खाने पीने वाली पैकेटबंद वस्तुओं पर लेबल के जरिए जारी हो चेतावनी, इन संगठनों ने की मांग
है. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के हिस्से के रूप में सुरक्षित भोजन की गारंटी की व्याख्या की थी, जिसे अनुच्छेद 47 के साथ पढ़ा गया था
देश भर के डॉक्टर और हेल्थ एक्सपर्ट ने लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे नुकसानदेह पैकेटबंद खाने-पीने की चीजों को ले कर चेतावनी दी है. इन्होंने कहा है कि अगर वसा, चीनी और नमक की अधिकता वाले उत्पादों पर पैकेट को लेकर तुरंत हेल्थ वार्निंग शुरू नहीं की गई तो देश कई बीमारियों के बड़े खतरे में डूब जाएगा. कारोबार से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि भारत में पैकेटबंद खाने का प्रयोग बहुत तेजी से बढ़ रहा है.
पोषण और लोक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले ये संगठन पैकेटबंद चीजों पर सामने की ओर चेतावनी के नियम को अनिवार्य बनाने के लिए आगे आए हैं- न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट (एनएपीआई), इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (आईएपीएसएम), पीडियाट्रिक एंड एडोलसेंट न्यूट्रिशन सोसायटी, एपिडेमियोलॉजी फाउंडेशन ऑफ इंडिया, ब्रेस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ इंडिया (बीपीएनआई).
‘सुरक्षित भोजन हमारा अधिकार’
उपभोक्ता अधिकारों के लिए लड़ने वाली वकील और विशेषज्ञ पुष्पा गिरिमाजी ने कहा, “नागरिकों के हितों की रक्षा करने के लिए जरूरी है कि ज्यादा नमक, चीनी और वसा वाले खाद्य पदार्थों पर चेतावनी हो.” उन्होंने यह भी कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 ने उपभोक्ताओं को असुरक्षित और सेहत के लिए नुकसानदेह खाद्य पदार्थों से उचित चेतावनी लेबल के जरिये स्पष्ट तौर पर सुरक्षित रहने का अधिकार दिया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर सुरक्षित भोजन के अधिकार की व्याख्या की है. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के हिस्से के रूप में सुरक्षित भोजन की गारंटी की व्याख्या की थी, जिसे अनुच्छेद 47 के साथ पढ़ा गया था. इसमें कहा गया था कि पोषण के स्तर को बढ़ाना और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करना राज्यों का कर्त्तव्य है.
बढ़ रहा इस्तेमाल
कारोबार पर नजर रखने वाली एजेंसी यूरोमॉनिटर के अनुसार, वर्ष 2005 में अलट्रा प्रोसेस्ड फूड की प्रति व्यक्ति सालाना बिक्री 2 किलोग्राम थी जो वर्ष 2019 में बढ़कर 6 किलोग्राम हो गई है. वर्ष 2024 तक इसके प्रति व्यक्ति 8 किलोग्राम तक बढ़ने की उम्मीद है. इसी तरह, ऐसे पेय पदार्थों की बिक्री वर्ष 2005 में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 2 लीटर से कम थी जो वर्ष 2019 में लगभग 8 लीटर हो गया. वर्ष 2024 में इसके 10 लीटर तक हो जाने की उम्मीद है.
भारत में तेजी से बढ़ा मोटापे का भी खतरा
न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट (एनएपीआई) के संयोजक डॉ. अरुण गुप्ता ने कहा कि बीमार करने वाले खाद्य उत्पादों के उपयोग में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. इसे तुरंत नहीं रोका गया था आने वाले दशक में भारत भी ब्रिटेन और अमेरिका जैसे मोटापे से ग्रसित देशों में शामिल हो जाएगा. जब तक ऐसे नियम अनिवार्य नहीं बनाए जाएंगे, इंडस्ट्री इसका पालन नहीं करेगी. क्योंकि उनका स्वार्थ सिर्फ मुनाफा कमाने को लेकर है.
शोधों में चेतावनी पाई गई कारगर
ब्राजील के साओ पाउलो विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर न्यूट्रिशन में पब्लिक हेल्थ की अध्यापक और विशेषज्ञ नेहा खंडपुर ने दुनिया भर में जुटाए जा रहे साक्ष्यों को पेश करते हुए कहा कि उपभोक्ता को जागरुक करने और उनके निर्णय को प्रभावित करने में ऐसी चेतावनी सबसे प्रभावी पाई गई है. इसकी मदद से लोग बेहतर उत्पाद चुन पाते हैं.
अगली पीढ़ी को बचाना जरूरी
इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (आइएपीएसएम) की अध्यक्ष डॉ. सुनीला गर्ग ने कहा “स्वास्थ्य का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और युवा पीढ़ी का स्वास्थ्य राष्ट्र की संपत्ति है. इसलिए जरूरी है कि राज्य और केंद्र सरकारें ज्यादा चीनी, नमक या वसा वाले हानिकारक खाद्य उत्पादों और पेय पदार्थों के पैकेट पर ऊपर की ओर ही चेतावनी वाले लेबल के नियम अपनाएं.