कोरोना की दूसरी लहर में मां-बाप को खो चुके बच्चों को गोद लेना या देना गैरकानूनी है; अगर गोद लेना ही है तो कानूनी प्रक्रिया भी जान लें

पिछले महीने फेसबुक, वॉट्सऐप पर एक मैसेज वायरल हुआ था। जिसमें लिखा था- कोरोना ने दो बच्चियों से मां-बाप को छीन लिया है, एक बच्ची की उम्र तीन दिन है और दूसरी की उम्र छह महीने। यह मैसेज एक मोबाइल नंबर के साथ वायरल हुआ। इस नंबर पर कॉल नहीं लगी, क्योंकि यह एक फेक मैसेज था।

भले ही यह एक मजाक हो या साइबर अपराधियों की एक साजिश हो, लेकिन हकीकत में ऐसी खबरें आई हैं, जिनमें अनाथ हुए बच्चों को गोद लेने के बारे में पूछताछ की गई। पिछले हफ्ते नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) यानी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की फ्री टेली-काउंसलिंग सर्विस- संवेदना (1800-121-2830) पर कम से कम 17 कॉल्स आए। जिनमें लोगों ने कोरोना की वजह से अनाथ हुए बच्चों को गोद लेने के बारे में सवाल किए।

उस 3 दिन और 6 महीने की बच्ची का क्या हुआ?

खैर, यह तो साफ है कि यह मैसेज फेक था। एक बच्ची 6 महीने की हो तो उसकी बहन 3 दिन की कैसी हो सकती है? तमाम मीडिया चैनलों और सरकारी तंत्र की जांच में यह मैसेज फेक साबित हुआ। भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय (PIB) के फैक्ट चेक ने भी इस मैसेज के फेक होने का खुलासा किया।

पर क्या वाकई में बच्चे अनाथ हो रहे हैं?

हां। यह एक कड़वी हकीकत है। एक रिपोर्ट के अनुसार NCPCR की नेशनल हेल्पलाइन पर पिछले हफ्ते गुरुग्राम से एक महिला ने फोन कर पूछा कि बच्चे ने कोरोना की वजह से अपने माता-पिता को खो दिया है, उसे गोद लेने की प्रक्रिया क्या होगी? इसके बाद दिल्ली के रहने वाले 27 साल के एक शख्स ने गोद लेने से जुड़ी प्रक्रिया के बारे में पूछताछ की।

मध्यप्रदेश के एक कॉलर ने हेल्पलाइन पर कहा कि उसका परिवार एक बच्चे को गोद लेना चाहता है, जिसने अपने पेरेंट्स को कोरोना की वजह से खो दिया है। कई लोग तो सीधे अस्पतालों से संपर्क कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर में 1000 से ज्यादा बच्चों ने अपने माता-पिता को खो दिया है।

क्या ऐसे बच्चे का पता चलने पर उसे गोद लिया जा सकता है?

नहीं। भारत में किसी बच्चे को गोद लेने की एक तयशुदा कानूनी प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया बच्चों को शोषण और चाइल्ड ट्रैफिकिंग से बचाती है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 में तयशुदा कानूनी प्रक्रिया और सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) या कारा के जरिए ही बच्चों को गोद लिया जा सकता है।

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने पिछले हफ्ते पत्र सूचना कार्यालय (PIB) के फैक्ट चेक मैसेज को शेयर किया। साथ ही यह भी कहा, “अगर आपको कोरोना की वजह से माता-पिता को खो चुके बच्चों की जानकारी मिलती है तो उसकी सूचना पुलिस या जिले की बाल कल्याण समिति को दीजिए। तत्काल हस्तक्षेप के लिए 1098 पर चाइल्डलाइन में कॉल कर सकते हैं। यह आपकी कानूनी जिम्मेदारी है। अनाथ बच्चे को गोद लेना या देना गैरकानूनी है। इस तरह के बच्चों को बाल कल्याण समितियों में जाना चाहिए और यह समितियां ही बच्चे के हित में जरूरी फैसले ले सकती हैं।”

क्या केंद्र या राज्य सरकारों ने ऐसे बच्चों के लिए विशेष व्यवस्था की है?

हां। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और NCPCR ने राज्यों को कहा है कि ऐसे बच्चों का पालन-पोषण अच्छे से हो, इसके लिए उचित इंतजाम करना आवश्यक है। महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव राम मोहन मिश्रा ने पिछले हफ्ते इस संबंध में स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण को पत्र लिखा है।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव के मुताबिक सभी हॉस्पिटल्स और कोविड केयर सेंटर में मरीजों को भर्ती करते समय भरे जाने वाले फॉर्म में एक कॉलम जोड़ा जाए। उनसे यह पूछा जाए कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो बच्चों की जिम्मेदारी किसकी होगी? भरोसेमंद व्यक्ति नहीं मिला तो ऐसे बच्चे गलत हाथों में पड़ सकते हैं।

मिश्रा के मुताबिक बेहतर ये होगा कि माता-पिता ही अपने भरोसेमंद रिश्तेदार का नाम बताए। ऐसा हुआ तो किसी भी अप्रिय स्थिति में अस्पताल बाल कल्याण समितियों को जानकारी भेज सकते हैं। इससे संवेदनशील स्थिति में पहुंच चुके बच्चों की तत्काल मदद की जा सकेगी।

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