इंदौर-भोपाल में पुलिस कमिश्नर सिस्टम ….. ट्रैफिक सिस्टम सुधारने में कारगर, अनुमतियों के लिए दफ्तर के चक्कर घटेंगे; जनता के लिए क्या बदलेगा, जानिए सबकुछ

मध्यप्रदेश के भोपाल-इंदौर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हो गया है। इसके बाद लोगों के मन में सवाल लाजिमी है कि आखिर इस सिस्टम से क्या फायदा होने वाला है। कुछ अनुमतियों के लिए अलग-अलग दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। सिर्फ पुलिस की परमिशन से ही काम चल जाएगा। यानी प्रशासन के कुछ पावर पुलिस के पास भी होंगे। इसके अलावा इस सिस्टम में और क्या-क्या बदला है? कैसे काम करता है? मध्यप्रदेश के दो पूर्व DGP से इस सिस्टम के बारे में सबकुछ।

जनता का फायदा क्या

  • ट्रैफिक: वर्तमान में ट्रैफिक सिस्टम के लिए ट्रैफिक पुलिस को नगर निगम, रोड कंस्ट्रक्शन एजेंसियों के भरोसे रहना पड़ता था। लैटर कम्युनिकेशन और परमिशन में वक्त लगता था। अब पुलिस का ट्रैफिक डिपार्टमेंट यह व्यवस्थाएं करेगा। इससे शहर का ट्रैफिक बेहतर होगा। वाहनों की स्पीड लिमिट भी पुलिस तय करेगी।
  • क्राइम : लोगों में खौफ पैदा करने वाले गुंडों, आदतन क्रिमिनल्स को पुलिस जिला बदर कर सकेगी। इससे लोगों को गुंडों के खौफ से मुक्ति मिलेगी।
  • पुलिस की चौकसी: वर्तमान शहर में दो SP थे, अब आठ होंगे। साथ ही, अन्य लेवल के अफसरों की संख्या बढ़ गई है। इसका फायदा शहर की चौकसी में होगा। इससे शहर में क्राइम भी कम होगा।

भोपाल के पदों के विवरण से जानते हैं कि यह सिस्टम काम कैसे करेगा

पुलिस कमिश्नर : यह जिले का सर्वोच्च पुलिस अफसर होगा। इसे अब हम पुलिस कप्तान भी कह सकते हैं, जो पहले भोपाल-इंदौर जैसे शहरों में IG हुआ करते थे। यह एकमात्र पद होगा।

2 ACP : अतिरिक्त पुलिस आयुक्त दो होंगे। ये सीधे पुलिस कमिश्नर को रिपोर्ट करेंगे। इनकी जिम्मेदारियां अलग-अलग होंगी। ये DIG रेंज के अफसर होंगे। एक ACP लॉ एंड ऑर्डर के साथ सिस्टम देखेंगे तो दूसरे क्राइम और हेडक्वार्टर का जिम्मा।

8 DCP : शहर में आठ DCP यानी आठ SP हो जाएंगे। अभी ये तीन हुआ करते थे लेकिन डायरेक्ट फील्ड में दो ही रहते थे। आठ SP होने पर यातायात, क्राइम, हेडक्वार्टर, इन्फॉरमेशन, सिक्योरिटी आदि की जिम्मेदारी अलग-अलग DCP के पास होगी।

12 Add. DCP : शहर में एडीशनल SP लेवल के 12 अफसरों की पोस्टिंग एडीशनल DCP के रूप में हो जाएगी। ये अलग-अलग मामलों को लेकर DCP को रिपोर्ट करेंगे। इनसे यातायात, क्राइम, हेडक्वार्टर संबंधी काम, आम लोगों के लिए जागरुकता कार्यक्रम, सिक्योरिटी, ST SC महिलाओं से जुड़े अपराध देखने होंगे।

