पंजाब का ‘सीएम जोन’ मालवा विकास में पिछड़ा …. हरियाणा अलग होने के बाद 18 में से 15 मुख्यमंत्री बने, फिर भी शिक्षा-लिंगानुपात में दोआबा-माझा से पीछे
1966 में हरियाणा से अलग होने के बाद से पंजाब में 18 मुख्यमंत्री बने। इनमें से 15 मालवा के रहे, फिर भी विकास में दोआबा और माझा से यह इलाका काफी पीछे है। यानी क्षेत्रफल और विधानसभा सीट के लिहाज से पंजाब का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र नेताओं की उदासीनता का शिकार ही रहा।
दोआबा और माझा में जितना विकास हुआ, उतना मालवा में नहीं हुआ। किसी क्षेत्र के विकास में साक्षरता दर और महिला-पुरुष के अनुपात को मुख्य बिंदु माना जाता है। इन दोनों बिंदुओं पर भी मालवा काफी पिछड़ा हुआ है। मालवा की साक्षरता दर 72.3 प्रतिशत है, जबकि दोआबा की 81.48% और माझा की 75.9% है। यानी मालवा इलाके के रहने वाले लोग दोआबा और माझा के मुकाबले कम पढ़े-लिखे हैं।
इस बार भी मालवा से ही सीएम बनने के हैं आसार सीएम पद की रेस में चल रहे कांग्रेस के चरणजीत सिंह चन्नी, शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर बादल, आम आदमी पार्टी से संभावित चेहरा भगवंत मान और किसान आंदोलन के बाद चुनाव में उतर चुकी संयुक्त समाज मोर्चा पार्टी के प्रमुख किसान नेता व सीएम फेस बलबीर सिंह राजेवाल भी मालवा क्षेत्र से ही आते हैं।