डिजिटल यूनिवर्सिटी के साइड इफेक्ट …लड़कियों को फिर हल्दी-मिर्च-नमक में झोंकने की तैयारी!

बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश में डिजिटल यूनिवर्सिटी खोलने और ई-विद्या को बढ़ावा देने की घोषणा की है। सुनने में यह टर्म कानों को फील गुड कराता है। अहसास होता है कि इससे पढ़ाई-लिखाई नेक्स्ट लेवल पर पहुंच जाएगी, लेकिन कोविड के समय में ऑनलाइन एजुकेशन का हाल हम सब देख चुके हैं। सरकार ने माना है कि कोरोना के समय में स्कूलों के बंद होने प्राइमरी से पहले से लेकर ग्रेजुएशन करने तक 15 करोड़ लड़कियों की पढ़ाई पर असर पड़ा। अब नए फरमान से हालात बदतर होने का बराबर खतरा है।
लड़कियों को किचन में कूचने का कदम न बन जाए
हालांकि, पढ़ाई के डिजिटल होने से नए अवसर मिलेंगे लेकिन पढ़ाई के ऑनलाइन होने पर लड़कियां पीछे हो जाती हैं। जिन परिवारों में एक ही स्मार्टफोन है उनमें बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह से प्रभावित हुई। साथ ही भारतीय व्यवस्था में लड़कियों से हमेशा यह उम्मीद की जाती रही है कि पहले वे घर के काम निपटा लें बाद में कुछ और करें। ऐसे में अगर डिजिटल यूनिवर्सिटी के तहत उन्हें घर बैठकर पढ़ना पड़ेगा तो ये कोशिश उन्हें फिर से किचन में कूचने का कदम न बन जाए। लड़कियां जब घर बैठकर पढ़ती हैं तो परिवार उम्मीद करता है कि वे घर के काम भी निपटा लें और पढ़ाई भी कर लें। यही वजह है कि लड़कियों में तनाव भी बढ़ा है।

लड़कियों के पैरों में ‘बेड़ियां पड़ने का खतरा’
इस पर दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली अक्षिता तिवार का कहना है कि ‘डिजिटल यूनिवर्सिटी बदलाव की ओर कदम बेशक है, लेकिन इस तरह की पहल से लड़कियों को जो समान अवसर देने की बात होती थी अब वे नहीं रहेंगे। डिजिटल यूनिवर्सिटी का मतलब हुआ कि स्टूडेंट्स को घर बैठकर पढ़ना होगा। लड़कियां पहले ही घर से बाहर सिर्फ पढ़ने लिखने या किसी काम की वजह से निकलती थीं, अब डिजिटल यूनिवर्सिटी जैसे कॉनसेप्ट उनका पढ़ाई-लिखाई के लिए घर से बाहर निकलना भी बंद कर देंगे।’
आगे अक्षिता कहती हैं, ‘जब वे घर बैठकर पढ़ेंगी तो उनसे यह भी उम्मीद की जाएगी कि वे घर के कामों भी हाथ बटाएं। इससे उन लड़कियों की पढ़ाई प्रभावित होगी, साथ ही जिन ग्रामीण लड़कियों को पढ़ाई की वजह से बड़े शहर आने का मौका मिलता था अब वो नहीं मिल पाएगा।’

डिजिटल यूनिवर्सिटी फिलहाल कानों को अच्छी लगने वाली चीज
डिजिटल यूनिवर्सिटी क्या है, पढ़ाने का तरीका क्या होगा, दाखिला प्रक्रिया क्या होगी, ग्रामीण या शहरी किस एरिया के लिए यह विश्वविद्यालय होगा, इसका ब्लू प्रिंट क्या होगा इन्हीं सब सवालों को उठातीं दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. तृष्णा सरकार का कहना है कि डिजिटल यूनिवर्सिटी सिर्फ हेडलाइन बनाने का काम है। डिजिटल यूनिवर्सिटी खुलेगी तो उससे लड़कियों की पर्सनेलिटी पर नेगेटिव असर पड़ेगा।

