पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में हिंसा और मौत का ताडंव जारी, अबतक 8 की गई जान
बंगाल में हिंसक राजनीति की शुरुआत साठ के दशक में हुई थी. 1967 में वहां पहली बार गठबंधन की सरकार आई और कांग्रेस को कुर्सी छोड़नी पड़ी, जिसके बाद हिंसा का दौर शुरू हुआ. 17 मार्च 1970 को हिंसा की पहली बड़ी घटना बर्धमान में हुई.
पश्चिम बंगाल में 4 चरण की वोटिंग हो चुकी है और 4 चरण की वोटिंग बाकी है, लेकिन फिक्र की बात ये है कि जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहा है, हिंसा भी बढ़ती जा रही है. 27 मार्च को पहले चरण का मतदान था, उस दिन हिंसा की घटनाएं तो हुईं, लेकिन किसी की जान नहीं गई. इसके बाद 1 अप्रैल को दूसरे दौर की वोटिंग हुई, जिसमें 1 की जान गई. इसी तरह 6 अप्रैल को तीसरे दौर के मतदान में 2 लोग मारे गए जबकि चौथे चरण में भारी हिंसा हुई और 5 लोगों की मौत हो गई. चौथे चरण में जो हिंसा हुई, उसके बाद बीजेपी और टीएमसी दोनों एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं.
दरअसल चौथे चरण के मतदान में पश्चिम बंगाल के कूचबिहार में तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के समर्थक आपस में भिड़ गए थे. इस दौरान सीआईएसएफ ने आत्मरक्षा के लिए जो फायरिंग की थी, उसमें चार लोगों की मौत हो गई थी. गृहमंत्री अमित शाह ने भी टीवी9 भारतवर्ष से बातचीत में आरोप लगाया कि ममता बनर्जी मौत की घटनाओं में भी वोट बैंक ढूंढती हैं. बंगाल पर एक अपडेट ये है कि ममता बनर्जी मंगलवार को कोलकाता में धरने पर बैठने वाली हैं. उन्होंने चुनाव आयोग के एक फैसले के खिलाफ धरना देने का फैसला किया है. चुनाव आयोग ने ममता बनर्जी के चुनाव प्रचार पर 24 घंटे का प्रतिबंध लगा दिया है, ऐसा उनके विवादित बयानों की वजह से किया गया है. ये प्रतिबंध सोमवार रात 8 बजे से मंगलवार रात 8 बजे तक के लिए लगाया गया है.
ममता बनर्जी पर आरोप लग रहा है कि उन्होंने केंद्रीय सुरक्षा बल का घेराव करने की बात कही और यही वजह है कि कूचबिहार जैसी हिंसा हुई. सच जानने के लिए हमारी टीम मौके पर पहुंची. कूच बिहार गोलीकांड का सच जानने के लिए टीवी9 भारतवर्ष उन लोगों के बीच पहुंचा जो फायरिंग के दौरान घटनास्थल पर थे. हमारी टीम उन घायलों के पास भी पहुंची जो अभी अस्पताल में भर्ती हैं. उन लोगों से बात की जो फायरिंग से ठीक पहले मतदान के लिए कतार में खड़े थे. फायरिंग के दौरान घटनास्थल पर मौजूद लोगों ने खुद कबूला कि कुछ उपद्रवियों ने CISF के जवानों को घेर लिया था. हालातू बेकाबू हो गए थे.
CISF ने भी घटना के बाद बयान जारी कर कहा था कि बूथ नंबर126 के पास CISF की टीम पर भीड़ ने हमला किया था. उपद्रवियों ने जवानों को घेर लिया था. क्यूआरटी के वाहन को नुकसान पहुंचाया गया था. सेल्फ डिफेंस में जवानों ने भीड़ को हटाने के लिए छह राउंड हवाई फायर किए थे. हालांकि कूच बिहार गोलीकांड का सच साफ साफ बताने को कोई भी तैयार नहीं है. ऐसे में सवाल है आखिर वो कौन लोग थे जिन्होंने पश्चिम बंगाल के जोड़पाटकी गांव में हिंसा भड़काई. क्या किसी के उकसाने पर भीड़ ने CISF जवानों को घेरा था. आखिर क्यों केंद्रीय सुरक्षाबलों के जवानों को गोली चलानी पड़ी.
