सुप्रीम कोर्ट से सरकार को झटका …… एसएलपी खारिज; महापौर और नगर पालिका- नगर पंचायत के अध्यक्ष पद के आरक्षण पर हाईकोर्ट का स्टे बरकरार

सुप्रीम कोर्ट से शिवराज सरकार को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने बुधवार को उस एसएलपी (स्पेशल लीव पिटीशन) को सुनवाई के बाद खारिज कर दिया है, जिसमें नगर निगम के महापौर व नगर पालिका, नगर पंचायत के अध्यक्ष पद के आरक्षण पर हाई कोर्ट के स्टे को चुनौती दी गई थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर को सुनवाई पूरी कर फैसला रिजर्व रखा था, जिसे 15 दिसंबर को सुनाया। सरकार की एसएलपी के खारिज होने के बाद अब मामला फिर से हाईकोर्ट में सुना जाएगा।

राज्य शासन ने अपनी एसएलपी में तर्क दिया था कि नगर पालिका अधिनियम 1999 के नियम छह में रोटेशन की प्रक्रिया निर्धारित की है, लेकिन हाई कोर्ट ने नियम छह के पूरे नियमों को नहीं पढ़ा है। संविधान के अनुच्छेद 243 टी के क्लाज 5 में राज्य विधायिका को शक्तियां दी गई हैं। इस नियम के तहत अपने विवेक से कार्य कर सकते हैं। इसके साथ ही आबादी के आधार पर पदों को आरक्षित किया जाता है, लेकिन कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज कर दिया।

मार्च 2021 में हाईकोर्ट ने लगाई थी रोक
हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में नगर निगम के महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष व नगर पंचायत अध्यक्षों के आरक्षण को चुनौती देने के लिए अलग-अलग 9 जनहित याचिकाएं दायर की गई थी। डबल बैंच में सभी जनहित याचिकाओं को एक साथ सुना जा रहा है। कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को अंतरिम आदेश पारित करते हुए नगर निगम, नगर पालिका, नगर परिषद के आरक्षण की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। जानकारी के मुताबिक कोर्ट ने राज्य शासन से जवाब मांगा था, लेकिन राज्य शासन ने अपने जवाब में आरक्षण की प्रक्रिया को सही बताया था। इसके बाद सभी याचिकाएं जबलपुर की प्रिंसिपल बैंच में ट्रांसफर हो गई थी।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के चलते हाईकोर्ट ने बढ़ा दी थी तारीख
राज्य शासन ने हाई कोर्ट के समक्ष तर्क दिया था कि सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दी है। कोर्ट ने रोक बरकरार रखते हुए याचिकाओं की तारीख बढ़ा दी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को राज्य शासन की एसएलपी पर सुनवाई हुई। एसएलपी को खारिज कर दिया। इस एसएलपी के खारिज होने से अब हाई कोर्ट में अंतिम फैसला होगा है। हाई कोर्ट में सुनवाई होने से नगरीय निकाय के आरक्षण पर भी जल्द फैसला हो सकता है, क्योंकि कोर्ट के स्टे के कारण नगरीय निकाय के चुनाव नहीं हो पा रहे हैं।

याचिकाकर्ता का तर्क – आरक्षण के रोस्टर का पालन करना चाहिए
बता दें कि याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में तर्क दिए थे कि महापौर व नगर पालिका, नगर परिषद के अध्यक्ष पद के आरक्षण में रोटेशन प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। जो नगर निगम व नगर पालिका के अध्यक्ष पद लंबे समय से रिजर्व हैं। इस कारण दूसरों को चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिल पा रहा है। आरक्षण के रोस्टर का पालन करना चाहिए।
रवि शंकर बंसल ने डबरा नगर पालिका के अध्यक्ष पद के आरक्षण को चुनौती दी थी। इस याचिका में स्टे आदेश आने के बाद 8 याचिकाएं और आ गईं। मनवर्धन सिंह की जनहित याचिका में 2 निगम व 79 नगर पालिका व नगर परिषद के आरक्षण पर रोक लगा दी थी। राज्य शासन ने इन याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

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