लॉकडाउन डायरीज …. 22 हजार स्टूडेंट्स ने लिखे किस्से, 85% ने पहली बार मोबाइल इस्तेमाल किया, 35% पैरेंट्स ने जाना कैसे पढ़ते हैं बच्चे

कोरोना महामारी के 20 महीने बाद स्कूल शुरू हुए। घर में बंद बच्चे अब स्कूल पहुंचने लगे हैं तो उनके किस्से भी बाहर आ रहे हैं। ये वे किस्से हैं, जो कोरोना की पहली लहर के दौरान उन्होंने लिखे थे। इनमें स्टूडेंट की कहानियां हैं और अभिभावकों के अनुभव।

राज्य शिक्षा केंद्र ने कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों और उनके माता-पिता के अनुभवों को शामिल करने के लिए ‘लॉकडाउन में डायरी लिखिए’ नाम से प्रतियोगिता कराई थी। इनमें प्रदेश के 94 हजार सरकारी स्कूलों के 75 लाख बच्चों में से करीब 22 हजार ने किस्से लिखकर भेजे। एक साल पहले आए इन किस्से, कहानियां, संस्मरण व कविताओं में से छांटकर कुछ को राज्य शिक्षा केंद्र पुस्तक की शक्ल में सामने ला रहा है।

पुरानी चीजों को रिसाइकिल करना सीखा

लॉकडाउन लगा तो मम्मी से सीखा कि वे कैसे पुरानी, फटी साड़ियों व चुन्नियों से पैरपोश बनाती हैं। बाकी कपड़ों से तकिए बनाए। 6 महीने में यह सब इतने अच्छे से सीखा कि अब शायद ही भूलूं।

-खुशबू वर्मा, 8वीं, आनंद नगर मिडिल स्कूल

मुझे भी स्टूडेंट बनने का मौका मिल गया

लॉकडाउन में मोबाइल पर लर्निंग कोर्स शुरू हुआ तो मुझे भी स्टूडेंट बनने का मौका मिल गया। जो लर्निंग मटेरियल आता, मैं भी स्टडी करती और बच्चों को भी पढ़ाती। कोरोना ने हमें तकनीक सिखा दी।

-सविता, 6वीं की स्टूडेंट इशिका की मां

अब पता चला गूगल इतने काम की चीज है

लॉकडाउन में किताबें ला नहीं सकते थे। तब पापा ने कहा कि गूगल पर सर्च करो। तब पहली बार जाना कि गूगल पर किताबों का भंडार है, वह भी फ्री। इन्हें पढ़ा व डायरी लिखी।
-प्रतिभा विश्वकर्मा, 12वीं, भारती विद्या पीठ कटनी

मिल बांटकर मोबाइल का इस्तेमाल

लॉकडाउन के बाद जब घर-घर जाकर पढ़ाने की जिम्मेदारी मिली तो मुश्किल यह थी कि बिना मोबाइल के क्लासेस कैसे चलाएं। तब छात्रों के पड़ोसियों से उनके मोबाइल दिलाए। इससे 32 बच्चे जुड़ पाए।

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