30 सहायक पुलिस आयुक्त : CSP लेवल के 29 सहायक पुलिस आयुक्त होंगे। ये एडिशनल एसपी को रिपोर्ट करेंगे। इनमें से 29 फील्ड ऑफिसर होंगे जबकि 1 रेडियो का जिम्मा संभालेंगे।

(नोट – इंदौर में लगभग यही स्थिति है। केवल एडिशनल DCP और सहायक पुलिस आयुक्तों के पद में मामूली अंतर है।)

दो पूर्व डीजीपी इसे किस तरह देखते हैं

इसके कई फायदे: एसके दास

पूर्व DGP एसके दास का कहना है कि इससे ट्रैफिक में तो सुधार होगा ही। इसके साथ, आरोपियों पर कार्रवाई भी हो सकेगी। पहली चीज ट्रैफिक में भी सुधार आएगा। अभी इसके लिए डीएम पर निर्भर रहना होता है, लेकिन अब सीधे पुलिस डिसीजन ले पाएगी। SDM के पावर पुलिस के पास आ जाएंगे। इसमें माफिया में भी डर का माहौल पैदा होगा। उन्हें जेल में डालकर अपने हिसाब से निर्णय लिया जाएगा। लॉ एंड ऑर्डर में भी मौके पर फैसला लिया जाएगा।

जनता के लिए तोहफा: दिनेश जुगरान

पूर्व DGP दिनेश जुगरान का कहना है कि यह जनता के लिए तोहफा है। पुलिस की जिम्मेदारी बढ़ेगी। इस सिस्टम से पावर एक जगह हो जाएगा। अभी लोगों को अनुमतियों के लिए पुलिस, राजस्व अधिकारियों के चक्कर लगने पड़ते थे। अब एक जगह ही जनता के काम हो जाएंगे। उन्हें भटकना नहीं पड़ेगा। गुंडे बदमाशों पर पुलिस जिला बदर जैसी कार्रवाई कर सकेगी। थानों में जल्द सुनवाई होगी।

छानबीन बेहतर होगी : यादव

एक और पूर्व डीजीपी आरएलएस यादव बताते हैं कि पुलिस की खुद की आचार संहिता होगी। ट्रेनिंग होगी। दोनों शहरों में आईपीएस अधिकारियों की सख्या भी बढ़ेगी। सुपरविजन बेहतर होगा। क्राइम, साइबर अपराध, घरों चोरी, डकैती, बैंक डकैती जैसे जितनी भी तरह के क्राइम है, उनके लिए अलग से आईपीएस होगा। छानबीन बेहतर होगी। दोनों शहरों में पुलिस कमिश्नर सिस्टम की जरूरत थी।

दूसरे राज्यों से तुलनात्मक रूप से कहां हैं हम

राजस्थान में एसीपी को प्रतिबंधात्मक धाराओं से जुड़े केसों में सुनवाई करने का और फैसला करने का अधिकार दिया गया है। कमिश्नरेट में ही न्यायालय लगता है। इनमें से ज्यादातर धाराएं शांतिभंग या पब्लिक न्यूसेंस रोकने से जुड़ी हैं। इन मामलों में जमानत देने या न देने का फैसला पुलिस अधिकारी ही करते हैं।

महाराष्ट्र के नागपुर में पुलिस कमिश्नर के पास अपराधियों को जिला बदर करने, जुलूस और जलसों की अनुमति देने, किसी भी जगह को सार्वजनिक स्थल घोषित करने, आतिशबाजी करने की अनुमति के अधिकार हैं। संतान गोद लेने की अनुमति भी नागपुर में पुलिस कमिश्नर ही देता है।

यूपी के लखनऊ, कानपुर, वाराणसी और नोएडा में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू है। वहां 14 एक्ट के अधिकार पुलिस कोे दिए गए हैं। सीआरपीसी की धारा 133 और 145 के तहत पब्लिक न्यूसेंस को काबू में करने के लिए एहतियाती कदम उठाना जैसे अधिकार भी प्रशासन से पुलिस को दे दिए गए हैं।

