DNA टेस्ट भले पिता की पहचान में भूल कर दे, लेकिन सिंदूर असल हीरोइन की मांग पहचानने में गलती नहीं करता

टीवी सीरियल इन दिनों दो चीजों का अड्डा बने हुए हैं, या तो यहां क्रांति के नूडल्स पकते हैं, या फिर बेवकूफियों का शोरबा उबाल मारता है। हाल में ऐसा ही एक शोरबा देग से खौलकर गिरता दिखा। बात दरअसल ये थी कि कलर्स टीवी ने अपने एक सीरियल ‘थपकी प्यार की’ का प्रोमो इंस्टाग्राम और ट्विटर पर डाला। इसमें हीरो अपनी हीरोइन की मांग में सिंदूर भरने के लिए जैसी कलाबाजियां करता है, अगर वो जिमनास्ट होता तो दुनियाभर का सोना भारतीय बैंक में जमा हो जाता। सीरियल में मांग भरने को एक हादसा दिखाने की कोशिश की गई, जिससे बाद हीरोइन का हीरो को सात जन्मों के लिए अपना पति मान लेना पक्का है।

साइंस के तमाम नियमों को नुक्कड़ वाली दुकान पर छोड़कर सिंदूर का मांग में गिरना नया हादसा नहीं। डेली सोप में ऐसे बेतुके सीन आए दिन दिखते हैं। हीरो पर कोई दूसरी लड़की आशिक होती है। वो उससे शादी के लिए सारे दांव-पेंच आजमाती है। इधर सिंदूर आता है और हवा में उड़ते हुए हीरो के हाथ से गुजरकर हीरोइन की मांग में बस जाता है।

DNA टेस्ट भी एक बार मां-पिता की पहचान में भूल कर सकता है, लेकिन सिंदूर असल मांग पहचानने में कभी गलती नहीं करता। हीरोइन भी चाहे कितनी ही आधुनिक हो, इस सीन के लिए बीच की मांग काढ़े होती है ताकि सिंदूर-भराई की रस्म ओरिजिनल लगे। क्रांति की किताबें पढ़ती महिला दर्शकों से लेकर लिविंग रूम में सीरियल देख रहे पुरुष दर्शक भी सिंदूर-खेला को चाव से देखते हैं।

मांग-भराई के इस ऑब्सेशन से कोर्ट भी अछूता नहीं। सालभर पहले गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए सिंदूर और चूड़ी को शादीशुदा हिंदू महिला की जरूरत बताया। हुआ कुछ ऐसा कि साल 2012 में शादी के बाद गुवाहाटी के एक जोड़े भास्कर दास Vs रेणु दास में लड़ाई-झगड़ा होने लगा। पत्नी ने कुछ वक्त बाद घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कराई। इस पर बदले में पति ने दलील दी कि उसकी पत्नी न तो सिंदूर लगाती थी और न ही शाखा-पोला पहनती थी।

शौहर मियां का ये तर्क हाईकोर्ट के जजों के लिए सबसे बड़ा सबूत बन गया। जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस सौमित्र सैकिया ने पति के तलाक की अपील को मंजूर करते हुए कहा कि अगर हिंदू शादीशुदा औरत मांग न भरे तो साफ है कि उसका रिश्ते पर भरोसा नहीं। ऐसे में पति को जबरन पत्नी के साथ रहने पर मजबूर नहीं किया जा सकता। और ये कहते हुए कोर्ट ने बेचारे पति को क्रूर पत्नी से छुटकारा दे दिया।

पत्नी चाहे अलसुबह जागकर नाश्ता बनाए, चाहे पति की हारी-बीमारी में रातभर ठंडी पट्टियां रखे, या उसके सपनों को पूरा करने के लिए अपने गहने तक बेच दे, सब बेकार है अगर वो मांग नहीं भरती, या गले में मोतियों की काली माला नहीं पहनती। वो जैसे ही मांग में सिंदूर डालती है, पति की आंखों में घोड़े की तरह चप्पियां लग जाती हैं। वो जब भी देखेगा, बीवी को ही देखेगा, जब भी सुनेगा, उसकी ही सुनेगा। लब्बोलुआब ये कि सौ-पचास रुपए का सिंदूर पुराने शहर के नए होटल में ठहरे बंगाली बाबा का वो टोटका है जो कभी फेल नहीं होता।

इधर इंटरनेट पर सर्च करें तो सिंदूर या बिछिआ के पक्ष में ढेरों तर्क मिल जाते हैं। नई सोच की औरत को अगर साइंस पर यकीन है तो ये दलीलें साइंस का हवाला देते हुए दावा करेंगी कि सिंदूर लगाते वक्त उंगलियां जब सिर पर फिरती हैं तो एक प्रेशर बनता है जो बालों को चमकीला बना देता है। या फिर बिछिया पहनने पर चाल चीते से भी तेज हो जाएगी।

शादी के इन देसी प्रतीकों को पश्चिम भी टक्कर नहीं दे सका। वहां शादी के बाद गले या माथे पर कुछ खास पहनने का कायदा नहीं। मियां-बीवी दोनों ही बाएं हाथ में छल्ला पहनते हैं, जो उनके शादीशुदा होने की इकलौती निशानी है, लेकिन मर्द-औरत दोनों की अंगुली में डली अंगूठी देशों को तरक्कीपसंद नहीं बना देती, बल्कि उन देशों में औरतों को कपड़ों की थान से लादकर पालतू बनाया जाता था। सांस्कृतिक तौर पर ग्रीस तब दुनिया का राजा हुआ करता था।

 

साइंस और कारोबार समेत हर जगह वो तरक्की कर रहा था। केवल सोच वहीं अटकी थी। वहां औरतों पर नजर रखने के लिए मजिस्ट्रेट हुआ करते थे। उनका काम था ग्रीक महिलाओं के चाल-चलन और शॉपिंग पर नजर रखना। इन मजिस्ट्रेट्स को कंट्रोलर ऑफ वुमन कहा जाता था। ये पक्का करते थे कि औरतें बाहर निकलते हुए भड़काऊ कपड़े न पहनें। इनके लोग बाजारों में खड़े रहते और आती-जाती औरतों के थैले चेक करते थे कि कहीं उन्होंने कुछ अनाप-शनाप तो नहीं खरीद डाला।

भूली-भटकी औरतों पर ग्रीक लेखक प्लूतार्क ने अपने लेख मॉरेलिया में लिखा था- पुरुष तो तांकझांक करते ही हैं। ये औरत की ड्यूटी है कि वो कैसे खुद को इससे बचाए। वो पूरे कपड़े पहने और खिड़की से न झांके तो सब ठीक रहेगा। ग्रीस की तरह हमारे यहां सिंदूर और मंगलसूत्र नजरबट्टू हैं। मांग भरी औरत पर कोई मर्द निगाह नहीं डालेगा और मंगलसूत्र तो ऐसे रक्षा करता है, जैसी जेड-प्लस सिक्योरिटी भी न कर सके।

बहुत पुराने समय में बकरियां अंडे दिया करती थीं। हम इंसानों ने बकरी का तो इस्तेमाल किया ही, उसके अंडे भी निगलने लगे। वे एक रोज हमारा शातिरपना समझ गईं और अंडे देना बंद कर दिया। हालांकि सलामत वो आज भी नहीं। फिलहाल यही हाल हम औरतों का है। हालांकि हालात बदलेंगे। टीवी सीरियल की उस क्लिप पर लड़कियों के साथ लड़के भी बराबरी से ट्रोलिंग कर रहे हैं। अब देर बस सोशल मीडिया से हटकर इस नई सोच के घरों तक पहुंचने की है।

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