पंचायत चुनाव…. आरक्षण के साथ बदले समीकरण, क्षेत्र में मेहनत कर रहे दावेदारों के अरमान धूमिल
तत्कालीन कमलनाथ सरकार द्वारा किए गए परिसीमन एवं आरक्षण की व्यवस्था को बदले जाने के साथ ही ग्रामीण राजनीति के समीकरण भी बदल गए हैं। जिला पंचायत सदस्य, जनपद सदस्य और सरपंच तक चुनाव लड़ने के लिए जो लोग 2019 से अपने क्षेत्र में तैयारी कर रहे थे। पुराना आरक्षण लागू होने से उनके अरमान धूमिल हो गए।
ग्रामीण क्षेत्र में सक्रिय राजनीति करने वाले उन लोगों को बड़ा झटका लगा है जो जिला पंचायत सदस्य के चुनाव की तैयारी कर रहे थे। ये लोग भाजपा, कांग्रेस एवं बहुजन समाज पार्टी से जुड़े नेता हैं। अब इन लोगों के सामने दूसरे प्रत्याशियों का समर्थन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
जिपं अध्यक्ष आरक्षण पर टिकीं निगाहें
प्रदेश में पंचायत चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग ने कार्यक्रम जारी कर दिया है और ये भी स्पष्ट हो गया है कि चुनाव 2014 के परिसीमन एवं आरक्षण की व्यवस्था के आधार पर ही होना है। इसके बाद भाजपा व कांग्रेस दोनों ही संगठन 14 दिसंबर को होने वाले जिला पंचायत अध्यक्ष पद के आरक्षण का इंतजार कर रहे हैं। क्योंकि, आरक्षण के अनुसार दोनों दल फील्डिंग करेंगे। हालांकि, दोनों ही दलों के नेता ये कहकर किनारे हो रहे कि पंचायत चुनाव में पार्टियों की कोई भूमिका नहीं है, लेकिन क्षेत्र में अपने समर्थित नेता के लिए जरुर संगठन के लोग काम शुरू कर चुके हैं।