UP चुनावः क्यों और किन वजहों से PM नरेंद्र मोदी को करनी पड़े डेढ़ महीने में ताबड़तोड़ 6 दौरे
उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले बीजेपी बेहद सक्रिय हो गई है और पहले पिछले 2 महीनों में पार्टी की ओर से पूर्वांचल में पूरी प्रशासनिक और राजनीतिक ताक़त झोंक दी गई है. चुनाव से पहले आचार संहिता लागू होने से पहले पार्टी राज्य के सभी बड़े प्रोजेक्टस के उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी से करवा लेना चाहती है.
उत्तर प्रदेश में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं और राज्य में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) फिर से चुनाव में जीत की कोशिशों में लगी हुई है, ऐसे में राज्य में राजनीतिक दौर का सिलसिला तेज हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार दौरे कर रहे है, खासकर उनका फोकस पूर्वी उत्तर प्रदेश पर है. अब कयास भी लगाए जाने लगे हैं कि बीजेपी पूर्वांचल की ओर फोकस क्यों कर रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने चुनाव से चंद महीने पहले अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के लिए लगातार 2 दिनों का कार्यक्रम रखा है. यह ध्यान देने वाली बात है कि पिछले 2 महीनों में प्रधानमंत्री मोदी का पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश) का यह छठा दौरा है. हालांकि प्रधानमंत्री की ओर से जिस तरह से ताबड़तोड़ पूर्वांचल का दौरा किया जा रहा है, वह आगामी चुनाव में क्षेत्र की राजनीतिक अहमियत को दर्शाता है. प्रदेश के 4 मुख्य राजनीतिक क्षेत्रों (पूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध और पश्चिमी उत्तर प्रदेश) में सीटों के लिहाज से पूर्वांचल का महत्व काफी है.
कुशीनगर से शुरू हुआ पूर्वांचल का दौरा
चुनाव से पहले बीजेपी बेहद सक्रिय हो गई है और पहले पिछले 2 महीनों में पार्टी की ओर से पूर्वांचल में पूरी प्रशासनिक और राजनीतिक ताक़त झोंक दी गई है. चुनाव से पहले आचार संहिता लागू होने से पहले पार्टी राज्य के सभी बड़े प्रोजेक्टस के उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी से करवा लेना चाहती है.
इसकी शुरुआत, करीब 2 महीने पहले हुई थी. जब प्रधानमंत्री मोदी ने 20 अक्टूबर को कुशीनगर जिले में अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे का लोकार्पण किया था. उसके 5 दिन बाद 25 अक्टूबर को पीएम ने पूर्वांचल के 9 जिलों में मेडिकल कॉलेजों का लोकार्पण किया. उन्होंने फिर 16 नवंबर को सुल्तानपुर में लखनऊ से गाजीपुर को जोड़ने वाले 341 किलोमीटर लंबे और 22,500 करोड़ की लागत से बने पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन किया.
पिछले दिनों 7 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने 9,600 करोड़ रुपये की कई परियोजनाओं का लोकार्पण किया. इसमें गोरखपुर के एम्स के अलावा एक बड़ा फर्टिलाइज़र प्लांट भी शामिल है. 11 दिसंबर को प्रधानमंत्री ने गोंडा, बलरामपुर और बहराइच जिलों में करीब 9,600 करोड़ की लागत से बने सरयू कनाल प्रोजेक्ट का लोकार्पण किया. और अब कल सोमवार को नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 339 करोड़ से बनाए गए काशी कॉरिडोर का लोकार्पण किया.
सरकार के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश
बीबीसी ने उत्तर प्रदेश की वरिष्ठ पत्रकार सुमन गुप्ता के हवाले से लिखा है कि बीजेपी अपने पक्ष में माहौल बरकरार रखने की हरसंभव कोशिश कर रही है. उनके अनुसार, “मोदी और योगी दोनों की जो निजी छवि है, उस छवि को बरकरार रखना एक बड़ा सवाल है. इससे पहले 2018 के गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री रहते बीजेपी जब वो सीट हार गई थी, तब जगह-जगह उनकी आलोचना होती थी और उन पर सवाल खड़े होने लगे थे. इसलिए वे किसी भी स्थिति में इस दांव को गंवाने देना नहीं चाहते.”