रासुका लगाने के पॉवर अभी नहीं

रासुका के अधिकार पुलिस कमिश्नर को अभी नहीं दिए गए हैं। भोपाल और इंदौर के पुलिस कमिश्नर को भी एक जनवरी 2022 राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के उपयोग का अधिकार मिल सकता है। इसी दिन इसकी अधिसूचना जारी होगी। इसके बाद प्रदेश के 52 कलेक्टरों और दो पुलिस कमिश्नरों के पास एनएसए के उपयोग का अधिकार होगा। अभी यह अधिकार कलेक्टरों के पास है। राज्यों को एनएसए के अधिकार केंद्र सरकार देती है। राज्य हर तीन माह के लिए यह अधिकार कलेक्टरोें को देते हैं। अभी दिसंबर तक के अधिकार कलेक्टरों को मिले हैं।

पुलिस को यह अधिकार मिलेंगे

  • पुलिस एक्ट: मेट्रोपोलिटिन में पुलिस आयुक्त के अधीन पुलिस का प्रशासन रहेगा। वे DGP के नियंत्रण व परिवेक्षण में रहेंगे।
  • बंदी अधिनियम: जेल में बंद कैदियों को पैरोल और आपातकाल में पैरोल बोर्ड की अनुशंसा पर सशर्त छोड़ा जाएगा।
  • विष अधिनियम: गैर कानूनी जहर या तेजाब रखने अथवा बेचने वालों की तलाशी पर से बरामद जहर या तेजाब जब्त किया जाएगा।
  • अनैतिक व्यापार अधिनियम: वैश्यावृत्ति के खिलाफ कार्रवाई की जा सकेगी। इस पेशे में धकेली गई महिलाओं को मुक्त कराया जा सकेगा। संरक्षण गृह में भेजा जा सकेगा।
  • कानून के खिलाफ एक्टिविटी: केन्द्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित संगठनों की गैरकानूनी गतिविधियों को प्रतिबंधित किया जा सकेगा।
  • मोटरयान अधिनियम: वाहनों की पार्किंग अथवा उनके रुकने के स्थान अधिकारियों से समन्वय कर निर्धारित किए जा सकेंगे। वाहनों की गति सीमा निर्धारित होगी।
  • मप्र सुरक्षा अधिनियम: गुंडे बदमाशों को और ऐसे अपराधी तत्वों के गैंग और आदतन अपराधियों को जिला बदर किया जा सकेगा।
  • शासकीय गुप्त बात अधिनियम: सरकारी गोपनीय दस्तावेज रखने और इस अधिनियम के विरुद्ध की गई गतिविधियों पर कार्रवाई की जा सकेगी।

क्या है पुलिस कमिश्नर सिस्टम

कमिश्नर सिस्टम को आसान भाषा में समझें तो फिलहाल पुलिस अधिकारी कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं होते। वो आकस्मिक परिस्थितियों में कलेक्टर (DM), संभागीय आयुक्त या शासन के दिए निर्देश पर ही काम करते हैं। पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद अब जिला अधिकारी और एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के कुछ अधिकार पुलिस अधिकारियों को भी मिल गए हैं। शहर में धरना प्रदर्शन की अनुमति देना, दंगे के दौरान लाठी चार्ज या कितना बल प्रयोग हो, ये निर्णय सीधे पुलिस ही करेगी।

आजादी से पहले भी था आयुक्त सिस्टम

पुराने रिकॉर्ड्स देखें, तो आजादी से पहले अंग्रेजों के दौर में कमिश्नर प्रणाली लागू थी। इसे आजादी के बाद भारतीय पुलिस ने अपनाया। इस सिस्टम में पुलिस कमिश्नर का सर्वोच्च पद होता है। अंग्रेजों के जमाने में ये सिस्टम कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में हुआ करता था। इसमें ज्यूडिशियल पावर कमिश्नर के पास होता है। यह व्यवस्था पुलिस प्रणाली अधिनियम, 1861 पर आधारित है।

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