राउंड
शहरभर से कचरा इकट्ठा करने के लिए ट्रेंचिंग ग्राउंड बनाया गया. इसके लिए निगम कार्यालय में ही व्यवस्था की गई. फिर बड़े स्तर पर ट्रेचिंग ग्राउंड बनाया गया. यहां सबसे पहले लाए गए कचरे से पॉलिथिन अलग की जाने लगीं. बचे अपशिष्ट पदार्थों से खाद बनाने जाने लगा. जबकि पन्नियों का इस्तेमाल सड़क के निर्माण के लिए किया जाने लगा.
सड़क पर थूकने पर लगाया जुर्माना
इंदौर देश का पहला ऐसा शहर था जिसने सड़क पर थूकने पर जुर्माना लगाया. इसके निगम की गाड़ियां लगातार गश्त पर रहती हैं. शहरभर के पान ठेले वालों को सख्त हिदायत दी गई कि अगर उनकी दुकानों के बाहर किसी तरह का कचरा, पान की पीक या रैपर नजर आए तो जुर्माना होगा. निगम ने इस नियम को सख्ती से पूरे शहर में लागू किया. लाखों रुपये के चालान किए. असर यह हुआ कि पान ठेले वाले और खाने वालों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास हुआ. उन्होंने इधर-उधक थूकना बंद कर दिया. नतीजा रहा कि इंदौर साल 2017 में साफ-सफाई में नंवर वन आया. इसी तरह से सफाई व्यवस्था को दूसरे करते हुए इंदौर चौथी बार देश के सबसे स्वच्छ शहरों में अव्वल है.
इन चार लोगों ने बना दिया शहर को सबसे साफ
जब इंदौर पहली बार देश का सबसे स्वच्छ और साफ शहर चुना गया तब यह काम एक टीम ने किया था. यह टीम इंदौर की महापौर मालिनी गौड़, कलेक्टर पी नरहरी, और मनीष सिंह की थी. महापौर ने इंदौर नगर निगम के काम करने के तरीके को ही बदल डाले थे. कलेक्टर पी नरहरी एक मशहूर कलेक्टर थे जिन्होंने कई बेहतरीन कार्य किये. मध्य प्रदेश में लागू कई बड़ी योजनायें इनके ही दिमाग की उपज हैं. मनीष सिंह ने इतनी सख्ती से काम किया कि नगर निगम की पूरी छवि ही परिवर्तित कर दी. लेकिन इन सबके साथ शहर की जनता ने इंदौर की स्वच्छ बनाने में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी. निगम के हर नियमों को सिरोधार किया.
वेस्ट मैनेजेमेंट से कमाई भी बढ़ाई
ऐसा नहीं इंदौर में सिर्फ साफ-सफाई पर ही ध्यान दिया गया, बल्कि वेस्ट मैनेजमेंट का सही तरीके के इस्तेमाल से वित्तीय लाभ हासिल किया. 31 मार्च को खत्म वित्तीय वर्ष 2019-20 में गीले और सूखे कचरे के प्रसंस्करण से शहरी निकाय की कमाई 50 फीसद बढ़कर करीब छह करोड़ रुपये पर पहुंच गयी थी. वित्तीय वर्ष 2018-19 में कचरा प्रसंस्करण से आईएमसी ने लगभग चार करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया था.
कैसे होता है कचरे का निस्तारण?
सूखे कचरे के लिये आईएमसी ने कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) से संपन्न स्वचालित प्रसंस्करण संयंत्र लगाया है. इस संयंत्र के जरिये सूखे कचरे में से कांच, प्लास्टिक, कागज, गत्ता, धातु आदि पदार्थ अलग-अलग बंडलों के रूप में बाहर निकल जाते हैं. गीले कचरे के प्रसंस्करण से आईएमसी बायो-सीएनजी और कम्पोस्ट खाद बना रहा है. गीले कचरे के प्रसंस्करण के लिये आईएमसीज सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के आधार पर शहर के देवगुराड़िया क्षेत्र में 500 टन क्षमता का नया बायो-सीएनजी संयंत्र लगा रहा है.
ऐसे होगा गीले कचरे का प्रसंस्करण
नये संयंत्र में एक निजी कम्पनी करीब 250 करोड़ रुपये का निवेश करेगी, जबकि आईएमसी को इस इकाई के लिये जगह और प्रसंस्करण के लिये गीला कचरा भर मुहैया कराना होगा.
अब आगे क्या?
अगले वित्तीय वर्ष 2021-22 में अलग-अलग संयंत्रों में गीले और सूखे कचरे के प्रसंस्करण से आईएमसी की कमाई बढ़ कर 10 करोड़ रुपये के आसपास हो सकती है. निगम अधिकारियों की माने तो करीब 35 लाख की आबादी वाले शहर में आईएमसी ने हर रोज तकरीबन 1,200 टन कचरे का अलग-अलग तरीकों से सुरक्षित निपटारा करने की क्षमता विकसित की है. इसमें 550 टन गीला कचरा और 650 टन सूखा कचरा शामिल है.