असिस्टेंट प्रोफेसर तृष्णा सरकार का कहना है कि पुरुष प्रधान समाज में पहली प्राथमिकता पुरुषों को दी जाती है, ऐसे में अगर घर में एक स्मार्टफोन है तो पहले लड़के को पढ़ने का मौका मिलेगा। दूसरा, अगर ऐसी कोई यूनिवर्सिटी खुलती भी है तो लड़कियां घर में सिमट जाएंगी। वे किसी यूनिवर्सिटी में नहीं जा पाएंगी। जिस देश में घर-घर बिजली नहीं, पर कैपिटल इनकम कम है, जरूरी सुविधाएं नहीं हैं और बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है, ऐसे में यह यूनिवर्सिटी कैसे काम करेगी। कोविड में हमने ऑनलाइन एजुकेशन से देख लिया है कि एजुकेशन सिस्टम कितना नीचे गिरा है। इस तरह की डिजिटल यूनिवर्सिटी लड़कियों पढ़ाई को लेकर हतोत्साहित करेगी।
कॉलेज ही नहीं, हॉस्टल लाइफ भी बहुत कुछ सिखाती है
जयपुर में पत्रकारिता की स्टूडेंट पलक बंसल का कहना है कि कोविड के समय में हमने ऑनलाइन पढ़ाई की उससे नुकसान यह हुआ कि प्रैक्टिल चीजें जो कॉलेज जाकर सीख सकते थे वो नहीं सीख पाए। कॉलेज लाइफ नहीं जी पाए। साथ ही हमेशा फोन देखने की वजह से आंखें खराब हुईं वो अलग। बजट में बताया गया है कि यह डिजिटल विश्वविद्यालय ग्रामीण स्तर से शहरी आबादी की तरफ आएगा। इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि गांवों में इंटरनेट फैसिलिटी बेहतर हो जाएंगी, लेकिन सबकुछ ऑनलाइन होगा तो हम लड़कियों का घर से बाहर निकलने का एक्सपोजर कम हो जाएगा। लड़कियां पहले ही सिर्फ पढ़ाई-लिखाई के लिए बाहर निकलती थीं अब अगर डिजिटल विश्वविद्यालय खुलेगा तो उनके दायरे और सीमित हो जाएंगे।
लड़कियों को हल्दी-मिर्च-नमक में झोंकने की तैयारी
ग्वालियर महिला मुद्दों पर काम करने वाली समाजसेविका रीना शाक्य का कहना है कि महामारी में हमने देखा है ऑनलाइन शिक्षा ने छात्राओं दोनों की शिक्षा पर विपरीत प्रभाव डाला है। डिजिटल विश्वविद्यालय की परिकल्पना एक बार फिर लड़कियों को हल्दी, नमक, मिर्च में झोंकने की तैयारी है। जब लड़कियां घर बैठकर पढ़ेंगी तो घर वाले उनसे उम्मीद करेंगे कि घर में कोई रिश्तेदार आ गया है तो उसे चाय बनाकर पिला दें या फोन को किचन में रखकर सब्जी छौंक दें। इस तरह से लड़कियों की शिक्षा ही प्रभावित होगी और इसका कोई फायदा नहीं मिल सकेगा।

ऑनलाइन एजुकेशन से 1 करोड़ लड़कियों की पढ़ाई छूटी
राइट टू एजुकेशन फोरम के समन्वयक मित्र रंजन का कहना है कि लड़कियां, दिव्यांग, दलित, आदिवासी जैसे समुदाय इस ऑनलाइन मोड ऑफ एजुकेशन सिस्टम से बाहर निकल जाएंगे। कोरोनाकाल का अनुभव बताता है कि ऑनलाइन एजुकेशन ने बच्चों की पढ़ाई का एक्सेस कम किया है। इंटरनेट और डिवास की उपबल्धता बहुत कम है। डिजिटल एजुकेशन प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा है। औपचारिक स्कूली शिक्षा को खत्म करने की तरफ इशारा है। राइट टू एजुकेशन को कमजोर करने की पहल है।
चेंजमेकर्स का समूह ‘ग्लोबल सिटिजन’ का अनुमान है कि भारत में लगभग 1 करोड़ माध्यमिक विद्यालय की लड़कियां महामारी के कारण स्कूल छोड़ सकती हैं, जिससे उन्हें जल्दी शादी, अर्ली प्रेग्नेंसी, गरीबी और तस्करी का खतरा हो सकता है। मित्र रंजन का कहना है कि डिजिटल यूनिवर्सिटी का सपना एक ढकोसला है। यह बच्चों को औपचारिक शिक्षा से बाहर करेगा। इससे बच्चों को समेकित विकास नहीं होगा।

लड़कियों के लिए मौका लेकिन नेगेटिव असर भी पड़ेगा
भोपाल के बंसल अस्पताल में कंसल्टेंट साइकेट्रिस्ट डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि डिजिटल यूनिवर्सिटी महामारी की सीख है। इस तरह की वैकल्पिक यूनिवर्सिटी की सोच महिलाओं के सशक्तिकरण की काम करेगी। जो महिलाएं घर से बाहर पढ़ाई के लिए नहीं नहीं निकल पाती थीं अब वे घर बैठकर पढ़ पाएंगी। साथ ही इसके नकारात्मक पहलू की तरफ देखें तो ऑनलाइन एजुकेशन से मानसिक स्वास्थ्य पर नेगेटिव असर पड़ेगा। शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा। घर में बच्चा एमबीए कर चुका होगा लेकिन किसी को मालूम ही नहीं होगा कि उसने यह पढ़ाई कर ली है।
हमारे पास ओपन यूनिवर्सिटी, पहले इनको डिजिटल बनाएं
एक्टिविस्ट रंजना कुमारी का कहना है कि हमारे पास पहले से ही इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी है जिसे सरकार को डिजिटलाइज्ड करने के बारे में सोचना चाहिए, लेकिन उन्होंने एक और यूनिवर्सिटी खोलने की बात कही है। जबकि मेरा सुझाव यह है कि जो विश्वविद्यालय हमारे पास पहले से ही हैं हमें उन्हें डिजिटल करना चाहिए। भविष्य डिजिटल एजुकेशन का ही है। इसलिए हमें इस और ध्यान देना चाहिए।

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