दिग्विजय सिंह ने माना, कांग्रेस ने चुनावी घोषणा पत्र में जो वादे किए थे, उसके प्रावधान तीनों कृषि कानूनों में हैं

दिग्विजय सिंह ने यह स्वीकार किया कि कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में जो वादे किए थे, उसके प्रावधान तीनों कृषि कानूनों में हैं। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि कांग्रेस ने यह कभी नहीं कहा था कि बिना आम सहमति के इन कानूनों को लाया जाएगा।

नयी दिल्ली: राज्यसभा में बृहस्पतिवार को वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने तीन कृषि कानूनों को लेकर आंदोलनरत किसानों के साथ वार्ता के लिए गठित मंत्री स्तरीय समिति में रेल व वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को रखने और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को शामिल नहीं किए जाने को लेकर सवाल उठाया। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर राज्यसभा में चर्चा में हिस्सा लेते हुए दिग्विजय सिंह ने यह स्वीकार किया कि कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में जो वादे किए थे, उसके प्रावधान तीनों कृषि कानूनों में हैं। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि कांग्रेस ने यह कभी नहीं कहा था कि बिना आम सहमति के इन कानूनों को लाया जाएगा। दिग्विजय सिंह ने कहा, ‘‘किसानों से चर्चा के लिए उन्होंने (सरकार) कृषि मंत्री को लगाया लेकिन पीयूष गोयल का किसानों से क्या लेना-देना है। रखना था तो राजनाथ सिंह को रखना चाहिए था। समझौते (किसानों के साथ वार्ता के संदर्भ में) में राजनाथ सिंह का उपयोग क्यों नहीं किया गया? पीयूष गोयल किसानों का प्रतिनिधित्व करेंगे?’’

बता दें कि आंदोलनरत किसानों से वार्ता के लिए केंद्र सरकार की ओर से अब तक हुई वार्ता में सरकार की तरफ से केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, गोयल और वाणिज्य राज्यमंत्री सोम प्रकाश शामिल होते रहे हैं। किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने भी पिछले दिनों वार्ता के लिए गठित समिति में राजनाथ सिंह को शामिल न किए जाने को लेकर सवाल उठाया और कहा था, ‘‘इस सरकार में राजनाथ सिंह की तौहीन हो रही है।’’ तीनों कृषि कानूनों को किसान विरोधी करार देते हुए सिंह ने दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर जारी किसानों के आंदोलन के पीछे कांग्रेस का षड़यंत्र होने के आरोपों को खारिज किया। तीन कृषि कानूनों के प्रावधानों के कांग्रेस घोषणा पत्र में होने के भाजपा के आरोपों का जवाब देते हुए पूर्व कांग्रेस महासचिव ने कहा, ‘‘हमारे चुनावी घोषणापत्र में था लेकिन ये कहां था कि इस पर आम सहमति नहीं होगी।’’

सिंह ने इससे पहले, राष्ट्रपति के अभिभाषण का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि इसमें वास्तविकता का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। उन्होंने याद दिलाया कि जब भाजपा केंद्र की सत्ता में आई थी तब उन्होंने विदेशों से काला धन लाने, भ्रष्टाचार समाप्त करने, प्रति वर्ष दो करोड़ रोजगार देने जैसे वादे किए थे लेकिन राष्ट्रपति के अभिभाषण में इन वादों का कोई उल्लेख नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘रोजगार मिला नहीं, काला धन आया नहीं, भ्रष्टाचार समाप्त हुआ नहीं, अर्थव्यवस्था बेहतर हुई नहीं। इन सब बातों का उल्लेख नहीं है।’’

नोटबंदी के फैसले की आलोचना करते हुए मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि उस समय अर्थव्यवस्था को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जो चिंताएं जताई थीं, वे सारी बातें सही निकलीं। उन्होंने सरकार से पूछा कि नोटबंदी के दौरान 17.50 लाख करोड़ रुपये प्रचलन में थे जिनकी आज संख्या 27.8 लाख करोड़ हो गयी है जबकि सरकार ने उस वक्त डिजिटल लेनदेन को लेकर बहुत सारे दावे किए थे। जम्मू एवं कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के मुद्दे पर भी उन्होंने सरकार को घेरने की कोशिश की और आरोप लगाया कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस समस्या के समाधान के लिए ‘‘जम्हूरियत, इंसानियत और कश्मीरियत’’ की बात की थी लेकिन भाजपा सरकार ने उनका भी अनुसरण नहीं किया।

उन्होंने कहा, ‘‘जब आप अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के लिए कानून लेकर आए तो ना ही जम्हूरियत, कश्मीरियत और ना ही इंसानियत नजर आई।’’ उन्होंने दावा किया कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद आतंकवाद समाप्त होने के सरकार के दावों के विपरीत वहां आतंकवादी गतिविधियों में आहत होने वाले लोगों और सुरक्षाकर्मियों की संख्या में इजाफा हुआ है। कोविड-19 के प्रबंधन को लेकर भी कांग्रेस नेता ने सरकार को आड़े हाथों लिया और आरोप लगाया कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसे लेकर सरकार को लगातार आगाह किया लेकिन उनकी बातों का मखौल उड़ाया गया।

उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने के लिए उसे समय चाहिए था, इसलिए लॉकडाउन में हीलाहवाली की गई। उन्होंने लॉकडाएन से पहले जनता कर्फ्यू लगाने और ताली-थाली जैसे कार्यक्रमों की भी आलोचना की। उन्होंने कोरोना महामारी के दौरान पीपीई किट और वेंटिलेटर खरीदने में भ्रष्टाचार का भी आरोप लगाया और प्रधानमंत्री राहत कोष के रहते पीएम केयर्स फंड का गठन किए जाने पर सवाल उठाया। उन्होंने किसानों, मजदूरों और सामाजिक अधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ राजद्रोह के मामले लगाए जाने का भी विरोध किया

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