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में करीब 26 जिले आते हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां की 156 में से 106 सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई थी. जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में पूर्वांचल क्षेत्र की 30 में से 21 सीटों पर बीजेपी के सांसद चुने गए. साथ ही पार्टी के सहयोगी अपना दल के भी 2 सांसद चुने गए. अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी की कोशिश होगी कि वो किसी भी तरह से इस इलाके में अपना दबदबा बनाए रखे.
हाल के सर्वे ने बढ़ाई बीजेपी की चिंता
पिछले दिनों एबीपी न्यूज और सी वोटर के चुनावी सर्वे के जरिए संकेत दिए गए थे कि मौजूदा हालात में पूर्वांचल में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को 40 फीसदी, सपा और उसके सहयोगियों को 34 फीसदी, और बसपा को 17 फीसदी, वोट मिलने का अनुमान है. इसी सर्वे में पूर्वांचल में विधानसभा सीटों की संख्या 130 बताई गई. इस लिहाज से इस इलाके को पश्चिमी उत्तर प्रदेश (136 सीट) के बाद दूसरा सबसे बड़ा चुनावी क्षेत्र बताया गया.
सर्वे से मिले आंकड़ों के अनुसार, अगले चुनाव में पूर्वांचल क्षेत्र में बीजेपी को 61-65, सपा को 51-55 और बसपा को 4-8 सीटें मिलने के आसार हैं. यह भी निकल कर आया कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे बीजेपी और सपा के बीच अंतर तेजी से कम होता जा रहा है. हालिया सर्वे में जिस तरह से सपा को बढ़त मिलता दिखाया जा रहा है, जाहिर है कि उससे बीजेपी रणनीतिकारों को अलर्ट रहने पर मजबूर किया होगा.
अखिलेश यादव का छोटी पार्टियों से करार
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कई छोटी पार्टियों सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, महान दल, अपना दल (कृष्णा पटेल), जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के साथ गठबंधन कर पूर्वांचल क्षेत्र में अपने गठबंधन को मजबूती देने की कोशिश की है. पिछले कुछ दिनों में सपा ने पूर्वांचल के कई बड़े नेताओं को जोड़ा है. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में पिछले दो दशक से रहे गोरखपुर के ब्राह्मण नेता हरिशंकर तिवारी, अपने विधायक पुत्र विनय शंकर तिवारी और खलीलाबाद से बीजेपी के विधायक जय चौबे के साथ रविवार को सपा में शामिल हो गए.
बसपा के कद्दावर नेता और कटेहरी से विधायक लालजी वर्मा और अकबरपुर से बसपा विधायक राम अचल राजभर ने भी अखिलेश यादव की मौजूदगी में अकबरपुर में सपा की सदस्यता ले ली है.
अखिलेश यादव की लोकप्रियता बढ़ती जा रही
दूसरी ओर, कृषि कानूनों के खात्मे के बाद किसान आंदोलन खत्म हो गया है और दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान अपने घरों की ओर लौट चुके हैं. आंदोलन में बड़ी संख्या में शामिल किसान पश्चिम उत्तर प्रदेश से ही थे. ऐसे में पश्चिम यूपी में बीजेपी के पक्ष में माहौल बदलने में अभी वक्त लग सकता है.
वहीं बीजेपी के अलावा जातिगत राजनीति पर आधारित उसके सहयोगी दल भी माहौल बनाने में जुट गए हैं. निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉक्टर संजय निषाद ने कहा कि वो लखनऊ में “सरकार बनाओ और अधिकार पाओ संयुक्त विशाल रैली” करने वाले हैं. इसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी रहेंगे.
अब जब जल्द ही उत्तर प्रदेश में चुनाव आचार संहिता लागू होने वाली है तो बीजेपी की सक्रियता ने सियासी हलकों में यह चर्चा शुरू कर दी है कि क्या सत्तारुढ़ पार्टी की हालत खराब है और समाजवादी पार्टी अपने छोटे-छोटे गठबंधनों के जरिए सत्ता के करीब पहुंचती दिख रही है. पीएम मोदी की सक्रियता को लेकर चुनावी माहौल बनता दिख रहा है. इस बीच कई लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं तो कहीं इसके समर्थन में हैं. वहीं अखिलेश यादव की जनसभाओं में जुट रही अपार भीड़ से भी बीजेपी खेमा परेशान दिख सकता है.