बंगाल में हिंसक राजनीति की शुरुआत साठ के दशक में हुई थी. 1967 में वहां पहली बार गठबंधन की सरकार आई और कांग्रेस को कुर्सी छोड़नी पड़ी, जिसके बाद हिंसा का दौर शुरू हुआ. 17 मार्च 1970 को हिंसा की पहली बड़ी घटना बर्धमान में हुई, जिसमें कुछ लोगों की इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि उन्होंने कांग्रेस को छोड़कर सीपीएम में आने से मना कर दिया था. 1971 के फरवरी महीने में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कोलकाता में फॉरवर्ड ब्लॉक के नेता हिमंता बसु की हत्या हो गई. किसी ने सीपीएम पर आरोप लगाया किसी ने कांग्रेस पर, लेकिन हत्यारा कभी नहीं पकड़ा जा सका. ये शुरुआत थी. इसके बाद राजनीति से जुड़ी कई हिंसक घटनाएं हुईं, लेकिन ऐसा कम हुआ कि आरोपी को उसके अंजाम तक पहुंचाया गया हो.
जब भी होता है चुनाव, लहूलुहान होता है बंगाल. ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि बंगाल का खूनी इतिहास यहां की राजनीति का रक्तचरित्र दर्शाता है. लोकसभा की लड़ाई हो या विधानसभा का रण या फिर पंचायत पर कब्जा करने की होड़, बंगाल में बम गोला और बारूद का बोलबाला होता है. साल कोई भी हो, चुनाव कोई भी हो, जिम्मेदार कोई भी हो, हंगामा होता है, झड़पें होती है, हत्या होती है, खुलेआम खून खराबा होता है. 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बंगाल में जमकर बवाल हुआ. एक रिपोर्ट के मुताबिक 693 हिंसक घटनाएं हुईं, जिसमें 11 लोगों की जान गई.
लोकसभा चुनाव से पहले भी बंगाल में हिंसक घटनाएं होती रही हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में बंगाल में सियासी हिंसा की कुल 91 घटनाएं हुईं. 205 लोग चुनावी हिंसा के शिकार हुए. सियासी रंजिश में 36 लोगों की हत्या हुई. 2015 में कुल 131 घटनाएं दर्ज की गई थीं. 2013 में सियासी झड़पों में कुल 26 लोगों की जान गई थीं. बंगाल में पंचायत चुनाव का इतिहास भी खूनी रहा है. 2018 में पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव के दौरान भी जबरदस्त हिंसा हुई. बीजेपी ने अपने 1200 से भी ज्यादा कार्यकर्ताओं के घायल होने का दावा किया. 2013 के पंचायत चुनाव में 10 लोगों की मौत का दावा किया गया था. 2008 के पंचायत चुनाव के दौरान हिंसा में 19 लोगों की मौत का दावा किया गया. 1990 में लेफ्ट के शासन के दौरान पंचायत चुनाव में 400 लोगों की हत्या का आरोप लगा.
सूबे में खूनी बवाल का सिलसिला 1960 के बाद से शुरू हुआ था जब बंगाल के किले पर कांग्रेस का कब्जा था, विपक्ष में वामदल थे. 1967 में राज्य में लेफ्ट की सरकार आई, कांग्रेस विपक्ष में आ गई और तब कांग्रेस ने लेफ्ट के लोगों पर हमले और हत्या के आरोप लगाए. एक दावे के मुताबिक पश्चिम बंगाल में 1977 से 2009 तक 55,000 सियासी हत्या हुई. पिछले छह दशकों से सत्तारूढ़ दल और विपक्ष में जारी सियासी घमासान मेंबंगाल में खून बहता आ रहा है. खासतौर पर चुनावी मौसम में हिंसा का ग्राफ और भी ऊपर चला जाता है. महात्मा गांधी ने कहा था कि हिंसा तत्काल फायदा दिला सकती है, लेकिन ये जिस बुराई को छोड़ जाती है उसका कभी अंत नहीं होता. राजनीतिक हिंसा के साथ यही बात लागू होती है.