दिल्ली में सबसे ज्यादा प्रदूषण इंडस्ट्री के कारण, जानें पराली, ट्रांसपोर्ट और धूल की प्रदूषण में हिस्सेदारी

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण समिति के अनुसार, हवा में प्रदूषण कारक कण पीएम 2.5 की मात्रा 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम 10 की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होना चाहिए. हवा में इन कणों की मात्रा जैसे-जैसे सामान्य स्तर से ऊपर होती जाती हैं, वैसे-वैसे हवा में प्रदूषण भी बढ़ता जाता है.

केंद्र सरकार ने प्रदूषण के कारणों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है. इस हलफनामे में केंद्र सरकार ने उन कारकों के बारे में बताया है, जिनकी वजह से दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण बढ़ रहा है. केंद्र ने अपने हलफनामे में एक वैज्ञानिक अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि दिल्ली में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की हिस्सेदारी सिर्फ 4 प्रतिशत है. सरकार ने इस हलफनामे में दिल्ली के प्रदूषण में असली किरदार निभाने वाले PM 2.5 और PM 10 कणों में प्रदूषण के कारकों की हिस्सेदारी के बारे में बताया है.

केंद्र सरकार ने एक चार्ट के माध्यम से बताया कि प्रदूषण के लिए जिम्मेदार पीएम 2.5 के कणों में सर्दियों में धूल से होने वाले प्रदूषण में सबसे बड़ा हिस्सा इंडस्ट्री का है, जो 30 प्रतिशत है. इसके बाद दिल्ली के प्रदूषण (पीएम 2.5 कणों) में 28 फीसदी हिस्सा ट्रांसपोर्ट का, 17 फीसदी हिस्सा इंडस्ट्री का, 10 फीसदी हिस्सा रेसिडेंशियल का, 4 फीसदी हिस्सा पराली जलाने का और 11 फीसदी हिस्सा अन्य करकों का है.

वहीं, पीएम 10 कणों में 27 फीसदी हिस्सा इंडस्ट्री का, 25 फीसदी हिस्सा धूल का और 24 फीसदी हिस्सा ट्रांसपोर्ट का है. ये तीन कारण दिल्ली में प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. इसके अलावा 9 फीसदी प्रदूषण रेसिडेंशियल के कारण, 4 फीसदी पराली जलाने से और 10 फीसदी अन्य कारणों की वजह से होता है.

Pollution

केंद्र के हलफनामें में बताया किन कारणों से होता है प्रदूषण?

पीएम 10 और पीएम 2.5 में कौन सा ज्यादा घातक?

पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर, ये एक कण के आकार को दर्शाता है. पीएम 10 के मुकाबले पीएम 2.5 के कण बहुत छोटे होते हैं. पीएम 2.5 कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है. वहीं पीएम 10 के कणों का व्यास 10 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है. पीएम 2.5 के कण हवा में और हमारी सांसों में आसानी से घुल जाता है. ये इतने छोटे होते हैं कि बिना किसी रुकावट के हमारे आंखों, गले, लीवर और फेफड़ों में घुस जाते हैं.

यही वो कण हैं जिनकी मात्रा हवा में ज्यादा होने की वजह से विजिबिलिटी भी घट जाती है और हवा में धुंध व धुंआ नजर आने लगता है. ये कण कितने छोटे हैं, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आपके बालों की मोटाई 100 माइक्रोमीटर या उससे कम होती है. यानी एक बाल पर 40 पीएम 2.5 कणों को रखा जा सकता है.

कितनी होना चाहिए इन कणों की मात्रा?

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण समिति के अनुसार, हवा में प्रदूषण कारक कण पीएम 2.5 की मात्रा 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम 10 की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होना चाहिए. हवा में इन कणों की मात्रा जैसे-जैसे सामान्य स्तर से ऊपर होती जाती हैं, वैसे-वैसे हवा में प्रदूषण भी बढ़ता जाता है.

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