डिफॉल्ट एडमिशन:काेराेनाकाल में विदेश में पढ़ाई होल्ड पर, 90% छात्रों ने चुना डिफॉल्ट एडमिशन का विकल्प
- हर साल लगभग 400 विद्यार्थी करते हैं विदेश जाने की तैयारी
अंकित शर्मा टॉफेल में सफल हो गए, लेकिन अब वे 12वीं के अंकों को लेकर चिंतित हैं। इसकी वजह है कि उनके कक्षा 10वीं में ज्यादा अच्छे अंक नहीं आए हैं। सीबीएसई ने जो मार्किंग स्कीम जारी की है, उसमें तीन साल के अंकों को जोड़कर स्कोर जारी होगा। इसलिए अंकित की तरह विदेश में पढ़ाई के लिए जिन विद्यार्थियों ने प्रवेश परीक्षा दी थी, ऐसे 90% छात्र डिफॉल्ट एडमिशन का विकल्प चुन रहे हैं।
दरअसल, विदेश में एडमिशन के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षा का स्कोर 3 से लेकर 5 साल के लिए मान्य है। डिफॉल्ट एडमिशन का विकल्प चुनने पर वह अगले साल प्रवेश ले सकते हैं। कोरोना की दूसरी लहर में अलग-अलग देशों ने हायर एजुकेशन में प्रवेश के लिए कटऑफ में कोई रियायत नहीं दी है। जिस कारण विद्यार्थियों को पसंदीदा शिक्षण संस्थान मिलने मुश्किल है।
इनकी पात्रता 3 से 5 साल तक
- आईईएलटीएस: इसका स्कोर 3 साल के लिए मान्य है।
- टॉफेल : इसके स्कोर 3 साल के लिए मान्य है।
- जीआरई : इसका स्कोर 5 साल के लिए मान्य है।
- जीमैट : इसका स्कोर भी 5 साल के लिए मान्य है।
इसलिए हो रही है परेशानी
इस बार विद्यार्थियों को विदेश में अच्छे इंस्टीट्यूट में प्रवेश मिलना मुश्किल रहेगा। इसकी वजह है कि इंडिया में यूनिवर्सल मार्किंग स्कीम नहीं है। अब यदि सीबीएसई की तरह मार्किग स्कीम लागू होती है तो होनहार विद्यार्थी भी औसत की श्रेणी में शामिल हो जाएंगे। -मनोज डाबरानी, डायरेक्टर, कॅरियर लांचर
विदेशी शिक्षण संस्थानों ने नहीं घटाया कटऑफ
हर साल शहर से 400 विद्यार्थी विदेश में पढ़ाई के लिए तैयारी करते हैं। इस बार विदेशी शिक्षण संस्थानों ने प्रवेश में कटऑफ नहीं घटाया है। इसलिए कक्षा 12वीं के अंकों के आधार पर विदेश के टॉप इंस्टीट्यूट में प्रवेश मिलना इस बार मुश्किल होगा। -मनीषा मोतीरमानी, डॉयरेक्टर, रेनेसा इंस्टीट्यूट